आज के ब्लॉग में गानों की बात कम करूंगी, वो तो करती ही रहती हूं, आज मानवीय रिश्तों पर कुछ लिखना चाहती हूं. मन इन दिनों बेवजह ही दार्शनिक हुआ जाता है. हालांकि दिल के नाजुक रगों के बयान पर कई सुंदर गीत और गजलें लिखी गई हैं, जिनके बारे में कभी विस्तार से लिखना बाकी रहेगा.
मानवीय रिश्ते तिलिस्म की तरह हैं, जिनका ताना-बाना अबूझ है. इनका मनोविज्ञान कोई बांच नहीं सकता. बनावटीपन, अधूरापन, खोखलापन, दरकते हुए आधे-अधूरे रिश्ते, रिश्तों से बंधा मन, रिश्तों की संकीर्णताएं, जटिलताएं, तल्खियां, कितना कुछ है जो रिश्तों को परिभाषित करने के लिए है. रिश्तों का भरम कायम रखने की कोशिश में इंसान रीत जाता है.
हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं...
संबंधों के टूटने की बात पर मेरा मन भीतर से ही उदास हो जाता है, उनके बारे में भी सुन कर जिनसे मेरा कोई लेना-देना नहीं, कोई बातचीत भी नहीं पर जानें क्यों दुखों से मेरा इतना राबता कायम हो गया है कि हर पराए दुख से भी एकाकार हो जाती हूं.
इस दुनिया में कई तकलीफें हैं, जो रिश्तों से उपजती हैं. इसमें से एक दुख है अपनी आंखों से उन लोगों को दूर जाते देखना जो कभी हमारी जिंदगी का अटूट हिस्सा रहे थे और अब हमने उन पर से सारे अधिकार खो दिए. अब कोई साथ नहीं, बात नहीं, एक राह नहीं. छोटी-छोटी गलत-फहमियां, वैचारिक मतभेद, मनभेद या समय के साथ अजनबीपन का बढ़ जाना, वजह जो भी रही हो पर इससे बड़ी सजा नहीं हो सकती. हालांकि गुलजार अपनी चिर-परिचित सहजता से कहते हैं, 'हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं टूटा करते...' पर ये आधा सच है. मेरा मानना है कि भले रिश्ते नहीं टूटते पर वो संवेदनाएं वो गरमाहट बचती भी तो नहीं जो इनका अस्तित्व बचा पाए, चाहें आप कितने भी ईमानदार प्रयास कर लें. आप साहिर को साथ लेकर भी नहीं चल पाते, जहां अफसाने को खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ दें, क्योंकि आप ये मान ही नहीं पाते कि वो रिश्ता आपके अस्तित्व का हिस्सा नहीं था. जो बीत रहा है वो एक नितांत पीड़ादायी प्रस्थान है, जिसके लिए आप कभी सहज नहीं थे ना प्रस्तुत थे. रिश्तों के अधूरेपन को स्वीकार पाना जटिल है, क्योंकि आपने उन्हें बचाने की आपने प्राणपण से चेष्टा की है. आप कार्मिक रिलेशन के नाम पर भी खुद को नहीं बहला पाते हैं. आप प्रयास करना नहीं छोड़ते हैं लेकिन प्रयास की भी एक मानवीय सीमा होती है. कभी कभी वो One Fine Day कभी नहीं आता, जब सब कुछ ठीक हो जाता है बल्कि वो कयामत का दिन जरूर आता है जब सब कुछ बिखर जाता है, छिन्न-भिन्न हो जाता है. जब जीवन में दुख स्थायी भाव हो जाता है. अमिधा, लक्षणा और व्यंजना के तीनों स्तरों से ऊपर.
कैसे होता है चांद का घटना
शीन काफ निजाम कहते हैं कि प्यार चांद सा होता है और नहीं बढ़ने पाता तो धीरे-धीरे खुद ही घटने लगता है. लेकिन यह घटना आपमें जब घुटने लगता है, तो इतना विवश और असहाय कर देता है, जहां से आगे की सूझ ही नहीं पड़ती. जीवन का एक सच यह भी है कि कोई भी दुख बहुत देर तक नहीं ठहरता, वक्त की बौछारें धीरे-धीरे उसे धुंधला कर देती हैं, लेकिन हां हमारे वजूद का एक बड़ा हिस्सा उस दुख से लड़ने में तिरोहित हो जाता है. लेट्स गो का कोई भी नियम मन के साथ लागू नहीं होता. यह एक हस्तकौशल या डिप्लोमैसी से ज्यादा कुछ भी नहीं बस दिल को बहलाने के लिए गालिबन एक ख्याल ही है.
आज भी मुझे लगता है कि जिंदगी की ज्यादातर तकलीफों से वाकिफ हूं, एक इम्यून सिस्टम विकसित हो चुका है. जिंदगी बरतने की मुकम्मल सलाहियत मुझमें आ गई है, मगर फिर जिंदगी मेरी बज्म में आकर गुनगुनाती है …पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त. ये महज अर्द्ध विराम है, पूर्ण विराम के लिए थोड़ी देर और ठहर.
डिस्क्लेमर: लेखिका संगीत मर्मज्ञ हैं. वो उज्जैन के दिल्ली पब्लिक स्कूल की डायरेक्टर हैं. इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.