This Article is From Jul 28, 2023

आम होकर भी खास फिल्म है 'ट्रायल पीरियड'

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Himanshu Joshi

फिल्‍म 'ओपनहाइमर' और 'बार्बी' ने बॉक्स ऑफिस पर धमाका किया हुआ है, पर इस बीच जियो सिनेमा पर आई 'ट्रायल पीरियड' भी एक महत्वपूर्ण फ़िल्म है. यह एक ऐसे विषय को उठाती है, जो भारतीय समाज के लिए बेहद जरूरी है. जेनेलिया देशमुख की खूबसूरती और गजराज राव, मानव कौल के हिंदी में बोले संवाद आपको फ़िल्म देखते हुए निराश, तो बिल्कुल नही होने देंगे.

सिंगल मदर पर खुलकर बात करती यह फ़िल्म
निर्देशक एलेया सेन एक ऐसा जरूरी विषय उठा कर लाई हैं, जिस पर हमारे समाज में आज भी खुल कर बात नहीं होती. भारत में समाज की बंदिशों से डरी-सहमी महिला अपनी शादी में आ रही लाख दिक्कतों के बाद भी तलाक नहीं लेती. तलाक के बाद फिर शादी की हिम्मत करना मुश्किल होता है और अगर किसी को पहली शादी से बच्चा है, तो उस महिला के लिए तो दोबारा शादी नामुमकिन-सा हो जाता है. सिंगल मदर की समस्याओं पर हमारे यहां कम फिल्में बनी हैं, इस फिल्म में जिस तरह जेनेलिया देशमुख आंसू बहाते हुए बच्चे को अकेले पालने का अपना संघर्ष मानव कौल को सुनाती हैं, वह वाकई हमारे समाज की रूढ़िवादिता पर सवाल करता है. हर किसी को नई शुरुआत करने का हक होना चाहिए. अक्सर माता-पिता इसमें समाज की फिक्र करते हैं, लेकिन फ़िल्म में जेनेलिया के माता-पिता इस मामले में उनका साथ देते दिखते हैं. एलेया सेन ने जिस तरह से यह कहानी हमारे सामने रखी है, उससे उनकी काबीलियत हमारे सामने आ जाती है. जैसे जेनेलिया एक तलाकशुदा महिला हैं, दिखाने के लिए निर्देशक ने उनकी डिवोर्स की कहानी दिखाने के बजाए सिर्फ डिवोर्स सर्टिफिकेट दिखाने मात्र का ही रास्ता चुना है. एलेया सेन ने फ़िल्म के मुख्य पात्रों के रिश्ते को बड़ी पवित्रता के साथ दिखाने की कोशिश की है, जैसे खुले आकाश के नीचे बच्चे के साथ लेटे मानव के पास जब जेनेलिया आती हैं, तो यह दृश्य कहीं भी अश्लील नहीं लगता और मानव उन्हें एक कविता गाकर सुला देते हैं.

घुमावदार नहीं है कहानी
फ़िल्म की कहानी तेज गति से आगे बढ़ती है, दर्शक शुरुआती दस मिनट में ही कहानी से जुड़ जाते हैं. इस कहानी में कोई रोमांचक मोड़ नहीं आता, अंत का अनुमान दर्शकों को पहले से ही रहता है. सिंगल मदर बनी जेनेलिया देशमुख अपने बेटे के सर से पापा की जरूरत का भूत उतारने के लिए एग्रीमेंट के तहत एक महीने के लिए रोजगार की तलाश में भटक रहे मानव कौल को घर ले आती है. फिर उसके बाद रिश्तों में उतार-चढ़ाव के बाद दोनों एक हो जाते हैं.

जिडेन ब्राज बन सकते हैं भारतीय सिनेमा का बड़ा सितारा
बाल कलाकार जिडेन ब्राज के जरिए निर्देशक ने एक ऐसा किरदार गढ़ा है, जो दिखाता है कि टूट चुके रिश्तों की वजह से बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है. जिडेन ने फिल्म में एक परिपक्व कलाकार की तरह अभिनय किया है, भविष्य में उनमें एक बड़ा कलाकार बनने की क्षमता दिखाई देती है. गजराज राव के अभिनय की बात की जाए तो वह इस फ़िल्म में नौकरी दिलवाने वाले बने हैं. संवाद बोलते उनके चेहरे के हाव-भाव गजब के लगते हैं. एक बच्चे की तलाकशुदा मां बनी जेनेलिया देशमुख का अभिनय भी संवाद के दौरान चेहरे में हाव भाव लाने के मामले गजराज राव से कहीं कम नही ठहरता और उनकी खूबसूरती इसमें चार चांद लगा देती है. उज्जैन से दिल्ली पहुंचने वाले भोले-भाले व्यक्ति बने मानव कौल का आम भारतीय जैसा दिखने वाला चेहरा ही उनकी ताकत है. जिसे देख दर्शकों को वह उनके बीच से ही निकल कर स्क्रीन पर पहुंचे व्यक्ति लगते हैं, इस वजह से दर्शक मानव कौल के किरदार से बहुत जल्दी जुड़ जाते हैं. जेनेलिया के साथ उनकी कैमिस्ट्री बहुत अच्छी लगती है. जैसे मानव, जेनेलिया के गुड मॉर्निंग का जवाब सुप्रभात में देते हैं. फ़िल्म में शामिल बाकी कलाकार भी अपने किरदारों से पूरी तरह न्याय करते हैं.

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संवाद कुछ अलग से तो 'धीरे' का भी नशा कम नहीं
एक दृश्य में मानव कौल के जीवन में चल रहा संघर्ष, तो दूसरे ही दृश्य में जेनेलिया देशमुख की कहानी दिखाते हुए फ़िल्म का संपादन सही लगता है. पात्रों का बंगाली या यूपी बैकग्राउंड उनकी बोलचाल, पूरी तरह से मेल कराते हुए स्क्रिप्ट को सही तरीके से लिखा गया है. तालाब में तैरते बत्तख, इमारत के ऊपर उड़ते कबूतर, ड्रोन से दिखाया गया स्कूल, कुछ ऐसे दृश्य हैं, जो साबित करते हैं कि फिल्म के छायांकन पर बेहतरीन काम किया गया है.

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फ़िल्म का संगीत हमें बंगाल और उत्तर प्रदेश की याद दिलाते रहता है. जैसे मानव कौल जब उज्जैन से दिल्ली पहुंचते हैं, तो चाय वाले से बातचीत के दौरान हमें तबला बजता सुनाई देता है. 'धीरे' गाना सुनने में बड़ा प्यारा है और यूट्यूब में अब तक लगभग चालीस लाख बार देखा गया है. 'गोले माले' की कोरियोग्राफी प्रभावित करती है, 'पापा सुपरहीरो' गाना लंबे वक्त तक बर्थडे पार्टियों में सुनाई दे सकता है. फ़िल्म के संवाद भी एलेया सेन ने लिखे हैं और यह प्रभावी हैं. 'गुड़ में चीनी चिपक जाए और निकल नहीं पाती, देट इस प्रेम, लव' इसका उदाहरण है. 'हम बेबस हैं बेशर्म नहीं' और 'दफ्तर है ये मेरा चावड़ी बाजार नहीं है' जैसी छोटी-छोटी पंक्तियां भी फ़िल्म के प्रति आकर्षित करती रहती हैं.

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(हिमांशु जोशी उत्तराखंड से हैं और प्रतिष्ठित उमेश डोभाल स्मृति पत्रकारिता पुरस्कार प्राप्त हैं. वह कई समाचार पत्र, पत्रिकाओं और वेब पोर्टलों के लिए लिखते रहे हैं.)

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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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