This Article is From Nov 11, 2022

जब तक ठोस प्लानिंग और रीफॉर्म नहीं होगा, हाल हर बार यूं ही बेहाल होगा...!

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Manish Sharma

बात वहीं से शुरू करते हैं, जहां साल 2021 के टी-20 विश्व कप के समापन पर खत्म हुई थी. विराट की कप्तानी में टीम चूकी, तो धीरे-धीरे टीम का चेहरा बदलने की कवायद शुरू हुई. रोहित शर्मा के रूप में नया कप्तान नियुक्त हुआ, तो तत्कालीन BCCI अध्यक्ष सौरव गांगुली ने मार्गदर्शन के लिए राहुल द्रविड़ को उनकी शर्तों (ज़्यादा अधिकार, ज़्यादा पैसा, वगैरह-वगैरह) के साथ कोच पद के लिए राज़ी किया. यहां से द्रविड़ के पास अगले विश्व कप (T-20 World Cup 2022) की चुनौती से निपटने के लिए करीब 11 महीने का समय था. यह चुनौती बहुत बड़ी थी, क्योंकि उनके पास कोई 'जादू की छड़ी' तो थी ही नहीं. चयन के लिए ज़रूरी योग्यता / खिलाड़ी हासिल करने के लिए उपलब्ध मंच (IPL का प्रदर्शन + घरेलू राष्ट्रीय मुश्ताक अली ट्रॉफी का मंच) के अलावा कुछ विदेशी दौरों में राष्ट्रीय टीम, भारतीय 'ए' का प्रदर्शन शामिल था. एक बार को विदेशी दौरे ठीक हैं, लेकिन क्या IPL और सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी का मंच टीम इंडिया को खेल की वह 'ज़रूरी गुणवत्ता' प्रदान करता है, या उसके समकक्ष भी है, जो 'जादुई शैली' में खेलने वाली इंग्लिश टीम के पास है...? वास्तव में नहीं है...? IPL और मुश्ताक अली ट्रॉफी में वही अंतर है, जो एक मेक-अप और बिना मेक-अप वाली दुल्हन में होता है, लेकिन विश्व कप जीतने के लिए ज़रूरी गुणवत्ता (खेल का स्तर) दोनों से ही नदारद है. माफ कीजिए, बड़े-बड़े छक्कों की बारिश, एक हाथ से, टॉप एज से छक्के की तस्वीरें मनोरंजन ज़रूर करती हैं, वैश्विक मंच पर लड़ाई के लिए ज़रूरी गुणवत्ता प्रदान नहीं करतीं. क्या करती हैं...?

द्रविड़ ने नियुक्ति के बाद पूरा ज़ोर वर्कलोड मैनेजमेंट और खिलाड़ियों की ज़्यादा से ज़्यादा आज़माइश पर दिया. यह अच्छी बात रही, लेकिन इसके होने और स्तरीय / ज़्यादा विकल्पों के बावजूद भारतीय कोच विश्व कप में पहले मैच से लेकर शर्मनाक विदाई (इंग्लैंड के हाथों 10 विकेट से हार) तक 'समझौतावादी एकादश' के साथ खेले! फिर इतने विकल्पों और वर्कलोड मैनेजमेंट का फायदा क्या हुआ...? यह सर्वश्रेष्ठ इलेवन नहीं थी. अगर होती, तो इसमें रोहित के साथ कोई एक विकेटकीपर (पंत सर्वश्रेष्ठ विकल्प) पारी की शुरुआत करते. अगर ऐसा होता, तो इस मैनेजमेंट को एक अतिरिक्त बल्लेबाज़ या गेंदबाज़ खिलाने का मौका मिलता!

द्रविड़ ने इलेवन के सर्वश्रेष्ठ संयोजन में केवल इसी पहलू से ही बड़ी गलती नहीं की, बल्कि सभी मैचों में उस आर. अश्विन को नियमित रूप से खिलाया, जो छह ही विकेट ले सके. जहां बैटिंग के लिए आसान पिचों पर ऑस्ट्रेलिया ने एडम ज़म्पा और इंग्लैंड ने आदिल राशिद के रूप में कलाई के स्पिनर (लेग स्पिनर) को जगह दी, वहां अश्विन को क्यों लगातार खिलाया गया, यह भी मैनेजमेंट को घेरने के लिए काफी है. वास्तव में द्रविड़ विश्व कप की प्लानिंग में कुछ हद तक टीम चयन से पहले ही चूक गए, जब उन्होंने चोटिल बुमराह की जगह किसी अनुभवी पेसर को प्लान 'ए' में शामिल नहीं किया. जब हालात हाथ से निकल गए, तब उस मोहम्मद शामी की याद आई, जो पिछले करीब एक साल से व्हाइट-बॉल फॉरमैट से दूर थे. और आखिर में आर. अश्विन, अक्षर पटेल और भुवनेश्वर की नाकामी से पूरी तरह साफ हो गया कि उमरान मलिक / दीपक चाहर / दोनों या इनमें से किसी एक के साथ ज़रूर गलत हुआ.

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वहीं, द्रविड़ सहित बैटिंग कोच विक्रम राठौर को यह भी अनिवार्य रूप से बताना होगा कि नॉकआउट मैच से पहले तक के मुकाबलों में भारत का पॉवरप्ले में औसत सभी टीमों में फिसड्डी रही UAE से ही बेहतर क्यों रहा. यह औसत करीब 6.00 रन प्रति ओवर का रहा. मैनेजमेंट को जवाब देना ही होगा कि जब इस फॉरमैट में बहुत हद तक परिणाम पॉवरप्ले में भी तय हो जाते हैं, तो साल भर में इस प्लान पर कोच / बैटिंग कोच ने क्या काम किया. और अगर यह प्लान विफल रहा, तो क्यों रहा...? निश्चित तौर पर किसी को इसकी ज़िम्मेदारी लेनी ही होगी...? बहरहाल, अब सवाल यह है कि यहां से आगे क्या...?

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इस सवाल का सीधा-सीधा रिश्ता 'जादू की छड़ी' (ठोस दीर्घकालिक नीति, टी-20 के लिए मु्श्किल पिचें / ऑस्ट्रेलिया जैसी पिचें, घरेलू क्रिकेट में सुधार वगैरह-वगैरह) से जुड़ा हुआ है. पिछले साल मुश्ताक अली ट्रॉफी में पृथ्वी शॉ ऐसे बल्लेबाजी कर रहे थे, मानो वह घर की छत पर किसी रबर या प्लास्टिक बॉल से खेल रहे हों! वास्तव में, BCCI की प्रक्रिया यहीं से शुरू होती है - प्लानिंग (योजना) और रीफॉर्म (सुधार) की. अब जबकि टी-20 विश्व कप हर दो साल में होता है, तो BCCI 'दो या चार-वर्षीय योजना' (आगामी विश्व कप के हालात को देखकर) बनाकर तमाम घरेलू एसोसिएशनों को स्पष्ट / निर्देशित करे कि बोर्ड अगले दो या चार साल में 'इस ब्रांड विशेष क्रिकेट' को खेलना चाहता है. पॉवरप्ले में कम से कम इस औसत को ध्यान में रखकर खेला जाए, वगैरह. योजना के तहत साफ किया जाए कि प्लान के तहत कैसे खिलाड़ियों की ज़रूरत है, जिससे ये राज्य / जिला स्तर से ही इसी नीति के तहत खिलाड़ियों का चयन करें. लेकिन काम सिर्फ इतने भर से नहीं चलेगा.

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घरेलू क्रिकेटरों की राह में मुश्किल पिचें (बाउंसी, तेज़, घसियाली) तैयार करनी होंगी, इनकी बाउंड्रियों को कम से कम 10 से 12 मीटर (सिर्फ घरेलू मैचों में) और फैलाना होगा, जिससे एक हाथ से छक्के और टॉप एज से छक्के के दर्शन न ही हों! ऐसे छक्के घरेलू क्रिकेट में देखने में अच्छे ज़रूर लगते हैं, लेकिन विश्व कप तक आते-आते इन शॉटों की आदत पतन की वजह बन जाती है! जब कुछ ऐसे रीफॉर्म होंगे, तभी खेल के उस स्तर को हासिल करने की ओर कदम बढ़ेंगे, जो पिछले कुछ सालों से इंग्लैंड खेल रहा है. इस वक्त - व्हाइट-बॉल फॉरमैट में इंग्लैंड एक तरफ और शेष विश्व एक तरफ...!

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लेकिन खेल का इंग्लैंड जैसा स्तर हासिल करने के सिर्फ इतना भर काफी नहीं. इसके अलावा भी बहुत कुछ बड़ा किया जाना ज़रूरी है, जैसे:

* रेड बॉल और व्हाइट बॉल के लिए अलग-अलग कप्तान हों.

* वर्तमान में साफ नहीं है कि BCCI की घरेलू क्रिकेट कमेटी में कौन-कौन शामिल है. यह कमेटी ठीक ICC क्रिकेट कमेटी की तरह घरेलू खेल में सुधार की सिफारिशें करती है. क्रिकेट एडवाइज़री कमेटी ज़रूर है. यह कमेटी क्या सिफारिशें करती है, यह मीडिया में सार्वजनिक हो, ताकि सभी जान सकें कि क्या सिफारिशें की गईं, किन्हें माना गया और अगर नहीं माना गया, तो क्यों नहीं माना गया...?

* NCA (राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी) की तरह डायरेक्टर ऑफ डोमेस्टिक क्रिकेट का गठन हो, जो सीधे सेलेक्टरों और भारतीय कोच / कप्तान के साथ तालमेल बनाकर काम करे / डायरेक्टर ऑफ डोमेस्टिक क्रिकेट की स्तरीय खिलाड़ियों की आपूर्ति, परफॉरमेंस आदि के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित हो. तमाम राज्य इकाइयां इस डायरेक्टर के मार्गदर्शन में / तालमेल के साथ काम करें. यह गावस्कर सरीखे कद का खिलाड़ी हो.

* हर घरेलू सीज़न के बाद सभी राज्यों के कप्तान / कोचों के सुझावों के साथ डायरेक्टर ऑफ डोमेस्टिक क्रिकेट के साथ मीटिंग हो. करीब दो दशक पहले यह शुरू किया गया था, लेकिन कब यह सिलसिला खत्म हो गया, पता ही नहीं चला.

* BCCI से अनुदान के रूप में मोटी रकम पाने वाली राज्य टीमों की जवाबदेही सुनिश्चित हो कि 'राष्ट्रीय नीति' के तहत उन्होंने क्या किया / क्यों नहीं किया आदि.

* क्रिकेट एडवाइज़री कमेटी में सुनील गावस्कर / अनिल कुम्बले जैसे लोगों को रखा जाए. वर्तमान में कुछ सदस्य अपने राज्य की क्रिकेट कमेटी में भी शामिल नहीं हैं.

कुल मिलाकर बात यह है कि अगर अगला विश्व कप जीतना है या फिर निरंतर जीतना है, तो काम कई मोर्चों पर करने की ज़रूरत है. साल 2019 में भारत के 50-50 विश्व कप के बाद गावस्कर ने टीम के प्रदर्शन की समीक्षा को लेकर सवाल उठाया था. समीक्षा के लिए बैठक चंद मिनटों में खत्म हो गई थी. क्या इस बार टीम के प्रदर्शन की समीक्षा होगी...? साल 2019 के खराब प्रदर्शन का ठीकरा बैटिंग कोच संजय बांगड़ के सिर फोड़कर कुछ बड़ी मछलियों को बचकर जाने दिया गया था. क्या इस बार भी कुछ ऐसा ही फॉर्मूला अमल में लाया जाएगा...? यह सही है कि बैटिंग कोच विक्रम राठौर को बड़े सवालों के जवाब (खासतौर पर पॉवरप्ले के खेल पर) देने हैं, लेकिन इस ट्रैक पर चलने से भारतीय क्रिकेट वहीं खड़ी रहेगी, जहां बांगड़ की विदाई के बाद खड़ी रह गई, क्योंकि असल मुद्दों की समीक्षा की ही नहीं गई थी.

BCCI और द्रविड़ एंड कंपनी के लिए कुछ हद तक राहत की बात यह है कि अगले साल 50-50 विश्व कप भारत की पाटा पिचों पर होना है. ऐसे में घरेलू लाभ तो मिलेगा, लेकिन बाकी बचे करीब साल भर के समय के भीतर बोर्ड को इंग्लैंड की 'खेल शैली' (पहली ही गेंद से बेपरवाह, बेखौफ, दबावमुक्त, तूफानी पॉवरप्ले) का मुकाबला करने के लिए यहां से और बहुत कुछ करना होगा. इंग्लैंड ने यह खेल शैली पखवाड़े भर में हासिल नहीं की है. इसके पीछे बहुत दूरगामी सोच और ठोस प्लनिंग के साथ-साथ बड़े रीफॉर्म (सुधार) शामिल हैं. इस 'बेखौफ खेल शैली' को हासिल करने के लिए क्या अकेले राहुल द्रविड़ या किसी और 'सुपर से ऊपर' कोच और बाकी तमाम सुविधाएं / उपलब्ध हालात (स्टॉफ, मेंटल कोच, IPL + रणजी ट्रॉफी / सकलैन मुश्ताक ट्रॉफी) के ज़रिये ऐसा संभव है...? पिछले कुछ साल और ICC टूर्नामेंटों में परिणाम के रूप में तस्वीर आपके सामने है.

निश्चित ही परिणाम हासिल करने के लिए अगर आप टीम को हालात में समायोजित करने के लिए एक महीने पहले भी देश विशेष भेज दें, तो भी उससे ज़्यादा भला होने नहीं जा रहा. यह एक हद तक ही काम करता है. वास्तव में काम इन तमाम बातों से ऊपर उठकर करने की ज़रूरत है. अब टीम इंडिया की विश्व कप से विदाई के बाद राहुल द्रविड़ एक पहलू से लगभग वहीं खड़े हैं, जहां करीब 11 महीने पहले खड़े थे. अब से करीब साल भर बाद भारत में होने वाले विश्व कप के लिए उनके पास लगभग एक साल का समय है. मतलब द्रविड़ को अभी भी 'जादुई छड़ी' का मिलना बाकी है. क्या BCCI जागेगा और कुछ सही और ठोस फैसले लेगा...? या फिर IPL से बरस रहे अकूत पैसों की खुमारी में सुधार की प्रक्रिया ठंडे बस्ते में ही रहेगी...? अगर ऐसा ही रहा, तो आप सब सहज ही भविष्य का अंदाज़ा लगा सकते हैं.

मनीष शर्मा NDTV.in में डिप्टी न्यूज एडिटर हैं...

( डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.)