This Article is From Jun 11, 2021

मुकुल राय की वापसी के मायने...

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Manoranjan Bharati

पश्चि‍म बंगाल में तृणमूल कांग्रेस में मुकुल राय के वापसी की खबरें उसी दिन से आने लगी थीं जब तृणमूल कांग्रेस के नंबर 2 अभिषेक बनर्जी उनकी बीमार पत्नी से मिलने कोलकाता के एक अस्पताल में गए थे. हांलांकि इस खबर के आने के बाद प्रधानमंत्री ने खुद मुकुल राय को फोन किया था. मगर लगता है कि उससे बात नहीं बनी. दरअसल मुकुल राय और उनकी पत्नी दोनों कोरोना संक्रमित हो गए थे. मुकुल राय तो ठीक हो गए मगर उनकी पत्नी की हालत नाजुक बनी हुई है. ऐसे में टीएमसी नेता अभिषेक का हास्पिटल जाना कुछ ऐसे पल होंगे जिसने दुविधा में फंसे मुकुल राय को तृणमूल में आने  का रास्ता दिखा दिया हो. अब बात करते हैं ममता बनर्जी और मुकुल राय के राजनैतिक पारी की. दोनों ने यूथ कांग्रेस से अपनी राजनीतिक पारी के सफर की शुरूआत की थी. ममता बनर्जी उस वक्त यूथ कांग्रेस की जेनरल सेक्रेटरी थी और अपने राजनैतिक करियर की शुरूआत 1984 में सोमनाथ चटर्जी जैसे बड़े नेता को हरा कर की थी. इसका मतलब ये है कि ममता बनर्जी और मुकुल राय का राजनैतिक साथ काफी लंबा रहा है. 1998 में जब ममता बनर्जी ने कांग्रेस छोड़ कर तृणमूल कांग्रेस बनाई तब भी मुकुल राय उनके साथ थे.

मुकुल राय तृणमूल के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं. मुकुल राय हमेशा से तृणमूल में संगठन के आदमी के रूप में जाने जाते रहे. ममता बनर्जी भले ही सबसे बड़ी नेता रही पार्टी की मगर संगठन की बागडोर मुकुल राय संभालते थे. कहा जाता है कि मुकुल राय के पास हर ब्लाक स्तर के नेताओं की जानकारी रहती थी और वो उनसे लगातार संर्पक में रहते रहे. 2011 में बंगाल में मुकुल राय की भूमिका काफी अहम रही वाम दलों को हराने में और इसी का इनाम उन्हें ममता बनर्जी ने केन्द्र में अपनी ही पार्टी के दिनेश त्रिवेदी को हटा कर रेल मंत्री बना दिया.

लेकिन ये रिश्ता 2015 में तब खराब होने लगा जब मुकुल राय का नाम नारदा-शारदा घोटाले में आया. सीबीआई जैसी ऐजेंसियों ने उन पर अपना शिकंजा कसना शुरू कर दिया और आखिरकार 2017 में मुकुल राय को बीजेपी में आना पडा. बीजेपी में भी मुकुल राय ने खुब मेहनत की और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सफलता का श्रेय मुकुल राय को भी जाता है. मुकुल राय को भी लगा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद उन्हें केन्द्र में मंत्री पद मिलेगा. मगर उन्हें निराशा हाथ लगी. उन्हें बताया गया कि चूंकि उनका नाम नारदा शारदा घोटाला में आया है इसलिए प्रधानमंत्री के हाथ बंधे हैं.

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यानी उन्हें सीधे सीधे भ्रष्टाचारी करार दे दिया गया. हांलांकि उन्हें बीजेपी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जरूर बनाया गया. हांलाकि इसका भी बंगाल के बीजेपी नेताओं ने कड़ा विरोध किया था. खासकर राहुल सिंहा जैसे लोगों ने. कहने का मतलब ये है कि बंगाल बीजेपी ने उन्हें कभी स्वीकार नहीं किया. दूसरी तरफ इस बार के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले बीजेपी के हाथ शुभेन्दु अधिकारी के रूप में एक नया सितारा लगा था जो ममता बनर्जी को सीधी टक्कर दे रहा था. जाहिर है बीजेपी 
ने अधिकारी पर दांव लगाया. वो तो अपना चुनाव जीत गए मगर बीजेपी बंगाल हार गई. विधानसभा में विपक्ष के नेता भी अधिकारी बने.

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मुकुल राय के लिए बीजेपी में रहते हुए ना बंगाल में जगह थी ना केन्द्र में. ऐसे में मुकुल राय के पास और कोई चारा बचा नहीं था कि वो अपनी घर वापसी की तैयारी करें. पहले कहा गया कि अभिषेक बनर्जी तैयार नहीं हैं मगर बाद में सब ठीक हो गया. मुकुल राय अब तृणमूल के टिकट पर राज्यसभा आऐंगे और उनका बेटा उनकी विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ेगा जिससे मुकुल राय ने इस बार जीता है. मगर मुकुल राय के लिए तृणमूल में क्या जगह होगी यह तय नहीं है क्योंकि अभिषेक बनर्जी को ममता ने तृणमूल कांग्रेस का नंबर 2 घोषित कर दिया है. मुकुल राय के लिए अभिषेक के साथ तालमेल बैठाना ही सबसे बड़ी चुनौती होगी.

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मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में मैनेजिंग एडिटर हैं...

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