प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से हमेशा विस्फोटक कदम की अपेक्षा की जाती है. लिहाजा, उन्होंने लंबे समय से दिल्ली के सियासी गलियारों में चर्चा का विषय रहे और बहुप्रतीक्षित कैबिनेट फेरबदल को अमली जामा पहना दिया. इससे कई हिल गए तो कई लोगों का खूंटा ही उखड़ गया. प्रधानमंत्री ने कई अहम रोल वाले प्रमुख मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया. मंत्रिपरिषद में 36 नए चेहरों को जगह मिली है, जबकि सात को पदोन्नत किया गया है.
12 मंत्रियों के निष्कासन में कानून मंत्री रहे रविशंकर प्रसाद और सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर भी शामिल हैं लेकिन स्वास्थ्य मंत्री के रूप में डॉ. हर्षवर्धन की बर्खास्तगी ने सबसे ज्यादा चौंकाया है. उन्हें हटाने के साथ, सरकार ने उनकी भूमिका को महामारी से निपटने की व्यापक आलोचना के लिए जिम्मेदार ठहराया है. हालांकि, यह सच है कि डॉ. हर्षवर्धन ने यह प्रदर्शित करने में कमी दिखाई कि वह कोरोनोवायरस के खिलाफ एक सुसंगत रणनीति या प्रयास करने में सक्षम थे या उसका नेतृत्व कर रहे थे, विशेष रूप से दूसरी लहर में जब वह कई तत्वों की आलोचना करने वालों के खिलाफ वह अपने प्रयासों को सीमित कर रहे थे, जो उस वक्त लड़खड़ाती स्वास्थ्य व्यवस्था में धराशायी हो रहे थे.
देश में ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाने, जीवन रक्षक दवाओं और चिकित्सा बुनियादी ढांचे पर त्वरित सुधार की कोशिश करने के बजाय उन्होंने विपक्ष द्वारा शासित महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे राज्यों पर टीकाकरण के लिए पर्याप्त मेहनत नहीं करने का आरोप लगाया. उन्होंने महामारी से लड़ने के तरीके पर पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के लिखित सुझावों का करारा जवाब लिखा. वह अपनी क्षुद्र सियासी प्रहार में व्यस्त रह गए. उन्होंने राहुल गांधी के बारे में भी भद्दे ट्वीट पोस्ट किए, जिसने वास्तव में एक कैबिनेट मंत्री से अपेक्षित गरिमा और गौरव की उनकी भूमिका को छीन लिया. हर्षवर्धन की बर्खास्तगी के साथ, वह अब COVID कुप्रबंधन के लिए जाने जाएंगे क्योंकि मोदी ने चिकित्सकीय रूप से रेत में एक रेखा खींच दी है और लोगों के गुस्से का जवाब दिया है. जबकि प्रधान मंत्री कार्यालय कोविड पर अहम निर्णय लेने का एक बड़ा हिस्सा था, लेकिन शायद हर्षवर्धन को बड़ा दंड देकर जनता के गुस्से को कम करने की कोशिश हुई है.
दूसरे बड़े निष्कासित मंत्री रविशंकर प्रसाद को भी मोदी से तब परेशानी हुई जब वह सोशल मीडिया दिग्गज ट्विटर को घुटने के बल लाने में असमर्थ हुए. नए आईटी नियमों का पालन नहीं करने पर ट्विटर के साथ जनता खड़ी दिखी, जिसे कई डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म ने कानूनी चुनौती दी है, जिससे मोदी सरकार सत्तावादी लेकिन अप्रभावी दिख रही है. मोदी हमेशा से ताकत का संकेत देना पसंद करते रहे हैं.
पर्यावरण मंत्री के साथ सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय प्रकाश जावड़ेकर के लिए एक डंपिंग स्टेशन था. विदेशी मीडिया मोदी सरकार पर कोविड कुप्रबंधन और लोकतंत्र द्वारा दी जाने वाली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने के कथित प्रयासों पर तीखा हमला करता रहा लेकिन जावड़ेकर असहाय और पहुंच से बाहर बने रहे.
तो, बड़ा विजेता कौन है? ज्योतिरादित्य सिंधिया, जो मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिराने के लिए भाजपा में शामिल हो गए और पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में उनके पिता माधवराव सिंधिया द्वारा संभाले गए नागरिक उड्डयन मंत्रालय में ही कैबिनेट मंत्री बन बैठे. सिंधिया कांग्रेस के उन चुनिंदा नेताओं में शामिल हो गए हैं, जिन्हें पीएम ने अपनी पार्टी में शामिल होने पर पुरस्कृत किया है. हिमंत बिस्वा सरमा को असम का मुख्यमंत्री बनाया गया है और नारायण राणे को भी कैबिनेट मंत्री बनाया गया है. किरेन रिजिजू को कैबिनेट में भारी पदोन्नति मिली है और अब वे कानून मंत्रालय के मंत्री हैं.
पूर्व आईएएस अधिकारी और दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी के निजी सचिव रहे अश्विनी वैष्णव को राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण रेल मंत्रालय और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय देकर मोदी ने संकेत दिया है कि आईएएस अधिकारियों की क्षमता में उनका विश्वास अपरिवर्तित है. वैष्णव, IIT और व्हार्टन यूनिवर्सिटी के एल्यूमिनाय हैं और लंबे समय से ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और पीएम मोदी के बीच एक विचारशील सेतु रहे हैं. पटनायक ने मोदी के आह्वान के बाद, वैष्णव को दो साल पहले ओडिशा से राज्यसभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित होने में मदद की थी. वैष्णव की साख जयंत सिन्हा जैसी ही है जो मोदी 1.0 सरकार में कनिष्ठ वित्त मंत्री थे.
पीएम मोदी और अमित शाह दोनों के भरोसेमंद गुजरात के राजनेता मनसुख मंडाविया को स्वास्थ्य मंत्रालय का जिम्मा दिया गया है, जिसे अब आश्चर्यजनक रूप से रसायन और उर्वरक के साथ जोड़ दिया गया है. शाह ने सार्वजनिक रूप से मंडाविया को "लाइव वायर" कहा है. राणे, जिनका मैंने पहले उल्लेख किया था, उन्होंने शिवसेना में एक शाखा प्रमुख (वार्ड नेता) के रूप में शुरुआत की थी; वह कोंकण क्षेत्र के एक मजबूत नेता हैं और कुछ समय के लिए शिवसेना की तरफ से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे. उद्धव ठाकरे-कट्टर, राणे पहले कांग्रेस और फिर भाजपा में चले गए. राणे के देश के सबसे अमीर मुंबई नगर निगम के लिए चुनाव जीतने के भाजपा के प्रयासों की अगुवाई करने की उम्मीद है. राणे से कोंकण क्षेत्र में भी भाजपा की स्वीकार्यता को आगे बढ़ाने की उम्मीद है.
अमित शाह के चीफ लेफ्टिनेंट कहे जाने वाले भूपेंद्र यादव ने श्रम और पर्यावरण विभागों के कैबिनेट मंत्री के रूप में टीम मोदी में जगह बनाई है. यादव को उत्तर प्रदेश और गुजरात में चुनावी जीत के लिए शाह द्वारा श्रेय दिया जाता रहा है. शाह ने यादव को कैबिनेट मंत्री बनाने में जोरदार समर्थन और मदद की है. यादव भाजपा के महासचिव थे और 2002 से राज्यसभा सदस्य हैं.
मोदी और शाह वास्तविक राजनीति के सबसे चतुर खिलाड़ी हैं. उन्होंने अगले साल फरवरी में होने वाले यूपी विधान सभा चुनावों के मद्देनजर यूपी से सात मंत्रियों और देशभर से कुल 27 ओबीसी चेहरों को मंत्री बनाकर बड़ा संदेश देने की कोशिश की है. योगी आदित्यनाथ ने एक बड़े पद के लिए अपने निर्वाचन क्षेत्र गोरखपुर के डिप्टी मेयर की सिफारिश की थी और इसके परिणामस्वरूप पंकज चौधरी वित्त राज्यमंत्री बनाए गए हैं. 56 वर्षीय चौधरी छह बार के लोकसभा सांसद हैं और पिछड़ी जाति से आते हैं.
अनुराग ठाकुर ने मोदी को इतना प्रभावित किया कि उन्हें खेल के साथ-साथ सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में कैबिनेट मंत्री के रूप में पदोन्नति दे दी गई. दिल्ली दंगों के दौरान अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हुए फिल्माए जाने के बाद ठाकुर अपनी इमेज बदलने की कवायद में हैं . वह मोदी सरकार के लिए अच्छा प्रेस सुनिश्चित करने के लिए मैदान में उतरेंगे. जंबो-जेट मंत्रिमंडल की वापसी में जनता दल यूनाइटेड के आरसीपी सिंह और लोजपा के पशुपति पारस की एंट्री से संकेत मिलता है कि चिराग पासवान अब मोदी और शाह के लिए परित्यक्त हो चुके हैं.
इन तेजतर्रार बदलावों के साथ, मोदी ने उत्तर प्रदेश के चुनावों से पहले एक पायदान - और फिर कुछ - आगे बढ़ा दिया है. खासकर तब, जब उनकी सरकार प्रमुख मोर्चों पर कमजोर शासन के आरोप झेल रही है. इस फेरबदल में हारने वालों को अब सत्ता के लिए और कड़े संघर्ष करने होंगे, जबकि विजेताओं को दृढ़ता से और जल्दी से अपने शासकीय अनुभव का परिचय कराना होगा.
(स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...)
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