गांधियों को असंतुष्टों की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं

इस मीटिंग में अय्यर की मौजूदगी, जो लंबे समय से कांग्रेस में किसी भी तरह के प्रभावी कदम उठाए जाने से वंचित रहे हैं, यह सारांशित करता है कि गांधी के खिलाफ असंतुष्टों की मुहिम को आलोचक क्यों एक मजाक के रूप में उसकी व्याख्या करते हैं?

गांधियों को असंतुष्टों की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं

कांग्रेस के बागियों के समूह से किसी भी तरह की उम्मीद रखने वालों के लिए, यह समय फिर से उन्हीं बाधाओं में उलझने का हो सकता है. यह टीम (अनजाने में) मुख्यधारा की पार्टी के लिए एक सहयोगी के रूप में सेवा करने के सभी लक्षण दिखा रही है. यहाँ से बहुत कुछ उम्मीद नहीं की जा सकती है.

29 कांग्रेस नेताओं की बुधवार रात हुई मीटिंग में कांग्रेस के मिसगाइडेड मिसाइल मणिशंकर अय्यर भी शामिल थे, जो पिछले दो आम चुनावों से पहले प्रधानमंत्री पर  टिप्पणी कर क्रैश लैंडिंग कर चुके हैं.

इस मीटिंग में अय्यर की मौजूदगी, जो लंबे समय से कांग्रेस में किसी भी तरह के प्रभावी कदम उठाए जाने से वंचित रहे हैं, यह सारांशित करता है कि गांधी के खिलाफ असंतुष्टों की मुहिम को आलोचक क्यों एक मजाक के रूप में उसकी व्याख्या करते हैं?

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बुधवार रात असंतुष्ट समूह की बैठक में कम से कम 12 पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री शामिल थे. उनमें से कुछ- आनंद शर्मा, पृथ्वीराज चव्हाण, संदीप दीक्षित, पीजे कुरियन, कपिल सिब्बल को वोट जुटाऊ होने का दावा किया जा सकता है. हालांकि, शशि थरूर इसके अपवाद हैं, जिन्होंने लगातार तीन बार केरल से अपने निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की है.

"G-23"(2020 में गांधी परिवार को तत्काल सुधार की मांग वाले पहले पत्र में 23 हस्ताक्षरकर्ता समूह) में कल एक नई सदस्य  परनीत कौर शामिल हुईं. वह कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी हैं. सिंह को चुनाव से महज चार महीने पहले पंजाब के मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया था. कांग्रेस की उस चाल ने बड़ी तबाही मचाई और इसके लिए एकमात्र जिम्मेदारी राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका गांधी की है, जिन्होंने अमरिंदर सिंह के खिलाफ सत्ता संघर्ष में नवजोत सिद्धू का साथ दिया था. सिद्धू कांग्रेस के उन राज्य प्रमुखों में शामिल थे, जिन्हें पांच राज्यों में पार्टी के अपमानजनक प्रदर्शन की वजह से कल इस्तीफा देना पड़ा था.

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इनके अलावा गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री शंकरसिंह वाघेला भी उस मीटिंग में मौजूद थे, जो अब कांग्रेस के सदस्य नहीं हैं. वाघेला 2017 में अपना क्षेत्रीय संगठन बनाने के लिए कांग्रेस से बाहर हो गए थे.

मैंने एक वरिष्ठ नेता से 81 वर्षीय वाघेला की उपस्थिति के बारे में पूछा कि क्या जी-23 ओपेन डोर पॉलिसी पर चल रही है?  मुझे बताया गया कि गांधी परिवार के पूर्व वफादार अय्यर की तरह वाघेला भी व्यापक लोकतांत्रिक कांग्रेस के लिए लड़ने को तैयार हैं.

अय्यर ने 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को "चाय-वाला" कहकर उनका उपहास उड़ाया था, जिसने कांग्रेस को चुनावी नुकसान पहुंचाया था. अगले आम चुनाव से पहले, उन्होंने पीएम को "नीच" कहकर कांग्रेस के नुकसान को दोगुना कर दिया. अय्यर की दोनों टिप्पणियों ने कांग्रेस को एक जातिवादी, अभिजात्य पार्टी के रूप में पेश किया. राहुल गांधी, जो उस समय कांग्रेस अध्यक्ष थे, ने अय्यर को तब पार्टी से निष्कासित कर दिया था लेकिन मोदी और भाजपा ने उनकी इस टिप्पणी को जमकर भुनाया.

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इस हफ्ते की शुरुआत में 'द इंडियन एक्सप्रेस' अखबार को दिए एक इंटरव्यू में कपिल सिब्बल ने कहा कि गांधी परिवार को पार्टी का नेतृत्व छोड़ देना चाहिए और यह मौका किसी और को देना चाहिए. उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेतृत्व (गांधी ) सपनों की दुनिया ("cuckoo land")में रह रहे हैं. चुनावों में पार्टी की भारी हार का कारण अभी भी उनके लिए अनिश्चित है.

गांधी के वफादार इस बात पर जोर देते हैं कि जी-23 समूह वैसे लोगों का समूह है, जिसके अधिकांश खिलाड़ी 70 वर्ष से अधिक उम्र के हैं और उनमें से कई मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री रह चुके हैं, राज्यसभा सांसद रह चुके हैं. चूंकि कांग्रेस के पास मौजूदा हालात में उनके लिए राज्यसभा की सीटों की पेशकश करने के हालात नहीं है और फिलहाल उनके लिए संसद के द्वार बंद है. इसलिए वे सभी एकजुट हो गए हैं.

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कांग्रेस की शीर्ष संस्था, कांग्रेस वर्किंग कमेटी, की रविवार को हुई बैठक (जो हार के बाद एक मानक संचालन प्रक्रिया बन गई है,) में गांधी परिवार ने इस्तीफा देने की पेशकश की, जैसा कि एनडीटीवी की एक विशेष रिपोर्ट में पहले ही भविष्यवाणी की गई थी, लेकिन वहां उपस्थित लोगों ने "सर्वसम्मति से" उस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया; कई लोगों ने तो यह भी अनुरोध किया कि पार्टी अध्यक्ष के रूप में अब राहुल गांधी के औपचारिक रूप से लौटने का समय आ गया है.

जैसा कि मैंने पहले के कॉलम में लिखा था, कांग्रेस राहुल गांधी को बड़े पैमाने पर विफल होने देती है फिर हर चुनावी बाजी के बाद वफादारों की चीख-पुकार मच जाती है कि पार्टी को राहुल 2.0 की जरूरत है. 

इस हफ्ते कपिल सिब्बल के अखबार में दिए गए इंटरव्यू से निकला कि जी-23 ने आखिरी वक्त पर अपने डिनर सेशन को उनके घर से हटाकर गुलाम नबी आजाद के घर पर शिफ्ट करने का फैसला किया था. तब जी-23 के नेताओं के बीच सर्वसम्मति बनी थी कि वरिष्ठ वकील के घर पर मीटिंग अनावश्यक रूप से उकसाऊ समझा जा सकता है. असंतुष्ट नेता कहें या कांग्रेस के विद्रोही, वे सभी अपने-अपने तरीके से गांधी परिवार को घेर रहे हैं. असंतुष्टों ने यह भी कहा है, जैसा कि आज सुबह एनडीटीवी द्वारा रिपोर्ट किया गया कि पार्टी विभाजन बर्दाश्त नहीं कर सकती और इसके बजाय उनका आह्वान "समावेशी नेतृत्व" के लिए है.

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असंतुष्टों ने इस तथ्य के खिलाफ भी अपना विरोध दर्ज कराया है कि पांच राज्यों में चुनावी हार का पोस्टमार्टम करने की जिम्मेदारी उन्हीं को दी गई है, जो खुद चुनाव हराने के कारण हैं. एक बागी नेता ने राहुल गांधी का मजाक उड़ाने वाली एक कविता लिखी और उसे पार्टी के एक व्हाट्सएप ग्रुप पर शेयर कर दिया, इसने परिवार को नाराज कर दिया है.

सोनिया गांधी ने हालिया चुनावों में हार के बाद असामान्य रूप से पांचों राज्यों के प्रभारियों को इस्तीफा देने के लिए कहा था. पंजाब पराजय के सूत्रधार रहे नवजोत सिंह सिद्धू ने अपना इस्तीफा ट्विटर पर डालकर कहा कि वह उनके निर्देशों का पालन कर रहे हैं लेकिन राज्य प्रमुखों ने ऐसा नहीं किया. प्रियंका गांधी, जो यूपी की प्रभारी थीं, जहां पार्टी का वोट शेयर 2.5 प्रतिशत के सर्वकालिक निचले स्तर पर आ गया और 97 प्रतिशत उम्मीदवारों ने अपनी जमानत खो दी, यूपी के प्रभारी महासचिव के रूप में अब भी पद पर काबिज हैं.

इस बीच, कांग्रेस शासित राज्यों छत्तीसगढ़ और राजस्थान के दो मुख्यमंत्रियों भूपेश बघेल और अशोक गहलोत यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहे हैं कि गांधी परिवार पद पर बना रहे. गहलोत यह भी सुनिश्चित करना चाहते हैं कि वह मुख्यमंत्री पद पर बने रहें क्योंकि उनके प्रतिद्वंद्वी सचिन पायलट अब भी सीएम बनने के लिए बेचैन हैं. पायलट को गांधी परिवार ने वादा किया था कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाएगा.

गौरतलब है कि 44 वर्षीय पायलट ने निराशाजनक राज्य परिणामों पर पूरी तरह चुप्पी साध रखी है और गांधी परिवार के समर्थन में भी सामने नहीं आए हैं.

बघेल भी अपने प्रतिद्वंद्वी और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव के विद्रोह को समायोजित किए बिना मुख्यमंत्री के रूप में अपना अभियान जारी रखना चाहते हैं. एक वरिष्ठ नेता ने मुझे बताया, "गहलोत और बघेल दोनों गांधी परिवार के साथ IOU (आंतरिक समझौते) पर काम कर रहे हैं, जिसे बाद में भुनाया जाएगा.

एक-दूसरे के बारे में कविताओं से लेकर रात्रिभोज के आयोजन स्थलों तक - कांग्रेस रुक नहीं सकती, अपने चार्टर्ड कोर्स को भी नहीं रोकेगी. इस बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही गुजरात अभियान शुरू कर चुके हैं.

(स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...)

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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.