स्लेंडर लोरिस : भारत में पाया जाने वाला एक ऐसा रात्रिचर जिसे बचाना जरूरी है

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Surabhi Chandra

स्लेंडर लोरिस (Slender Loris) एक छोटा, रात्रिचर, स्तनधारी है. यह मुख्य तौर पर भारत और श्रीलंका के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय वर्षा वनों में पाया जाता है. यह पेड़ों की शाखाओं, घने जंगलों और बांस के झुरमुटों में रहता है. इसके जीवित रहने के लिए आर्द्रता और हरियाली जरूरी है. स्लेंडर लोरिस का शरीर बहुत पतला और लंबा होता है. अपने लंबे, पतले हाथों और पैरों से तेजी से पेड़ों पर चढ़ता है और अपने शिकार की खोज करता है. यह पेड़ों के बीच छलांग लगाकर या धीरे-धीरे चलकर भोजन की खोज करता है. कीड़े, छोटे कीट और फल इसके मुख्य भोजन हैं.

कहां पाया जाता है स्लेंडर लोरिस

यह प्राणी वर्षावन पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि यह कीड़े और फल पर निर्भर है. इस तरह से यह कीट नियंत्रण में मदद करता है. स्लेंडर लोरिस पेड़ों के बीच सक्रिय रहता है. यह अपनी धीमी रफ्तार, लंबे हाथों और बड़ी आंखों के कारण वातावरण में अच्छी तरह से समाहित हो जाता है. यह अपने उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में जीवित रहने के लिए कई रोचक अनुकूलन दिखाता है. इसके लंबे और लचीले पंजे इसे पेड़ों पर आसानी से चढ़ने और पकड़ने में मदद करते हैं. इससे  यह अपने पर्यावास में कुशलतापूर्वक गतिमान रहता है. इसकी बड़ी और चमकदार आंखें रात्रिचर जीवनशैली अपनाने में मदद करती हैं. यह धीमी गति से चलने वाला प्राणी है, जो शिकारियों से बचने के लिए अपनी गति को कम रखता है और वातावरण में बिल्कुल घुल-मिल जाता है. इसके शरीर पर महीन बाल होते हैं जो इसे छिपने में मदद करते हैं.

पतला लोरिस उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में कई संरक्षण चुनौतियों का सामना कर रहा है. मुख्य रूप से वनों की कटाई और आवास का नष्ट होना इसके लिए सबसे बड़ी चुनौती है, क्योंकि यह विशेष रूप से घने और शांत जंगलों में रहता है. अवैध शिकार और वन्यजीवों की तस्करी भी इस प्रजाति को गंभीर खतरे में डाल रही है. इसके आवास में मानव हस्तक्षेप, जैसे जंगलों की कटाई, शहरीकरण और कृषि भूमि के विस्तार से इसकी संख्या में भारी गिरावट आई है. इसके अतिरिक्त, स्लेंडर लोरिस को पालतू जानवर बनाने के लिए भी पकड़ लिया जाता है. यह अवैध काम भी इसकी संख्या कम होने का एक कारण है. इनका जीवन वनस्पतियों और कीटों पर निर्भर है. ऐसे में जब उनका प्राकृतिक आवास घटता है, तो भोजन की कमी भी हो जाती है. इसके अलावा, यह प्रजाति धीमी गति से प्रजनन करती है. इससे उनकी संख्या में वृद्धि भी कठिन हो जाती है.

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क्या खत्म होने की कगार पर है स्लेंडर लोरिस

इसे देखते हुए स्लेंडर लोरिस की सुरक्षा और इसके आवास का संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है. स्लेंडर लोरिस को इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) ने 'विलुप्तप्राय' (Endangered) श्रेणी में रखा है. इस अद्वितीय प्रजाति के अस्तित्व को बचाने के लिए वैश्विक स्तर पर निरंतर प्रयासों की जरूरत है, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी स्लेंडर लोरिस के बारे में जान सकें. संरक्षण कार्यों में स्लेंडर लोरिस के प्राकृतिक आवासों की सुरक्षा,  अवैध शिकार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई और जागरूकता फैलाने के प्रयास शामिल हैं. इसके अलावा, कुछ संरक्षण कार्यक्रमों में इन्हें जंगलों में रहने के
लिए सुरक्षित क्षेत्रों की पहचान और पुनः निर्माण पर भी जोर दिया जा रहा है. भारत में पहली बार तमिलनाडु में कदुवुर स्लेंडर लोरिस वन्यजीव अभ्यारण्य का निर्माण किया जा रहा है. इसके अस्तित्व के लिए सुरक्षित वनों की आवश्यकता है. इसके संरक्षण से न केवल यह प्रजाति बच सकेगी, बल्कि पूरे वर्षावन पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन भी बरकरार रहेगा.

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(लेखक सुरभि चंद्रा, पीएचडी की छात्रा हैं. वो विज्ञान मामलों की लेखिका हैं.)

अस्वीकरण: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.

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