This Article is From Jul 19, 2022

डॉलर के लिए भारत छोड़ा, डॉलर ने भी छोड़ा भारत, रुपया कमज़ोर हुआ है, क्या आगे भी होगा कमज़ोर

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Ravish Kumar

भारत का रुपया गिर रहा है. ठीक है, गिर रहा है तो गिर रहा है. पहले भी गिरा करता था, अब भी गिर रहा है. पहले गिरने पर एक महात्मा ने कहा था कि महापुरुष के आते ही एक डॉलर का भाव 40 रुपया हो जाएगा, हो गया 80 रुपया, गिर अब भी रहा है लेकिन महात्मा बोल नहीं रहे हैं. ज़रूर उस समय महात्मा अर्थशास्त्र का आध्यात्मिक कोर्स कर रहे होंगे. रुपये के गिरने पर दुल्हनों को परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है, क्योंकि भारत के दूल्हे जहां सौ साल पहले थे, आज भी वहीं हैं इस साल भी वो शादी के लिए गले में नोटों का हार डाल कर आने वाले हैं. रुपया कमज़ोर हुआ है तो क्या हुआ, इसका हार अब भी बन सकता है. जिस तरह से आपको समझ नहीं आ सकता कि दूल्हा नोटों का हार क्यों पहनता है, उसी तरह से बिना महात्मा के भारत की जनता को नहीं समझा सकते कि रुपया गिर रहा है. माला बनाने के लिए रुपया मुश्किल से मिल रहा है लेकिन माला का रेट अभी डॉलर की तरह आसमान में नहीं पहुंचा है

लेकिन इतना ज्यादा हम लोग डॉलर डॉलर करेंगे तो दूल्हे डॉलर की माला पहन कर शादी रचाने जाने लगेंगे. अकबर के बेटे अफसर ने नकली डॉलर की माला पहन ली है. अलीगढ़ में सामूहिक विवाह का एक कार्यक्रम हुआ था, उसमें अफसर नकली डॉलर की माला पहनकर पहुंचे तो हंगामा मच गया. डॉलर का ऐसा भूत बन गया कि लोग डॉलर डॉलर करने लगे.अखबारों ने छाप दिया कि ग़रीबों के सामूहिक विवाह कार्यक्रम में कोई डॉलर का हार पहनकर आ गया है.हमारे सहयोगी अदनान ने बताया है कि अब जांच हुई है तो पता चला है कि डॉलर नकली है मगर डॉलर का ख्वाब नकली नहीं हो सकता. प्यार झूठा हो जाए मगर नोटों का हार झूठा नहीं हो सकता. 

विवेक कौल ने लिखा है कि 20 जून को एक अमरीकी डॉलर 78 रुपये का था, केवल 9 दिनों के भीतर 29 जून को 79 रुपये का हो गया. यानी रुपया तेज़ी से गिर रहा है.सरकार का पक्ष लेने वाला तबका दावा कर रहा है कि जनवरी 2013 में एक डॉलर 55 रुपये का था, जो सितंबर में 65 रुपया का हो गया. 9 महीने में 15 प्रतिशत की गिरावट आई है. क्या सरकार के समर्थक यह याद दिलाना चाहेंगे कि 2018 के दस महीनों में रुपया 15 प्रतिशत से भी ज्यादा गिरा था. क्या 2018 में भी यूक्रेन युद्ध हुआ था, कोरोना की महामारी फैली थी?31 दिसंबर 2014 को एक डॉलर 63 रुपये 33 पैसे का था और अब यह 80 का हो गया है.आठ साल में रुपया 26 प्रतिशत कमज़ोर हो गया है,क्या यह अच्छी बात है? 26 प्रतिशत की कमज़ोरी की बात क्यों नहीं होती है? संसद में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने जवाब में बताया है कि 31दिसंबर 2015 को एक डॉलर का भाव 66 रुपये 33 पैसे था. 31 दिसंबर 2016 को  67 रुपये 95 पैसे हो गया. 31 दिसंबर 2017 को 63 रुपये 93 पैसे हो गया. 2016 की तुलना में करीब 4 रुपया मज़बूत हुआ. 
31 दिसंबर 2018-  69 रुपये 79 पैसे हो गया.
31 दिसंबर 2019 को 71 रुपये 27 पैसे हो गया,उसके बाद से रुपया कमज़ोर ही होता गया है. 31 दिसंबर 2020 को  73 रुपये 05 पैसे हो गया. 31 दिसंबर 2021 को 74 रुपये 30 पैसे हो गया. 11 जुलाई 2022   79 रुपये 41 पैसे हो गया.

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अब एक डॉलर 80 रुपये का हो गया है. भारत का रुपया कमज़ोर होता जा रहा है. खुद रिजर्व बैंक ने कहा है कि भारत के पास केवल दस महीनों के आयात के लिए विदेशी मुद्रा है. जबकि पिछले साल उसके पास 19 महीने के आयात के लिए विदेशी मुद्रा का भंडार था.  वित्त मंत्री ने संसद में कहा है कि अमरीका के केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरें बढ़ा दी हैं. इसके कारण निवेशक अपना डॉलर निकाल रहे हैं.वित्त वर्ष 2022-23 में 14 अरब डॉलर निकाला जा चुका है. केवल डॉलर ही भारत नहीं छोड़ रहा बल्कि भारत के लोग भी भारत की नागरिकता छोड़ रहे हैं. आज ही गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में बताया है कि 2019 में 1, 44, 017 लोगों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी थी. 2021 में यह संख्या 1,63, 370 लाख लोगों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी.  नागरिकता छोड़ने वालों में से 78,284 लोगों ने अमेरिका की नागरिकता ली है.

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इतना विकास हो रहा है तब क्यों इतनी बड़ी संख्या में लोग भारत की नागरिकता छोड़ रहे हैं. स्मार्ट सिटी वाले भारत को छोड़ कर ये लोग क्यों जा रहे हैं? डालर और रुपये की बहस केवल दो मुद्राओं के बीच औकात की बहस नहीं है बल्कि अर्थव्यवस्था की हालत और अवसरों की भी बहस है. 

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यह पुराने नोट बदलने का खोमचा है.हमें लगा कि 2016 की नोटबंदी से भ्रष्टाचार के साथ-साथ नोट बदलने का यह खोमचा भी खत्म हो गया होगा.वैसे कल ही लोगसभा में सरकार ने बताया है कि नोटबंदी के बाद नगदी मुद्रा का चलन डबल हो गया है. बताइये कहां से इसे कम होना था मगर नोटों का चलन डबल हो गया है. 2016 में 16 लाख करोड़ की करेंसी चलन में थी, अब 31 लाख करोड़ की करेंसी चलन में है. नोटबंदी फेल हो गई लेकिन पुराने नोटों को बदलने की दुकान बंद होते होते बची रह गई है  यही नहीं नोट तो नए आ गए हैं मगर नोट की ताकत कमज़ोर हो गई है.

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जब भी रुपया गिरता है, भारत की राजनीति 2014 में पहुंच जाती है. 2012 से ही भारत की राजनीति में आध्यात्मिक अर्थशास्त्री घूमने लगे थे, जो जनता को समझा रहे थे कि एक डालर के बराबर एक रुपया हो जाएगा. बताया जा रहा था कि रुपये केे गिरने के लिए अगर कोई ज़िम्मेदार है तो केवल सरकार. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भाषण देना नहीं आता था, उन्होंने अपने आप को इतिहास पर छोड़ दिया और इतिहास ने भारत ही बदल दिया. 

2012-14 के कालखंड को प्रागौतिहासिक काल खंड घोषित कर देना चाहिए, इस दौर की खुदाई करते समय लगता है, पुरात्ताविक खुदाई कर रहे हैं. आज के हर झूठ का कंकाल उन दो वर्षों में मिलता है.यह बताया जा रहा है कि 2008 और 2013 में डालर के मुकाबले रुपये में 28 प्रतिशत की गिरावट आई थी यह सही है लेकिन क्या यह सही नहीं है कि इसके बाद भी एक डालर 80 रुपये का नहीं हुआ था. 63-64 पर ही रहा. पिछले 8 साल में रुपया 26 प्रतिशत कमज़ोर हुआ है. इसकी कोई बात नहीं करता. वित्त मंत्री ने लोकसभा में जवाब दिया है कि  डॉलर के मुकाबले जापान की मुद्रा येन, ब्रिटेन की मुद्रा पाउंड और यूरो में भारी गिरावट देखी गई है. यह गिरावट रुपये से कहीं ज्यादा है.उस हिसाब से देखें तो डॉलर के मुकाबले भारत का रुपया 7 प्रतिशत ही गिरा है. 

हम अपने रिसर्च के दौरान पुराने लेखों से गुज़र रहे थे.2018 से ही रुपये के गिरने की बात लिखी जाने लगी थी. उस साल रुपया बहुत गिरा था. 2020 के एक लेख में तो यह भी मिला कि एक डॉलर 80 का हो जाएगा और हो गया. हम ऐसे कुछ लेखों के बारे में बताना चाहते हैं. 

सितंबर 2018 में इंडियन एक्सप्रेस में अर्थशास्त्री इला पटनायक ने लिखा है कि 2018 में भारतीय रुपये का प्रदर्शन एशिया में सबसे खराब रहा है. अगर रुपये को गिरने से बचाने के लिए रिजर्व बैंक डॉलर बेचता है ब्याज दरें बढ़ जाएंगी. लेकिन आज तो वही हो रहा है. इला पटनायक ने एक और बात लिखी थी कि रिज़र्व बैंक NRI से डॉलर उधार मांग सकता है. क्या इसकी नौबत आने वाली है? 22 मार्च 2020 को भाविक पटेल ने इकोनमिक टाइम्स में लिखा है कि डॉलर की मांग बढ़ते ही एशिया की मुद्राएं धाराशाही होने लगी हैं. इससे रुपया और कमज़ोर होता जाएगा. अप्रैल में लाइव मिंट का यह लेख कह रहा है कि एक डालर 77 रुपये का हो गया है. अगले कुछ महीने में 80 रुपये का हो जाएगा. पिछले साल अप्रैल में यूक्रेन युद्ध नहीं हुआ था. मगर लाइव मिंट 80 डॉलर की बात कर रहा था. यह भी लिखा था कि बाकी कई मुद्राओं की तुलना में रुपए का प्रदर्शन अच्छा है, अन्य मुद्राओं की तुलना में भारतीय रुपये के गिरने की रफ्तार कम है, लेकिन एक डॉलर 80 रुपये तक जा सकता है.  

सरकारी पक्ष की तरफ से दलील दी जा रही है कि डालर के सामने रुपया 7 परसेंट ही गिरा है. जबकि 2013 में 9 महीने में 15 प्रतिशत गिरा था. 2014 से 2022 के बीच डालर के सामने रुपया 26 प्रतिशत गिरा है. आपने लिखा है कि 20 से 29 जून के बीच रुपया तेजी से गिरा है. रफ्तार और प्रतिशत को लेकर जो दलीलें दी जा रही हैं उसके बारे में आपका क्या आंकलन है? सुशील जो सवाल लिखेंगे न वो अभी भेज दो ताकि जवाब तैयार रहेगा

भारत की राजनीति में 2014 का साल बहुत सारे झूठे वादों की जीत का साल था. यह वो साल था जब तमाम तरह की दलीलों पर बुलडोज़र चला दिया गया. ऐसा ऐसा प्रोपेगैंडा हुआ कि आज तक उसका असर नहीं गया है. सीधा स्थापित किया कि रुपया कमज़ोर हुआ है तो इसका मतलब है कि देश कमज़ोर हो गया है. जबकि दूसरे कारण तब भी थे, अब भी हैं. 

2 सितंबर 2013 को निर्मला सीतारमण ने ट्विट किया था कि रुपया गिरता है तो सरकार का बोझ बढ़ता है. सरकार इस अराजकता के लिए ज़िम्मेदार है. क्या सरकार इस जवाबदेही से बच सकती है. अबअब वही निर्मला सीतारमण वित्त मंत्री हैं लेकिन अब चाहती हैं कि उनके जवाब को उन तमाम अर्थों के साथ लिया जाए, जो उस वक्त खुद मानने के लिए तैयार नहीं थीं. अब रुपाय कमज़ोर हुआ तो कोई बात नहीं. देश कमज़ोर नहीं हुआ है.

सरकार मानती है कि 2013 और 2022 के हालात काफी अलग हैं. वित्त मंत्री बार-बार ज़ोर दे रही हैं कि इस बार अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितयां सामान्य नहीं हैं. जुलाई 2008 में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में जब 132 डॉलर प्रति बैरल था तब भारत में पेट्रोल 50 रुपया और डीज़ल 34 रुपया लीटर था. लेकिन 2021 में कच्चा तेल 100 डॉलर से कम का था तब भारत के लोगों ने खुशी खुशी 100 रुपया लीटर पेट्रोल और डीज़ल खरीदा. क्या इस पर सरकार जवाब देना चाहेगी? 

अब इस हिस्से को ध्यान से सुनें. कितने अलग अलग तरह के तर्क दिए जा रहे हैं. विवेक कौल ने मिंट में लिखा है कि भारत का आयात काफी बढ़ा है लेकिन उसमें सोने चांदी की हिस्सेदारी अच्छी खासी है.इसी के साथ भारत का निर्यात भी बढ़ा है. हाल फिलहाल में भारत के निर्यात में कमी के संकेत नहीं दिखते हैं तो निर्यात से डॉलर आएगा, यानी भारत में ज्यादा रुपया होगा और इससे आयात के बिल की भरपाई होगी. कैसे? रुपया कमज़ोर होगा तो सोने-चांदी के आयात पर काफी पैसा लगेगा, इससे इनके दाम बढ़ेंगे और इनकी मांग कम होगी. मांग कम होगी तो आयात कम होगा. और तब भारत निर्यात के भरोसे आयात के बिल का भुगतान भी कर पाएगा. यानी व्यापार घाटा कम होगा. इसी के साथ NRI जब भारत डॉलर भेजेंगे तब भारत में पैसा आएगा. मगर यह भी देखना होगा कि अमरीका सहित यूरोप के केंद्रीय बैंकों में जब ब्याज की दरें बढ़ेंगी तब विदेशी निवेशक भारत से अपना पैसा निकाल लेंगे. भारत में निवेश भी कम करेंगे. वही इकोनमिक टाइम्स के एक लेख में इसे दूसरी नज़र से देखा गया है.ET ने लिखा है कि रुपया कमज़ोर होगा तो आयात महंगा होगा. लेकिन निर्यात से फायदा होगा. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि भारत की तेल कंपनियां पेट्रोल डीज़ल के निर्यात से खूब मुनाफा कमा रही हैं इसलिए सरकार ने उन पर टैक्स लगा दिया है.

लाखों की संख्या में छात्र भारत से  बाहर जाकर पढ़ने के लिए मजबूर हैं. कारण आप जानते हैं. भले ही दूसरी मुद्राओं के सामने भारत का रुपया ठीक हालत में हो लेकिन डॉलर की मौजूदगी को नकार नहीं सकते हैं. अभी वो दिन नहीं आया है कि डॉलर में लेन-देन बंद हो गया है.यह तर्क ठीक उसी के जैसा है कि सरकार ने चीन से बदला लेने के लिए बहुत सारे चीन ऐप बंद कर दिए, दूसरी तरफ चीन से आयात कई गुना बढ़ गया. यही नहीं चीन की फोन कंपनियों पर कई हजार करोड़ की टैक्स चोरी का भी आरोप लग गया.अशर्फी की लूट और कोयले पर छाप का मुहावरा तो सुना ही होगा  

प्रश्न- कहा जा रहा है कि भारत का रुपया कई मुद्राओं के सामने मज़बूत हुआ है. यूरो के सामने मजबूत हुा है. चीन और जापान की मुद्रा को लेकर भी चिन्ताजनक नहीं है. भारत डालर के अलावा भारतीय रुपये में व्यापार करने के विकल्प को आज़मा रहा है. क्या यह सब मनमोहन सिंह के समय नहीं हुआ था, इन सब पर आपकी क्या राय है.

भारत में बेरोज़गारी है और आम लोगों की आमदनी नहीं बढ़ी है. वह तरह तरह के टैक्स दे रहा है. हंगामा केवल GST को लेकर है, बिजली बिल की बात नहीं है, परीक्षाओं के फार्म कितने महंगे हो चुके हैं, इसकी बात नहीं है, स्कूल कालेज की फीस, कापी किताब कितनी महंगी हो गई है, इसकी बात भी नहीं होती.बात केवल रुपये की कमज़ोरी की नहीं है, उस आदमी की भी है जो आर्थिक रुप से कमज़ोर होता जा रहा है

भारत का आम आदमी कितना कम कमाता है, हम उसकी हालत को तू तू मैं मैं की बहस से नहीं समझ सकते. 2019-20 के Periodic Labour Force Survey (PLFS) के अनुसार जितने भी लोग काम करते हैं, उनमें से 25000 महीना कमाने वाले चोटी के 10 प्रतिशत में आते हैं. भारत के लेबर फोर्स में 45 करोड़ लोग काम करते हैं. अगर इसका दस प्रतिशत यानी साढ़े चार करोड़ ही 25000 महीना कमाते हैं तो आम भारतीय जीवन कितना मुश्किल होता होगा. काम करने वाले 40 करोड़ लोग 25000 महीना से कम कमाते हैं. इस पर कोई बहस क्यों नहीं है. उन पर पेट्रोल पर 60 प्रतिशत उत्पाद शुल्क, डीज़ल पर 101 प्रतिशत उत्पाद शुल्क का क्या असर पड़ा होगा, क्या उनकी कमाई बढ़ गई होगी या घट गई होगी,लोकसभा में राजीव रंजन कुमार ललन सिंह के प्रश्न के उत्तर में वित्त राज्य मंत्री ने जवाब दिया है कि 2011-12 की कीमतों पर  2019-20 में भारत की प्रति व्यक्ति आय 1 लाख 8 हज़ार 427 रुपये थी जो 2021-22 में 1 लाख 7 हज़ार 670 रुपये हैं. 2021-22 का आंकड़ा अस्थायी है लेकिन फिलहाल तो यही दिख रहा है कि 2019-20 की तुलना में प्रति व्यक्ति आय कम हो गई है. लेकिन इसी दौरान तरह तरह के टैक्स कितने बढ़ गए, महंगाई कितनी बढ़ गई, आम आदमी की कैसी हालत होगी, वही जानता है, कई बार लगता है कि उसे धर्म की बहस में उलझा कर ठीक ही रखा गया है वरना वह खर्चे और पैसे की चिन्ता में डिप्रेशन में चला जाता. हमारे सहयोगी हबीब ने कितनी सावधानी से आम आदमी की तस्वीरें ली हैं. 

रुपया कमज़ोर तो हुआ है लेकिन पैसे वालों की सनक अभी मिटी नहीं है. इस समाज में ऐसे भी लोग हैं जो 20-20 लाख देकर मेडिकल की सीट खरीद रहे हैं, चोरी से अपने बच्चों को डागदर बनवा रहे हैं.17 जुलाई को NEET की परीक्षा हुई थी.CBI इस मामले की जांच कर रही है, एक गैंग नज़र आ रहा है जो यूपी बिहार मुंबई हरियाणा में सक्रिय हो सकता है.CBI ने 11 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की है. इसमें से 8 18 जुलाई को ही गिरफ्तार हो गए हैं. 8 में से 6 साल्वर हैं जो दूसरे छात्र के बदले परीक्षा हाल में जाकर जवाब लिख आते हैं. 20 लाख देकर चोरी से, किसी की सीट हड़प कर अपने बच्चे को डॉक्टर बनाने वाले माता पिता फेसबुक पर राष्ट्रवाद के बारे में क्या लिखते होंगे, साल में कितनी तीर्थ यात्राएं करते होंगे, CBI अगर ये भी बता देती तो अच्छा रहता.18 लाख से ज्यादा छात्रों ने मेडिकल की प्रवेश परीक्षा में हिस्सा लिया था. उनकी मानसिक हालत इस वक्त क्या होगी, आप नहीं समझ सकते हैं, समझ भी सकते हैं तो कुछ नहीं कर सकते. 

चीन भारत से लगी सीमा पर उन इलाकों में जिन्हें वो विवादित मानता है अपनी गतिविधियां बढ़ा रहा है... ऐसा ही एक इलाका है डोकलाम का पठार जहां चीन की ओर से सामरिक लिहाज से अहम एक पहाड़ी पर चीन ने गांव बसा दिया है. जबकि ये गांव भूटान की सीमा में है... चीन क़रीब ही दो और ऐसे गांव बसा रहा है… सैटलाइट की ताज़ा तस्वीरों से ये जानकारी मिली है... रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक इसके ज़रिए चीन की कोशिश भारत के सिलिगुड़ी कोरिडोर तक सीधी पहुंच बनाने की है... इस पहाड़ी पर पहुंच से सिलिगुड़ी कोरिडोर चीन की सीधी निगाह में होगा... सिलिगुड़ी कोरिडोर पूर्वोत्तर भारत को बाकी भारत से जोड़ने वाला गलियारा है…

एक तरफ 20 लाख में मेडिकल की सीट खरीदी जा रही है, वही दूसरी तरफ मध्य प्रदेश में पांच लाख बच्चे ऐसे हैं जिन्हें साइकिल नहीं मिलती है तो स्कूल छूट जाता है, या फिर पैदल स्कूल जाना पड़ता है.  सुप्रीम कोर्ट से नूपुर शर्मा को राहत मिली है. उनकी गिरफ्तारी पर अंतरिम रुप से रोक लगा दी गई है और कहा कि किसी भी मामले में कठोर कार्रवाई नहीं होगी. नूपुर की याचिका पर दिल्ली पुलिस,पश्चिम बंगाल, तेलंगाना को नोटिस जारी कर 10 अगस्त तक जवाब मांगा है. उधर फिल्म निर्देशक अविनाश दास को गिरफ्तार कर लिया गया है. उनकी ज़मानत याचिका भी सुप्रीम कोर्ट में है. अविनाश के खिलाफ राष्ट्रीय ध्वज के अपमान का मामला दर्ज है. 

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