यात्री गण कृपया ध्‍यान दें, 2022 का नया इंडिया अब 2047 में आएगा

कभी भारत को विश्व गुरु बनाया जाने लगता है, लेकिन जब यहां के फटीचर कॉलेजों का हाल दिखने लगता है तो विश्व गुरु छोड़कर किसी और टाइप के इंडिया की बात होने लगती है

यात्री गण कृपया ध्‍यान दें, 2022 का नया इंडिया अब 2047 में आएगा

भारत बनाम इंडिया की जगह अब इंडिया बनाम न्यू इंडिया ने ली है. प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में कई तरह के भारत वाले अभियान लॉन्‍च हो चुके हैं. इनके नाम कभी हिन्दी में होते हैं तो कभी अंग्रेज़ी में. जैसे स्वच्छ भारत हिन्दी में है तो मेक इन इंडिया अंग्रेजी. आत्मनिर्भर भारत भी है जो इन दिनों चल रहा है. सक्षम भारत है. डिजिटल इंडिया है और स्किल इंडिया है. आपको भांति भांति के इंडिया और भांति भांति के भारत का ज़िक्र मिलेगा जिसके नाम पर कई तरह के सपने अलग अलग काल खंड में दिखाए जाते रहे हैं. कभी भारत को विश्व गुरु बनाया जाने लगता है लेकिन जब यहां के फटीचर कॉलेजों का हाल दिखने लगता है तो विश्व गुरु छोड़ कर किसी और टाइप के इंडिया की बात होने लगती है. इस तरह की टैग लाइन और डेडलाइन के बीच भारत भटक रहा है. 2022 में न्यू इंडिया बनना था और नया आया है कि 2047 में न्यू इंडिया बनेगा. नया इंडिया को लेकर भांति भांति की तारीखें मिलती हैं. 2015 के बजट में जब अरुण जेटली वित्त मंत्री के रूप में एलान करते हैं कि 2022 में भारत की आज़ादी के 75 साल पूरे होने पर अमृत महोत्सव मनाया जाएगा. इसी संदर्भ में आगे चल कर न्यू इंडिया का इस्तेमाल होने लगता है. कई बार नया इंडिया तो कई बार इसकी जगह नई ऊर्जा, नई प्रेरणा, नए लक्ष्य का भी इस्तमाल होने लगता है. कभी उसे विज़न कहा गया तो कभी मिशन बताया गया.

वही तो हम पूछ रहे हैं कि 2022 के लिए सरकार ने जो समर्पित किया था उस समपर्ण के लिए जो टारगेट बनाए थे उसका क्या हुआ. 2022 में भारत में नया इंडिया बनना था. उसका क्या हुआ. कितनी गंभीरता से यह नारा सेट किया गया था. 2017 में भारत छोड़ो आंदोलन के 75 साल हुए थे.

“इतिहास की ये घटनाएं हम लोगों के लिए एक नई प्रेरणा, नया सामर्थ्‍य, नया संकल्‍प, नया कृतत्‍व जगाने के लिए किस प्रकार से अवसर बने, ये हम लोगों का निरंतर प्रयास रहना चाहिए.”

प्रधानमंत्री कई बार नया और नई का इस्तेमाल करते हैं लेकिन संसद के इस विशेष सत्र में नया इंडिया का ज़िक्र उनके भाषण में नहीं आता है. प्रधानमंत्री संकल्प से सिद्धी का नारा देते हैं. सौ करोड़ भारतीयों के मिलकर जन आंदोलन चलाने की बात करते हैं ताकि संकल्प पूरा हो सके. आज़ादी के 75 साल पूरे होने के मौके के लिए कई संकल्प तय किए गए थे, उनकी सिद्धी हुई या नहीं, इसका कोई हिसाब किताब ही नहीं दिया गया 2022 के बजट में या बजट के बाहर.

9 अगस्त 2017 को प्रधानमंत्री अपने ट्वीट में नया इंडिया इस्तमाल करते हैं. हम ये नहीं कह रहे कि उनकी राजनीतिक शब्दावली में नया इंडिया सबसे पहले इसी ट्वीट से आया लेकिन पोलिटिकल मार्केटिंग को समझने के लिए नया इंडिया की यात्रा और इसके विस्तार को समझना बहुत ज़रूरी है. 9 अगस्त 2017 को बकायदा का घोषणापत्र जैसा पर्चा ट्वीट करते हैं जिसका नारा है संकल्प से सिद्धी. बाद में कई विभाग अपने प्रचार में संकल्प से सिद्धि का इस्तेमाल करने लगते हैं औऱ यह जगह जगह छपने दिखने लगता है. प्रधानमंत्री इसका नाम देते हैं न्यू इंडिया मूवमेंट. 2017 से 2022. क्या आपको पता है कि ऐसा कोई न्यू इंडिया मूवमेंट आया था और आया था तो आपने किस तरह से भाग लिया?

प्रधानमंत्री संकल्प लेने के लिए कहते हैं कि 2022 में नया भारत बनाना है जो ग़रीबी, गंदगी, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, जातिवाद, सांप्रदायिकता से मुक्त होगा. 2022 तक हमारे सपनों का न्यू इंडिया बनेगा. कमाल है 2022 में जो नया भारत बनना था उस भारत में सांप्रदायिकता भी मिट जानी थी. इस संकल्प को पूरा करने के लिए इस पोस्टर के लिए अलावा कितनी ईमानदार कोशिश हुई है इसका जवाब संकल्प का पोस्टर बनाने वाला भी नहीं दे पाएगा.

2016 में नोटबंदी और उसके बाद जीएसटी के समय कहा गया कि भ्रष्टाचार पर अंतिम प्रहार हो गया लेकिन 2022 में प्रधानमंत्री मन की बात में कहते हैं कि भ्रष्टाचार दीमक की तरह देश को खोखला कर रहा है.

2022 में ही भ्रष्टाचार का क्या हाल है बताने की ज़रूरत नहीं है लेकिन यहां प्रधानमंत्री भूल गए हैं कि इसे खत्म करने की टाइम लाइन तो 2022 ही थी. मन की बात में कह रहे हैं कि 2047 का इंतज़ार क्यों. लेकिन बजट में विज़न पेश कर रहे हैं कि 2047 तक इंतज़ार करने के लिए कह रहे हैं कि उस समय भारत कैसा होगा. इन भाषणों का राजनीतिक ही नहीं मनोवैज्ञानिक हिसाब से मूल्यांकन होना चाहिए. आप अपने वर्तमान में टिक न पाएं, यह देख न पाएं कि आज आपके साथ क्या हो रहा है इसके लिए कभी 800 साल पीछे तो कभी पचीस साल आगे की बात चलाई जाती है. एक और बात है. इस तरह के नारे केवल नारे के लिए नहीं गढ़ दिए जाते हैं बल्कि उन्हें गंभीरता और विश्वसनीयता प्रदान करने के लिए तरह तरह के ईवेंट भी रचे जाते हैं. 2017 में भारत छोड़ो आंदोलन का 75वां साल मना था और उसी से लिंक था दिसम्बर 2018 में आया नीति आयोग का एक दस्तावेज. 

यह नीति आयोग के उस दस्तावेज का कवर है जिसे 19 दिसंबर 2018 को लांच किया गया था. इस पर अलग अलग भाषाओं में नया इंडिया लिखा है. आपको तोहफा का गाना याद हैं न. तोहफा तोहफा तोहफा तो आवाज़ आती है लाया लाया लाया. उसी टाइप का इसमें नया नया नया लिखा है. 232 पन्नों का यह दस्तावेज़ तैयार किया गया कि आज़ादी के 75 साल होने पर भारत को नया इंडिया बनाना है. इसकी भूमिका में लिखा है कि भारत छोड़ो आंदोलन के 75 साल होने से प्रेरणा ली गई है. इस तरह यह नया भारत के एलान का प्रमाणिक दस्तावेज़ बन जाता है जिसे 2022 में बनना था. आप देखेंगे कि इस तरह के नए नए ईवेंट के ज़रिए नया भारत के सपनों को लोगों के दिलों दिमाग़ में ठेल दिया गया. लगे की सरकार सीरीयस है. आप कैसे नहीं सीरीयसली लेंगे प्रधानमंत्री ने फारवर्ड में लिखा है कि 2022 में न्यू इंडिया बनाना है. नीति आयोग के उपाध्यक्ष ने ज़ोर देकर लिखा है कि पांच साल में ही न्यू इंडिया बनाना है तो जो बना है वो कहां है यही तो हम पूछ रहे हैं.

नीति आयोग ने अपने दस्तावेज में न्यू इंडिया के लिए 41 क्षेत्रों की पहचान की है. सबके लिए अलग अलग टारगेट हैं जिन्हें 22-23 में पूरा होना है. हर सेक्टर को लेकर इस दस्तावेज़ में 41 चैप्टर है. खेती वाले चैप्टर में ज़ीरो बजट और आर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने की बात है लेकिन इस मामले में क्या हुआ है कुछ पता नहीं. यही नहीं इलेक्ट्रानिक एग्रीकल्चर मार्केट E NAM बनाने की बात है. 14 अप्रैल 2016 को ई-नाम योजना लांच हुई थी. तब प्रधानमंत्री ने कहा था कि यह योजना भारतीय कृषि के लिए टर्निंग प्वाइंट है. हेडलाइन में कोई कमी नहीं होती है.

चार साल बाद 2021 के बजट में सरकार ने बताया था कि 1000 मंडियों को ई-नाम से जोड़ दिया गया है. यह भी कहा कि आने वाले साल में 1000 नई मंडियों को जोड़ा जाएगा लेकिन ई-नाम की वेबसाइट से पता चलता है कि 1000 मंडियां ही जोड़ी गई हैं. क्या इस एक साल में इस मामले में ज़ीरो प्रगति हुई है? तत्कालीन कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह 24 जनवरी 2019 को खुद ही अपने बयान की खबर ट्विट करते हैं कि 2022 तक सारे 7500 स्थायी मंडियों को E NAM से जोड़ा जाएगा. इसके अलावा 14,500 अस्थायी मंडियों को भी ई नाम से जोड़ने की बात इस खबर है. तो कुल मिलाकर 2022 तक 22,000 मंडियों को ई नाम से जोड़ा जाना था लेकिन क्या यह टारगेट पूरा हुआ? 18 जनवरी 2019 को फेसबुक पर राधा मोहन सिंह एक पोस्टर चिपकाते हैं. इसे हैशटैग के तहत पांच साल का चैलेंज कहा गया है और बताया है कि जनवरी 2019 तक 585 मंडियों को ई नाम से जोड़ा गया है जबकि 2014 में ई नाम मंडियों की संख्या ज़ीरो थी. मतलब इतना शानदार काम कर दिया लेकिन क्या अब कोई फिर से चैलेंज वाला ऐसा पोस्टर बनाएगा कि 22000 मंडियों को E नाम से जोड़ने के चैलेंज का क्या हुआ. आज भी इसकी वेबसाइट पर 1000 मंडिया ही हैं जबकि फरवरी 2021 की इस छपी हुई खबर में कृषि मंत्रालय का बयान है ई-नाम से 1000 और मंडियों को जोड़ा जाएगा इसका मतलब है कि जो कहा जा रहा है वो पूरा नहीं किया जा रहा है. 

तो यह हाल है न्यू इंडिया बनाने के लिए संकल्प और सिद्धी का. 9 जुलाई 2019 में PIB की एक प्रेस रिलीज़ के ज़रिए सरकार बताती है कि ई-नाम से करीब 1 करोड़ 64 लाख किसान जुड़े हैं. आज इसकी वेबसाइट पर दिखा कि ई नाम मंडी के लिए पंजीकृत किसानों की संख्या 1 करोड़ 72 लाख है. यानी 2019 से 2022 के बीच केवल 8 लाख किसान ही ई-नाम से जुड़े. यही हाल आर्गेनिक खेती का है. इस बार के बजट में कहा गया है कि गंगा के किनारे आर्गेनिक खेती का प्रसार किया जाएगा. नमामि गंगे की बात नहीं होती लेकिन किसी न किसी बहाने गंगा की बात होती रहती है. आर्गेनिक खेती के हाल पर हम 22 नवंबर 2021 के प्राइम टाइम का एक हिस्सा दिखाना चाहते हैं. तब पता चलेगा कि आर्गेनिक खेती के नाम पर 2016 से कैसे सपना दिखाया जा रहा है. 2022 आ गया यह भी नया भारत का एजेंडा था नीति आयोग के दस्तावेज़ में.

2016 में पद्म श्री देने के तीन साल बाद 2019-20 के बजट में वित्त मंत्री ने ज़ीरो बजट खेती की बात की. रसायनिक चीज़ों के इस्तमाल के बिना प्राकृतिक तरीके से खेती करने की नीति का एलान हुआ लेकिन ये सिर्फ एलान ही साबित हुआ. इसी से अंदाज़ा लगाइये कि दो दिन पहले प्रधानमंत्री ज़ीरो बजट फार्मिंग के लिए कमेटी बनाने की बात कर रहे हैं. पांच साल में बात कमेटी पर पहुंची है इसका मतलब है कि सुधार को लेकर सरकार जल्दी में नहीं हैं, उन्हीं सुधारों को लेकर जल्दी है जिसे लेकर आरोप लगता है कि चंद कंपनियों के लिए किया जा रहा है.

क्या आप जानते हैं ज़ीरो बजट पर अच्छी नीयत से अच्छी अच्छी बातें करने वाली सरकार ने इस पर कितना ख़र्च किया है? DMK सांसद कनिमोई करुणानिधि ने लोकसभा में इस बारे में सवाल किया. उसके जवाब में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि इस योजना के तहत 8 राज्यों में 49 करोड़ ही खर्च हुए हैं. केवल 49 करोड़. ये हाल है ज़ीरो बजट खेती को प्रोत्साहित करने के बजट का. यह जवाब पिछले साल अगस्त का है.

मंत्री ने लिखित जवाब में कहा है कि ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग ZBNF का नाम भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति BPKP कर दिया गया है. 2020-21 से परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत एक उपयोजना के तौर पर चल रही है. इसके तहत तीन साल में एक हेक्टेयर खेत को आर्गेनिक करने के लिए सरकार 12,200 रुपये की आर्थिक मदद देगी. अभी तक 49 करोड़ की राशि ही खर्च हुई है 8 राज्यों में.

नीति आयोग के दस्तावेज की प्रवेशिका में लिखा है कि 2019 तक भारत के सभी ढाई लाख ग्राम पंचायतों को भारत नेट प्रोग्राम के तहत इंटरनेट से जोड़ा जाना है ताकि नया इंडिया बन सके. और यह भी टारगेट था कि 2022-23 तक डिजिटल डिवाइड को खत्म कर देंगे.

क्या 2019 तक ढाई लाख ग्राम पंचायतों को भारत नेट से जोड़ा जा सका? जुलाई 2021 में इंडियन एक्सप्रेस के आशीष आर्यन की यह रिपोर्ट बताती है कि भारत नेट प्रोग्राम अपने लक्ष्य से बहुत पीछे चल रही है. 25 जून 2021 तक केवल डेढ़ लाख से कुछ अधिक ग्राम पंचायतों में ही सेवा चालू की जा सकी है. दूसरे चरण की योजना में करीब 35000 ग्राम पंचायतों में ही सेवा चालू हो सकी है. वैसे यह योजना 2011 में शुरू हुई थी. 15 दिसंबर 2021 को आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने लोकसभा में बताया है कि 30 नवंबर 2021 तक 1,67,156 ग्राम पंचायतों में ही सेवा चालू हो सकी है. यानी 2019 का टारगेट 2021 तक पूरा नहीं हुआ है. ये हाल है संकल्प और सिद्धी का.

अभी तक हम 2022 के साल के लिए दो चार टारगेट का ही ज़िक्र करते रहे हैं लेकिन इसकी सूची बहुत लंबी है. किसानों की आय दोगुनी होनी थी, नहीं हुई, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत छह करोड़ घर बनने थे, नहीं बने. पीएम कुसुम योजना के तहत लाखों सोलर पंप दिए जाने थे, नहीं दिए गए. डेढ़ लाख हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर बनने थे नहीं बने. इसी तरह 2022 के लिए 22000 मंडियों को ई नाम से जोड़ा जाना था नहीं जोड़ा गया. भारत नेट का हाल देख ही लिया. 2022 के नए भारत में लेबर फोर्स में महिलाओं की भागीदारी 30 प्रतिशत तक लानी थी, इसकी चर्चा ही गायब है. मगर 2015 से 2022 तक इतने अभियान चलाए गए कि किसी को लगा ही नहीं होगा कि 2022 आने के बाद इसका हिसाब नहीं दिया जाएगा.

न्यू इंडिया बनाने के लिए संकल्प से सिद्धी के नाम पर कई विभागों ने चहल पहल शुरू कर दी. कोई पोस्टर बनाने लगा तो कोई कुछ और अभियान चलाने लगा. हमें एक वेबसाइट भी मिली जिसका पता है newindia.mygov.in. इस पर लोगों से कहा गया है कि नया भारत बनाने के लिए जो जन आंदोलन चल रहा है उसमें new india के नागरिक के तौर पर अपना पंजीकरण कराएं. आप पंजीकरण कराएंगे तो दो चरणों में नाम पता पूछा जाता है उसके बाद शपथ पत्र आता है. नए भारत के नागरिक के लिए ये सब करने की क्या ज़रूरत थी और इसका क्या होता है और इसके पीछे कितना पैसा बर्बाद हुआ यानी खर्च हुआ किसी को कुछ पता नहीं है. यह इतना बड़ा जन आंदोलन चल रहा था जिसके लिए मात्र 59025 न्यू इंडिया सिटिज़न ने पंजीकरण कराए हैं. पंजीकरण कराने पर कहा जाता है कि जुड़े रहिए जन आंदोलन की ताजा जानकारी मिलती रहेगी. इन 59000 में से कोई है जो बता दे कि जन आंदोलन की उन्हें किस किस तरह की ताजा जानकारी मिलती रही है. यही नहीं 2022 के न्यू इंडिया के लिए लोगो क्या होना चाहिए इस पर भी कंपटिशन हुआ है. जैसा कि यह पोस्टर बताता है. इस पोस्टर में आह्वान किया गया है कि एक लघु फिल्म प्रतियोगिता चल रही है जिसमें भाग लें. टापिक भी दिया गया है कि भारत को स्वच्छ बनाने में मेरा योगदान. तमाम विभागों की योजनाओं के ऊपर 2022 और न्यू इंडिया चिपका दिया गया. इस पोस्टर में प्रधानमंत्री की तस्वीर है और लिखा है न्यू इंडिया बज़. पोस्टरों और हेडलाइनों की ऐसी बजबजाहट हुई थी अब यह समझना मुश्किल है कि इन पोस्टरों और हेडलाइनों का क्या किया जाए. कितनी गंभीरता से यह सब किया जाता है कि किसी को शक न हो कि जब 2022 आएगा तो इनका कुछ पता ही नहीं चलेगा.

अगर आपको अब भी इस न्यू इंडिया को लेकर किए गए ताम झाम और काम तमाम का खेल समझ नहीं आ रहा है तो फिर आप कोई भी खेल समझने लायक नहीं बचे हैं. ऐसा नहीं है कि कोई बयान दिया गया और भुला दिया गया. गंभीरता के साथ लोगों को न्यू इंडिया के अभियान में लगाए रखा गया. तभी तो नीति आयोग ने 232 पन्नों का दस्तावेज लिखा. जिन लोगों ने लिखा वो अपने लेख को किस न्यू इंडिया में पढ़ते होंगे वही जानें. प्रधानमंत्री एक नहीं अनेक बार कहते हैं कि 2022 में न्यू इंडिया बनेगा. बस 2022 आया तो किसी ने दिखाया नहीं कि न्यू इंडिया कहां है.

नया इंडिया 2022 से 2047 पर शिफ्ट हो गया है. बजट में बताया गया कि भारत अमृत काल में प्रवेश कर गया है. इस बजट का विज़न अगले 25 साल का है जब भारत की आज़ादी के सौ साल होंगे. हम आपको एक जानकारी देना चाहते हैं. जब 2022 नहीं आया था तभी से 2047 को सीन में लाया जा चुका था.

2019 के लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने घोषणा पत्र जारी किया था. इसमें प्रधानमंत्री मोदी का संदेश है जिसमें वे 2047 के भारत की बात करते हैं. कहते हैं कि जब 2047 में भारत की आज़ादी के सौ साल होंगे तबका भारत कैसा होगा, इसकी कल्पना करनी चाहिए. लेकिन इसी घोषणा पत्र में गृहमंत्री राजनाथ सिंह का संदेश छपा है कि भारत आगे बढ़ रहा है और 2022 में न्यू इंडिया के लक्ष्य को हासिल करने की ओर अग्रसर है. इस घोषणा पत्र में बीजेपी मतदाताओं से अपील कर रही है कि 2019 से 2024 नया इंडिया की बुनियाद रखने के लिए वोट करें. इसी थीम के आधार पर वोट मांगा जा रहा है. घोषणा पत्र में तो डेडलाइन 2024 की है न्यू इंडिया की.

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नया टूथ पेस्ट, नया दंत मंजन, नया साबुन, नया तेल के जैसा हो गया है नया इंडिया. पहले टारगेट आया कि 2022 में नया इंडिया बनेगा और जब 2022 आ गया तो टारगेट को 2047 में भेज दिया गया. इन सबके पीछे के मनोविज्ञान को समझिए. बहरहाल अमृत काल में हम सब प्रवेश कर चुके हैं.