This Article is From Mar 14, 2021

ममता बनर्जी पर हमले का आरोप एक साज़िश, हादसा या सियासी दांव?

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Rakesh Tiwari

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी नंदीग्राम के बिरुलिया गांव में सड़क पर गाड़ी में चलते हुए चोटिल हो गईं, उन्होंने अपनी पहली प्रतिक्रिया में मीडिया के सामने कहा, कि “कोई साज़िश है, मुझे चार-पांच लोगों ने धक्का दिया”. ममता का बयान आते ही तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने भी यही दुहराना शुरू कर दिया कि ये साज़िश है, ज़ाहिर है निशाने पर बीजेपी थी. तृणमूल के सांसद राज्य चुनाव आयोग से लेकर दिल्ली में मुख्य चुनाव आयुक्त तक पहुंचे, अपनी शिकायत दर्ज कराई और चुनाव आयोग से कार्रवाई की मांग की. दूसरी तरफ़ बीजेपी के नेता भी मुख्य चुनाव आयुक्त से मिले और तृणमूल कांग्रेस के तमाम आरोपों को ख़ारिज करते हुए कहा कि इस घटना की पूरी जांच की जाए. बीजेपी सांसद अर्जुन सिंह ने तो यहां तक दिया कि “कोई भूत था क्या या यहां तालिबान है, ये सब सहानुभूति बटोरने के लिए ड्रामा किया गया है”. सवाल कई सारे हैं, लेकिन सवाल पहले घटना के आसपास से..

#घायल होने की थ्योरी नंबर 1
नंदीग्राम के बिरुलिया गांव में ममता बनर्जी के क़ाफ़िले के आसपास किस तरह भीड़ जमा थी, ये अब उस नई तस्वीर में साफ़ हो गया है, जो उनके घायल होने से ठीक पहले का बताया जा रहा है. अगर ऐसी भीड़ और हालात का आकलन करें तो ममता चोटिल होने के वक़्त जिस तरह से अपने कार की अगली सीट से आधी बाहर थीं और कार का दरवाज़ा भी आधा ख़ुला था, तो ये मुमकिन नज़र आता है कि कार के साथ दौड़ लगा रही भीड़ की गति में हलचल हुई होगी और कार के दरवाज़े में ममता का पैर दब गया होगा और वो घायल हो गईं.

#घायल होने की थ्योरी नंबर 2
इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि जिन हालात में ममता की गाड़ी नंदीग्राम के बिरुलिया गांव से गुज़र रही थी तो भीड़ में घुसकर कुछ लोगों ने ममता बनर्जी को धक्का देकर नुकसान पहुंचाने की कोशिश की होगी. इस थ्योरी का आधार घटना के वक़्त सुरक्षा में कमी के उठ रहे सवालों से जुड़ता है, लिहाज़ा किसी साज़िश से भी फ़िलहाल इनकार नहीं किया जा सकता.

#घायल होने की थ्योरी नंबर 3
ममता की गाड़ी जिस तरह से भीड़ के साथ आगे बढ़ रही थी, मुमकिन है कि अचानक से गाड़ी में ब्रेक लगी हो और दरवाज़े के झटके में ममता का पैरा फंसकर चोटिल हुआ हो.

#घायल होने की थ्योरी नंबर 4
भीड़ के उत्साह को देखकर हो सकता है ममता की गाड़ी अचानक रुकी हो और ममता नीचे उतरकर या गाड़ी के पायदान पर खड़ी होकर भीड़ को कुछ कहने की कोशिश कर रही हों और इसी बीच भीड़ के दबाव में दरवाज़ा झटका खा गया हो और ममता घायल हो गई हों.

हर सवाल और कयासबाज़ी की तस्वीर जांच रिपोर्ट के बाद शीशे की तरह साफ़ हो जाएगी और मुमकिन है कि कोई पांचवी थ्योरी जांच के नतीजे के रूप में सामने आ जाए, लेकिन यहां से जो सवाल उठते हैं कि अगर ममता ने पहले दिन ये कहा कि 
"उनके घायल होने में कोई साज़िश हुई है" 
"उनके साथ कुछ लोगों ने जान-बूझकर धक्का-मुक्की की" 
"पुलिस एसपी भी नहीं थे मौजूद"

दूसरे दिन उनके बयान में थोड़ा सा बदलाव क्यों आया कि 
"उनका पैर भीड़ का दबाव बढ़ने से कार से टकराया"
"साज़िश की बात नहीं दोहराई, पुलिस की बात का ज़िक्र नहीं किया"

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तो ममता बनर्जी का बयान अगर 24 घंटे में नरम पड़ा तो इसके मायने क्या हैं? क्या वाक़ई किसी ने ये साज़िश की है, अगर हां तो इसका फ़ायदा क्या होने वाला है. ममता अगर वाक़ई हमले में घायल हुईं हैं तो साज़िश करने वाले को ये तो ज़रूर पता होगा कि इससे ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस को लाभ ही होगा. उन्हें लोगों की सहानुभूति हासिल होगी, जिसका असर निश्चित तौर पर चुनाव पर होगा, तो साज़िश करने वाला क्या उनका विरोधी नहीं बल्कि कोई अपना है जो ममता को सहानुभूति दिलाकर तृणमूल की चुनावी ज़मीन मज़बूत करना चाहता है. और अगर ये सहानुभूति बटोरने का सियासी दांव  है तो जांच एजेंसियों के नतीजे से दांव उल्टा पड़ने का भी ख़तरा हो सकता है. अगर वाक़ई ये सड़क हादसा है तो फिर इसे सियासी रंग देने की दीदी को ज़रूरत क्यों पड़ी? या फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि दीदी ने जो दांव चला, अब उन्हें अपना दांव उल्टा पड़ता नज़र आ रहा है. ये तमाम सवाल सियासी गलियारों में पूछे जा रहे हैं. इस बीच दीदी अस्पताल से घर भी आ चुकी हैं, लेकिन तरह-तरह के आरोप भी लग रहे हैं और बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस भी इसे सियासी स्टंट बता रही है. इन सब में ये बात क़ाबिल-ए-ग़ौर है कि ममता दीदी को चोट तो लगी है और उसपर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अब तक ख़ामोशी की चादर ओढ़े हुए हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि वो अपने बयान कि "नंदीग्राम में स्कूटी गिर जाएगी" पर मंथन कर रहे हैं कि उनकी ज़ुबान से निकली बात कहीं चुनावी नुकसान का सबब न बन जाए. उम्मीद यही करनी चाहिए कि जल्द ही पीएम मोदी की ख़ामोशी पर से भी पर्दा हटेगा और जांच के बाद हर सच सामने आएगा. हालांकि चुनावी दौर में जिस दिशा में सियासत में गिरावट आ रही है, उसमें किसी भी तरह के हालात से इनकार करना मुश्किल है, वो भी तब जबकि पंश्चिम बंगाल का चुनावी और सियासी इतिहास पिछले चार-पांच दशक में रक्त रंजित नहीं रह गया है. 
 

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(राकेश तिवारी एनडीटीवी इंडिया में सीनियर आउटपुट एडिटर हैं)

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