This Article is From Jul 28, 2022

बंगाल में नोटों का ख़ज़ाना, बिहार में चुप्पी

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Ravish Kumar

क्या आपको याद है कि 2016 में मोदी सरकार एक स्कीम लेकर आई थी। इसके तहत 1 जून से लेकर 30 सितंबर के बीच अघोषित आय का ब्यौरा देना था। इस पर 45 प्रतिशत सरचार्ज और दंड वगैरह लगने का प्रावधान किया गया ताकि जो काला धन है उसका कुछ तो सफेद हो कर काला धन वालों के पास आ जाए। भ्रष्टाचार तनिक भी बर्दाश्त न करने वाली सरकार ने काला धन वालों को यह छूट क्यों दी…यह सवाल आप तभी पूछ पाएंगे जब आप याद रखने की क्षमता का विकास कर पाएंगे। इस योजना का नाम था Income Declaration Scheme (IDS)

हम उस समय का एक वीडियो दिखाना चाहते हैं जो इस योजना के प्रचार के लिए बना था, लोगों को प्रेरित किया जा रहा था कि वे अपनी अघोषित आय बता दें, उनकी पहचान गुप्त रखी जाएगी, केवल उन्हें 45 प्रतिशत से ज्यादा टैक्स देना होगा, बाकी पैसा उनका। आधा लेकर बाकी सफेद करने की इस योजना के समर्थन में ज़रूर उस वक्त कई अर्थशास्त्री आ ही गए होंगे।  आज भी आ जाएंगे।जनवरी 2018 में लोकसभा में रविंद्र बाबू पांडुला ने केंद्र सरकार की इस योजना को लेकर एक सवाल किया था जिसके जवाब में सरकार ने बताया कि Income Declaration Scheme (IDS) के तहत 71000 से भी ज्यादा घोषणाएं हुईं और लोगों ने 67,300 करोड़ की अघोषित आय की जानकारी आयकर विभाग को दी। 

लेकिन वादा था कि जिन्होंने चोरी की है उनसे एक एक पैसा वसूला जाएगा और देश के विकास में लगाया जाएगा। फिर आधा पैसा टैक्स देकर बाकी पैसा सफेद करने की योजना क्यों लाई गई, फ्लैशबैक में आपको याद दिलाने की कोशिश कर रहा हूं, क्या आपको ये योजना याद भी है?जनवरी 2014 में चुनावी सभाओं में मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण का एक हिस्सा सुनें।जिसमें उन्होंने कहा था कि चोरों से एक एक पैसा लिया जाएगा, फिर काला धन को सफेद करने का मौका क्यों दिया गया, पचास परसेंट का टैक्स लेकर पचास परसेंट ही क्यों लिया गया, एक एक पैसा क्यों नहीं लिया गया। 

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हमने 2014 की चुनावी सभाओं में आज के प्रधानमंत्री के भाषण का अंश इसलिए सुनाया ताकि याद रहे कि वादा किस चीज़ का था, और हुआ क्या. वादा था कि टैक्स चोरों का एक एक पैसा लिया जाएगा लेकिन उन्हें काला को सफेद करने का अवसर दे दिया गया। आधा आपका आधा हमारा। इस सवाल पर आप सोचते रहिएगा क्या यह ईमानदार करदाताओं के साथ न्याय था? किन लोगों को इसके तहत छूट दी गई होगी, क्या कभी उनसे पूछा गया होगा कि बाकी का जो काला धन सफेद होकर आपके पास है, वो कहां से आया? यही वो सवाल है जिसके पूछने के लिए ED को अधिकार दिए गए हैं। हम बंगाल की खबर के बाद इस पर लौटेंगे।बंगाल से जिस तरह नोटो की गड्डियां बरामद हो रही हैं उसे आप अनदेखा नहीं कर सकते हैं।कई लोग पूछते हैं कि इतने पैसे का नेता लोग करते क्या हैं। यह सवाल ठीक नहीं है। सवाल यह होना चाहिए कि ऐसा क्या करते हैं कि इतने पैसे आ जाते हैं। किसी के पास पूरी ज़िंदगी बीत जाने के पास भी जीने लायक पैसा नहीं होता है और किसी के पास इतना जमा हो जाता है कि आलमारी के नीचे तो गद्दे के नीचे छिपा कर रखना पड़ता है। 

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इतने नोट मिल गए कि इन्हें ED ने सजाकर ED ही बना दिया है। लगातार सवालों से घिरी ED लगता है अपनी इस कामयाबी पर गदगद है और नोटों से ED लिखकर अपने काम का डंका बजवा रही है। इस तस्वीर को इस तरह से भी देखा जा सकता है कि ED यह बताना चाहती है कि उसकी नज़र से कोई काला धन बचकर नहीं जा सकता है। ये सारे नोट बंगाल के शिक्षा मंत्री की करीबी सहयोगी जो भी हैं, अर्पिता मुखर्जी के दूसरे फ्लैट से बरामद हुए हैं। यहां से 5 किलो सोना भी पकड़ाया है, कुल 29 करोड़ की रकम है और पहले बरामद हुई रकम को मिला लें तो 50 करोड़ का कैश ही कैश मिल चुका है। अभी ED छापेमारी में सबूतों को ही बरामद कर रही हैं इसलिए सब कुछ कथित ही है मगर इतने नोटों को एक साथ देखकर इस कथित पर किसी भी ईमानदार टैक्स पेयर का मन व्यथित हो सकता है कि जिनके पास मौका है वो इतना आराम से इतना पैसा बना लेते हैं।

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ममता बनर्जी बेशक कहती हैं कि जो गलती करेगा, सज़ा मिलेगी लेकिन इतना काफी नहीं हैं। मुख्यमंत्री के रुप में उनका तीसरा कार्यकाल है। उनकी नाक के नीचे उनके ही मंत्री की सहयोगी के पास इतना धन मिलता है जिसे लेकर आरोप लग रहे हैं कि यह पैसा शिक्षक भर्ती घोटाले के बदले जमा हुआ है। हम जानते हैं कि इसे साबित होना है कि मंत्री की क्या भूमिका है लेकिन नोटों की यह मौजूदगी परेशान करने वाली है। यही पैसा अगर जनता के बीच पहुंचा होता तो उसकी किस्मत में थोड़ी और खुशहाली आ जाती। लेकिन चोरी से शिक्षक बनने और डाक्टर बनने के लिए इस देश में किसके पास इतना पैसा है, वो कहां से लाकर दे रहा है, इसकी भी पड़ताल होनी चाहिए पता तो चले कि कौन लोग हैं, जो पैसे देकर टीचर बने हैं, उनके पास इतना पैसा कहां से आया है। यह सवाल पूरक है, मुख्य प्रश्न है कि नोटों का यह बंडल ममता बनर्जी के सारे दावों के सामने सवालों का बड़ा पहाड़ बन चुका है

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ममता बनर्जी ने अभी तक शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी को नहीं हटाया है और न ही पार्थ चटर्जी ने इस्तीफा दिया है। जिस तरह से नगद नोटों की बरामदगी हो रही है, पहली नज़र में निर्दोष होने का दावा बहुत कमज़ोर लगता है। उनकी सरकार के मंत्री पर आरोप है, मंत्री की सहयोगी के घर से नोट निकल रहे हैं।आज ममता बनर्जी ने कैबिनेट की बैठक बुलाई थी। उस बैठक में फैसला हुआ कि…

यह कहानी केवल 50 करोड़ नोट और पांच किलो सोना मिलने की नहीं है, बल्कि शिक्षक भर्ती घोटाले की है। हाल ही में नीट मे़डिकल की परीक्षा हुई तो सीबीआई ने आठ लोगों को गिरफ्तार किया। आरोप है कि बीस बीस लाख देकर साल्वर को भेजा गया इम्तहान देने के लिए। काश यह भी पता चलता कि यह बीस लाख जिसने दिया उसके पास कितना काला धन है कि डाक्टर बनने के लिए 20 लाख देकर चोरी करवाता है। हम कोई ED को टास्क नहीं दे रहे लेकिन इसी मौके का लाभ उठाकर बता रहे हैं कि करप्शन का नेशनल हाईवे कैसे हर राज्यों को जोड़ता है। 

कुछ ही दिन पहले आपने मध्यप्रदेश की यह खबर प्राइम टाइम में देखी होगी। अनुराग द्वारी ने बताया कि यहां हाईकोर्ट के आदेश के बाद जांच हुई कि मेडिकल यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस की सीट बेची गई है। कुलपति ने इस्तीफा दिया है। ऐसे छात्रों को डाक्टर बनने की परीक्षा पास करा दी गई जो परीक्षा में बैठे ही नहीं थे। प्रश्न पत्र बनाने से लेकर उत्तर पुस्तिका जांचने में हेरा फेरी हुई। जस्टिस के के त्रिवेदी आयोग की रिपोर्ट से पता चलता है कि इस खेल में तत्कालीन कुलपतिकुलपति डॉ. टीएन दुबे,तत्कालीन एक्जाम कंट्रोलर डॉ वृंदा सक्सेनाऔर पूर्व कुलसचिव डॉ जे के गुप्ता की भूमिका संदिग्ध है। कमेटी ने पाया है कि कुलपति, कुलसचिव ने एग्जाम कंट्रोलर को 12 रोल नंबर लिखकर दिए और कहा कि इन्हें पास करना है।कुलपति टी एन दुबे पर खुद की हैंड राइटिंग में रोल नंबर लिखकर देने के आरोप हैं। एमबीबीएस, बीडीएस और एमडीएस के 13 स्टूडेंट को स्पेशल री-वैल्यूएशन का फायदा देकर पास कर दिया गया, जबकि यूनिवर्सिटी के अध्यादेश में री-वैल्यूएशन का नियम ही नहीं है। 278 छात्र ऐसे मिले हैं जिनका नामांकन दूसरे नाम से हुआ और परीक्षा दूसरे छात्र ने दी यानी एनरोलमेंट अलग नाम से और एग्जाम देने वाला अलग स्टूडेंट।

बंगाल के मामले में हम ज़रूर 50 करोड़ के कैश की तस्वीर देख रहे हैं और हतप्रभ हैं, इसलिए कि मामला है भी डरावना, न जाने किस प्रतिभाशाली शिक्षक का हक मारा गया होगा, इतना सोचने से ही मन दुखता है। लेकिन इसी तरह के मामले मध्य प्रदेश में हैं। 278 लोगों को गलत तरीके से MBBS की परीक्षा पास कराई गई है। पैसे का लेन देन हुआ होगा, और तो और जस्टिस त्रिवेदी आयोग की रिपोर्ट के बाद भी अभी तक आपराधिक मामला दायर नहीं हुआ है। जैसा कि इस मामले में याचिकाकर्ता और वकील अमिताभ गुप्ता बताते हैं। 

ED को टास्क नहीं दे रहे लेकिन इसी तरह के गंभीर घोटाले जब दूसरे राज्यों में होते हैं तब जांच की क्या हालत है आप देख सकते हैं।उत्तराखंड में भी राज्य के अधीनस्थ कर्मचारी आयोग की परीक्षा को लेकर विवाद चल रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा है कि आयोग को भंग कर देना चाहिए क्योंकि हर सरकार में इसके लोग भ्रष्टाचार में पकड़े जाते हैं और ज़िंदगियों से खिलवाड़ करते हैं। अब सवाल है कि इस आयोग के ज़रिए लोगों ने कितने सौ करोड़ कमाए होंगे वह पैसा कहां खपा होगा, इसका जवाब तो आयोग के भंग करने से नहीं मिलता है। आम तौर पर नीचले स्तर के कर्मचारी पकड़े जाते हैं मगर ऐसा नहीं लगता कि जिन आयोगों में भ्रष्टाचार इतना जमा जमाया हो वहां इसका पैसा ऊपर तक नहीं पहुंचता होगा। ये और बात है कि जांच एजेंसियां वहां तक पहुंच नहीं पातीं हैं जिस तरह बंगाल में पहुंचती दिखाई दे रही हैं। 

उत्तराखंड में भी राज्य अधीनस्थ कर्मचारी आयोग की एक परीक्षा को लेकर वहां की STF जांच कर रही है। यह परीक्षा पिछले साल 4-5 दिसंबर को हुई थी। 916 पदों के लिए 1 लाख 60 हज़ार फार्म भरे गए थे। आरोप है कि एक एक उम्मीदवार से 15-15 लाख लिए गए और प्रश्न पत्रों को लीक किया गया। कोचिंग सेंटर के निदेशक से लेकर अधीनस्थ कर्मचारी आयोग के कर्मचारी तक इसमें शामिल हैं। क्या ये पैसा नीचे ही रह जाता होगा? ऊपर नहीं जाता होगा? इस मामले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ही जांच के आदेश दिए हैं। परीक्षा कराने वाले आयोग से जुडे दो कर्मचारी मनोज जोश और गौरव नेगी भी इस परीक्षा में बैठे और उनका रैंक काफी अच्छा आया है। उत्तराखंड पुलिस ने मीडिया को बताया है कि मनोज जोशी ने प्रश्न पत्र खरीदने के लिए साठ लाख दिए हैं। मनोज जोशी के पास साठ लाख कहां से आया, ये पैसा किस किस में बंटा ?

जो पकड़ा गया वो पकड़ा गया, जो बच गया वो न जाने कितने प्रतिभाशाली युवाओं की ज़िंदगी बर्बाद कर गया। कोई हिसाब नहीं है। भ्रष्टाचार की लड़ाई भ्रष्टाचार से नहीं हो सकती। ईमानदारी से ही लड़ी जाएगी। नोटबंदी के बाद भी नगदी नोटों का बरामद होना नहीं रुक रहा है। 

यूपी चुनाव के पहले पीयूष जैन का किस्सा याद होगा। हंगामा मच गया था कि पीयूष जैन के यहां से 100 करोड़ की नगदी बरामद हुई है, उसके बाद यह राशि 196 करोड़ तक पहुंच गई। पैसे गिनने के लिए स्टेट बैंक आफ इंडिया के कर्मचारी बुलाए गए थे। 23 किलो सोना बरामद हुआ था। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कानपुर के लोग हैरान थे कि जिस पीयूष जैन को स्कूटर से चलते देखा है, पुरानी मारुति कार है, आम आदमी की तरह रहते हैं, उनके घर में 200 करोड़ कैश रखा मिला है। छापा जीएसटी के मामले में पड़ा था लेकिन अब ED भी जुड़ गई है। क्या इतना पैसा बिना किसी राजनीतिक संबंध के बन सकता है? यूपी चुनाव के समय पीयूष जैन को सपा से जोड़ा गया तब सपा ने कहा कि गलत पीयूष जैन के यहां रेड हो गई। जिनके यहां से 200 करोड़ मिले हैं,सपा ने उनका संबंध बीजेपी से जोड़ दिया। इस मामले में पीयूष जैन अभी तक जेल में हैं लेकिन राजनीतिक संबंध स्थापित नहीं हुआ। सारा मामला पीयूष जैन का ही बन कर रह गया। 

भ्रष्टाचार का मामला इतना साफ-साफ नहीं होता है, आम जनता को इसी से मतलब होना चाहिए कि जो भी पकड़ा जाए, अच्छा है, लेकिन इससे भी मतलब होना चाहिए कि किस मामले में पकड़े जाने वालों का संबंध साबित होता है और किस मामले में चुप्पी साध ली जाती है।अब हम लौट कर आते हैं Income Declaration Scheme (IDS) पर। यह योजना उसी साल लाई गई थी जिस साल नोटबंदी आई थी। 

8 नवंबर 2016 को नोटबंदी का एलान हुआ और आप यह कह कर लाइन में लगा दिए गए कि काला धन मिट जाएगा। उस पर प्रहार हो रहा है। लेकिन नोटबंदी का बादल ऐसे फटा था कि उस साल लोग भूल ही गए कि काला धन वाले तो पहले ही एक योजना आ चुकी थी जिसका नाम था Income Declaration Scheme (IDS)। खुद प्रधानमंत्री ने लोगों से अपील की थी कि पैसा घोषित कीजिए।सरकार ने संसद में बताया है कि इसके तहत 71000 से ज्यादा Declaration हुए थे यानी 71000 लोगों ने अपना काला धन घोषित किया था। इसके तहत कुल 67,300 करोड़ की अघोषित आय की जानकारी आयकर विभाग को दी गई थी। इस योजना की अंतिम तारीख 30 सितंबर 2016 थी। जब काला धन वाले आधा टैक्स देकर सफेद कर ही चुके थे। लेकिन सवाल था कि काला धन को जड़ से ही मिटा देने का। इसी दावे के साथ नोटबंदी के बारे में कहा गया कि नोटबंदी काला धन की जड़ों पर प्रहार है। लेकिन नोटबंदी के ठीक पहले 67000 करोड़ के काले धन की जड़ें कहां थीं, वो बची रह गईं या पराली की तरह जल गईं, यह कौन पूछे और कौन बताए। फिलहाल नोटबंदी के साल से भी ज्यादा इस वक्त नगदी नोटों का चलन हो गया है। तब जब डिजिटल लेन-देन में कभी 20 तो कभी 25 प्रतिशत के विकास की खबरें आती रहती हैं। 

इस योजना की एक प्रेस रिलीज मिली है PIB की है। जिसमें लिखा है कि वित्त मंत्री ने खुद कई स्टेक होल्डर को संबोधित किया था।आयकर विभाग ने 5500 जन सभाएं की थीं।5500, इसमें नुक्कड़ नाटक से लेकर टॉकाथॉन, वॉलोथॉन सब शामिल थे। मोदी सरकार इसे बड़ी सफलता बता रही थी। और इसे भी सही ठहराया जा चुका था कि यह देश के विकास के लिए जरूरी है। एक अहम जानकारी और है। 

“अभी 64275 करोड़ आए हैं यह फिगर बढ़ेगा, अभी तक के आंकडडे। और अभी तक जो अमाउंट डिस्क्लोज किया है इन डिक्लेरेशन दिया है उनकी सीक्रेसी मेंटेन करेंगे लेकिन सामूहिक रुप सेकितना अमाउंट दिया है इन 64000 ने अभी तक जो काउंट हुआ है वो फिगर है 65250 करोड़। दिस फिगर कुड बी रिवाइज़ अपवर्ड । ये टेनटेटिव। ये ध्यान रहे कि ये वो डेक्लेरेंट्स ने दिया है इस बेसिस पर 45 परसेंट टैक्स देंगे। यह वो अमाउंट है जिसकी घोषणा हुआ है।”

इस योजना के तहत गारंटी दी गई थी जो भी काला धन घोषित करेगा उसकी जानकारी गुप्त रखी जाएगी और उसके बारे में कोई भी जानकारी किसीी भी जांच एजेंसी से साझा नहीं की जाएगी। न ही आयकर विभाग जांच करेगा। हैं न कमाल की बात। आप भूल गए हैं। याद कीजिए और पूछिए कि जिन्होंने काला धन सफेद किया होगा आप चाहें तो पूछ सकते हैं कि क्या यह सरकारी तौर पर मनी लौंड्रिंग नहीं है कि 45-49 प्रतिशत टैक्स देकर बाकी पैसा सफेद कर लीजिए। ऐसी शर्त क्यों रखी गई कि जो भी अघोषित आय घोषित करेगा उसकी जांच नहीं होगी। क्या उसमें कोई ऐसा पैसा घोषित नहीं कर गया जिस पैसे की तलाश इन दिनों ED करती है, जिससे देश की अखंडता को खतरा पैदा हो सकता है? क्या आप ऐसे किसी को जानते हैं जिसने इस स्कीम के तहत काला धन को सफेद किया हो? क्या वो अब ईमानदार टैक्स पेयर हो गया है?

मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि अर्पिता और पार्था चटर्जी का संबंध 2016 से है, अगर पहले से होता तो ये लोग भी अपना पैसा केंद्र सरकरा की योजना के तहत काला से सफेद कर चुके होते।आपमें से कितनों को इस योजना के बारे में याद था और क्यों भूल गए? फ्लैशबैक में देखा कीजिए, पुरानी ख़बरें पढ़ेंगे तो नए को ठीक से समझ पाएंगे। फ्लैशबैक में आपको एक और खबर के बारे में बताता हूं, जो आज भी रहस्य की तरह बार बार सामने आता रहता है। यह वो खबर है जो इंडियन एक्सप्रेस, बिज़नेस लाइन,NDTV.com, टाइम्स आफ इडिया और मिरर कई जगहों पर छपी है लेकिन उसके बारे में बहुत जानकारी नहीं मिलती जबकि मामला 13860 करोड़ के काला धन की  घोषणा का है उसी IDS स्कीम के तहत।

काले धन पर जब भी पुरानी खबरों को खंगालता हूं गुजरात की यह खबर भी आ जाती है। 3 दिसंबर 2016 के इंडियन एक्सप्रेस में खबर छपी है कि अहमदाबाद में महेश शाह ने 13860 करोड़ का काला धन घोषित किया है।इनकी गिरफ्तारी की भी खबर एक्सप्रेस ने छापी है। महेश शाह एक दिन टीवी स्टुडियो पहुंच जाते हैं, लाइव प्रसारण के दौरान कहते हैं कि उन्होंने 13860 करोड़ के काला धन की घोषणा की है और यह पैसा उनका नहीं हैं। हिन्दू बिज़नेस लाइन में छपा है कि महेश शाह ने कहा था कि वे केवल फ्रंट मैन हैं। उनके पास जो पैसा है वो कई बिजनेसमैन का है, नेताओं का है और अफसरों का है।महेश शाह ने कहा कि उन्होंने कोई गलती नहीं की। पैसे की ज़रूरत थी तो कमीशन पर ये काम किया।जिनका पैसा है, मैं उनके नाम भी बताऊंगा।तब महेश शाह ने एक बात कही थी कि मैं क्या करता हूं, कोई नहीं जानता है। मेरे परिवार को मेरा काम नहीं पता है।मैं भगोड़ा नहीं हूं। कई जगहों पर महेश शाह के सीए का नाम और सीए की कंपनी का नाम भी छपा है। उनका बयान है कि महेश शाह ने 13680 करोड़ का काला धन घोषित किया था। और बड़ी मछली का नाम बताएंगे। खबरों में यह भी मिला कि आयकर विभाग ने महेश शाह का फार्म रिजेक्ट कर दिया है लेकिन यह नहीं मिला कि जब फार्म रिजेक्ट कर दिया तब 13000 करोड़ किसका था, इसका पता लगाया गया या नहीं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार महेश शाह की मौत हो जाती है और उनका केस बंद हो जाता है। हम जो भी बता रहे हैं उस समय की छपी हुई खबरों के आधार पर बता रहे हैं। 

उसके बाद से महेश शाह और 13860 करोड़ रुपए घोषित करने की कहानी मीडिया से गायब हो जाती है। यह कहानी आज भी रहस्य की तरह लगती है। महेश शाह, पीयूष जैन और अर्पिता मुखर्जी। ऐसे लोगों की कहानी हमेशा रहस्य की तरह होती है। न जाने ऐसे कितने लोग अभी घूम रहे हैं। बस कोई पकड़ा जाता है कोई बच जाता है और कोई गायब हो जाता है। किसी की फाइल खुल जाती है और किसी की बंद हो जाती है।
(सृजन घोटाले की खबर हिन्दी के अखबारों से लेना इन) सूचक दे दो मैं लिंक देता हूं। 
बिहार में 2400 करोड़ का सृजन घोटाला हुआ। सृजन महिला विकास सहयोग समिति के खातों में सरकारी पैसा ट्रांसफर किया गया और हरफेर किया गया।  जागरण ने लिखा है कि इस मामले में आरोपी भाजपा का ही नेता है और जब घोटाला हुआ तब सरकार नीतीश कुमार की थी इस मामले की जांच में ED शामिल है। यह उदाहरण इसलिए दिया कि कुछ मामलों में जांच धीमी चलती हैं। फाइले खुलती और बंद होती रहती हैं।

कल सुप्रीम कोर्ट ने मनी लौंड्रिंग एक्ट PMLA पर फैसला दिया कि ED को मिले अधिकार सही हैं और गिरफ्चारी का आधार बताने की ज़रूरत नहीं है।इस फैसले की समीक्षा लंबे समय तक होती रहेगी। आज कांग्रेस ने इस पर प्रेस कांफ्रेंस की है। मई 2018 में इस कानून में जो संशोधन हुआ था उसे कोर्ट ने सही माना है। कांग्रेस ने अदालत के फैसले के सम्मान करते हुए कुछ सवाल उठाए हैं कि 2004-14 के बीच ED ने मात्र 112 छापे मारे लेकिन उसके बाद के आठ वर्षों में छापों की संख्या 3000 हो गई। अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि सत्ता पक्ष के किसी भी तरह से संबंधित किसी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई है। विपक्ष को टारगेट किया जाता है। इसलिए उच्चतम न्यायालय से आग्रह है कि वह इस कानून के दुरुपयोग को लेकर सुरक्षा चक्र बनाए। 

“वो सुरक्षाएं सुरक्षा चक्र जिनसे इन चीज़ों का दुरुपयोग न हो या न्यूनतम हो। एक्चुअल सही सच्चा है वो इसका विपरीत है ।2019 के पहले अगर आपको ज़ब्त करनी थी, तो मजिस्ट्रेट के पास जाना होता था, 2018 के द्वारा हटा दी गई। अब ED को अधिकार दे दिया है कि मजिस्ट्रेट का रोल नहीं है। जो ज्यादा निष्पक्ष माना जाता है हटा जिया गया है। इसकी चुनौती दी जाती है एक स्तंभ बोता है एपेलेट ट्राइब्यूनल, ये तीन साल से रिक्त है, तीन वर्ष से कहां जाए नागरिक। ये सभी मुद्दे हम समझते हैं कि न्यायलय की तरफ ध्यान आकर्षित करते हैं ध्यान देना आवश्यक है क्योंकि विपक्ष को प्रताडित करना बच गया है ईडी का काम। विपक्ष की मांग है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट को कि लगाम लगाएं।”

PMLA मामले में अपील के लिए एक ट्रिब्यूनल बनाया गया है। 21 सितंबर 2019 को इसके पूर्णकालिक चेयरमैन जस्टिस मनमोहन सिंह रिटायर हो गए थे। उसके बाद मौजूदा चेयरमैन जस्टिस जी सी मिश्रा हैं जो कार्यवाहक चेयरमैन हैं। कांग्रेस का कहना है कि पूर्णकालिक चेयरमैन नहीं हैं। वैसे हम आपको बता दें कि विधि आयोग लॉ कमिशन के चेयरमैन भी तीन साल से नहीं हैं। लॉ कमिशन के चेयरमैन की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अश्विनी उपाध्याय ने याचिका दायर की है।सिंघवी ने कहा कि कभी भी ED का ऐसा दुरुपयोग नहीं हुआ जितना इस समय हो रहा है। इसलिए सुरक्षा चक्र ज़रूरी है। अभिशेक मनु सिंघवी ने कहा कि PMLA केस में .5 प्रतिशत सज़ा की दर भी नहीं है। 100 में एक को भी सज़ा नहीं मिलती है बल्कि शून्य के करीब सज़ा है। 

बारिश का पानी जमा हुआ है, टिन शेड बन रहा है, यह सब जो आप देख रहे हैं वह IIIT सूरत का नया कैंपस है,जहां के छात्रों का कहना है कि पांच साल हो गए इस संस्थान को चालू हुए अभी तक इमारत के नाम पर टिन शेड है, वो भी बन रहा है। छात्रों से कहा जा रहा है कि इस टिन शेड के नीचे क्लास करें और जो टिन शेड में नहीं आ सकते  वो लोकल स्कूल में क्लास करें। इंडियन एक्सप्रेस में IIIT सूरत के प्रिंसिपल का बयान छपा है कि छात्र जिसे टिन शेड कह रहे हैं वह आयातित इंजीनियरिंग मटीरियल है जिसे सरकार ने मंज़ूरी दी है। मतलब टिन अगर विदेश से आएगा तो टिन नहीं कहलाएगा, imported engineering materials” कहलाएगा। अहो भाग्य टिन जी के। कालेज की तरफ से मीडिया में कहा गया है इस ढांचे के भीतर का तापमान कूल होगा, इसी में कैंटीन और शौचालय वगैरह भी होंगे। अस्थायी क्लास रुम बनाए जा रहे हैं जो टिकाऊ हैं जिसे सरकार ने मंज़ूर किया है। एक साथ इस ढांचे में पांच सौ छात्र बैठ सकते हैं। एसी भी होगा। 2017 में गुजरात विधान सभा था और उसी साल संसद में सूरत IIIT एक्ट पास हुआ था। पांच साल बाद फिर चुनाव आने जा रहा है लेकिन अब मुद्दा दूसरा है। सूरत  IIIT को निजी क्षेत्र की भागीदारी से बनाया जाना था। क्या भारत का प्राइवेट सेक्टर पांच साल में एक कालेज तैयार नहीं कर सकता है? पांच साल से एडमिशन हो रहा है। अभी तक दो बैच निकल भी चुका है।III सूरत का Sardar vallabh bhai National Institute of Technology से करार था, जिसके तहत वहां पढ़ाई हो रही थी लेकिन इसी 31 जुलाई को करार समाप्त हो जाएगा। छात्रों का कहना है कि पांच साल हो गए अभी तक IIIT सूरत तैयार क्यों नहीं हुआ है? यह खबर कई दिनों से छप रही है लेकिन जब कुछ नहीं हुआ तो छात्र ट्विटर पर कैंपेन चलाने लगे, ज़ाहिर है वहां भी कुछ नहीं होना था तो अब चाहते हैं कि प्राइम टाइम में दिखाया जाए। पक्का है कि फिर कुछ नहीं होगा।जब इस देश में पत्रकारिता समाप्त कर दी गई है तब भी लोगों में मीडिया से उम्मीद देखकर हैरानी होती है कि टीवी में दिखा देने से समाज शर्मिंदा होगा और सरकार मुस्तैद कि ऐसी हालत में उनके लाडले इंजीनियर बन रहे हैं। छात्र ही बताएं कि व्हाट्स एप ग्रुप में क्या बातें करते हैं और मीडिया के नाम पर कौन सा चैनल देखते हैं। धर्म का नशा क्या कमज़ोर हो रहा है जो पढ़ाई लिखाई जैसी फालतू की बातें करते हैं। छात्रों ने वीडियो नहीं आडियो के ज़रिए अपनी व्यथा भेजी है। जब चेहरा नहीं दिखा सकते हैं तो ज़ाहिर है हम नाम कैसे बता देंगे। मगर कोई ठिकाना नहीं कि इस देश में इनकी आवाज़ की ही जांच हो जाए और कार्रवाई हो जाए। खैर इतना तो रिस्क उठाना ही पड़ेगा नहीं तो इंजीनियर होकर भी क्या हो जाएगा।

हम जानते हैं कि इस वक्त आप धर्म के नशे में इस कदर हैं कि कोई बात सुनाई नहीं देती है लेकिन क्या आप जानना चाहेंगे कि संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में IIIT के बारे में क्या कहा है, यह रिपोर्ट इसी साल मार्च की है। आपको सुनकर खुशी होगी कि IIIT में शिक्षकों के 49 प्रतिशत पद खाली हैं। शिक्षकों के 973 पद मंज़ूर हैं और 482 पद खाली हैं। जब टीचर ही नहीं है तो किससे पढ़ने के लिए ये छात्र पक्की इमारतों की मांग कर रहे हैं। इन्हें अपना वक्त व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी में बिताना चाहिए। पांच साल में कालेज की इमारत नहीं बनी तो क्या हो गया

IIIT सूरत की वेबसाइट पर अग्निवीर योजना का विज्ञापन आ गया है। विज्ञापन पहले हो जाना चाहिए। यही नहीं नई शिक्षा नीति का विज्ञापन भी आ गया है। इसमें देरी होती है तो लगता है कि देश सो रहा है। देश के जागने का एक बड़ा प्रमाण यह भी कि विज्ञापन जल्दी आ जाते हैं। 

गुजरात से ही एक और खबर है। ज़हरीली शराब से मरने वालों की संख्या लगातार बदल रही है। आज दोपहर तक मरने वालों की संख्या 42 थी लेकिन उसके बाद 49 से ज़्यादा हो गई। 100 से अधिक लोग अस्पताल में ज़िंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। एसपी का तबादला हो गया है और पुलिस वाले सस्पेंड भी हुए हैं। गुजरात में शराबबंदी है। सौरव शुक्ला बोटाद में हैं।

आज के प्राइम टाइम में हमने अपने विश्लेषण में छह राज्यों की खबरों को शामिल किया है। पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, गुजरात और अब सातवें राज्य हरियाणा से खबर। फरीदाबाद में भुगतान को लेकर बिल्डर और निगम में तन गई। निगम ने 3500 लोगों का रास्ता बंद कर दिया। बंद नहीं किया है बल्कि जेसीबी लगाकर खोद डाला है। धर्म और अंध- राष्ट्रवाद की राजनीति के इस दौर में बिल्डर पैसा न दे और निगम लोगों के रास्ते खोद दे  यकीन नहीं होता है। खबर देखने से पहलेइरोज सोसायटी के लोग मेरी एक बात अपने कमरे में लिखकर टांग लें। सिर्फ एक लाइन की बात है। धर्म और अंध-राष्ट्रवाद की राजनीति करने से समाज गड्ढे में चला जाता है और पत्रकारिता खड्डे में। नागरिक बे-आवाज़ हो जाता है। 

इरोज़ सोसायटी के लोगों से आग्रह हैं कि एक सवाल का जवाब ईमानदारी से दें और खुलकर दें, रवीश रंजन को व्हाट्स एप पर बता दें कि कितने लोग प्राइम टाइम देखते हैं, कितने क्यों नहीं देखते हैं,कितने लोग पूरे टाइम इस ऐंकर को गाली देने में लगे रहते हैं। मैं बस चेक करना चाहता हूं कि आपको सही से समझता हूं या नहीं।अभी तो इस पेशे में दस बीस रिपोर्टर बचे हैं, कुछ समय बाद आपको इस देश में पत्रकार ही नहीं मिलेगा जो आपकी बात सरकार तक पहुंचा सके।केवल वही पत्रकार बचेंगे जो आपको सरकार की बात सुनाएंगे। और यह सब संभव होगा आपकी मदद से। फिलहाल आप ब्रेक ले लीजिए।