जब लता मंगेशकर से राष्ट्रपति ने की भोजपुरी गाना गाने की सिफारिश, इस फिल्म में गाया था पहला भोजपुरी गीत

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मनोज भावुक

'भारत रत्न', 'स्वर-कोकिला' और 'क्वीन ऑफ मेलोडी' के नाम से मशहूर लता मंगेशकर अगर आज जीवित होती तो 96 साल की होतीं. उनका जन्म 28 सितंबर 1929 को इंदौर में हुआ था. वह अपनी माता-पिता की सबसे बड़ी संतान थीं. उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर मराठी थिएटर के प्रसिद्ध अभिनेता, गायक और संगीतकार थे. उनकी मां शेवन्ती एक बड़े गुजराती सेठ की बेटी थीं. लता जी के बचपन का नाम हेमा था. बाद में उनके पिताजी ने अपने नाटक के एक किरदार लतिका के नाम पर उनका नाम लता रख दिया. लता मंगेशकर के बाद उनकी तीन बहने मीना खाडिकर, आशा भोंसले, उषा मंगेशकर और छोटे भाई हृदयनाथ मंगेशकर पैदा हुए. सभी भाई बहन स्थापित गायक, संगीतकार रह चुके हैं.  

पिता का देहांत और घर की जिम्मेदारी

लता दीदी ने 36 देशी-विदेशी भाषाओं में 25 हजार से ज्यादा गीत गाए. उन्होंने 1000 से भी अधिक फिल्मों में गीत गाए. उन्होंने बचपन से ही अभिनय और गायन में विशेष रुचि दिखाई और सक्रिय हिस्सा लेने लगीं. किशोरावस्था में पिता के देहांत के बाद घर की सारी जिम्मेदारी उन पर आ गई. फिर उन्होंने फिल्मों में गीत गाने का काम शुरू किया. उन पर हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में सबसे ज्यादा भरोसा संगीतकार गुलाम हैदर ने किया. उन्होंने कहा था कि आज भले लता को लोग काम नहीं दे रहे लेकिन ऐसा दिन भी आएगा कि लोग लता के पैर पर गिरकर अपनी फिल्म में गीत गाने को मनाएंगे. आगे जाकर ऐसा हुआ भी. लता जी का पहला हिट गीत गुलाम हैदर की हिन्दी फिल्म 'मजबूर' (1948) में था, बोल थे ‘दिल मेरा तोड़ा, मुझे कहीं का ना छोड़ा...' इसके बाद उन्हें काम मिलना शुरू हुआ. हिंदी सिनेमा में तो उन्होंने इतिहास रचा ही है, भोजपुरी को भी उन्होंने जो दिया है, वह भूतो न भविष्यति है.

लता मंगेशकर के भोजपुरी गीत

हे गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो (1962)  

पहली भोजपुरी फिल्म ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो' बन रही थी. इसलिए ये उसे सफल बनाने की हर संभव कोशिश की जा रही थी. फिल्म के निर्माताओं के कहने पर राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने लता मंगेशकर के सामने गाना गाने का प्रस्ताव रखा. लता दीदी राष्ट्रपति की बात को ना नहीं कह पाईं और फिर भोजपुरी फिल्मों का श्रीगणेश लता दीदी की आवाज 'हे गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो, सइयां से कर द मिलनवा' से हुआ. इस फिल्म का टाइटल ट्रैक उन्होंने अपनी छोटी बहन उषा मंगेशकर के साथ मिलकर गाया. भोजपुरी सिनेमा के इतिहास की यह एक बड़ी घटना है. इसे कौन भूल सकता है. इसी फिल्म में दोनों बहनों की जोड़ी ने एक और इठलाने वाला गाना गाया है, 'मोरे करेजवा में पीर, हाय राम कइसे भइल...' 

इसी फिल्म में लता दीदी के स्वर में मुजरा शैली में एक गाना फिल्माया गया है, जिसके बोल हैं, 'लुक छिप बदरा में...', यह गाना तब के हिंदी सिनेमा के हिट मुजरा गीतों की बराबरी का गीत था. गैर भोजपुरी भाषी भी इसे खूब चाव से सुनते थे. इसके अलावा इस फिल्म में लता दीदी का एक और गाना लोकप्रिय हुआ, 'काहे बांसुरिया बजवले, रे सुध बिसरौले, गइल सुख-चैन हमार...'  इन सारे गीतों को शैलेंद्र ने लिखा और चित्रगुप्त ने कंपोज किया. कुंदन कुमार इस फिल्म के निर्देशक थे. इन गीतों पर अभिनेत्री कुमकुम की अदाकारी मन को लुभाती है.    

'लागी नाही छूटे राम'  

दूसरी भोजपुरी फिल्म 1963 में आई 'लागी नाही छूटे राम' का टायटल ट्रैक भी लता मंगेशकर के स्वर में है. उन्होंने तलत महमूद के साथ मिलकर गीत गाया 'जारे जारे सुगना जारे, कहि दे सजनवा से, लागी नाहीं छूटे रामा, चाहे जिया जाय...' इस गीत का कोई सानी नहीं है. इस फिल्म में लता दीदी के गाए सारे गीत आज भी लोगों की जुबान पर हैं. उन्होंने तलत महमूद के साथ एक और युगल गीत गाया 'लाली लाली होठवा से बरसे ललइया हो कि रस चुएला' यह गीत भोजपुरी सिनेमा के चंद माइलस्टोन गीतों में से एक है. लता जी के एक और गीत 'मोरी कलइया सुकुवार हो, चुभ जाला कंगनवा...' पर इस फिल्म की हीरोइन कुमकुम ने कमाल का नृत्य किया है. 

चाहे हिंदी पट्टी हो या भोजपुरी, भाई-बहन के त्योहार रक्षा बंधन के समय लता दीदी दिल को छू जाती हैं. इस अवसर पर उनका गाया हिंदी गीत 'भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना...' (1959) और भोजपुरी गीत 'रखिया बन्हा ल भइया सावन आइल' (1963) आज भी सबसे अधिक गूंजता है. असीम कुमार और इंद्राणी मुखर्जी पर फिल्माया गीत 'रखिया बन्हा ल भइया सावन आइल...' भोजपुरी फिल्म 'लागी नाहीं छूटे रामा' का क्लासिकल और कालजयी गीत है.

इस गीत में नेग में बहन भाई से क्या खूब मांगती है, कहती है 'जब भउजी आएगी तो अंचरा में भरि-भरि लेइब रुपइया, गांव लेइब दस-बीस हो...' .. और अंतिम पंक्तियों के तो क्या ही कहने, 'अइसन ना होखे कहीं अंखियां निहारे, जाए सावन ऋतु बीत हो/रखिया बन्हा ल भइया सावन आइल, जीय तू लाख बरिस हो...' भाई-बहन के प्यार पर ब्लैक एंड व्हाइट में फिल्माया यह गीत कमाल है. 'लागी नाहीं छूटे रामा' फिल्म के सारे गीतों को मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखा है, चित्रगुप्त ने स्वरबद्ध किया है, कुंदन कुमार का निर्देशन है और असीम कुमार-कुमकुम की जोड़ी लीड में है.  

'भौजी' 

लता जी की आवाज में वात्सल्य कैसे छलक-छलक पड़ता है. 1965 में आई फिल्म 'भौजी' की यह लोरी, जिसे लिखा है मजरूह सुल्तानपुरी ने और संगीत दिया है चित्रगुप्त ने, 'ए चंदा मामा आरे आव पारे आव नदिया किनारे आव सोना के कटोरिया में दूध भात ले ले आव, बबुआ के मुंहवा में घुटुक...' 

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'गंगा' 

1965 में रिलीज हुई फिल्म ' गंगा' में एक गीत है, 'कान्हा तोरी बंसी के जुल्मी रे तान...' लता दीदी के स्वर में शैलेंद्र का लिखा और चित्रगुप्त का संगीतबद्ध किया यह भोजपुरी गीत कृष्ण जन्माष्टमी पर खूब बजता है.
'मगन काहे नाचे तोर मन गोरी...' लता दीदी ने इसे अपनी बहन उषा मंगेशकर के साथ गाया है. इस गाने में एक मारक लाइन है, 'का बतियावेला चूड़िया से कंगना...' इस भक्ति गीत को लिखा है शैलेंद्र ने और धुन तैयार किया है चित्रगुप्त ने.

'मितवा' 

'सपना देख जुड़ा गइले जियरा...' लता मंगेशकर द्वारा गाया गया यह गाना 1966 में आई फ़िल्म 'मितवा' का गीत है, जिसके बोल शैलेंद्र ने लिखे थे और संगीत सी रामचंद्र ने दिया था. यह गीत 1951 में आई हिंदी फिल्म 'सगाई' के गीत 'दिल की कहानी' की धुन का नया रूप है.

'दूल्हा अइसन चाही' 

और फिर बहुत सालों बाद लता जी ने किसी भोजपुरी फिल्म में अपना स्वर दिया. वह  2006 में आई फिल्म है 'दूल्हा अइसन चाही', गाना है 'रीतिया पिरितिया के भूल काहे गइल, अपना नजरिया से दूर काहें कइला...' इस गाने को लिखा है, एस कुमार और विनोद स्वप्निल ने. संगीत दिया आरके अरुण ने. इस गाने को रवि किशन और स्वीटी छाबड़ा पर फिल्माया गया. इसी फिल्म से अभी के भोजपुरी फिल्मों के दमदार विलेन अवधेश मिश्रा ने भोजपुरी में डेब्यू किया था. 

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स्वर कोकिला का निधन

कहा जाता है कि लता दीदी को सरस्वती माता अपने साथ लेकर चली गईं. दुनिया भर में हर भारतीय के दिलों में राज करने वाली लता ताई को लोग सरस्वती की वरद-पुत्री कहते हैं. संयोग देखिए कि 6 फरवरी 2022 को सरस्वती पूजा के अगले दिन 'सुरों की सरस्वती' लता दीदी को सरस्वती माता अपने साथ लेकर चली गईं, ठीक वैसे ही जैसे छठ गीतों की पर्याय पद्मविभूषण शारदा सिन्हा को छठी मइया अपने साथ लेकर चली गईं. जन्मदिन पर उनकी पावन स्मृति को नमन. 

अस्वीकरण: लेखक मनोज भावुक भोजपुरी साहित्य-सिनेमा के जानकार हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है. 

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