कमाल सर (जैसा कि मैं हमेशा उन्हें बुलाया करता था), के करिश्माई व्यक्तित्व की सबसे अच्छी बात ये थी कि वो इसमें बहुत सहज थे. उनमें उनकी प्रतिष्ठा और वरिष्ठता का दंभ नहीं था. पत्रकारिता के सफर में वो मुझसे 18 साल बड़े थे, लेकिन जो पांच साल मैंने लखनऊ में उनके साथ गुजारे, उनमें हर रोज वो स्टोरी आइडिया और दिन भर का एजेंडा मेरे साथ प्लान करते थे. लगातार आती खबरों से वो कभी थकते नहीं थे, चाहे हम कोई भी रिपोर्टिंग प्लान कर रहे हों, उनकी आंखें हमेशा चमकती रहती थीं.
अभी पिछले हफ्ते ही उन्होंने मुझसे कहा था कि 'हम इमामबाड़े से लाइव करेंगे तो लखनऊ का फ्लेवर अच्छा आएगा', हम यूपी चुनावों के लिए इस हफ्ते से डेली शो शुरू कर रहे थे.
कमाल खान की स्क्रिप्टिंग ऐसी चीज़ थी, जिसके सब कायल थे और जिस तरह वो शब्दों, कहावतों, दोहों का इस्तेमाल करते थे.... उनकी पत्रकारिता को 'ओल्ड स्कूल जर्नलिज्म' कहा जा सकता है, जो उनकी खूबी थी.
अभी पिछले दिनों यूपी में एक बड़े मंत्री ने इस्तीफा दिया था, उनकी पत्नी- जो खुद भी एक वरिष्ठ पत्रकार हैं- ने उन्हें इसका न्यूज फ्लैश भेजा. इसपर उनके पहले शब्द थे, 'रुचि ने भेजा है सही होगा लेकिन हम लोग डबल-चेक कर लेते हैं.' ये बहुत छोटी बात लग सकती है, लेकिन है नहीं.
आज अंगुलियों पर चलने वाली, तेजी से भागती पत्रकारिता की दुनिया में वो एक अपवाद थे और मैं ये पूरे गर्व के साथ कह सकता हूं कि वो NDTV के उन दिग्गजों में शामिल थे जो अपने सिद्धांतों से कभी नहीं हटे, पत्रकारिता की दुनिया में बेस्ट थे वो, और पत्रकारिता के ठोस सिद्धांतों पर चलने वाले हम जैसे लोगों के गुरू थे.
पर्सनल नोट पर बोलूं तो हमारे बीच न्यूज डेस्क के प्रेशर को डील करने को लेकर मजाक चलता रहता था. एक बार मैं दो हफ्तों की छुट्टी के बाद वापस ऑफिस आया, जैसे ही मैं अंदर घुसा, उन्होंने मुझे देखा और बोले, 'ये तो बड़ा अच्छा हुआ कि आप आ गए, अब आप छह महीने तक छुट्टी मत लीजिएगा.' हम इसपर खूब हंसे थे.
हम दोनों की लाइफस्टाइल एक दूसरे से बहुत अलग थी. वो फिट थे, अपनी सेहत को लेकर बहुत सतर्क रहते थे. पिछले पांच सालों में मैं अकसर ऑफिस में कुछ मीठा ऑर्डर करता रहता था. जब भी मैं उनको एक पूरी मिठाई खिलाने की कोशिश करता, वो कहते, 'देखिए इतना मीठा हम एक महीने में खाते हैं, आप एक दिन में...आप बेसमेंट वाला जिम क्यों नहीं लेते हैं?' और हर बार मैं उनसे वादा करता, 'बस सर, कल करता हूं.' इसपर उनका जवाब आता, 'वो कल जब आ जाए तो हमें फोन कर दीजिएगा.'
कमाल सर के रहने से ऑफिस में रौनक रहती थी. एक बार हमारे कैमरापर्सन राजेश को खबरों के लिहाज से एक सुस्त दिन पर सुबह के 11 बजे के बाद ऑफिस आने पर डांट पड़ी थी. तो अगले कुछ दिनों तक राजेश जैसे ही ऑफिस आते थे, वो NDTV लखनऊ के वॉट्सऐप ग्रुप पर मैसेज डालते कि 'सर मैं आ गया हूं.' एक दिन कमाल सर ही सुबह 10 बजे के पहले आ गए. किसी को पता नहीं था और उस दिन राजेश का मैसेज 11 बजे आया कि 'सर, मैं ऑफिस आ गया हूं', जबकि वो अभी बाहर किसी चौराहे पर थे. उस दिन इसपर खूब बवाल हुआ था.
कमाल सर के जाने से एक ऐसी जगह खाली हुई है, जो मुझे नहीं लगता है कि कभी भरेगी. यूपी जैसी हाई प्रेशर वाले प्रदेश में काम करने के बीच ऑफिस में उनकी मौजूदगी भी बहुत सहारा देती थी- उनके रहने भर से ही मैं काफी कुछ आराम से झेल जाता था. अब उनके चले जाने से, जो कुछ बिखर गया है, उसे समेटना बहुत मुश्किल होगा.
(आलोक पांडे NDTV 24x7 के न्यूज एडिटर हैं)