कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh), जो खांटी कांग्रेसी और उत्तर भारत में जनाधार वाले नेता है, आखिरी वक्त अपने प्रतिद्वंद्वी नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) के खिलाफ अपने मामले को मजबूत करने में डटे रहे, लेकिन असफल रहे. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने वही फैसला लिया, जो स्पष्ट तौर पर भी दिखाई दे रहा था, कि अमरिंदर सिंह के चुनाव मैदान में जाने से पहले नवजोत सिद्धू पंजाब कांग्रेस इकाई के अध्यक्ष होंगे. मुख्यमंत्री के खिलाफ नित नए तरीके से नाराजगी दिखाने और ऐसे ट्वीट- जिनसे प्रतीत हो रहा था कि आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) के साथ उनकी नजदीकियां हैं.
इसके बावजूद सिद्धू को इनाम मिला. चिट्ठियों और बैठकों का दौर और आखिरकार चेहरा बचाने का प्रयास कि सिद्धू मुख्यमंत्री के खिलाफ अपने तीखे बयानों को लेकर सार्वजनिक तौर पर माफी मांगने को कहा जाएगा. लेकिन मुख्यमंत्री को न केवल बाईपास किया गया बल्कि इस मांग को जोरदार तरीके से नकार दिया गया.
गांधी परिवार के नेताओं का इरादा था कि नया घटनाक्रम पंजाब में सब कुछ शांत करने का काम करे, जहां पिछले चार महीनों से देखा जा रहा था कि बड़ी भूमिका दिए जाने की सिद्धू की मांग को लेकर कांग्रेस बेचैन हो गई है. इसकी बजाय परिवार ने दो बेमेल नेताओं-जो सार्वजनिक तौर पर एक-दूसरे के खिलाफ काम कर रहे थे-को न केवल साथ रहने बल्कि इस जटिल चुनाव में साथ काम करने को कहा है. लेकिन पार्टी के उम्मीदवारों के चयन में किसकी निर्णायक भूमिका रहेगी. दोनों पक्ष अपने-अपने समर्थकों को आगे लाने की कोशिश करेंगे.
अगर सिद्धू के मुख्यमंत्री की अयोग्यता, गुप्त राजनीतिक गठजोड़ को लेकर दिए गए बयान को देखा जाए और क्या गारंटी है कि वो दोबारा मजबूत होकर नहीं लौटेंगे? जहां तक एक टीम भावना से काम करने की बात है तो उनकी साख बहुत कमजोर है. सिद्धू ने 2016 में बीजेपी छोड़ दी थी, क्योंकि वो अमृतसर सीट से टिकट न दिए जाने को लेकर नाराज थे. वो राहुल और प्रियंका गांधी के निजी प्रयासों की बदौलत कांग्रेस में शामिल हुए और एक साल बाद अमरिंदर सिंह की मांग को दरकिनार करते हुए इमरान खान के शपथग्रहण सारोह में शामिल हुए. पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा के साथ गले लगते उनकी तस्वीरें वायरल हुईं.
सिद्धू से जब इस बारे में पूछा गया तो सिद्धू ने रुखे अंदाज में कहा था, "कौन कैप्टन? वो आर्मी के कैप्टन होंगे, लेकिन मेरे कप्तान राहुल गांधी हैं. उन्होंने ही मुझे पाकिस्तान भेजा है." सिद्धू ने 2019 में मंत्रिमंडल में फेरबदल के बाद मंत्रिपद छोड़ दिया था औऱ अपना त्यागपत्र भी राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के नाम संबोधित किया था. कांग्रेस में शामिल होने से पहले या उनसे संपर्क या बातचीत के दौरान वो आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल से भी गोपनीय तरीके से मिले थे. उनकी पार्टी पंजाब के पिछले चुनाव में दूसरे स्थान पर रही थी.
राजनीतिक सलाहकार के तौर पर अपने तब के अवतार में प्रशांत किशोर ने सिद्धू को मनाया था कि कांग्रेस ज्यादा बेहतर विकल्प है. जहां तक सिद्ध के मंत्री के तौर पर अपनी प्रतिबद्धता का सवाल है तो उन्होंने टेलीविजन शो न करने की मांग अनसुनी कर दी थी. उनका दावा था कि अपनी लाइफस्टाइल को व्यवस्थित करने के लिए ऐसा जरूरी है. इन सब खामियों के बावजूद यह स्पष्ट नहीं है कि ऐसी क्या चीज रही कि गांधी परिवार के नेता उन्हें समायोजित किया. जब तक उन्होंने राहुल और प्रियंका को अमरिंदर सिंह के खिलाफ अपने तर्कों पर राजी न किया हो.
अमरिंदर सिंह की राहुल-प्रियंका के बजाय उनकी मां सोनिया गांधी के साथ ज्यादा बेहतर समीकरण रहे हैं. वर्ष 2017 में जब राहुल गांधी आधिकारिक तौर पर पार्टी अध्यक्ष के तौर पर फैसले ले रहे थे, तो वह अमरिंदर सिंह को संभावित मुख्यमंत्री घोषित करने के खिलाफ थे.सिंह ने तब सार्वजनिक तौर पर कहा है कि तब उन्होंने अलग होने का फैसला कर क्षेत्रीय दल बनाने का निर्णय कर लिया था. लेकिन सोनिया गांधी के हस्तक्षेप से राहुल गांधी को मना लिया गया. इस बार प्रियंका गांधी ने भरपूर प्रयास कर परिवार को सिद्धू को आगे बढ़ाने के लिए राजी किया है.
लिहाजा कुछ दिनों पहले की मुलाकात की तस्वीरें जो सिद्धू ने ट्वीट की थीं, वो दिखाती हैं पार्टी में निर्णायक फैसले लेने वाले नेताओं के साथ उनकी कितनी नजदीकियां हैं. वो भी ऐसे समय जब कैप्टन को संकट के समाधान के लिए बनाई गई तीन सदस्यीय समिति के सामने पेश होने को कहकर उन्हें अपमानित किया जा रहा था.
सिद्धू को अपना एजेंडा आगे बढ़ाने में जिस चीज ने मदद की थी कि उसके पीछे ये धारणा थी कि कैप्टन सत्ता विरोधी लहर का सामना करते हुए चुनाव लड़ेंगे औऱ यह कि वो अपने शासनकाल में कांग्रेस विधायकों के लिए उपलब्ध नहीं रहे हैं. लिहाजा जो कांग्रेस नेता सिद्धू के इर्दगिर्द जमा हुए-इनमें से 60 फीसदी विधायक थे- वो समानांतर नेतृत्व के प्रति भरोसे को लेकर एकजुट नहीं हुए बल्कि काफी हद तक अपने अनुभवों और बड़ी भूमिका की महत्वाकांक्षा को लेकर. गांधी परिवार का कथित तौर पर आकलन है कि सिद्धू के लिए बड़ी भूमिका अमरिंदर सिंह की अलोकप्रियता को काफी हद तक कम कर देगी. सिद्धू को बड़ी भूमिका से पंजाब में आगे उत्तराधिकार की भूमिका के उद्देश्य को भी हासिल करने में मदद करेगी.
कैप्टन अब 79 वर्ष के हैं. वर्ष 2017 में उन्होंने कहा था कि यह उनका आखिरी चुनाव होगा. लेकिन सत्ता में आने का मौका मिलने के बाद उनकी ललक और बढ़ी है. पार्टी के अन्य प्रदेश अध्यक्षों की तरह सिद्धू भी अमरिंदर सिंह के रिटायर होने के बाद मुख्यमंत्री पद का स्वाभाविक चेहरा होंगे. कांग्रेस ने पहले भी ऐसा करने का दावा किया था, लेकिन हुआ कुछ भी नहीं था. जैसे कि मध्य प्रदेश में वरिष्ठ नेता कमलनाथ की जगह ज्योतिरादित्य सिंधिया को कमान देने का इरादा था...
गांधी परिवार के नेता (राहुल और प्रियंका) वरिष्ठ नेताओं को यह भी जताना चाहते हैं कि वो पार्टी की रणनीति को नजरअंदाज करने वाले क्षेत्रीय क्षत्रपों को नजरअंदाज नहीं करेंगे. अमरिंदर सिंह बखूबी जानते हैं कि गांधी परिवार के समर्थन के साथ सिद्धू पार्टी विधायकों और सांसदों का भी समर्थन हासिल कर रहे हैं. उनके समर्थन उन्हें इस बात के लिए मनाने की कोशिश कर रहे हैं कि यह वक्त सिद्धू के खिलाफ लड़ने का नहीं है, बल्कि अपने वफादारों के लिए ज्यादातर टिकट हासिल करने का है.
राहुल गांधी ने पिछले हफ्ते अल्टीमेटम देते हुए कहा था कि अगर आप भयभीत हैं तो पार्टी छोड़ दें. यह संदेश नाफरमानी करने वाले वरिष्ठ नेताओं के लिए भी था. प्रभावी तौर पर राहुल और प्रियंका 'पुरानी सोनिया कांग्रेस' से कमान अपने हाथों में ले रहे हैं. क्या यह दांव सफल रहेगा? हालांकि चुनावी राज्यों में उनका प्रदर्शन जोखिम भरा रहा है. अमरिंदर सिंह के करीबी सूत्रों का कहना है कि कैप्टन ने गांधी परिवार को यह संदेश दे दिया है कि यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी उनकी है कि पंजाब चुनाव में सिद्धू की कीमत न चुकानी पड़े. यह सुनिश्चित करें कि सिद्धू अपने दायरे में रहें.
स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...
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