किसानों को MSP मिलनी चाहिए कि नहीं मिलनी चाहिए?
किसानों को उनकी फ़सल का डेढ़ गुना दाम मिलना चाहिए कि नहीं मिलना चाहिए?
ये वो सवाल है जिसका जवाब हर कोई 'हां' में ही देगा. बाकी सब का तो छोड़िए खुद केंद्र की मोदी सरकार इस मामले में हां में जवाब दे रही है.
अब सोचिए अगर मोदी सरकार तक इस मामले में सहमत है तो फिर किसान आंदोलन क्यों कर रहा है? और क्यों दिल्ली में ऐसी कड़कड़ाती ठंड के बीच खुले आसमान के नीचे सड़क पर आंदोलन कर रहा है?
किसान कह रहे हैं कि मोदी जी हमको MSP की गारंटी दो, केंद्र की मोदी सरकार ने भी कह दिया है कि हम लिखित में MSP पर आश्वासन देने को तैयार हैं. अब अगर केंद्र सरकार कह रही है कि हम MSP पर लिखित आश्वासन देने को तैयार हैं तो फिर समस्या क्या है?
तो क्या किसान जबरन आंदोलन कर रहा है या फिर कुछ लोग किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर चला रहे हैं जैसा कि केंद्र सरकार दावा कर रही है?
दरअसल ये ऐसा मामला है जिसमें आम लोगों को या तो बात ठीक से समझ नहीं आई है या फिर वह ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं या फिर वो उस प्रोपेगेंडा में फंस गए हैं जो किसानों के खिलाफ चलाया जा रहा है.
अब इस मामले को ठीक से समझिए. समझ गए कि किसान क्या चाह रहे हैं और सरकार आश्वासन क्या दे रही है.
किसानों की मांग -
किसानों की मांग है कि केंद्र की मोदी सरकार उनको गारंटी दे कि आने वाले कल में उनकी फसल को चाहे कोई भी खरीदे. चाहे सरकार हो या व्यापारी या फिर कंपनी. लेकिन MSP या उससे ऊपर दाम पर ही खरीदे.
सरकार का आश्वासन -
सरकार कह रही है कि जैसे हम कल MSP सिस्टम चला रहे थे वैसे ही आज चला रहे हैं और आगे भी यह MSP सिस्टम बना रहेगा और हम इसको लिखित में देने को तैयार.
समस्या या मुद्दा -
सरकार MSP के मौजूदा सिस्टम को जारी रखने की बात कर रही है जबकि किसान MSP का नया सिस्टम चाहते हैं. क्योंकि MSP के मौजूदा सिस्टम में दिक्कत यह है कि केंद्र सरकार MSP तो कुल 23 फसलों की घोषित करती है लेकिन खरीदती मुख्य रूप से दो फसल है गेहूं और धान/चावल.
एक नजर डाल कर देखिए कि सरकार कुल पैदावार का कितना हिस्सा ख़रीदती है. साल 2019-20 में देश मे 1184 लाख टन चावल हुआ, सरकार ने 511 लाख टन खरीदा. 1076 लाख टन गेहूं हुआ, 390 लाख टन खरीदा. 231 लाख टन दाल में से 28 लाख टन ख़रीदी और 454 लाख टन मोटे अनाज जैसे ज्वार बाजरा आदि में से 4 लाख टन खरीदा. यानी सरकार ने कुल पैदावार का 32 फ़ीसदी खरीदा वो भी वो जो सरकार खरीदती है. सरकार हर फसल नहीं खरीदती.
यानी मौजूदा सिस्टम में किसान के पास ऐसा कोई विकल्प नहीं है कि अगर उसको लगे कि कोई निजी व्यापारी या कंपनी उसकी फसल को औने पौने दाम पर खरीद रही है तो वह न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अपनी फसल सरकार को बेच दे. इसलिए किसान इस मामले में सिस्टम को मजबूत बनवाना चाहते हैं.
सवाल- पंजाब-हरियाणा सबसे आगे क्यों?
मौजूदा MSP सिस्टम में सरकार पंजाब और हरियाणा से सबसे ज्यादा गेहूं और चावल न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीदती है इसलिए वहीं के किसान सबसे ज्यादा आशंकित है कि सरकार MSP ख़त्म कर देगी तो हमारा क्या होगा? लेकिन सवाल उठता है कि अगर सरकार लिखित में देने को तैयार है कि मौजूदा सिस्टम जारी रहेगा तो फिर पंजाब और हरियाणा के किसान क्यों आशंकित हैं?
जवाब- दरअसल सरकार हर साल अपने खरीद लक्ष्य को संशोधित करती रहती है और तय करती है कि कितना अनाज खरीदना चाहिए. यानी MSP पर किसान के अनाज की सरकारी खरीद ऐसे नहीं होती कि किसान कितना भी अनाज पैदा करके ले आए और सरकार सारा खरीद लेगी.
दरअसल, सरकार लक्ष्य निर्धारित करती है और खरीदने वाली एजेंसियां हर इलाके में किसान से अलग-अलग मात्रा में खरीद करती हैं और वो भी एक तय समय सीमा में (यानी 100% खरीद नहीं होती और हर समय नहीं होती)
जैसे मान लीजिए उदाहरण के तौर पर कि हरियाणा में कहीं यह तय हो जाता है कि किसान के पास अगर एक एकड़ जमीन तो उससे 5 क्विंटल गेंहू ही खरीदेंगे चाहे उसकी पैदावार 10 क्विंटल ही क्यों ना हो तो वहीं पंजाब में अगर किसान के पास 1 एकड़ खेती की जमीन है तो 7 क्विंटल गेहूं खरीदेंगे चाहे उसके यहां पैदावार कितनी भी हो.
ऐसे में किसान को बाकी फसल तो खुले बाजार में ही बेचनी पड़ेगी? पंजाब और हरियाणा के किसान आंशिक तौर पर खुले बाजार में फसल बेचेंगे और बाकी जगह तो वैसे भी MSP सिस्टम इन राज्यों के मुकाबले कितना कमजोर है यह बताने की जरूरत नहीं.
ऐसे में पंजाब और हरियाणा के किसान इस बात से आशंकित हैं कि कल को अगर कोई निजी कंपनी/कंपनियां अपना वर्चस्व बना कर ओने पौने दाम पर उनकी फसल खरीदने लगे तो उनके पास क्या विकल्प होगा?
किसान की असली मांग -
इसलिए किसानों की मांग है कि सरकार ये कानून बनाए कि किसान की फसल चाहे कोई व्यापारी खरीदे, कोई निजी कंपनी खरीदे या फिर सरकार खरीदें. खरीफ़ सिर्फ MSP या उससे ऊपर हो नीचे नहीं.
MSP यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य. यानी किसी फसल की वह कीमत जो सरकार के हिसाब से न्यायोचित, तार्किक और स्वामीनाथन आयोग के हिसाब से भी फ़सल की लागत का डेढ़ गुना है और केंद्र की मोदी सरकार तो किसान को उसकी फ़सल का डेढ़ गुना दाम देने के लिए वैसे भी प्रतिबद्ध है. किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी करने का वादा है मोदी सरकार का. ऐसे में किसान क्या गलत मांग रहे हैं? किसान तो वही मांग रहे हैं जो मोदी सरकार देना चाह रही है.
(लेखक NDTV इंडिया में वरिष्ठ विशेष संवाददाता है, लंबे समय से कृषि और किसानों के मुद्दे पर रिपोर्टिंग कर रहे हैं और मौजूदा किसान आंदोलन को भी कवर कर रहे हैं)