सद्भावना दिवस का संदेश, भटकते युवाओं को रास्ते पर लाना जरूरी

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हिमांशु जोशी

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की जयंती 20 अगस्त को हर साल 'सद्भावना दिवस' के रूप में मनाया जाता है. इसका उद्देश्य समाज में आपसी विश्वास, शांति, धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीय एकता की नींव को और मजबूत करना है. आज जब समाज नफरत और विभाजन की चुनौतियों का सामना कर रहा है, तब सद्भावना दिवस युवाओं को यह सिखाता है कि असली ताकत मेलजोल और भाईचारे में ही है.

समाज में बढ़ती असहिष्णुता

पिछले कुछ सालों में देश के अलग-अलग हिस्सों से मॉब लिंचिंग और सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं सामने आई हैं. छोटी-मोटी अफवाहें हों या सोशल मीडिया पर भड़काऊ संदेश लोगों को हिंसा की राह पर उतार देते हैं.हाल ही में कई निर्दोष लोगों को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला क्योंकि उन पर संदेह जताया गया था. इसी महीने महाराष्ट्र में दूसरे समुदाय की लड़की से बात करने पर मुस्लिम युवक को उग्र भीड़ ने मार डाला.

यह प्रवृत्ति भारतीय समाज को तोड़ने वाली है. लोकतांत्रिक भारत का सपना कभी भीड़तंत्र नहीं रहा है, यह घटनाएं हमें चेतावनी देती हैं कि अगर समय रहते इन्हें रोका नहीं गया तो युवा पीढ़ी नफरत और हिंसा का रास्ता अख्तियार कर सकती हैं.

समाज में युवाओं की भूमिका

आज का युवा सोशल मीडिया पर सबसे सक्रिय है. वही किसी भी घटना से सबसे तेजी के साथ प्रभावित होता है और उतनी ही तेजी से प्रतिक्रिया देता है. यदि वह नकारात्मक संदेशों और अफवाहों के शिकार हो जाए तो नफरत फैलने में देर नहीं लगती. लेकिन यदि यही युवा अपनी ऊर्जा और उत्साह को सही दिशा में लगाएं तो समाज में बड़ा बदलाव ला सकते हैं. सद्भावना दिवस युवाओं को यह सोचने का अवसर देता है कि वह भीड़ का हिस्सा बनेंगे या बदलाव का माध्यम बनकर देश को विकसित करने में सहायता देंगे.

डिजिटल कनेक्टिविटी के इस दौर में फेक न्यूज,भ्रामक वीडियो और नफरत भरे संदेश युवाओं को भ्रमित कर सकते हैं, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आने के बाद से फेक न्यूज की बाढ़ ने स्थिति को और भी भयानक बना दिया है.

ऐसे में सद्भावना दिवस का महत्व अब और भी बढ़ जाती है. यह दिन हमें याद दिलाता है कि तकनीक का इस्तेमाल सिर्फ संवाद और ज्ञान के लिए होना चाहिए, न कि अफवाह और हिंसा के लिए. यदि युवा डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग एकजुटता और सद्भाव का संदेश फैलाने के लिए करें तो समाज में सकारात्मक माहौल बन सकता है.

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राजनीति और सद्भावना

सद्भावना दिवस की शुरुआत भाईचारे के लिए की गई थी. इसका उद्देश्य किसी एक वर्ग या विचारधारा को बढ़ावा देना नहीं बल्कि पूरे समाज में सामंजस्य स्थापित करना है. इसीलिए इसे राजनीतिक दृष्टिकोण से नहीं बल्कि सामाजिक सुधार के रूप में देखना चाहिए.आज जब समाज में नफरत और ध्रुवीकरण की राजनीति बढ़ रही है, तो युवाओं के लिए यह जरूरी है कि वे सोचें कि असली राष्ट्रवाद क्या है.क्या यह लोगों को बांटने में है या उन्हें जोड़ने में. 

युवाओं के लिए सद्भावना दिवस केवल एक औपचारिकता नहीं है. यह उनके लिए अवसर है कि वे अपने जीवन में सहिष्णुता, भाईचारे और प्रेम को अपनाएं.स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों में अगर इस दिन संवाद और चर्चाएं आयोजित हों तो युवा न सिर्फ जागरूक होंगे बल्कि समाज में बदलाव लाने के लिए तैयार भी होंगे. यह दिवस हमें बताता है कि भविष्य उन्हीं के हाथ में है जो नफरत को नहीं, बल्कि दोस्ती और सद्भाव को चुनते हैं.

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भविष्य की दिशा

मॉब लिंचिंग और सांप्रदायिक तनाव जैसी घटनाएं तभी कम होंगी जब युवा इनसे दूर रहेंगे और समाज में शांति का संदेश फैलाएंगे. सद्भावना दिवस का असली उद्देश्य यही है कि हम अपने भीतर की कटुता और पूर्वाग्रह को खत्म करें और इंसानियत को प्राथमिकता दें.सद्भावना दिवस पर हम शॉर्ट वीडियो, इंस्टा रील और पॉडकास्ट बनाकर यह संदेश फैला सकते हैं कि नफरत हमें तोड़ती है और एकता हमें जोड़ती है.

अस्वीकरण: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं, उससे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.

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