नेपाल के जेन जेड के आंदोलन से निकला संदेश

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अरुण कुमार गोंड

हाल ही में नेपाल में जेन- जेड (Generation Z) का जो विरोध प्रदर्शन हुआ. उसने वहां की सत्ता बदल दी. नेपाली युवाओं का यह आंदोलन समाज को समझने का एक प्रस्थान बिंदु बन गया है. यह प्रदर्शन केवल सरकार द्वारा अचानक 26 सोशल-मीडिया साइट्स को बंद करने के विरोध में नहीं था, बल्कि यह समाज में चल रहे बड़े बदलावों, नए संघर्षों और नागरिक जागरूकता का प्रतीक बन गई है. नेपाल सरकार ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, यूट्यूब, X और कई अन्य लोकप्रिय सोशल-मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगा दिया. इसका औपचारिक कारण था कि कंपनियां समय पर रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन नहीं कर सकी थीं. 

कौन हैं 'डिजिटल नेटीव्स'

जेन- जेड वे लोग हैं जो 1995 से 2010 के बीच पैदा हुए. ये वही युवा हैं, जो बचपन से ही इंटरनेट, स्मार्टफोन और सोशल-मीडिया के साथ बड़े हुए. इन्हें हम 'डिजिटल नेटीव्स' भी कहते हैं, क्योंकि इनके लिए तकनीक और डिजिटल दुनिया एक स्वाभाविक हिस्सा बन चुकी है. जेन- जेड का सोचने का तरीका पुरानी पीढ़ियों से अलग है. ये ज्यादा खुले विचार वाले होते हैं, ज्यादा जागरूक होते हैं. समाज में चल रहे मुद्दों पर इनकी संवेदनशीलता गहरी होती है, चाहे वो पर्यावरण की सुरक्षा हो, लिंग समानता का सवाल हो या सामाजिक न्याय का मुद्दा.

आज का युवा वर्ग, खासकर जेन- जेड सोशल-मीडिया को केवल बातचीत का साधन नहीं मानता. बल्कि यह उनके सीखने, काम करने, सामाजिक पहचान बनाने और दुनिया से जुड़ने का अहम हिस्सा बन चुका है. जॉर्ज हर्बर्ट मीड ने बताया था कि हम अपनी पहचान समाज में दूसरों के साथ संवाद करके बनाते हैं. इसी तरह से युवा इस डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए अपनी पहचान बना रहे थे. इसलिए जब सोशल-मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया गया, तो यह उनके अधिकारों और भविष्य पर हमला बन गया.

समाज में वर्ग संघर्ष 

सामाजिक असंतोष केवल व्यक्तिगत अनुभव तक सीमित नहीं है. समाज के लोग केवल अपने अनुभव से ही नहीं, बल्कि सामूहिक चेतना के माध्यम से भी एक-दूसरे से जुड़ते हैं. इस विरोध प्रदर्शन में हजारों युवा, छात्र, व्यवसायी, राजनीतिक कार्यकर्ता और अन्य समाजिक समूह एकसाथ एकजुट हो गए. वे केवल सोशल-मीडिया के प्रतिबंध के खिलाफ नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार, पारदर्शिता की कमी और सरकार के अड़ियल रवैये के खिलाफ भी आवाज उठा रहे थे. युवाओं का कहना था, ''हम सिर्फ सोशल-मीडिया को वापस नहीं चाहते, हम भ्रष्टाचार और अन्याय के खिलाफ खड़े हैं.'' यह सवाल हमारे समाज में सत्ता और पहचान के बीच चल रहे संघर्ष को उजागर करता है. मार्क्स ने कहा है कि समाज में हमेशा वर्ग संघर्ष चलता रहता है. इसी नजरिए से देखा जाए तो सरकार और युवा पीढ़ी के बीच चल रहा यह संघर्ष सत्ता-संरचना के अधीन नागरिक बनाम लोकतांत्रिक अधिकारों की लड़ाई बन गया. युवा यह समझ चुके हैं कि केवल सत्ता की संरचना के अधीन रहना समाज की न्यायसंगतता के लिए खतरा है.

प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन में प्रवेश किया. पुलिस ने आंसू गैस, वाटर कैनन और रबर की गोलियों से जवाब दिया. हिंसा इतनी बढ़ गई कि सेना भी तैनात करनी पड़ी. इस हिंसा में 19 लोगों की मौत हुई और सैकड़ों घायल हो गए. यह बताता है कि केवल सूचनाओं पर नियंत्रण से दबा सामाजिक असंतोष हिंसा में बदल सकता है. मैक्स वेबर ने भी कहा है कि सत्ता का उद्देश्य केवल लोगों को नियंत्रित करना नहीं, बल्कि उनके बीच संतुलन बनाना है. जब यह संतुलन टूटता है, तो विरोध उत्पन्न होना स्वाभाविक है. यह आंदोलन यह स्पष्ट करता है कि समाज में सत्ता बनाम स्वतंत्रता की लड़ाई केवल बड़े नेताओं या संस्थाओं की नहीं, बल्कि हर नागरिक की व्यक्तिगत जागरूकता से भी बनती है.

समाजशास्त्र के नए नियम

नेपाल के जेन- जेड का आंदोलन इस बात का प्रमाण बन गया कि डिजिटल दुनिया में भी समाजशास्त्रीय नजरिए से जागरूकता और सामाजिक परिवर्तन संभव है. यह घटना यह भी बताती है कि भविष्य में समाजशास्त्र केवल पुराने नियमों पर नहीं चलेगा. समाज के छोटे-छोटे नागरिक अनुभव, छोटे-छोटे विरोध प्रदर्शन, ऑनलाइन आंदोलनों के माध्यम से बड़े सामाजिक परिवर्तन की दिशा में काम कर रहे हैं. यह नई सामाजिक चेतना का उदाहरण है, जो लोकतंत्र, न्याय और स्वतंत्रता की नई परिभाषा गढ़ रही है.

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नेपाल में जेन जेड आंदोलन एक ऐसी आवाज़ बनकर उभरा है, जो केवल एक राजनीतिक विरोध प्रदर्शन नहीं बल्कि लोकतंत्र, स्वतंत्रता और मानवाधिकार की गहराई से जुड़ी एक अनमोल पुकार है. यह संघर्ष हमें याद दिलाता है कि सच्चा लोकतंत्र वह नहीं, जो केवल कागज पर लिखा हो, बल्कि वह है जहां हर नागरिक अपनी आवाज बेझिझक उठा सकें. युवा वर्ग ने यह साबित कर दिया कि वे केवल भविष्य नहीं, बल्कि वर्तमान की भी ताकत हैं, जो अपने अधिकारों के लिए निडरता से खड़े हैं.

डिस्क्लेमर: अरुण कुमार गोंड इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शोध छात्र हैं. इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखकों के निजी विचार हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.

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