चिराग पासवान ने अपने चाचा पशुपति नाथ पारस के नाम उस चिट्ठी का खुलासा किया है जो उन्होंने होली यानी तीन महीने पहले लिखी थी. यदि इस चिट्ठी को आप पढ़ेंगें तो आपको मालूम हो जाएगा कि आखिर लोक जनशक्ति पार्टी में चल क्या रहा था. अभी तक जो लोग कह रहे थे कि चिराग की वजह से लोजपा बिहार में हारी है वह सच नहीं है. चिराग के अनुसार मेरे राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर आप नाराज़ हुए, यही नहीं जब प्रिंस को बिहार का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया तब आप नाराज़ हुए. जब नीतीश कुमार मुझ पर हमला कर रहे थे तब भी आप खामोश बने रहे. जब मैंने बिहार में विधानसभा चुनाव के दौरान चुनाव में रणनीति बनाने में आर्थिक मदद में सहयोग की बात कही तब भी आप खामोश रहे. यहां तक कि आपने चुनाव के दौरान एक भी विधानसभा क्षेत्र का दौरा नहीं किया. आपने हमेशा मेरी निंदा की, पार्टी के प्रति नकारात्मक रहे लेकिन अभी भी पार्टी के साथ काम करना चाहें तो करें नहीं करना चाहें तो ना करें.
यानी चिराग पासवान ने दूध का दूध पानी का पानी कर दिया. अब लोजपा टूट गई है और दो दल बन जाएंगे. एक जदयू के साथ रहेगा जिसका बाद में नीतीश कुमार अपनी पार्टी में विलय करा लेगें. और एक लोजपा चिराग के साथ रहेगी जिसके पास पासवान वोट बैंक भी रहेगा. मगर इस राजनैतिक घटना की पृष्ठभूमि में भी जाना जरूरी है और वो ये है. लोक जनशक्ति पार्टी का इस तरह से टूट कर बिखरना या कहें पशुपति नाथ पारस का अपने मरहूम भाई की पार्टी पर कब्जा कर लेना यह साबित करता है कि राजनीति में सत्ता सबसे बड़ी चीज है. जिस रामविलास पासवान पर जीवन भर यह आरोप लगता रहा कि उन्होंने लोजपा बनाया ही अपने परिवार के लिए है और उन्होंने भी अपने भाईयों को राजनीति में आगे बढाने में खोई कोर कसर नहीं छोडा. पारस बिहार के खगड़िया जिले के अलौली से करीब 35 सालों तक विधायक रहे. यहां पर ये भी बता दूं कि इसी इलाके में रामविलास पासवान का गांव सहरबन्नी भी आता है. फिर रामविलास पासवान के छोटे भाई रामचंद्र पासवान भी सांसद बने. अब उनके गुजर जाने के बाद उनके पुत्र प्रिंस सांसद हैं. इतना सब बताने का मकसद ये है कि पासवान के 6 फीसदी वोटों के अलावा दलित वोटरों पर रामविलास की पकड़ बनी रही.
अब बात करते हैं कि आखिर पारस ने लोजपा पर कब्जा कैसे किया तो अब यह जग जाहिर हो गया है कि इसके रणनीतिकार नीतीश कुमार हैं जो बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग के हमले से बौखलाए हुए थे. नीतीश कुमार ने एक तरह से लोजपा तोड़ कर चिराग के साथ-साथ बीजेपी से भी बदला ले लिया. क्योंकि बिहार चुनाव के दौरान कहा जा रहा था कि चिराग बीजेपी की शह पर ये सब कर रहे हैं. अब लोजपा के पांच सांसदों के साथ जदयू के 21 सांसद हो जाएंगें और बीजेपी के पास 17 सांसद. नीतीश कुमार ने अपने दल के चुनावी निशान तीर से कई शिकार किए हैं.
अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि चिराग पासवान के पास विकल्प क्या हैं. उनके पास काफी विकल्प हैं. सबसे बड़ी बात है कि उनके पास उम्र है राजनीति करने के लिए. नीतीश कुमार 70 साल के हो चुके हैं और संभवत: अपनी अंतिम पारी खेल रहे हैं. रामविलास पासवान रहे नहीं और लालू यादव बीमार हैं. अब बिहार में युवाओं का बोलबाला होना है. आप मानें ना मानें आपके पास यही विकल्प है एक तरफ तेजस्वी और चिराग पासवान तो दूसरी तरफ बीजेपी और जदयू में उभरने वाला कोई नया नेतृत्व. कहना मुशिकल है कि क्या होगा मगर चिराग पासवान को चाहिए कि वो दिल्ली का मोह त्यागें और बिहार की गलियों और सड़कों पर निकल चलें. पदयात्रा करें. ठीक उसी तरह जैसे जगन मोहन रेड्डी ने आंध्र प्रदेश में किया था. जगन मोहन ने तो नई पार्टी बनाई थी वो भी अपने पिताजी के गुजर जाने के बाद. राजनीति का कोई अनुभव नहीं था. मगर एक जिद थी कि साबित करके दिखाना है और फिर प्रशांत किशोर का साथ मिला और आज वो मुख्यमंत्री हैं. चिराग के पास तो पहले से बनी पार्टी है. खुद सांसद हैं. चुनाव लड़ने और लडवाने का अनुभव है. तो देर किस बात की है. चिराग पासवान सिर पर गमछा बांधिए और निकल जाईए बिहार की सड़कों पर, तब तक जब कर अपने को सफल साबित ना कर दें.
मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में मैनेजिंग एडिटर हैं...
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.