पश्चिम बंगाल के सागरदिघि में विधानसभा के उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस हार गई. यह सीट ममता बनर्जी के एक मंत्री के निधन की वजह से ख़ाली हुई थी. सागरदिघि की यह सीट कांग्रेस ने 51 वर्षों बाद जीती है वो भी 10 हज़ार वोटों से.
इस सीट को हारने के बाद जाहिर है ममता बनर्जी का गुस्सा होना लाजमी था. उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि उसने इस सीट के लिए बीजेपी से अंदरखाने हाथ मिला लिया और बीजेपी ने अपने वोट कांग्रेस को ट्रांसफर करवा दिए. जबकि आंकड़े कहते हैं कि पिछली बार तृणमूल कांग्रेस ने यह सीट 50,000 वोटों के अंतर से जीती थी जबकि इसबार उसे केवल 64,681 वोट मिले. वहीं, कांग्रेस को 87,667 वोट और बीजेपी को 25,000 वोट मिले.
ममता बनर्जी के गुस्से का कारण यह भी है कि यह मुस्लिम बहुल इलाका है और यहां आदिवासी भी हैं. ममता दीदी का ग़ुस्सा होना लाज़मी था, उन्होंने कहा कि आने वाले लोकसभा चुनाव अकेले लड़ेगी यानि 'एकला चलो रे'.
वैसे यह भी सच्चाई है कि 2011 के बाद के सभी चुनाव ममता बनर्जी ने अकेले ही लड़े हैं. दरअसल लोगों को लगा था कि कांग्रेस की सभी समान विचारधारा वाले दलों के इकट्ठा आने के अपील पर ममता बनर्जी सकारात्मक प्रतिक्रिया देंगी. मगर उन्होंने अकेले लड़ने की बात कर दी.
पिछले कुछ वर्षों में विपक्ष को साथ लाने की कोशिश ममता बनर्जी करती रही है कभी वो सोनिया गांधी से भी मिलती थी मगर अब वो सिलसिला बंद है. राष्ट्रपति चुनाव में शरद पवार के उम्मीदवार बनने से इंकार के बाद से वो उनसे भी नाराज़ बताई जाती हैं. बिहार में नीतिश, तेजस्वी और कांग्रेस के साथ आने से वो नीतिश और तेजस्वी से भी खफा हैं.
ऐसे में सवाल उठता है कि 2024 में विपक्ष का मोर्चा बनेगा कैसे? तेलंगाना के मुख्यमंत्री भी ममता बनर्जी की तरह गैर बीजेपी, गैर कांग्रेस गठबंधन की बात करते हैं. जबकि बिहार, झारखंड, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री कांग्रेस के साथ है और महाराष्ट्र का आघाडी यानि शरद पवार और उद्धव ठाकरे भी. महाराष्ट्र के उपचुनाव में भी कांग्रेस ने बीजेपी से एक सीट छीन ली है.
राजनीति के जानकार मानते हैं कि हाल के कुछ महीनों से ममता के तेवर प्रधानमंत्री के लिए नरम हैं और वो उन पर तीखे हमले करने से बच रही है. इसका कारण क्या हो सकता है क्या उनके भतीजे और उनकी पत्नी पर ईडी की रेड और उनसे होने वाली पूछताछ एक वजह है या फिर ममता के कई मंत्रियों का भ्रष्टाचार के मामले में जेल में होना भी हो सकता है खास कर पोर्थो चटर्जी, अणुब्रत मंडल, फिरहद हकीम आदि... फिर शारदा घोटाला की तलवार भी कई तृणमूल नेताओं पर लटक ही रही है..
इन सब के बीच लगता है विपक्ष का कोई मोर्चा बने तो बने कैसे क्योंकि यदि कांग्रेस वामदलों के साथ जाती है तो ममता उनके साथ नहीं हो सकती. कांग्रेस के साथ दिक्कत है कि राहुल को सभी विपक्ष का नेता बनाने पर जोर देने पर कई दल बिदक जाते हैं. यही वजह है कि कांग्रेस ने रायपुर अधिवेशन में अपने प्रस्ताव में विपक्ष की अगुवाई की बात छोड़कर सभी समान विचारधारा वाले दलों को साथ लाने की बात कही है. उन्हें लगता है शायद इससे बात बन जाए. मगर अभी अखिलेश यादव ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं. अखिलेश और जयंत चौधरी ने राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो' यात्रा का सर्मथन तो किया मगर निमंत्रण मिलने के बावजूद यात्रा से अपने को अलग रखा.
तेलंगाना में इसी साल दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं, जहां कांग्रेस और बीआरएस एक दूसरे के आमने-सामने होंगे. यानि भानुमति के इस कुनबे को इकट्ठा करना इतना आसान नहीं है वैसे भी फ़िलहाल दीदी गुस्से में हैं.
मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में मैनेजिंग एडिटर हैं...
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