This Article is From Dec 23, 2020

क्या शराबबंदी की विफलता के कारण नीतीश कुमार बिहार की विधि व्यवस्था सुधार नहीं सकते?

विज्ञापन
Manish Kumar

ये बात किसी से छुपी नहीं है कि बिहार की विधि व्यवस्था दिनोंदिन खराब हो रही है. अपराध चाहे हत्या हो या डकैती, अपराधी शहर के बीचोंबीच दिन में ही वारदात को अंजाम दे देते हैं. दिक्कत यह नहीं है कि घटनाओं में वृद्धि हो रही है बल्कि समस्या यह है कि हाई प्रोफ़ाइल मामले भी महीनों अनसुलझे रह जाते हैं. और इसका सीधा असर नीतीश कुमार सरकार और उनकी अपनी व्यक्तिगत छवि पर पड़ता है. अब तो नीतीश कुमार के कट्टर समर्थक भी मानने लगे हैं कि करीब चार साल आठ महीने पूर्व जो राज्य में शराबबंदी उन्होंने की उसके कारण विधि व्यवस्था चौपट होती जा रही है. राज्य में अपराधियों और पुलिस के गठज़ोड ने जो एक समानांतर शासन कायम किया है उसने नीतीश कुमार के सुशासन की हवा निकाल दी है.

हालांकि नीतीश कुमार ऐसा नहीं है कि वास्तविकता से अनभिज्ञ हैं या उनकी नीयत पर कोई सवाल किया जा सकता है. लेकिन चूंकि गृह विभाग के मुखिया वे खुद हैं और उनके अधीन के पुलिस बल के लोग इस गोरखधंधे में शामिल हैं तो वे अपनी ज़िम्मेदारी से हाथ नहीं झाड़ सकते. बुधवार को भी नीतीश कुमार पटना में पुलिस मुख्यालय पहुंचे. राज्य के गृह मंत्री होने के कारण पुलिस मुख्यालय में जाना वैसे तो कोई ख़बर नहीं होनी चाहिए लेकिन निकलने के समय उन्होंने जो कहा वह काफ़ी महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा कि वे खास तौर पर आए हैं और जानबूझकर आए हैं. लॉ ऑर्डर पर उन्होंने समीक्षा की है और एक-एक आस्पेक्ट का डिटेल सर्वेक्षण कर रहे हैं, एक-एक चीज़ को देख रहे हैं. बिहार की स्थिति निश्चित रूप से यहां के पुलिस बल द्वारा इम्प्रूव की जाएगी. हमको भरोसा है और सब चीज़ों के बारे में चर्चा हो रही है.

बिहार में अप्रैल 2016 में शराबबंदी लागू होने के बाद से दो लाख 54 हज़ार से अधिक लोग गिरफ़्तार हुए हैं जिनमें से अधिकांश गरीब तबके के लोग हैं. सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि गिरफ़्तारी होने के बावजूद नीतीश सरकार इनमें से दो लाख से अधिक लोगों का मेडिकल टेस्ट कराने में नाकामयाब रही क्योंकि सब जगह टेस्टिंग के साधन नहीं थे. और राज्य सरकार कितनी 'सजग' है कि मात्र 558 लोग कोर्ट द्वारा दोषी करार दिए गए. अब तक करीब एक करोड़ लीटर से अधिक शराब ज़ब्त हुई जिसमें देशी तीस प्रतिशत और सत्तर लाख लीटर से अधिक विदेशी शराब ज़ब्त हुई.

Advertisement

सवाल यह है कि नीतीश को शराबबंदी की विफलता के लिए दोषी कैसे ठहराया जा सकता है? और शराबबंदी के रहने तक विधि व्यवस्था नहीं सुधरेगी, ये कैसा तर्क है. इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि शराबबंदी एक अच्छा सिद्धांत है लेकिन इसके साथ एक कटु सच ये भी है कि आज तक विश्व में कहीं सफल नहीं हुआ. बिहार जैसे राज्य में, जिसके अगल बगल के राज्य और पड़ोसी देश नेपाल के साथ खुली बॉर्डर हो वहां इसके सफल होने की संभावना और भी कम हो जाती है. खुद नीतीश कुमार की सत्ता में सहयोगी भाजपा, जिसकी सरकार झारखंड में थी और उतर प्रदेश में अभी भी है, ने कभी भी उनके इस कदम को गंभीरता से नहीं लिया और ना इसे लागू कराने में कभी सहयोग ही किया. लेकिन मुखिया नीतीश हैं तो उन्होंने भी कुछ समय-समय पर खुद ऐसे निर्णय लिए जिससे इस बात का संदेश गया कि इस मुद्दे पर उनकी कथनी और करनी में फ़र्क़ है. इसके तीन ज्वलंत उदाहरण हैं. पहला शराबबंदी के कुछ महीने के अंदर उन्होंने जब विभाग के प्रधान सचिव केके पाठक को अपने गृह जिले में पार्टी पदाधिकारी की शिकायत पर हटाया तो उसके बाद ऊपर से नीचे संदेश यही गया कि इसे लागू कराने में उनकी नीयत पर आप विश्वास नहीं कर सकते. इसके बाद पिछले साल लोकसभा चुनाव में उन्होंने जब गया की सभा में बाहुबली बिंदी यादव को अपने बगल में बिठाया, जिनके घर से शराब बरामद होने पर मकान को सरकार ने ज़ब्त किया था. इस बार के विधानसभा चुनाव में उनकी पत्नी मनोरमा देवी, जो पहले भी जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर विधान पार्षद चुनी गई थीं, को पार्टी का उम्मीदवार बनाया. और सबसे चौंकाने वाला नीतीश कुमार का वो निर्णय था जब उन्होंने पिछले साल लोकसभा चुनाव के दौरान एक निलंबित आईपीएस अधिकारी विवेक कुमार का निलंबन खत्म किया जबकि उनके ऊपर खुद बिहार सरकार के तत्कालीन आईजी मद्य निषेध और आर्थिक अपराध विभाग दोनों के प्रभारी रत्न संजय ने छापेमारी की थी और एक मज़बूत एफ़आईआर दर्ज की थी. इस घटना में नीतीश के रुख़ के बाद अब तक चार्ज शीट दर्ज नहीं हुई है.

Advertisement

लेकिन इन घटनाओं के बाद पुलिस विभाग के आला अधिकारी मानने लगे हैं कि भले नीतीश शराब बंदी के नाम पर उन्हें बड़ी-बड़ी नसीहत दें लेकिन जब कार्रवाई करने की बात आती है और मामला राजनीतिक नफ़ा-नुक़सान का होता है तो नीतीश कुमार भी एक चतुर नेता की तरह अपनी बातों को भूलकर अपने राजनीतिक स्वार्थ को ज़्यादा प्राथमिकता देते हैं. लेकिन पिछले चार वर्षों में वो चाहे ग्रामीण इलाक़ा हो या छोटे अनुमंडल, या जिला मुख्यालय हो, हर जगह शराब के अवैध धंधे में लगे लोगों की एक ऐसी बड़ी सेना अब दिन रात काम कर रही है जिसको पुलिस का पूरा संरक्षण खुलेआम प्राप्त है. यह बात किसी से छिपी नहीं है. पिछले चार वर्षों के दौरान इस धंधे से होने वाली काली कमाई से लोगों ने इतनी संपत्तियां अर्जित की हैं कि वो हर जगह चर्चा का विषय होता है. और पहले जहां शराब बंदी के कुछ महीनों तक आप गांव जाते तो लोग ये चर्चा करते थे कि कैसे गांव में शांति आई है लेकिन अब आप किसी भी इलाक़े में जाएंगे तो लोग आपको यही बताएंगे कि न केवल होम डिलेवरी, बल्कि बिस्तर में भी आपको शराब की डिलीवरी हो जाएगी और ये सब कुछ पुलिस की नाक के नीचे होता है क्योंकि उनको इससे काफ़ी मोटी कमाई होती है. इसलिए कोई किसी को कुछ कहता नहीं है. यह आज के बिहार की सच्चाई है. आप पुलिस वालों के सैलरी एकाउंट की जांच करा लें तो आप देखेंगे कि महीनों हो जाते हैं वे अपने वेतन के पैसों को हाथ तक नहीं लगाते. लेकिन चूंकि नीतीश कुमार इस पुलिस विभाग के मुखिया हैं तो सब मानते हैं कि सीधा ये उनकी विफलता का परिणाम है.

Advertisement

आज तमाम  दावों के बावजूद बिहार के सीमावर्ती खासकर अंतरराज्यीय सीमा हो वहां पर CCTV का भी इंतज़ाम नहीं है. दूसरी ओर जब से GST लगा है, सारे चेकपोस्ट ख़त्म हो गए हैं. अब तो बेरोकटोक गाड़ियां इधर से उधर जाती हैं. अब जब भी नीतीश कुमार शराब बंदी पर अपनी चिंता प्रकट करते हैं तो इस धंधे में लिप्त पुलिस वाले ही सैकड़ों लीटर शराब की ज़ब्ती दिखाकर वाहवाही लूट लेते हैं. कोई ये भी चेक करने वाला नहीं है कि जो ज़ब्त शराब है वो असली है या नक़ली है. लेकिन सब जानते हैं कि बिहार में आज शराब थोड़े महंगे दामों पर हर जगह उपलब्ध है. पीने वाले नक़ली शराब अधिक पी रहे हैं और तमाम तरह की बीमारियों के शिकार होते हैं. और जिस विधि व्यवस्था में सुधार और अपराधियों को सजा दिलाकर नीतीश कुमार लोगों की दुआ लेते थे, अब लोग पीने वाले हों या नहीं पीने वाले, उनका मज़ाक़ उड़ाते हैं.

Advertisement

लेकिन सवाल यह है कि शराब बंदी का विधि व्यवस्था से क्या लेना देना है. यहां पुलिस के आलाधिकारी मानते हैं कि जो अपराधियों के साथ पुलिस वालों का नया गठजोड़ हुआ है और जो इसका नया अर्थशास्त्र लिखा गया है वो जब तक शराब बंदी रहेगी विधि व्यवस्था पर हर दिन ही नीतीश कुमार मॉनिटरिंग समीक्षा क्यों न कर लें, अपराध की घटनाओं पर क़ाबू नहीं पाया जा सकता है. क्योंकि अब थाने में बैठे अधिकारियों का फ़ोकस अपराध रोकने या अपराधियों को सजा दिलाने में नहीं होता बल्कि उनका एक ही लक्ष्य होता है कि उनके इलाक़े में ये शराब का धंधा कितना फले फूले जिससे कि उनकी आर्थिक आमद भी दिन दोगुनी रात चौगुनी हो. भ्रष्टाचार के सामने वो चाहे थाने का भ्रष्टाचार हो या ब्लॉक स्तर के कर्मचारियों, अधिकारियों का, घूसख़ोरी के बिना काम न करना, नीतीश कुमार इस मामले में अब तक बेबस साबित हुए हैं. समीक्षा बैठकों में अब नीतीश कुमार नीचे बैठे अधिकारियों से फ़ीडबैक लेने की ज़रूरत भी नहीं समझते, इसलिए अधिकारी वही बात करते हैं जो उनके कानों को अच्छी लगे. इसके अलावा अधिकारी और कुछ पत्रकार नीतीश कुमार को हमेशा यह भरोसा दिलाते हैं कि आपके शराब बंदी के कारण लोग बहुत ख़ुश हैं. लेकिन ये वही लोग हैं जिनका शराब बंदी के नाम पर होने वाले आयोजनों में कुछ ना कुछ अपना व्यक्तिगत आर्थिक  स्वार्थ होता है. लेकिन सच्चाई है कि शराबबंदी के कारण अपराध की घटनाएं और बढ़ रही हैं और दिनोंदिन नीतीश कुमार का इक़बाल कम होता जा रहा  है.

(मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

Topics mentioned in this article