हिंदी पखवाड़ा 2025: भाषाओं की नई उड़ान और नई चुनौतियां लेकर आया है AI

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हिमांशु जोशी

14 सितंबर,1949 को देश की संविधान सभा ने सर्वसम्‍मति से हिंदी को राजभाषा के रूप में अपनाया था. उसके बाद से हर साल 14 सितंबर को 'हिंदी दिवस' मनाया जाता है. इस दौरान हिंदी पखवाड़ा भी आयोजित किया जाता है. ये वक्त हमें अपनी मातृभाषा की ताकत और संभावनाओं पर विचार करने का मौका देता है. कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) ने हिंदी को डिजिटल दुनिया में नई ऊंचाई दी है.

AI ने तोड़ी भाषा की दीवारें 

डिजिटल दुनिया को AI ने हिंदी भाषी लोगों के लिए और सुलभ बनाया है. Google Translate, Grok, ChatGPT, जैसे टूल्स ने हिंदी में जानकारी तक पहुंच को आसान किया है. गूगल ब्लॉग वेबसाइट ने जून 2024 में घोषणा की थी कि Google Translate में 110 नई भाषाएं जोड़ी जाएंगी, जिनमें कई भारतीय भाषाएं शामिल हैं. Internet and Mobile Association of India (IAMAI) और Kantar की ताजा ICUBE All India 2024 रिपोर्ट के अनुसार, शहरी भारत में 57 फीसदी इंटरनेट उपयोगकर्ता भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता देते हैं. इनमें सबसे बड़ा हिस्सा हिंदी का है, जिसे 24 फीसदी लोग इंटरनेट पर इस्तेमाल करते हैं. गांवों के किसान अब हिंदी में मौसम और फसल की जानकारी प्राप्त कर रहे हैं, छात्र ऑनलाइन शिक्षा सामग्री पढ़ रहे हैं और छोटे व्यापारी सोशल मीडिया पर हिंदी में अपने उत्पाद बेच रहे हैं.

रोजगार पर AI का असर, चुनौती है या अवसर?

AI के बढ़ते उपयोग ने रोजगार के परिदृश्य को बदल दिया है. TechParlance में प्रकाशित जानकारी के अनुसार, वैश्विक मशीन ट्रांसलेशन बाजार का मूल्य 2023-24 में करीब 650 मिलियन डॉलर आंका गया है. साल 2027 तक इसमें तेजी से वृद्धि होने की संभावना है. विशेषज्ञों का कहना है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और मशीन लर्निंग में हो रही प्रगति ने अनुवाद को अधिक सटीक और प्रभावी बना दिया है.

रिपोर्ट के अनुसार अब सिर्फ पाठ्य सामग्री ही नहीं, बल्कि वीडियो और ऑडियो अनुवाद की मांग भी तेजी से बढ़ रही है. इसमें सबटाइटल और वॉयसओवर शामिल है. यह बदलाव इस ओर इशारा करता है कि उपभोक्ताओं की कंटेंट खपत की आदतें बदल रही हैं और मल्टीमीडिया सामग्री का महत्व लगातार बढ़ रहा है.

मशीन बनाम मनुष्य में कहां खड़ा है अनुवाद

अमेरिका में रहने वाले अनुराग शर्मा जून 2016 से द्वैभाषिक मासिक पत्रिका 'सेतु' के मुख्य संपादक और लेखक हैं. उन्होंने अमेरिका के प्रतिष्ठित ड्यूक विश्वविद्यालय में हिंदी कक्षाओं को भी संबोधित किया है. उनके अनुसार, AI अनुवादक गहरी मशीन लर्निंग और न्यूरल नेटवर्क्स का उपयोग करके किसी भाषा के शब्दों और वाक्यों को दूसरी भाषा में शीघ्रता और व्यापक स्तर पर अनुवादित कर सकता है.

AI संदर्भ को समझने का प्रयास करता है, जिससे अनुवाद अधिक स्वाभाविक और सटीक प्रतीत होता है. यह अनुवादकों के काम का एक हिस्सा, जैसे भाषा का त्वरित और सटीक रूपांतरण, कुशलतापूर्वक कर सकता है.

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हालांकि, संपादक का कार्य केवल भाषा रूपांतरण तक सीमित नहीं है. वह अनुवाद की गुणवत्ता, शैली, सांस्कृतिक संदर्भ, संदेश की संवेदनशीलता और भावार्थ की बारीकियों पर ध्यान देता है. संपादक पाठ को इस तरह गढ़ता है कि वह मानवीय समझ और भावनाओं के अनुरूप हो. यह स्तर अभी मशीनों के लिए संभव नहीं है, क्योंकि इसके लिए मानवीय सोच, अनुभव और रचनात्मकता आवश्यक है.

अभी क्या नहीं कर सकती हैं मशीनें

इसलिए, AI अनुवादक प्राथमिक अनुवाद को तेजी और बड़े पैमाने पर कर सकता है, पर अंतिम सुधार, भावार्थ की जांच और पाठ को स्वाभाविक बनाने के लिए मानवीय संपादक अनिवार्य हैं. इसका अर्थ यह है कि भले ही AI अनुवादकों की भूमिका को चुनौती दे, संपादकों का महत्व बना रहेगा. 

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अनुराग शर्मा आगे कहते हैं हिंदी और AI का रिश्ता अभी शुरुआती चरण में है. आने वाले वर्षों में चैटबॉट्स, वॉयस असिस्टेंट और मल्टीमीडिया कंटेंट के क्षेत्र में हिंदी का और भी व्यापक उपयोग देखने को मिलेगा. चुनौती यही है कि तकनीक का इस्तेमाल भाषा की आत्मा को बचाए रखते हुए किया जाए.

अस्वीकरण: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं, उससे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.

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