हिंदी दिवस: सिनेमा के आईने में हिंदी की वैश्विक चमक

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हिमांशु जोशी

हिंदी सिनेमा और ओटीटी ने संवादों, सितारों और तकनीक के सहारे हिंदी को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाई है. इस साल हिंदी दिवस हमें यह सोचने का अवसर दे रहा है कि हमारी भाषा ने किस तरह साहित्य और पत्रकारिता से आगे बढ़कर सिनेमा और अब ओटीटी की दुनिया में अपनी पहचान बनाई है.

किताबों और कविताओं की अपनी जगह है, लेकिन बीते दशकों में फिल्मों के संवादों ने जिस तरह लोगों के दिलों-दिमाग पर असर डाला है, वैसी ताकत किसी और माध्यम में नहीं दिखती. सिनेमा ने हिंदी को केवल भारत के दर्शकों तक नहीं, बल्कि विदेशों में भी एक मजबूत जगह दिलाई है.

संवादों से बनी हिंदी की यात्रा

हिंदी फिल्मों की सबसे बड़ी पहचान उसके संवाद रहे हैं. शोले का ‘कितने आदमी थे' आज भी मीम्स और सोशल मीडिया पर जिंदा है. 70–80 के दशक के नाटकीय संवादों ने हिंदी को एक ठोस पहचान दी. इसके बाद 90 और 2000 के दशक में भाषा हल्की-फुल्की और भावनात्मक हो गई. शाहरुख की मोहब्बतें का ‘प्रेम का मतलब केवल मिलना नहीं, बिछड़ना भी होता है' और आमिर की थ्री इडियट्स का ‘काबिल बनो, कामयाबी झक मारकर पीछे आएगी' युवाओं का नारा बने. सलमान की तेरे नाम का दर्दभरा ‘क्या करता हूं यार भुलाने की कोशिश करता हूं, भूला ही नहीं पाता' आज भी विदेशों में बसे भारतीय युवाओं की यादों में बसा है.

नए दौर में यही हिंदी वैश्विक सोशल मीडिया की बोली बन गई. शाहरुख की जवान का ‘मैं कौन हूं, कौन नहीं, पता नहीं… क्योंकि मैं भी आप हूं. रेडी..' लाखों शॉर्ट वीडियो में दोहराया गया. सलमान की टाइगर 3 का ‘इंश्योरेंस के लिए ही है, देनी नहीं लेनी है, अपने लिए' और आमिर की लाल सिंह चड्ढा का ‘तुम जैसे कमअक्ल, बेवकूफ इंसान को मेडल दिया तुम्हारी सरकार ने' दिखाते हैं कि हिंदी अब सीधे समाज और राजनीति पर चोट कर सकती है.

ओटीटी ने इस सफर को और आगे बढ़ाया. पंचायत का ‘दोस्त यार कह देने से दोस्त यार नहीं हो जाता प्रधान जी…' ग्रामीण सादगी का आईना है. यही हिंदी की खासियत है कि वह हर दौर में बदलकर भी अपने दर्शकों से जुड़ जाती है.

बीते दशकों का सितारा प्रभाव

हिंदी भाषा को वैश्विक पहचान दिलाने में बॉलीवुड सितारों की भूमिका अहम रही है. खासकर राज कपूर ने रूस और एशिया में हिंदी को पहुंचाया, अमिताभ बच्चन ने 70–80 के दशक में गुस्से से भरे संवादों के जरिए पूरी पीढ़ी को अपनी आवाज दी.

इसके बाद सलमान खान की मसाला फिल्में, शाहरुख खान का रोमांटिक अंदाज और आमिर खान की संजीदा स्क्रिप्ट्स ने हिंदी सिनेमा को दुनिया के हर कोने तक पहुंचाया.

दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, गजनी, बजरंगी भाईजान और दंगल जैसी फिल्मों ने न सिर्फ भारतीय बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड बनाए बल्कि विदेशों में भी भाषा की ताकत साबित की. इन सितारों ने यह दिखाया कि हिंदी महज एक संचार का माध्यम नहीं, बल्कि भावनाओं और संस्कृति का पुल है.

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हिंदी सिनेमा और विदेशी बाजार का विस्तार

भारतीय सिनेमा का विदेशी बाजार लगातार बड़ा हो रहा है. Campaign India में प्रकाशित FICCI-EY रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2023 में कुल 339 भारतीय फिल्में विदेशों में रिलीज हुईं और भारतीय फिल्मों के ओवरसीज बॉक्स ऑफिस में लगभग 35 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई. इस वृद्धि का बड़ा हिस्सा हिंदी फिल्मों की लोकप्रियता से आया है.

विदेशों में बसे भारतीयों के साथ-साथ स्थानीय दर्शक भी अब हिंदी सिनेमा देखने लगे हैं. शाहरुख खान की जवान इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. मनोरंजन और बॉक्स ऑफिस आंकड़े उपलब्ध कराने वाले प्लेटफॉर्म Sacnilk के अनुसार इस फिल्म ने GCC समेत ओवरसीज में 46 मिलियन डॉलर से अधिक कमाई कर वहां की सबसे सफल भारतीय फिल्म का रिकॉर्ड बनाया.

ये आंकड़े साबित करते हैं कि हिंदी सिनेमा अब केवल घरेलू मनोरंजन तक सीमित नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना रहा है.

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अमेरिका के पिट्सबर्ग से प्रकाशित होने वाली हिंदी की मासिक पत्रिका 'सेतु' के संपादक अनुराग शर्मा से हमने अमेरिका में बॉलीवुड फिल्मों से हिंदी की लोकप्रियता पर सवाल पूछा तो वह कहते हैं कि सालों पहले अमेरिका में एक रूसी ड्राइवर ने उनसे बोला 'मेरा जूता है जापानी'. गरिमा खुरासिया विदेशों में काम कर चुकी हैं, वह कहती हैं कि इंग्लैंड में उनकी कम्पनी का मैनेजर बॉलीवुड का बहुत बड़ा फैन था. एक घटना याद करते हुए उन्होंने बताया कि जब वह बाली के टूर पर गई थीं तो वहां के एक निवासी ने उनसे कहा कि आप शाहरुख के देश से हैं, उसके लिए भारत का मतलब ही शाहरुख खान था और उसे जितनी भी हिंदी आती थी, वह उसने बॉलीवुड फिल्में देख कर ही सीखी थीं.

ओटीटी और हिंदी की नई उड़ान

ओटीटी प्लेटफॉर्म ने हिंदी को दुनिया के नए दर्शकों तक पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाई है.

AI-पावर्ड सबटाइटल्स और स्टोरीटेलिंग ने हिंदी कंटेंट को वैश्विक स्तर पर और सुलभ बना दिया है. FICCI-EY रिपोर्ट 2025 के ट्रेंड्स के अनुसार, AI का उपयोग कंटेंट क्रिएशन, सबटाइटल्स और स्टोरीटेलिंग में तेजी से बढ़ा है, खासकर OTT पर, जहां डिजिटल मीडिया ने 17% ग्रोथ के साथ 802 अरब रुपए का आंकड़ा छुआ. इससे हिंदी सहित अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका जैसे बाजारों में सबटाइटल्स के जरिए आसानी से पहुंचाने में मदद मिली है.

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अस्वीकरण: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं, उससे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.

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