This Article is From Mar 08, 2024

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस में 'उन दिनों' की बात

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Himanshu Joshi

कुछ दिनों पहले एक्ट्रेस पूनम पांडे (Poonam Pandey) ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट के जरिए सर्वाइकल कैंसर की वजह से अपनी मौत की झूठी खबर फैलाई थी. पूनम पांडे के लिए तो यह बस एक पब्लिसिटी स्टंट बनकर रह गया, लेकिन हर महिला के लिए सर्वाइकल कैंसर (Cervical Cancer) का नाम इतना मामूली नही होता. अंतराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women's Day) पर बात करते हैं महिलाओं के उन मुश्किल दिनों की, जिसे पीरिएड्स कहते हैं.

उत्तराखंड के अल्मोड़ा में कुमाऊं यूनिवर्सिटी में सोशियोलॉजी के रिसर्च स्टूडेंट आशीष पंत किशोरियों में पीरिएड्स से जुड़े प्रभावों पर स्टडी कर रहे हैं. आशीष बताते हैं कि बचपन में उन्होंने अपनी मम्मी को पीरियड्स के दौरान पैड की जगह गंदे कपड़ों का इस्तेमाल करते हुए देखा था. उनकी मां की मौत कैंसर से हुई थी. आशीष पीरिएड्स के दौरान गंदे कपड़े के इस्तेमाल को भी अपनी मां की मौत का कारण समझते हैं. एक दिन उनकी बहन ने भी उनसे शर्माते हुए सैनिटरी पैड मंगवाया था. इन कारणों से ही आशीष पंत ने 'सोच' नाम से एक NGO की शुरुआत की. इसका मकसद पीरिएड्स को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाना है.

45% महिलाएं पीरिएड्स में करती हैं गंदे कपड़े का इस्तेमाल
आशीष पंत बताते हैं कि साल 2021 में उन्होंने अल्मोड़ा के आसपास के गांवों में सैनिटरी पैड के इस्तेमाल को लेकर 15 से 45 साल की महिलाओं पर स्टडी की थी. इसमें उन्हें चौंकाने वाली जानकारी मिली कि 45% महिलाएं अब भी पैड की जगह कपड़े का इस्तेमाल कर रही थीं. पिछले साल उन्हें ताकुला क्षेत्र में एक लड़की मिली, जो इतनी गरीब थी कि वह सरकारी योजना से मिलने वाले 6 रुपये तक का सैनिटरी पैड खरीदने में भी सक्षम नहीं थी. अल्मोड़ा डिग्री कॉलेज में पढ़ रही एक लड़की ने उन्हें बताया कि उसने अपने पहले पीरिएड्स में अखबार का इस्तेमाल किया था.

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आशीष पंत बताते हैं, "अभी भी अल्मोड़ा के आसपास के कई गांवों की लड़कियों को यह तक नहीं पता कि पैड का सही इस्तेमाल कैसे किया जाता है? कई लड़कियां एक ही पैड को 12 घंटे तक पहनती हैं."

मेंस्ट्रुअल कप काफी मददगार
उत्तराखंड के गांवों में सैनिटरी पैड की उपलब्धता का न होना और कुछ परिवारों का इतना गरीब होना कि वह पैड भी नही खरीद सकते; महिलाओं में माहवारी (पीरिएड्स) से आने वाली समस्याओं का मुख्य कारण है. मेंस्ट्रुअल कप का सही इस्तेमाल इसका समाधान हो सकता है.

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इस बारे में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल के पौढ़ी कैंपस में अंग्रेजी की रिसर्च स्टूडेंट प्रियंका नेगी कहती हैं, "मैंने तीन महीने मेंस्ट्रूअल कप इस्तेमाल किया. इसके बाद मुझे मेंस्ट्रुअल कप के 5 फायदे समझमें आए."

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हेमवती नंदन बहुगुणा आगे बताती हैं, "पहला फायदा यह है कि पैड ज्यादा ब्लड फ्लो होने पर लीक होने लगता है. उसे पहने रहने में हमें यह डर लगता है कि कहीं कपड़ों, टेबल, चेयर, बिस्तर जहां भी हम बैठे हैं; वहां खून का कोई निशान ना पड़ जाए. कप में हमें यह दिक्कत पेश नहीं आती है, मेंस्ट्रुअल कप में ही ब्लड इकट्ठा हो जाता है और निशान पड़ने की कोई चिंता नही रहती.

बहुगुणा बताती हैं, "मेंस्ट्रूअल कप का दूसरा फायदा यह है कि पैड का इस्तेमाल करने पर रैशेज हो जाते हैं, लेकिन मेंस्ट्रुअल कप का प्रोसेस अलग है. इसमें रैशेज नहीं पड़ते. हां इससे किसी को एलर्जी जरूर हो सकती है. लेकिन अगर इसको सही से इस्तेमाल किया जाए, तो किसी को कोई दिक्कत नहीं होगी."

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वह आगे बताती हैं, "मेंस्ट्रूअल कप का इस्तेमाल करने का तीसरा फायदा यह है कि इसमें कभी ऐसा महसूस नहीं होता कि हमने अपने शरीर में कुछ पहन रखा है. जैसे पैड में हमें हमेशा महसूस होता रहता है कि कहीं यह अपनी जगह से आगे पीछे, दाएं बाएं खिसक तो नहीं रहा. लेकिन मेंस्ट्रूअल कप हमें अपने शरीर का हिस्सा ही लगता है."

वह चौथे फायदे के बारे में बताती हैं, "मेंस्ट्रूअल कप में यह झंझट नहीं रहता कि इसे फेंकना कहां है. जबकि सैनिटरी पैड को डिस्पोज करने में कई बार दिक्कतें होती हैं. अगर हम इस्तेमाल किए हुए पैड को जलाएं, तो यह जल्दी जल भी नहीं सकता. इसे जलने में तीन से चार घंटे लग जाते हैं. खेत और नदी में हम इसे फेंक नहीं सकते."

बहुगुणा बताती हैं, "मेंस्ट्रुअल कप पैड से सस्ता भी है. अगर इस कप को आपने एक बार खरीद लिया, तो ये कम से कम 6 महीने तक चलेगा. कप रखने में भी कोई दिक्कत नहीं होती है. इसे आप अपने बैग, जींस की जेब कहीं भी रख सकते हैं."

मेंस्ट्रुअल कप के फीडबैक पर एक नजर
प्रियंका नेगी कहती हैं, "मैं अपने मेंस्ट्रुअल कप के रिज़ल्ट्स से खुश थी. इसलिए मैंने यह औरों के साथ भी साझा किया. कप में स्विच करना आसान नहीं है, लेकिन इसे करने के बाद अच्छा लगता है. इसलिए इन्हें लेकर मैं गढ़वाल विश्विद्यालय के पौड़ी कैंपस के गर्ल्स हॉस्टल में गई."

नेगी बताती हैं, "वहां मेरी एक जूनियर है, जो खुद भी दो साल से कप इस्तेमाल कर रही है. उसे मैंने पहले ही ये आग्रह कर लिया था कि मैं मास्टर्स वाली लड़कियों से इस संबंधित बात करना चाहूंगी. कप मेरे पास 6 ही थे, लेकिन लड़कियां 25 के लगभग थीं. बातचीत बहुत अच्छी रही. उस ग्रुप में अब तक कोई भी कप इस्तेमाल नहीं कर रहा था. मैंने 'कप पैड से बेहतर क्यों है' पर बात रखी तो वहीं अपराजिता ने कप को कैसे इस्तेमाल करना है, इस बारे में जानकारी दी. वहां लड़कियों को रिस्पॉन्स काफी अच्छा रहा."

प्रियंका नेगी ने बताया, "कॉलेज की लड़कियों के साथ-साथ मैंने मेंस्ट्रुअल कप अपनी पहचान की कुछ शादीशुदा महिलाओं को भी दिए. इन सब का फीडबैक यह निकला कि, जो महिलाएं सेक्शुअली एक्टिव हैं, उनको इसका इस्तेमाल करने में ज्यादा दिक्कत नहीं आती है. लेकिन जो लड़कियां सेक्शुअली एक्टिव नहीं है; उनको मेंस्ट्रुअल कप का इस्तेमाल करने में दिक्कत आती है. ऐसे में मेरी समझ से इसका इस्तेमाल शादी के बाद किया जाए, तो बेहतर है."


(हिमांशु जोशी उत्तराखंड से हैं और प्रतिष्ठित उमेश डोभाल स्मृति पत्रकारिता पुरस्कार प्राप्त हैं. वह कई समाचार पत्र, पत्रिकाओं और वेब पोर्टलों के लिए लिखते रहे हैं.)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.