This Article is From Jun 26, 2021

देश में आरक्षण के जनक थे छत्रपति शाहूजी महाराज

विज्ञापन
Dr. Ravikant

भारत के इतिहास में धार्मिक सहिष्णुता, प्रजावत्सलता और शांतिप्रियता के कारण सम्राट अशोक और मुगल बादशाह अकबर को महान शासक माना जाता है. लेकिन 19वीं शताब्दी के अंतिम दौर में महाराष्ट्र की कोल्हापुर रियासत के राजा छत्रपति शाहूजी महाराज को अपने प्रजातांत्रिक मूल्यों और सामाजिक न्याय के लिए जाना जाता है. मराठा वीर शिवाजी की तीसरी पीढ़ी में 26 जून 1874  को जन्मे शाहूजी महाराज ने 1896 में कोल्हापुर रियासत की बागडोर संभाली. उन्होंने अपने राज्य के प्रशासन में सभी जातियों की समान भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए 1902 में पिछड़ी जातियों के लिए 50 फ़ीसदी आरक्षण लागू किया. इसलिए उन्हें भारत में आरक्षण व्यवस्था का जनक माना जाता है.

दरअसल, भारत की तमाम स्टेटों की तरह कोल्हापुर राज्य में भी ब्राह्मणों का वर्चस्व था. आरक्षण लागू होने से पहले कोल्हापुर के सामान्य प्रशासन में कुल 71 पदों में से 60 पर ब्राह्मण अधिकारी नियुक्त थे. इसी प्रकार 500 क्लर्कों में से 490 ब्राह्मण थे. जबकि ब्राह्मणों की आबादी मात्र तीन से चार फीसदी थी. इसको देखते हुए शाहूजी महाराज ने 1901 में जातिगत जनगणना करवाई और आरक्षण व्यवस्था लागू की. इसके परिणाम स्वरूप 1912 में कुल 95 पदों पर गैर ब्राह्मण अधिकारियों की संख्या 60 हो गई.

शाहूजी महाराज ज्योतिबा फुले से बहुत प्रभावित थे. ज्योतिबा फुले कृत 'गुलामगिरी' उनकी सबसे प्रिय किताब थी. उन्होंने अपने राज्य में 'सत्यशोधक समाज' आंदोलन चलाया. 1911 में अपने संस्थान में सत्यशोधक समाज की स्थापना की. फुले दंपति द्वारा शूद्रों और स्त्रियों की शिक्षा के लिए किए गए काम से प्रेरित होकर शाहूजी महाराज ने अपने राज्य में आधुनिक शिक्षा लागू की. 1912 में उन्होंने प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाया. तदोपरांत 25 जुलाई 1917 को शाहूजी महाराज ने प्राथमिक शिक्षा को निशुल्क  कर दिया. उन्होंने 500 से 1000 तक की जनसंख्या वाले प्रत्येक गांव में स्कूल खोले. गरीब और पिछड़े-दलित बच्चों के लिए उन्होंने 'शिवाजी मराठा बोर्डिंग हाउस' नाम से निशुल्क छात्रावास खोले . 15 अप्रैल 1920 को नासिक में एक छात्रावास का शिलान्यास करते हुए शाहूजी महाराज ने कहा-"जातिवाद का अंत जरूरी है. जाति को समर्थन देना अपराध है. हमारे समाज में सबसे बड़ी बाधा जाति है."

Advertisement

धर्म का असली मर्म मानवसेवा है. इसलिए धर्म स्थलों पर दान की संपत्ति का लोकहित में इस्तेमाल होना चाहिए. शाहूजी महाराज ने 9 जुलाई 1917 को एक आदेश जारी करके कोल्हापुर राज्य के सभी धार्मिक स्थलों की संपत्ति पर राज्य का अधिकार स्थापित कर दिया. हाल में तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने मंदिरों में गैर ब्राह्मण पुजारियों की नियुक्त का आदेश पारित किया है. दक्षिणपंथियों द्वारा इसका विरोध भी हो रहा है. लेकिन शाहूजी महाराज ने एक सदी पहले ही कोल्हापुर राज्य में पिछड़ी जाति के मराठा पुजारियों की नियुक्ति का आदेश पारित किया था. इन पुजारियों के प्रशिक्षण के लिए उन्होंने 1920 में एक विद्यालय भी खुलवाया था.

Advertisement

शाहूजी महाराज ने दलितों और स्त्रियों के अधिकारों के लिए ठोस कदम उठाए. 1919 में उन्होंने अछूतों को इलाज के लिए अस्पताल में प्रवेश का अधिकार दिया. इसके पहले अन्य सार्वजनिक स्थानों की तरह किसी अछूत का अस्पताल में भी प्रवेश वर्जित था. इसी साल उन्होंने एक आदेश द्वारा प्राइमरी स्कूल से लेकर कॉलेजों में दलितों के साथ होने वाले अन्याय और दुर्व्यवहार को समाप्त कर दिया. अब जाति के आधार पर स्कूल में बच्चों के साथ भेदभाव नहीं संभव था. सरकारी नौकरियों में भी उन्होंने दलितों के साथ होने वाले अन्याय और छुआछूत को समाप्त कर दिया. दरअसल, इस निर्णय के पीछे एक घटना है.  राजमहल में कर्मचारियों के लिए बने क्वार्टर में गंगाराम कांबले नाम का एक दलित कर्मचारी रहता था. एक दिन मराठा सैनिक संताराम और ऊँची जाति के कुछ कर्मचारियों ने गंगाराम कांबले की यह कहते हुए पिटाई कर दी, कि उसने तालाब के पानी को छूकर अपवित्र कर दिया है. शाहूजी महाराज को खबर होने पर उन्होंने ऊँची जाति के कर्मचारियों की घोड़े के चाबुक से पिटाई की और नौकरी से निकाल दिया. गंगाराम कांबले को पैसा देकर उन्होंने चाय की दुकान खुलवाई. स्वयं शाहूजी महाराज उसकी दुकान पर चाय पीने जाते थे. गंगाराम ने अपनी चाय की दुकान का नाम सत्यसुधारक रखा. इस घटना के बाद शाहूजी महाराज ने छुआछूत को मानने वाले किसी भी अधिकारी और कर्मचारी को सख्त आदेश दिया कि वे या तो अपनी आदत बदल लें अथवा 6 माह के भीतर नौकरी से इस्तीफा देकर चले जाएं.15 जनवरी 1919 को उन्होंने आदेश पारित करते हुए कहा-"उनके राज्य के किसी भी कार्यालय और गाँव पंचायतों में भी दलित-पिछड़ी जातियों के साथ समानता का बर्ताव हो,यह सुनिश्चित किया जाए. छुआछूत को बर्दास्त नहीं किया जाएगा. उच्च जातियों को दलित जाति के लोगों के साथ मानवीय व्यवहार करना ही चाहिए. जब तक आदमी को आदमी नहीं समझा जाएगा,समाज का चौतरफा विकास असंभव है."

Advertisement

अछूतों की आर्थिक पराधीनता को समाप्त करने के लिए शाहूजी महाराज ने 1917 में 'बलूतदारी प्रथा' को समाप्त किया. इस प्रथा के अनुसार थोड़ी सी जमीन के बदले किसी अछूत को परिवार सहित पूरे गांव की मुफ्त सेवा करनी पड़ती थी. इसी तरह शाहूजी महाराज ने 1918 में 'वतनदारी' नामक एक और प्रथा को समाप्त किया. उन्होंने राज्य में भूमि सुधार व्यवस्था लागू की.इसके तहत अब अछूतों को भी भूस्वामी बनने का अधिकार मिल गया. स्त्रियों के अधिकार सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने अपने राज्य से 11 नवंबर 1920 को मिताक्षरा न्याय सिद्धांत को समाप्त कर दिया. मिताक्षरा याज्ञवल्क्य स्मृति पर विज्ञानेश्वर की टीका है. इसे स्त्री गुलामी का दस्तावेज माना जाता है. मिताक्षरा न्याय सिद्धांत द्वारा स्त्रियों पर बहुत प्रतिबंध लगाए गए थे. इसे समाप्त करके शाहूजी महाराज ने स्त्रियों को पैतृक संपत्ति में उत्तराधिकार प्रदान किया. 

Advertisement

दलित और पिछड़ों के मुक्तिदाता शाहूजी महाराज को बहुत छोटी उम्र प्राप्त हुई. महज 48 साल की उम्र में 6 मई 1922 को उनका देहांत हो गया. लेकिन इसके पहले ही उन्होंने डॉ अंबेडकर को दलितों पिछड़ों के मुक्तिदाता के रूप में देख लिया था. आंबेडकर की प्रतिभा को देखकर शाहूजी महाराज ने उन्हें अपनी अधूरी शिक्षा पूरी करने के लिए विदेश भेजा. बाबा साहब के पहले अखबार 'मूकनायक' के प्रकाशन के लिए शाहूजी महाराज ने आर्थिक सहयोग दिया. 1920 में दलितों की एक विशाल सभा को संबोधित करते हुए शाहूजी महाराज ने कहा था 'मुझे लगता है आंबेडकर के रूप में तुम्हें तुम्हारा मुक्तिदाता मिल गया है. मुझे उम्मीद है वह तुम्हारी गुलामी की बेड़ियाँ काट डालेंगे.' खुद बाबा साहब आंबेडकर शाहूजी महाराज के दलितों-पिछड़ों और स्त्रियों के लिए किए गए कामों से बहुत प्रभावित थे. आंबेडकर ने कहा कि शाहूजी महाराज 'सामाजिक लोकतंत्र का आधार स्तंभ' हैं. हमें उनका जन्मदिन त्योहार की तरह मनाना चाहिए.'

(डॉ. रविकान्त लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

Topics mentioned in this article