कपोल कल्पनाएं लिखने वाले अक्सर समीकरण बनाते रहते हैं. इन कल्पनाओं में अक्सर वही हो रहा होता है. ऐसा होता तो कैसा होता !! ऐसा होता तो वैसा होता. चुनाव और राजनीति में अक्सर जो लोग गणित लेकर बैठे होते हैं वो 2 और 2 चार की बात कर रहे होते हैं. चुनावी पंडितों के भी गणित इसी से आते हैं, लेकिन जमीन की राजनीति में कई बार बात कुछ और होती है.
विपक्ष के पास जो तर्क हैं, उनमें ये शामिल है कि सभी विपक्ष अगर एक हो जाए तो बीजेपी को चुनाव हरा सकता है. गणित के हिसाब से बात सही लगेगी, लेकिन राजनीति का रसायन शास्त्र क्या होता है ये हाल ही में इंडिया ब्लॉक की बातों से समझ आ गया है. ममता ने बिना कांग्रेस से बात किए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का नाम आगे कर दिया. हतप्रभ तो कांग्रेस भी हुई, लेकिन सांप सूंघा बिहार सीएम नीतीश बाबू को भी. एक ही झटके में ममता ने नीतीश को रेस से बाहर कर दिया. नीतीश कुमार और ममता का साथ काम करने का पुराना इतिहास है, लेकिन यहां तो इंडिया ब्लॉक में खेल एक रसायन को दूसरे रसायन से तोड़ने का चल रहा है. खरगे को पसंद करने वाले सोच सकते हैं कि ममता की बात में दम है, लेकिन कांग्रेस के रणनीतिकारों को लगता है कि अगर कोई ऐलान होना भी है तो वो ममता के मार्फत क्यों हो? और अगर किसी को चेहरा बनाना है तो ये फैसला खुद गांधी परिवार के लोग लें.
इंडिया ब्लॉक में दक्षिण की पार्टियों का रसायन कैसे कांग्रेस के संग चलेगा ये तो चुनावी गणित के तय होने पर पता लगेगा, क्योंकि वहां तो जिसके संग लोकसभा में मिलकर चुनाव लड़ना है उसके खिलाफ विधानसभा चुनाव में भाषण देना पड़ सकता है. इंडिया ब्लॉक के रसायन या केमिस्ट्री में वैसे ही पेंच हैं, जैसे आपको एक वक्त में जम्मू-कश्मीर में बीजेपी और पीडीपी के रिश्ते में दिखे थे. ऊपरी तौर पर आपको लग सकता है कि चुनाव के लिए कुछ भी चलता है, लेकिन ऐसा होता नहीं है. उन तमाम पार्टी कार्यकर्ताओं की केमिस्ट्री के बारे में कोई नहीं सोच रहा होता, जो जमीनी स्तर पर एक-दूसरे के खिलाफ अरसे से लड़ रहे होते हैं. बीजेपी भी ये अनुभव कर चुकी है. कांग्रेस के भी इसको लेकर अपने अनुभव हैं. कैडर वाली पार्टी या किसी एक थीम पर चल रहे क्षेत्रीय दल को इसे लेकर बड़ी मुश्किल होती है. दलों के बीच केमिस्ट्री आधी रात को नहीं बन सकती.
महाराष्ट्र में बिना केमिस्ट्री वाले कई प्रयोग हो चुके हैं, लेकिन इन सबसे सिर्फ फौरी नतीजे आ सकते हैं. किसी राजनीतिक दल को लंबे वक्त का फायदा नहीं होगा. शिवसेना के एक हिस्से ने कांग्रेस के संग जाने का फैसला लिया था और सरकार बनाई, लेकिन इसके लिए खुद के कैडर में कोई रायशुमारी या फिर मन बनाने का काम नहीं हुआ था. बिना तापमान लिए रसायन के प्रयोग राजनीति में सारे गणित भी बिगाड़ सकते हैं. एनसीपी के एक धड़े के संग बीजेपी का सरकार बनाना फौरी तौर पर सही लग सकता है, लेकिन इस सब में उस कार्यकर्ता की कोई नहीं सोच रहा होता जो अपनी पसंद के दल के लिए घर के अंदर और बाहर बहस करता है. जब कार्यकर्ता को लगता है कि अब उसके पास मुंह दिखाने या बहस में अपना तर्क रखने की ताकत खत्म हो गई है. तब चुनाव के सारे गणितीय समीकरण धरे रह जाते हैं और केमिस्ट्री की चलने लगती है. यही केमिस्ट्री को समझने की गलती है, जो यूपी में समाजवादी और कांग्रेस के गठबंधन को कुछ नहीं देती. तब सारे चुनावी पंडित कह रहे थे कि एक-दूसरे को जिताने में दो और दो चार हो जाएंगे. इंडिया ब्लॉक जो भी गठबंधन बनाए उसको बस इस गलतफहमी को छोड़ना होगा कि वोट यूपीआई पेमेंट नहीं है, जो एक ही झटके में यहां से वहां हो जाते हों.
(अभिषेक शर्मा एनडीटीवी इंडिया के मुंबई के संपादक रहे हैं. वे आपातकाल के बाद की राजनीतिक लामबंदी पर लगातार लेखन करते रहे हैं. )
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.