पंजाब में महीनों से चले आ रहे नवजोत सिंह सिद्धू बनाम कैप्टन अमरिंदर सिंह के झगड़े में लगता है फिलहाल युद्ध विराम आ गया है. वजह ये है कि शुक्रवार को पंजाब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में सिद्धू अपना कार्यभार संभालने वाले हैं और उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को एक चिट्ठी लिख कर इस समारोह में आने का अनुरोध किया है. सबसे मजेदार बात है कि इस चिट्ठी में 56 विधायकों के दस्खत भी हैं. यानी सिद्धू ने भी दिखाने की कोशिश की है कि उनके पास 77 में से 56 विधायकों का सर्मथन तो है ही, सबसे अच्छी बात है कि सिद्धू की इस चिट्ठी के बाद कैप्टन के मीडिया सलाहकार ने ट्वीट कर यह जानकारी दी है. कैप्टन साहब ने भी 10 बजे सभी विधायकों सांसदों और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को चाय पर बुलाया है और वहीं से वो इन सभी नेताओं के साथ 11 बजे सिद्धू के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के समारोह में शामिल होंगे.
मतलब कैप्टन, जो अभी तक इस बात पर अड़े हुए थे कि जब तक सिद्धू अपने ट्वीट के लिए माफी नहीं मागेगें तब तक वो सिद्धू से मुलाकात नहीं करेगें. यानी कैप्टन ने हालात को देखते हुए अपनी जिद छोड दी है. शायद चिट्ठी में 56 विधायकों के दस्खत ने कैप्टन पर दबाब का काम किया है. बात माफी वाली कहानी से आगे निकल गई है. कैप्टन को भी यह अंदाजा है कि उम्र के इस पड़ाव पर वो कितना और लड़ें, इस उम्र में नई पार्टी बनाना या किसी और पार्टी का दामन थामना उनके लिए अच्छा नहीं होगा.
हालांकि कई जानकार यह भी मानते हैं कि कैप्टन अगले साल होने वाले चुनाव के नतीजों तक इंतजार करेगें. तब ही यह तय होगा कि यदि उनके कैप्टनशिप में जो चुनाव लड़ा गया, जीतने के बाद भी वही कैप्टन रहते हैं या नहीं. मगर फिलहाल के लिए अब ये कहा जा सकता है कि कैप्टन और सिद्धू में सुलह या युद्ध विराम हो गया है मगर सबसे बड़ा सवाल है कितने दिनों तक. क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते सिद्धू राज्य भर में ढेरों नियुक्तियां करेगें. जाहिर है अभी तक इन पदों पर कैप्टन के लोग थे. हालांकि कैप्टन ने 4 कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में अपने लोगों को बैठा दिया है मगर असल में संगठन का मुखिया प्रदेश अध्यक्ष ही होता है और चुनाव के वक्त वही टिकट का सिंबल बांटता है.
सिद्धू के लिए ये परीक्षा की घड़ी है. उनको साबित करना होगा कि उनको चुन कर गांधी परिवार ने गलत नहीं किया है क्योंकि अध्यक्ष के रूप में उनके चुनाव के पीछे प्रियंका गांधी का हाथ बताया जाता है. क्योंकि सिद्धू जब भी दिल्ली आए प्रियंका और राहुल से जरूर मिले, जबकि कैप्टन जब भी दिल्ली आए सोनिया गांधी से मिले और ये जरूर कहा कि जो भी फैसला सोनिया गांधी करेंगी वो उसे मानेंगें.
आप को बता दूं एक वक्त में कैप्टन और राजीव गांधी दून स्कूल में साथ पढ़ते थे. मगर एक दशक तक बीजेपी में रहने वाले सिद्धू को पंजाब में अध्यक्ष बना कर गांधी परिवार ने एक जुआ ही खेला है. सिद्धू, जिनके बारे में कहा जाता है कि वो पहले बोलते हैं बाद में सोचते हैं. उनको बोलने पर कंट्रोल नहीं है, बड़बोले हैं. एक जगह टिक कर नहीं रहते और ना जाने क्या क्या. मगर सिद्धू की इमानदारी पर किसी को संदेह नहीं है और ना ही उनकी लोकप्रियता पर. सिद्धू पूरे देश में कांग्रेस के स्टार प्रचारक हैं. हर चुनाव में उनकी भारी डिमांड रहती है और ना ही उनको ले कर पंजाब में कोई सिख या हिंदू जैसे वाली बात है. दोनों समुदाय उन्हें पसंद करते हैं मगर एक संजीदा नेता के रूप में सिद्धू को अपने आप को साबित करना बाकी है.
कई जानकार ये मानते रहे हैं कि अंत भला तो सब भला मगर कई यह भी मान रहे हैं कि यह तो महज शुरूआत है. आगे-आगे देखिए होता क्या है. यानी यह तो महज युद्धविराम है मगर जंग जारी रहेगी क्योंकि यह पंजाब है और यहां की कौम लड़ाका है, जंग करने से घबराती नहीं और ना ही बाज आती है.
मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में मैनेजिंग एडिटर हैं...
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