This Article is From Oct 26, 2022

क्या हम भारतीय लोकतंत्र में मना सकते हैं ऐसा जश्न?

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Ravish Kumar

ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री ऋषि सुनक को लेकर भारत में खासा उत्साह है. इसे ब्रिटिश उपनिवेशवाद का बदला भी कहा जा रहा है, तो इतिहास का न्याय, लेकिन हम जश्न किस बात का मना रहे हैं. इस बात का कि भारतीय मूल के ऋषि सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने हैं या इस बात का ब्रिटेन का लोकतंत्र कितना परिपक्व है कि वहां कोई भी व्यक्ति किस मूल का है, किस देश का है, उसके दादा किस देश के हैं, इन सब की परवाह किए बगैर वह उस देश का प्रधानमंत्री बन सकता है. तो क्या ऋषि सुनक के ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने से खुश होने वाले लोग ब्रिटेन के लोकतंत्र की खूबियों का जश्न मना रहे हैं? क्या वे यह भी कहना चाहते हैं कि लोकतंत्र ब्रिटेन के जैसा होना चाहिए, जहां कोई भी कहीं से आकर प्रधानमंत्री बन जाए? क्या हम ऐसा ही जश्न भारत के लोकतंत्र को लेकर मना सकते है? मनाने की ख्वाहिश रखते हैं?

जनसंख्या की एक समग्र नीति बने, वो सब पर समान रूप से लागू हो, खासकर उस देश में जहां आए दिन एक धर्म विशेष की आबादी के बढ़ जाने को लेकर भय पैदा किया जाता है. जनसंख्या नियंत्रण के कानून के नाम पर असुरक्षा पैदा की जाती है. गलत आंकड़ों का सहारा लेकर बताया जाता है कि जल्दी ही बहुसंख्यक अल्पसंख्यक हो जाएगा और अल्पसंख्यक बहुसंख्यक. इसलिए देश और धर्म खतरे में है. बताइए, उस देश में जश्न मान रहा है कि खुद को हिंदू कहने वाले भारतीय मूल के ऋषि सुनक ईसाई बहुल ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बन रहे हैं. तो क्या भारत की राजनीति से ये सवाल पूछा जा सकता है कि क्या ऐसी उदारता की उम्मीद भारत से की जा सकती है? बीजेपी के नेता इसे कालचक्र के घूम जाने की व्याख्या के रूप में पेश करते हैं. क्या वही नेता इसका जवाब दे सकते हैं कि उनकी पार्टी कई चुनावों में किसी मुस्लिम को टिकट तक नहीं देती है? क्या वो किसी मुसलमान को प्रधानमंत्री बनाने के विचार का समर्थन कर सकती है? वह तो विधायक और सांसद बनाने के नाम पर पीछे हट जाती है.

कांग्रेस नेता शशि थरूर ने अपने ट्वीट में पूछा है कि क्या भारत में ऐसा हो सकता है कि विदेशी मूल का कोई व्यक्ति प्रधानमंत्री बन जाए? उनका इशारा साफ है कि दो हजार चार में सोनिया गांधी का नाम लेकर विदेशी, विधवा और विदेशी मूल की महिला कहकर कितना विरोध किया गया कि उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बनने देंगे और सिर मुडवा लेंगे, मेरा मन जिस चीज को स्वीकार नहीं करता, उसका क्या करूं? मैं घर में नहीं बैठ सकती. ये कह कर के मेरा मन स्वीकार नहीं करता. लोग कहेंगे संसद में तो बैठी है, उनको मैडम प्राइम मिनिस्टर कह रही है और कहती है स्वीकार नहीं करता, तो जो संसद की सुविधाएं हैं वो छोड़ दूंगी. सुषमा स्वराज का बयान ही नहीं उस समय के कई नेताओं के बयान, सोनिया गांधी का विदेशी होना, इतना महत्वपूर्ण था. इस देश में अंग्रेजों के रूल के खिलाफ बहुत बड़ी लड़ाई हुई थी, वो राजनैतिक दल उनका सपोर्ट क्यों कर रहे हैं? तब वो देश और उस देश की एक पार्टी बीजेपी कैसे जश्न मना सकती है कि भारतीय मूल के ऋषि सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने.

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कहीं ऐसा तो नहीं कि जाने अनजाने में बीजेपी के नेता टोरी पार्टी की तारीफ कर रहे हैं कि उस पार्टी के किसी नेता ने एक हिंदू के प्रधानमंत्री बनने पर सिर मुंडवाने की धमकी नहीं दी है. ब्रिटेन को कितना भरोसा है? अपने सांसद और उसकी राजनीति पर, ब्रिटेन एक इसाई बहुल देश है. वहां की संसद में ऋषि सुनक गीता पढ़कर शपथ लेते हैं. ऐसा करने वाले ब्रिटेन के पहले सांसद बनते हैं. उस देश में इसकी सराहना होती है. ऋषि खुद को हिंदू कहते हैं. उनकी पार्टी का कोई सांसद इसे लेकर असुरक्षित महसूस नहीं करता है. उन्हें इस पद पर पहुंचने से रोकने के लिए कोई नए किस्म का नागरिकता कानून लाने की बात नहीं कर रहा है कि जो प्रवासी होगा वो होटल तो खोल सकेगा, मगर देश का सर्वोच्च पद हासिल नहीं कर सकेगा.

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ब्रिटेन में भारतीय मूल बनाम ब्रिटिश मूल का झगड़ा नहीं है. मगर भारत में भारतीय मूल का जश्न मनाया जा रहा है. हम जितना ज्यादा ऋषि सुनक के भारतीय होने पर जोर देंगे, उतना ही ज्यादा भारत की राजनीति के दोहरेपन से पर्दा उठाते जाएंगे. एक सीमा तक ही हम इसकी खुशी मना सकते हैं. ऋषि सुनक ने कोई विश्वविजय अभियान के तहत यह पद हासिल नहीं किया है. देश दोनों ही है, वो ब्रिटेन भी और भारत भी आज ब्रिटेन के अखबारों में उनके हिंदू होने भारतीय मूल के होने का जिक्र है. मगर कहीं भी इस बात का शोर नहीं है कि जब ब्रिटेन आर्थिक तबाही से गुजर रहा है, युद्ध की आशंका से घिरा हुआ है, तब ऐसा व्यक्ति क्यों प्रधानमंत्री बन गया जो ब्रिटिश मूल का नहीं है. इससे ब्रिटेन की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी.

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आखिर कितने देश ऋषि सुनक की पृष्ठभूमि का हिस्सा ले सकते है. उसका श्रेय ले रहे ये पाकिस्तान का जो इसकी हेडलाइन है. पाकिस्तानी मूल का हिंदू ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनने जा रहा है. लिखता है कि ऋषि सुनक के दादा दादी, पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के शहर गुंजरावाला की पैदाइश है. 1935 में उनके दादा रामदास उनक गुंजरावाला छोड़ कर चले गए थे. उनकी पत्नी सुहागरानी सुनक गुंजरावाला से दिल्ली आ गई और फिर 1937 में अपनी सास के साथ कीनिया चली गई. रामदास के बेटे यशवीर साठ के दशक में ब्रिटेन आ गए.

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पाकिस्तान का एक और अखबार डॉन की हेडलाइन है जो सबसे अलग है. डॉन लिखता है कि 1960 में ऋषि के दादा-दादी अफ्रीका से ब्रिटेन आ गए. दूसरे विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन के पुनर्निर्माण में हिस्सा लेने के लिए बहुत सारे लोग ब्रिटेन के उपनिवेशों से ब्रिटेन आ गए. भारत की प्रमुख समाचार एजेंसी पीटीआई की हेडलाइन है कि सुनक पहले गैर खैर हाइट प्रधानमंत्री बन रहे हैं. उनके प्रधानमंत्री बनने पर भारत और पाकिस्तान दोनों को गर्व है. पीटीआई ने लिखा है कि ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री भारतीय भी है और पाकिस्तानी भी. भारत ऍफ ने लिखा है कि सुनक की वंशावली पर भारत और पाकिस्तान दोनों ही दावा कर रहे हैं पाकिस्तान का हिंदू प्रधानमंत्री पर जोर दे रहा है तो सवाल उससे भी है कि उसके अपने देश में कोई हिंदू प्रधानमंत्री क्यों नहीं बन सका. आज उसे भी सुनक के हिंदू होने का श्रेय लेना पड़ रहा है.

इन दोनों देशों ने हिंदू मुस्लिम डीबेट में कितना वक्त पानी की तरह बहा दिया. ऋषि सुनक की पहचान के साथ भारत के विभाजन का दुखद अतीत जुड़ा हुआ है. उनके दादा दादी गुंजरावाला शहर से थे और उन्नीस सौ सैंतालीस के विभाजन से बारह साल पहले उस भारत को छोड़ गए जो तब नहीं बना था. कितनी अच्छी बात है कि उनके मूल को भारतीय बताएं, बताने के लिए पाकिस्तान के उस शहर को भारतीय के रूप में देखा जा रहा है. भारत का हिस्सा बताया जा रहा है. आज गुंजरावाला पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में है. जाहिर है वहां भी जश्न मन रहा होगा और इसी के साथ एक टीस भी उठती होगी. अगर उठती होगी तो, लेकिन विभाजन के बाद हजारों लोग गुंजरावाला शहर से भारत आने वाले जरूर किसी और एहसास के साथ इस घटना को देख रहे होंगे. दिवंगत पत्रकार विनोद दुआ भी इसी इलाके से आते थे.

ऋषि सुनक पर पाकिस्तान से लेकर भारत के अलावा कीनिया भी दावा कर रहा है. अब आप इस ट्वीट को देखिए. केन्या के उद्योग मंत्री का है, लिखते हैं कि सुनक भारतीय मूल के हैं, केन्या के विरासत का हिस्सा हैं, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं. मातृभूमि से आपको बधाई भेजी जा रही है. केन्या मानता है कि सुनक कि मातृभूमि केन्या है. भारत उनकी मात भूमि भारत मानता है. ऋषि की शादी भारतीय परिवार से हुई और बेंगलुरु शहर में हुई. उनके पास अमेरिका का ग्रीनकार्ड था, जिसके जरिए वे वहां के स्थायी निवासी बन गए थे. ब्रिटेन में पैदा होकर भी अमेरिका में बसने का ग्रीन कार्ड लेते हैं तो ऋषि भूगोल और देश को किस तरह से देखते होंगे, इसकी कल्पना कुछ आप कर सकते हैं. इसलिए ऋषि सुनक को उनके कुल खानदान और वंशावली उसे देखना एक सीमा तक ही ठीक है । इस से हम बहुत कुछ नहीं जान पाते हैं.

जानने के लिए समझना होगा कि ब्रिटेन के साउथंप्टन शहर में पैदा हुए ऋषि अमेरिका का ग्रीनकार्ड क्यों लेते हैं और राजनीति में आने के बाद भी बहुत साल तक नहीं बताते हैं कि उनके पास ये कार्ड छह साल से सांसद रहे. तब भी ग्रीन कार्ड सरेंडर नहीं किया और उन्नीस महीने तक वित्त मंत्री रहे. तब भी नहीं, जब अप्रैल महीने में इस साल विवाद उठा, तब जाकर सफाई आई के वित्त मंत्री के रूप में जब पहली बार अमेरिका गए तब इसके सरेंडर करने के बारे में पूछा, नियमों के बारे में पता किया और सरेंडर कर दिया.

कमाल है, आरोप लगा कि ग्रीन कार्ड इसलिए रख रहे हैं ताकि इससे ब्रिटेन में ट्रॉफी छूट हासिल कर सके. ये गेम समझिए ऋषि की पत्नी अक्षता के बारे में गार्डियन अखबार में खबर छपी है कि उन्होंने नॉन डोमिसाइल सर्टिफिकेट इसलिए रखा ताकि टैक्स बचा सके. बीस मिलियन पाउंड बचाएं या एक तरह की नैतिक चोरी है. भारतीय रुपए में यह पैसा एक सौ सत्तासी करोड़ रुपए के करीब बैठता है. नॉन डोमिसाइल स्टेट इससे जो आप विदेशों में कमाते हैं उस पर टैक्स नहीं लगता है. अक्षता को भारतीय कंपनी से डिविडेंड के रूप में काफी पैसे मिलते हैं. तब लेबर पार्टी ने आरोप लगाया कि अक्षता मूर्ति टैक्स बचाने के तरीके खोज रही हैं, जबकि उनके पति जनता के टैक्स पर लड़ रहे हैं. जनता पर टैक्स लगाने वाले खुद टैक्स चुराने या बचाने के सौ रास्ते खोज लेते हैं.

बेहतर है आप इस पर फोकस करें, ना कि वे किस मूल के हैं. आज की दुनिया में कोई नेता किस नेटवर्क से आ रहा है. उस नेटवर्क का आर्थिक प्लान क्या है. अमीरों के नेटवर्क से आने वाले इस नेता का जश्न भारत में उस पार्टी के नेता मना रहे हैं जो चाय वाला को प्रधानमंत्री बनाने का श्रेय लेती है. यह भी नहीं देखते कि ऋषि सुनक की आर्थिक सोच क्या है? सुनक के बारे में पढेंगे तो पता चलेगा कि वे अमीरों के उस नेटवर्क के क्लब से आते हैं जो केवल अमीरों को और अमीर बनाने के सपने देखता है और कदम उठाता है. जिसके बहुत से तार वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम से जुडते हैं. वहां से तय होने वाली भाषा ही शब्दावली ही दुनिया में अलग-अलग नेता अलग -अलग नाम से बोलते हैं.

सुनक अमीरों के ऐसे नॅान से आते हैं जिसके सहारे किसी बड़ी यूनिवर्सिटी में पहुंचना या किसी पद पर पहुंचना कोई बड़ी बात नहीं. चैनल फोर से लेकर गाँधी इन तक में सुनक के वित्तीय संस्कार के बारे में कई खबरें छपी हैं, जो हिंदी मीडियम में नहीं बताई जा रही है. जिन स्कूलों और कॉलेज में सुनक की पढ़ाई हुई वे ब्रिटेन के सबसे महंगे प्राइवेट स्कूल और कॉलेज हैं, जिसकी फीस लाखों में होती है. जो सूपर अमीर होता है उसी के बच्चे वहां पढ़ते हैं. वैसे ब्रिटेन में ज्यादातर लोगों के बच्चे सरकारी स्कूलों में ही पढते हैं या कॉलेज चौदहवीं सदी से चल रहे हैं जिसकी केवल फीस ही भारतीय रुपए में तैंतालीस लाख रुपए सालाना होती है. इस स्कूल से निकलने वाले छात्रों का एक नेटवर्क होता है जिसके सहारे किसी पद पर पहुंचना कोई बड़ी बात नहीं.

ब्रिटेन के एक प्रधानमंत्री और पांच-पांच वित्त मंत्री यहां के छात्र रहे हैं । उस पर से पढाई पूरी कर लंदन में घर खरीद लेते हैं और अमरीका गोल्ड की करने चले जाते हैं. फिर वहां की एक और अमीर यूनिवर्सिटी स्टॉपर से एमबीए की पढाई करते हैं. लबालब दौलत के बीच पले बढे सुनक से गरीबी और आर्थिक तंगी की मार झेल रही ब्रिटेन की जनता उम्मीद करती है या उसके ऐसे फैसले से सहमी हुई है, इसका एक उदाहरण देता हूं. सुनक ने वित्त मंत्री रहते हुए कोरोना के समय दी जाने वाली राहत में कटौती कर दी. प्रति सप्ताह बीस पाउंड की कटौती कर देने से दो लाख अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए. उनकी ही पार्टी के सांसदों ने खूब आलोचना की । विरोध किया.

हम भारतीय सुनक की भारतीय मूल की पहचान पर ही अटके हैं. जबकि ब्रिटेन के अखबारों में इनकी दौलत के किस्से भरे हुए हैं. इस किस्से में अपने देश में टैक्स बचाने के लिए अनाम गुमनाम, छोटे देशों में पैसा रखने के किस्से भी हैं. इन किस्सों को पढ़कर सुनक की वित्तीय नैतिकता को लेकर सवाल होने चाहिए. उनकी किस तरह की छवि बनती है, देखा जाना चाहिए. इतनी दौलत होने के बाद भी टैक्स बचाने के लिए दूसरे देशों में निवेश किया जाए और ना देने का जुगाड़ निकाला जाए. इससे पता चलता है कि सुनक की निष्ठा किसी देश से भी ज्यादा पैसे के प्रति है. ब्रिटिश मीडिया में बताया जा रहा है कि सुनक की अपनी संपत्ति करीब सात हजार करोड़ रुपए भारतीय रुपए में उससे भी अधिक है. पत्नी के पास भी बेशुमार दौलत है. 

पहली बार कोई इतना अमीर ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बना है. वो भी तब जब ब्रिटेन की जनता दो वक्त के भोजन के लिए संघर्ष कर रही है. यह भी देखिए कि अमीरी केवल प्रतिभा और खुले कारोबार से आई है या टॅाम में निवेश कर टैक्स बचाने से आई है. ब्रिटेन में ब्याज दरों के बढ़ने का दौर जारी है. इस कारण जिन लोगों ने लोन पर घर लिए हैं उनके लिए घर महंगा होता जा रहा है. ऊपर से बिजली बिल और महंगाई की मार. ब्रिटेन में महंगाई ऐतिहासिक स्तर पर है. बिजली और गैस के दाम एक सौ चालीस प्रतिशत तक बढ़े हैं. लोगों की कमाई का बड़ा हिस्सा केवल बिजली बिल भरने में जा रहा है. इसका दबाव इतना ज्यादा है कि हजारों और लाखों की संख्या में दुकानें, होटल और फैक्ट्रियां बंद हो रही हैं. वहीं के अखबारों में ये सब छपा है.

लोग जानना चाहते है कि फैमिली पर जो सब्सिडी दी गई है उसे जारी रखेंगे या बंद कर देंगे. स्वास्थ्य का खर्चा बढ़ता जा रहा है तो उन्हीं का नारा था कि नेशनल इंश्योरेंस में सरकारी हिस्सेदारी और बढाएंगे. अब इस वादे से भी पीछे हट रहे हैं, क्योंकि सरकार के पास पैसे नहीं है. यह भी सवाल है कि क्या आम जनता को राहत देंगे या आम जनता की सामाजिक सुरक्षा कम कर देंगे और कॉरपोरेट पर टैक्स नहीं बढाएंगे. मतलब है कि यह प्रधानमंत्री अमीरों का होगा या आम लोगों का. ब्रिटेन का यह वो समय है जब वहां की जनता की संपत्ति हवा होती जा रही है और एक ऐसा व्यक्ति प्रधानमंत्री बने जिस पर टैक्स बचाने और चोरी के इल्जाम हैं और वो सूपर अमीर भी है. 

ब्रिटेन में आर्थिक असमानता बढती जा रही है. वहां नीचे की दस प्रतिशत आबादी के पास जितनी संपत्ति है, उसका दो सौ तीस गुना छोटी के एक प्रतिशत अमीरों के पास है. इसे अलग से नोट कीजिए. क्या सुना ब्रिटेन को इस दौर से निकाल पाएंगे? दो हजार चौबीस में आम चुनाव होने उनके पास डेढ दो साल का ही है. उनकी नाव मंझधार में है. अगर जनता को राहत देने के लिए खर्च करते हैं, बढाते हैं. सरकारी खर्च तो पैसे के लिए अमीरों पर टैक्स बढाने होंगे. अगर ऐसा किया तो उनकी कुर्सी चली जा सकती है. तब फिर महंगाई और बडे ब्याजदरों से जनता को कैसे राहत देंगे? इस संकट से ब्रिटेन को निकाल ले गए तो सुना इतिहास में अमर भी हो सकते हैं. आप विरोधी दल लेबर पार्टी की सांसद नाडिया हाइट होम के ट्वीट को देख सकते हैं. नाडिया ने ट्वीट कर दिया कि इसमें ऐसी कोई खास बात नहीं कि एशियाई मूल को प्रतिनिधित्व मिला है, क्योंकि सुनक घोर अमीरवादी हैं या केवल अमीरों के साथ हैं. आप इन्हें ब्लॅक, वाइट या एशिन की नजर से नहीं देख सकते हैं. बाद में नाडिया ने ट्वीट डिलीट कर दिया.

मगर एक और लेबर सांसद ने सुनक को फ्रॉड कहा है. कोरोना के समय जब मार्च दो हजार बीस में ब्रिटेन में तालाबंदी लगी तब सुनक ने ऐलान किया कि किसी को नौकरी से नहीं निकाला जाएगा. उनका बड़ा हिस्सा सरकार देगी, तब उनकी काफी तारीफ हुई. इसी के साथ उन्होंने एक और योजना का ऐलान किया. कोरोना वायरस बाउंस लोन स्कीम. इसके तहत छोटे उद्योग धंधे को लोन दिया जाना था ताकि वे खुद को बंद होने से बचा सकें. भारत में भी ऐसे स्कीम का ऐलान हुआ था, बल्कि आगे का डिटेल जानकर आप अंदाजा कर सकते हैं कि भारत में क्या हुआ होगा. किसी बैंक वाले से ऑफ रिकॉर्ड पूछ सकते हैं. इनकी ये खबर बताती है कि जिन लोगों ने लोन लिया उसे बिजनेस में नहीं लगाया. ऐसे लोगों ने भी लोन लिया जिनका बिजनिस पहले से बंद हो गया था और ऐसे लोगों ने भी लिया जो बिजनिस नहीं कर रहे थे. ब्रिटेन की सरकार ने गारंटी दे दी कि अगर लोन नहीं लौटेगा तो सरकार अपने राजकोष से पैसा देगी. बस धड़ाधड़ लोन बांटने लगे और लोन लेने वाले इस पैसे से महंगी कारें, महंगी गाड़ियां और घर खरीदने लग गए.

जनता का पैसा मुफ्त की रेवड़ी की तरह बंटने लग गया, इस स्कीम के तहत सैंतालीस अरब पाउंड का लोन बता मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सत्ताईस अरब पाउंड का घोटाला हो गया. घोटाले का स्केल इतना बडा था कि योजना के लॉन्च होने के एक साल के भीतर एक खुफिया रिपोर्ट आ गई, जिसकी जांच करने की क्षमता वहां की सरकारी एजेंसी के पास नहीं थी. राजकोष के मंत्री लॉर्ड इग्नू ने इस्तीफा दे दिया कि फ्रॉड करने वालों के साथ सख्ती नहीं बरती जा रही है.