बिहार की राजनीति में तस्वीर एक झटके में बदल गई है. कल तक जिस स्थिति से नीतीश कुमार जूझ रहे थे, आज वही चुनौती तेजस्वी यादव के सामने खड़ी है. तेजस्वी के लिए यह सिर्फ चुनावी हार नहीं, बल्कि पार्टी, परिवार और अपनी राजनीतिक साख बचाने की जद्दोजहद होगी. 2020 के चुनाव के बाद जब विश्लेषकों ने जदयू के अंत की भविष्यवाणी की थी, तब नीतीश कुमार को सत्ता में बने रहने के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ी. प्रशांत किशोर ने खुलेआम कहा था कि यह नीतीश का आखिरी चुनाव होगा और जदयू 25 सीटों से आगे नहीं बढ़ पाएगी. लेकिन लोकसभा में मिली सफलता और अब विधानसभा में बंपर जीत ने इन सभी अटकलों को ध्वस्त कर दिया है. नीतीश एक बार फिर बिहार की राजनीति के सबसे मजबूत नेता के रूप में उभरे हैं.
अब तेजस्वी यादव के सामने वही संकट है जो कभी नीतीश के सामने था. परिवार के भीतर बगावत, पार्टी के विधायकों को साधने की चुनौती, कांग्रेस के साथ रिश्तों में खटास और यादव-मुस्लिम वोट बैंक को बचाने की जद्दोजहद ये सभी सवाल तेजस्वी की राजनीति को घेर रहे हैं. एआईएमआईएम और पप्पू यादव की बढ़ती सक्रियता ने समीकरण और जटिल कर दिए हैं. विधानसभा में हार और लोकसभा में लगातार खराब प्रदर्शन के बाद राजद का भविष्य किस दिशा में जाएगा, यह अब तेजस्वी की रणनीति पर निर्भर करेगा. तेजस्वी यादव के सामने 3P का संकट है, तेजस्वी यादव के सामने परिवार, पॉलिटिक्स और पार्टी को बचाने की संकट सामने आ गई है.
कल तक जिस हालत से नीतीश कुमार जूझ रहे थे तेजस्वी यादव के सामने अब वैसी ही चुनौती है.
परिवार के भीतर की लड़ाई
राजद की कमान इस चुनाव में पूरी तरह से तेजस्वी यादव के हाथ में थी. तेजप्रताप यादव बागी बनकर चुनावी मैदान में थे. लालू यादव और राबड़ी देवी अब राजनीति में बहुत अधिक सक्रिय नहीं रही हैं. वहीं बड़ी बहन और सांसद मीसा भारती भी बहुत अधिक सक्रिय नहीं रही. लोकसभा चुनाव में सारण सीट से चुनाव लड़ने वाली रोहिणी आचार्य ने भी कई मौकों पर अपनी नाराजगी दिखाई है. ऐसे में परिवार के भीतर की चुनौतियों से निपटना भी तेजस्वी के लिए बड़ी चुनौती होगी.
राजद को बचाने की लड़ाई
तेजस्वी यादव के सामने राजद के जीते हुए विधायकों को साधकर अपने साथ रखने की बड़ी चुनौती होगी. लंबे समय से सत्ता से बाहर रहने के कारण उन्हें साथ रखने में तेजस्वी के सामने मुश्किलें आने वाली है.
कांग्रेस के साथ कैसे चलेगी गठबंधन?
कांग्रेस लंबे समय से बिहार में अपने आपको मजबूत करने का प्रयास करती रही है लेकिन राजद के साथ गठबंधन धर्म के कारण उसे बहुत सीटें नहीं मिलती रही है. इस चुनाव में मिली हार के बाद कांग्रेस और राजद एक ही प्लेटफॉर्म पर खड़े हैं . ऐसे में अब यह देखना रोचक होगा कि तेजस्वी यादव किस तरह से अपनी राजनीति को बचाते हुए भविष्य तय करेंगे.
यादव वोट बैंक को कैसे बचाएंगे तेजस्वी?
बिहार में राजद की सबसे बड़ी ताकत यादव वोट रही है. लेकिन पप्पू यादव हमेशा से अपने आपको लालू यादव के बाद यादवों का सबसे बड़ा नेता होने का दावा करते रहे हैं. इस चुनाव में तेजस्वी की हार के बाद पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव एक बार फिर तेजस्वी को इस मुद्दे पर चुनौती देंगे. कांग्रेस हाईकमान का साथ भी पप्पू यादव को मिलता रहा है.
मुस्लिम वोट बैंक को कैसे साध पाएंगे तेजस्वी?
बिहार में 3 दशक तक राजद ने मुस्लिम वोट को साधकर राजनीति की थी लेकिन इस चुनाव में भी एआईएमआईएम ने शानदार प्रदर्शन कर मुस्लिम वोट में मजबूत दावेदारी पेश की है. कांग्रेस भी मुस्लिम वोट को लेकर दावा करती रही है. राजद के पास मजबूत मुस्लिम नेताओं की भी अब कमी दिखेगी ऐसे में तेजस्वी के लिए अपने एमवाई समीकरण को बचाने की बड़ी चुनौती होगी.
लोकसभा चुनाव में पहले से ही बेअसर रही है राजद
बिहार में पिछले 4 लोकसभा चुनावों में राजद का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है. पार्टी को कभी भी 10 सीट पर भी जीत नहीं मिली है. ऐसे में अब विधानसभा में भी हार के बाद अब राष्ट्रीय स्तर पर भी राजद के सामने चुनौती बेहद गंभीर हो गई है. राष्ट्रीय स्तर पर बनने वाले किसी भी गठबंधन में अब राजद की कितनी पूछ होगी वो एक बड़ा सवाल है.














