आजादी के बाद कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक पहली बार 24 सितंबर को बिहार में आयोजित की गई. यह बैठक आगामी बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर काफी महत्वपूर्ण थी. कांग्रेस बिहार में अपने को पुनर्जीवित करने की रणनीति पर काम कर रही है. इसी रणनीति के तहत बिहार में इतने साल बाद कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक का आयोजन किया गया. कांग्रेस के आत्मविश्वास का अंदाजा पार्टी महासचिव जयराम रमेश की इस बात से लगाया जा सकता है, जब उन्होंने यह दावा किया कि तेलंगाना में विधानसभा चुनाव से दो महीने पहले कार्यसमिति की बैठक हुई थी और वहां कांग्रेस की सरकार बनी, उसी तरह अब पटना की बैठक के बाद बिहार में भी महागठबंधन की सरकार बनेगी.
राहुल गांधी के बिहार में हुए अनेकों कार्यक्रम और पटना में हुई सीडब्ल्यूसी की बैठक इस बात की ओर इशारा करती है कि कांग्रेस बिहार को लेकर गंभीर है. राजनीतिक पर्यवेक्षकों के मुताबिक कांग्रेस को बिहार में नीतीश और बीजेपी की 20 साल की सरकार के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी का फायदा मिलने की उम्मीद दिख रही है. इसलिए कांग्रेस कार्यसमिति ने राजग सरकार पर 'नोटचोर' होने का आरोप लगाया और दावा किया कि भ्रष्टाचार एवं अपराध 'डबल इंजन' सरकार के असली दो इंजन हैं. हाल के दिनों में बिहार सरकार के कुछ मंत्रियों और एनडीए के कुछ प्रदेश स्तर के नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले उजागर हुए हैं. 2005 में जब नीतीश कुमार ने प्रदेश का नेतृत्व संभाला उसके बाद बिहार का यह पहला चुनाव है, जिसमें सत्ता पक्ष के खिलाफ भ्रष्टाचार एक प्रमुख चुनावी मुद्दा है.
क्या कहता है कांग्रेस का आर्थिक प्रस्ताव
आर्थिक मोर्चे पर भी बैठक में प्रस्ताव पारित किया गया और नीतीश सरकार को विफल करार देते हुए आरोप लगाया कि 27 फीसदी रहने वाला चीनी उत्पादन घटकर सिर्फ तीन फीसद पर सिमट गया है और औद्योगिक विकास पूरी तरह से ठप पड़ गया है. प्रदेश में पेपर लीक और छात्रों द्वारा सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरने जैसी घटनाओं को भी पार्टी ने अपने एजेंडे में शामिल करते हुए युवा वर्ग को आकर्षित करने का प्रयास किया. इसके साथ ही कांग्रेस ने बिहार के संसाधनों के दुरुपयोग को भी चुनावी मुद्दे बनाने की कोशिश की है.
इसके अलाव बिहार में भूमी सर्वेक्षण को लेकर भी कांग्रेस ने आक्रामक रूख अपनाते हुए इसे बिहार में भय और अराजकता फैलाने का आरोप लगाया है. कार्यसमिति का कहना है, "जमीन के रिकॉर्ड को सुव्यवस्थित करने के नाम पर, इसने लोगों को दशकों पुराने मालिकाना हक के कागजात निकालने पर मजबूर किया, और फिर जमीन के हक के कागजात में गड़बड़ी करके और मालिकाना हक में घालमेल करके घोर भ्रम पैदा कर दिया.” जानकारों का मानना है कि बिहार भूमि सर्वेक्षण 2025 से लोगों में काफी असमंजस और असंतोष है. कांग्रेस इस असंतोष को भुनाने के प्रयास में है. इस मुद्दे से कांग्रेस के न सिर्फ अपने पारंपरिक वोट बेस को अपने पक्ष में करने में सहायता मिल सकती है बल्कि कुछ ओबीसी समुदाय का समर्थन भी मिल सकता है.
कांग्रेस ने विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की भी जमकर आलोचना की और इसे एक एक बार फिर से वोट चोरी की संज्ञा दी. स्पष्ट है कि कांग्रेस इसे बिहार विधानसभा चुनाव में अपना एक प्रमुख मुद्दा बनाएगी. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मतदाताओं के एक बड़े वर्ग में एसआईआर को लेकर संदेह है और इसका लाभ विपक्षी दलों को हो सकता है.
मोदी सरकार की विदेश नीति पर निशाना
कांग्रेस कार्यसमिति ने मोदी की विदेश नीति की भी आलोचना की और इसे पूरी तरह असफल और कमजोर बताया. अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत-पाकिस्तान युद्ध रुकवाने की बात पर नरेंद्र मोदी की चुप्पी को एक कमजोर और बेबस प्रधानमंत्री के तौर पर बताया. कार्यसमिति द्वारा भारतीय सीमा का उल्लंघन और उस बयान की आलोचना की जिसमें, प्रधानमंत्री ने 19 जून 2020 को चीन को क्लीन चिट दी थी, जब उन्होंने दावा किया था, 'न तो कोई हमारी सीमा में घुस आया है, न ही कोई घुसा हुआ है.'
इसके अलावा हमारे पड़ोसी मुल्कों के चीन के करीब जाने को भी कांग्रेस पार्टी ने मोदी की असफल विदेश नीति बताया. पार्टी ने राहुल गांधी के उस बयान का समर्थन किया जिसमें नेता प्रतिपक्ष ने मोदी पर पाकिस्तान और चीन को करीब लाने का आरोप लगाया था. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन द्वारा पाकिस्तान को रक्षा उपकरणों की मदद ने इसे और स्पष्ट करने का काम किया है.
कांग्रेस कार्यसमिति ने गजा पर मोदी सरकार पर चुप्पी को लेकर सवाल उठाए हैं. कांग्रेस ने इसे भारत के पारंपरिक स्टैंड के विपरीत बताया है. कार्यसमिति ने गाजा में जारी निर्दोष नागरिकों के नरसंहार पर गहरी पीड़ा व्यक्त की है, जो भारत हमेशा से नैतिक चेतना का प्रतीक और उत्तर-औपनिवेशिक विश्व का अगुआ रहा है, उसे इस सरकार ने शर्मनाक तरीके से एक मूकदर्शक के रूप में सीमित कर दिया है. नैतिकता के लिहाज से हमारी विदेश नीति कलंक बन गई है. कांग्रेस इतने बोल्ड स्टेटमेंट से न सिर्फ मोदी की भारतीय कूटनीति को अमरीकी पिछलग्गू बनने का आरोप लगा रही है बल्कि उसे इसका घरेलू राजनीति में लाभ मिलने की भी उम्मीद है. कांग्रेस भी अब बीजेपी की तरह विदेश नीति को भारतीय चुनाव का मुद्दा बना रही है. जहां बीजेपी नरेंद्र मोदी की विदेशी नेताओं से मुलाकात, बातचीत और दोस्ती की तस्वीरों को महिमामंडित करते हुए चुनावी लाभ उठाती थी, वहीं कांग्रेस अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ लगाने और एच1बी वीजा से जुड़े उनके कदमों की पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि विदेश नीति निजी 'दोस्ती' से तय नहीं होनी चाहिए.
बिहार में कांग्रेस का दलित प्रेम
इन सभी राजनीतिक मुद्दों के अलावा कांग्रेस पार्टी ने अपने संगठन को भी री डिजाइन करने की कोशिश की है. रविदास समुदाय से राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने अपनी खोए समर्थक समूह को वापस लाने का प्रयास कर रही है. बाबू जगजीवन राम के बाद कोई रविदास नेता अपनी पैठ कांग्रेस में नहीं बना सका था. 'माउंटेन मैन' दशरथ मांझी के घर राहुल गांधी का जान और उन्हें घर बनाने में मदद कर स्पष्ट कर दिया है कि पार्टी दलित समुदाय को लेकर गंभीर है. एक समय रविदास समुदाय कांग्रेस के समर्थक वर्ग थे लेकिन बाद में राजद और मायावती के साथ यह वर्ग जुड़ा. मायावती के कमजोर पड़ने से कांग्रेस को उम्मीद है कि यह वर्ग वापस पार्टी की ओर मुखातिब हो सकता है. इसके अलावा कांग्रेस की कोशिश है कि कुछ उपेक्षित और वंचित तबकों को दलित समुदाय के अंदर शामिल कर दलित राजनीति के नए समीकरण के साथ चुनावी मैदान में जाए.
डिस्क्लेमर: लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के आत्मा राम सनातन धर्म कॉलेज में राजनीति शास्त्र पढ़ाते हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के नीजि हैं, एनडीटीवी का उनसे सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.