बिहार विधानसभा चुनाव 2025: स्थिरता और परिवर्तन की संभावना के बीच है लड़ाई

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डॉ. संतोष झा

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 सत्ता परिवर्तन से कहीं ज्यादा है, यह दो विचारधाराओं की भरोसे की जंग बन चुका है. एक तरफ अनुभव और स्थिरता की राजनीति, दूसरी तरफ परिवर्तन और संभावना की. नीतीश कुमार ने दो दशकों में महिला सशक्तिकरण को अपनी राजनीति की रीढ़ बनाया, तो तेजस्वी यादव ने युवाओं की आकांक्षाओं और रोजगार को चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा बनाया.यही टकराव अब 'मातृशक्ति बनाम युवा शक्ति' के रूप में उभरा है. यह जंग न केवल बिहार की सत्ता पर, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति की दिशा पर भी असर डालेगी, क्योंकि बिहार हमेशा से ही लोकतंत्र का आईना रहा है.

बिहार के चुनाव हमेशा राष्ट्रीय राजनीति को दिशा देते रहे हैं. इस बार भी देश की नजरें टिकी हैं, क्योंकि यही फैसला आने वाले सालों की राजनीतिक रूपरेखा तय करेगा. बिहार के बारे में कहा जाता है कि 'बिहार सिर्फ एक राज्य नहीं, बल्कि एक विचार है', जिसे समझना आसान नहीं. चुनाव आयोग ने छह अक्टूबर 2025 को तारीखें घोषित कीं, पहला चरण छह नवंबर को 121 सीटों पर, दूसरे चरण में 11 नवंबर को 122 सीटों पर मतदान होगा. मतगणना 14 नवंबर को कराई जाएगी. इन तारीखों के बीच राज्य पूरी तरह चुनावी रंग में डूबा है- सभाएं, नारे और रणनीतियां जोरों पर. 7.42 करोड़ मतदाता, जिनमें 3.5 करोड़ महिलाएं और 1.77 करोड़ युवा (18-29 साल) शामिल हैं, भाग्य विधाता बनेंगे. विशेषज्ञों का मानना है कि महिला मतदाताओं का टर्नआउट (65 फीसदी से अधिक) और युवाओं की नाराजगी (बेरोजगारी दर 15 फीसदी से ऊपर) ही परिणाम तय करेगी.

नीतीश की 'मातृशक्ति': स्थिरता की धुरी

नीतीश कुमार का राजनीतिक दर्शन 'सत्ता सेवा के लिए' पर टिका है. साल 2006 में पंचायतों में 50 फीसदी महिला आरक्षण देकर उन्होंने महिलाओं को मुख्यधारा में लाया. साइकिल योजना, पोशाक योजना, कुशल युवा कार्यक्रम और शराबबंदी जैसी नीतियां महिलाओं को शासन से सीधे जोड़ती हैं. सरकारी नौकरियों में 35 फीसदी आरक्षण और 1.21 करोड़ जीविका दीदियों को 10 हजार रुपये की सहायता ने  'नीतीश-महिला समीकरण' को मजबूत किया.एनडीए का  'संकल्प पत्र 2025' इसमें और जोड़ता है, 'लखपति दीदी योजना' के तहत एक करोड़ महिलाओं को दो लाख रुपये तक की आर्थिक मदद, पंचामृत गारंटी (मुफ्त बिजली, स्वास्थ्य बीमा, आवास) और 20 लाख नौकरियां. ग्रामीण बिहार में 'जीविका दीदी' अब भावनात्मक पहचान बन चुकी हैं. वे खुद को शासन की सहभागी मानती हैं, न कि सिर्फ लाभार्थी. हाल के सीएसडीएस-लोकनीति सर्वे (सितंबर 2025) दिखाते हैं कि 64 फीसदी महिलाएं नीतीश को पसंद करती हैं, खासकर शराबबंदी के कारण.

महागठबंधन इसे राजनीतिक सौदेबाजी बताता है. राजद का कहना है कि जीविका दीदियां आत्मनिर्भर नहीं, सरकारी सहायता पर निर्भर हैं. कांग्रेस तर्क देती है कि असली सशक्तिकरण के लिए प्रशिक्षण, बाजार पहुंच और वित्तीय स्वावलंबन जरूरी था. फिर भी, नीतीश की लिंग-आधारित विश्वास की राजनीति जातीय समीकरणों से ऊपर उठती दिखती है. एनडीए की रणनीति साफ है- मोदी-शाह की सभाओं से हिंदुत्व और विकास को जोड़कर महिला-युवा दोनों को साधना.

तेजस्वी की 'युवा शक्ति': परिवर्तन का वादा

तेजस्वी यादव बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, पलायन और शिक्षा-स्वास्थ्य की बदहाली पर नीतीश को घेर रहे हैं. उनका संदेश साफ है, 'बिहार बदलना है, तो नौजवानों को रोजगार दो.' महागठबंधन के घोषणापत्र 'तेजस्वी प्रण' में 'माई-बहिन योजना' के तहत महिलाओं को 2,500 रुपये मासिक सहायता, हर परिवार को एक सरकारी नौकरी, जीविका दीदियों को 30,000 रुपये मासिक वेतन और ब्याज-मुक्त ऋण का वादा है.

तेजस्वी रोजगार में महिलाओं की हिस्सेदारी और छोटे उद्योगों के लिए वित्तीय मदद को प्राथमिकता देने का दावा करते हैं, ताकि महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र हों. वे युवाओं और महिलाओं दोनों को जोड़ने की रणनीति पर काम कर रहे हैं—भावनात्मक भरोसे को आर्थिक विकल्प से चुनौती देने की कोशिश. 40 फीसदी युवा मतदाता (18-35 साल) तेजस्वी की ओर झुक रहे हैं, जो पलायन से त्रस्त हैं.

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तेजस्वी की चुनौती बड़ी है, नीतीश के 20 साल के सुशासन को 'जंगलराज' के पुराने डर से जोड़ना. लेकिन सोशल मीडिया पर उनके रील्स और राहुल गांधी की सभाएं युवाओं को जोड़ रही हैं. सोशल मीडिया 'X' पर तेजस्वी सरकार ट्रेंड कर रहा है, जहां युवा रोजगार और महिलाओं के लिए 30,000 रुपये सालाना सहायता की मांग कर रहे हैं.

निर्णायक सवाल: भरोसा या बदलाव

विश्लेषक मानते हैं कि नीतीश ने महिलाओं को भागीदार बनाया न कि सिर्फ लाभार्थी. लेकिन बढ़ती बेरोजगारी, महंगाई और युवाओं की नाराजगी महिला वोटरों को भी प्रभावित कर सकती है. तेजस्वी की सबसे बड़ी चुनौती: नीतीश के सामाजिक भरोसे को आर्थिक वादों से कैसे तोड़ें? एनडीए का फोकस लंबी अवधि के विकास (सात एक्सप्रेसवे, मेट्रो) पर है, जबकि महागठबंधन तात्कालिक राहत (ऋण माफी, मुफ्त बिजली) पर. प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी युवा वोट बिखेर सकती है, लेकिन मुख्य लड़ाई नीतीश और तेजस्वी के बीच ही है.

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यह चुनाव नीतीश बनाम तेजस्वी से आगे है, यह मातृशक्ति बनाम युवा शक्ति का प्रतीक है. एक तरफ प्रशासनिक अनुभव, सुशासन और निरंतरता; दूसरी तरफ जोश, परिवर्तन और समावेशी विकास. बिहार की 35 फीसदी गरीब आबादी, जहां ईबीसी-ओबीसी (63 फीसदी) और एससी/एसटी (20 फीसदी) निर्णायक हैं, जातिगत जनगणना के बाद नई उम्मीदें जगा रही हैं. सोशल मीडिया 'X' पर चर्चाएं (बिहार चुनाव 2025) दिखाती हैं कि युवा 'परिवर्तन' चाहते हैं, जबकि महिलाएं 'सुरक्षा'. 14 नवंबर का फैसला न केवल बिहार, बल्कि 2029 के लोकसभा चुनाव को आकार देगा. क्या मातृशक्ति का भरोसा बचेगा या युवा शक्ति की लहर चलेगी? बिहार की धरती, जो बुद्ध और चाणक्य की जन्मभूमि है, एक बार फिर इतिहास रचेगी. सत्ता किसके हाथ? समय बताएगा, लेकिन लोकतंत्र की जीत निश्चित है.

डिस्क्लेमर: लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीतिक विज्ञान विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है. 

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