अगर आप प्राइम टाइम के नियमित दर्शक हैं तो पिछले सात साल के दौरान आपने हमें कई बार कहते सुना होगा कि व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के ज़रिए झूठ का जाल बिछा दिया गया है ताकि हर दूसरे लड़के में दंगाई बनने की संभावना पैदा हो जाए. धर्म के नाम पर नफरत का ऐसा माहौल बन जाए कि हर सवाल करने वाला या सरकार का विरोधी उसकी आड़ में निपटा दिया जाए. कुछ सड़क पर उतर कर दंगा करें तो कुछ सोशल मीडिया पर वैसी भाषा लिखने बोलने लग जाएं जो हर नरसंहार या दंगों के पहले बोली जाती है. व्हाट्सएप के फैमिली ग्रुप में रिटायर्ड अंकिलों और NRI अंकिल नफरत की दुनिया के चौकीदार हैं. इस एक सेगमेंट के एक हिस्से ने बच्चों को बर्बाद करने और ज़हर से भरने का जो काम किया है उतना किसी ने नहीं किया है. आईटी सेल सामग्री बनाकर व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के ज़रिए सामग्री ठेलता था. गोदी मीडिया उस सामग्री से मिलती जुलती टापिक पर बहस कराता था, नेता और मंत्री वैसा ही कुछ बोलते थे. एक माहौल बन जाता है. जिस गोदाम में ये सब सामग्री तैयार होती थी वहां अब कंपनी बन गई है. उन कंपनियों में विपक्ष और आलोचक को टारगेट करने और असली मुद्दों को कुचलने के लिए टूल किट तैयार किया जाता है. अब यह सब काम ऐप से हो रहा है. यानी दो रुपये देकर ट्वीट करने का रोज़गार भी खत्म हो गया. ऐप के ज़रिए बटन दबाते ही हज़ारों ट्वीट सोशल मीडिया पर माहौल बना देंगे.
दो साल तक काम करने के बाद द वायर ने टेक फॉग ऐप का पर्दाफाश किया है. इसके ज़रिए हज़ारों फर्ज़ी अकाउंट बनाकर, पल भर में किसी ऐसे मुद्दे को ट्रेंड करा दिया जाता है जो जनता के असली मुद्दे पर भारी पड़ जाए. जनता का ध्यान भटक जाए. मुद्दों के बाज़ार में जनता महंगाई, बेकारी, नौकरी, आक्सीजन की कमी, महंगा इलाज, घटिया कॉलेज, झूठ मुकदमे न जाने कितनी शिकायतों को लेकर बैठी रहती है कि इन पर चर्चा होगी, लेकिन जैसे ही टेक फॉग से नकली मुद्दों की बरसात की जाती है चारों तरफ धुआं फैल जाता है. उस धुएं में जनता को अपना असली मुद्दा दिखाई नहीं देता है. वही दिखाई देता है जो टेक फॉग दिखाना चाहता है. आप आम की बात करना चाहते हैं, इमली की बात की चर्चा सारे शहर में फैला दी जाती है. आम तौर पर इस ऐप से सरकार के समर्थन में धुआं फैलाया जाता है ताकि उससे नाराज़ जनता धरम और नफरत की राजनीति में भटक जाए. पत्रकारों औऱ विपक्ष को गाली देने लगे और उसके खिलाफ कुचल देने का माहौल बन जाए. इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, टेलीग्राम, फेसबुक, ट्विटर पर दूसरे मुद्दों के हैशटैग को बड़ा कर दिया जाता है. एक बटन के दबते ही हज़ारों अकाउंट से नकली हैशटैग या कोई दूसरा हैशटैग री-ट्वीट होने लगता है, उस पर रिप्लाई आने लगते हैं. एक ही तरह के मैसेज अनेक प्लेटफार्म पर हज़ारों की संख्या में पहुंचा दिए जाते हैं. धुआं धुआं हो जाता है. नकली जनता के सहारे असली जनता गायब कर दी जाती है. इस फागिंग मशीन का नाम है टेक फॉग ऐप. टेक फॉग क्या है, किसके खिलाफ काम करता है यह जान कर आप क्या करेंगे, यह जानने की क्षमता आप में नहीं बची है. हर तरफ एक ही झूठ है, अंत में आप हार मान लेंगे और झूठ को सच मान लेंगे. आपकी नज़र के सामने धुआं है, चश्मे पर धुंध है. शहर में कुहासा है.
द वायर, जिसने टेक फॉग ऐप का खुलासा किया है वह बुल्ली और सुल्ली डील ऐप से भी खतरनाक है. बल्कि इस तरह के ऐप उसी तरह की फैक्ट्रियों से निकलते हैं जहां टेक फॉग ऐप तैयार होता है. हम टेक फॉग के तकनीकि पहलू को रहने देते हैं क्योंकि बहुत जटिल है, मगर इसे सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक संदर्भ में देखेंगे तो काफी कुछ समझ आ जाएगा. जो सरकार पेगासस कांड पर खुद से जांच करने आगे नहीं आई, बल्कि संसद में कह दिया कि ऐसे ग्रुप को बैन करने का भी विचार नहीं है तो उस सरकार से यह उम्मीद बेकार है कि टेक फॉग के पीछे का सच उजागर करेगी क्योंकि द वायर ने लिखा है कि इसके पीछे की कंपनी को सरकार के काम में बहुत सारा ठेका मिला हुआ है.
फॉगिंग का मतलब धुआं होता है. धुंध और कुहासा भी कहते हैं. ब्रेन में भी फॉगिंग होती है और कुहासे से चलती ट्रेन रुक जाती है. इन दिनों कोराना के नाम पर अनगिनत हाउसिंग सोसायटी की तरफ से फॉगिंग कराई जाती है. नगर निगम न जाने कितने लाख फूंक चुका है. मच्छर भगाने के नाम पर फॉगिंग होती है. कोई नहीं जानता फॉगिंग से मच्छर और कोरोना भागता है या नहीं मगर फॉगिंग चालू रहती है ताकि लोगों को लगे कि सरकार काम कर रही है. यह फॉगिंग भी एक तरह का झूठ है. धुआं तो है ही.
टेक फॉग मिनटों में ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम, टेलिग्राम और व्हाट्सएप पर हज़ारों अकाउंट बना देता है. बटन दबाइये और एक साथ एक ही तरह की बात हर प्लेटफार्म पर पोस्ट होने लगती है. इस माहौल में कोई अकेला व्यक्ति घबरा जाता है. लगता है कि भीड़ दफ्तर जला देगी. उसे जला देगी. एक बात और गौर करने लायक है. टेक फॉग से जो काम होता है वो काम अलग अलग मंचों से होता है. उसके लिए हर समय अलग अलग शब्दों की खोज की जाती है.
यूपी चुनाव में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ने माफिया का खूब इस्तमाल किया. हमने प्राइम टाइम के एक एपिसोड में बताया कि कैसे मुसलमानों को टारगेट करने के लिए एक समुदाय के अपराधियों को माफिया बताया जा रहा है. अब इसकी जगह परसेंट आया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यूपी के चुनाव को 80 परसेंट बनाम 20 परसेंट की लड़ाई बताया है. यह लाइन अब छप रही है और छपवाई जा रही है, चल रही है चलवाई जा रही है. कई नेता धीरे-धीरे बोलने लगे हैं. इसमें मुसलमान का नाम नहीं है लेकिन 80 परसेंट बनाम 20 परसेंट के बहाने मुसलमानों को ही निशाना बनाया जा रहा है. बीजेपी को कभी भी 80 परसेंट वोट नहीं मिले हैं तो ज़ाहिर है इशारा एक ही तरफ है. 80 परसेंट बनाम 20 परसेंट की भाषा से चुनाव आयोग भी चुप रहेगा. कहेगा परसेंट है, नंबर है, नफरत कहां है?
इस तरह नए नए शब्द, नए नए हैशटैग से एक समुदाय, विपक्ष, सरकार से सवाल करने वाले पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ताओं को टारगेट किया जाता है. हर दिन नए ब्रांड नाम से उसी ज़हर को फैलाया जाता है जिसकी चपेट में आकर लड़के दंगाई बन रहे हैं. भीड़ में जा रहे हैं. मुस्लिम महिलाओं की नीलामी वाले ऐप बना रहे हैं.
यह भीड़ ही थी जिसने 2018 में बुलंदशहर में एक थाने को जला दिया. पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की जीप जला दी. उन्हें कुल्हाड़ी से मारा, पत्थरों से मारा और गोली मार दी. 44 लोग हत्या औऱ दंगे के आरोपी ठहराए गए हैं. इसकी जांच में पुलिस के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए कहा नहीं जा सकता कि इनमें से कितने सही आरोपी हैं और कितने बरी होने वाले और असली आरोपी कहां आज़ाद घूम रहे हैं. जहां भी होंगे, किसी भी वक्त पकड़े जाने का धड़का तो लगा ही रहता होगा. मुख्य आरोपी योगेश राज को भले ही समर्थन मिला, ज़मानत पर जेल से बाहर आने पर एक ही नारा, एक ही नाम, जय श्री राम जय श्री राम के नारे लगे थे, हत्या के आरोपी भी राम का नाम लेकर ताकतवर हो जाते हैं, खैर योगेश ने बाहर आकर पंचायत का चुनाव जीत लिया लेकिन सात जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इसे फिर से सरेंडर करना पड़ा. सबकी किस्मत योगेश राज जैसी नहीं है. जैसे राहुल और प्रशांत नट. साधारण परिवार से हैं मगर हत्या के आरोपी बनाए गए हैं. इस भीड़ में धर्म और गौ रक्षा के नाम पर नफरत भरने वाले अपनी सियासत चमका रहे हैं मगर इनके गरीब मां बाप मुकदमे के लिए क्या क्या कर रहे होंगे, किसी को पता नहीं. इन युवाओं के दिमाग़ में नफरत का जुनून भर कर अपराध की दुनिया में धकलने वाली सोच को कभी गोदी मीडिया बढ़ावा देता है तो कभी सोशल मीडिया और अब एक नया ऐप सामने आया है टेक फॉग. जिसका एक ही मकसद है हिंसा, नफरत और दंगाई मानसिकता का प्रचार करना. विपक्ष और सरकार के आलोचकों के खिलाफ नफरत का माहौल बनाना.
टेक फॉग की कहानी थोड़ी जटिल है. मसलन इस ऐप को हर कोई डाउनलोड नहीं कर सकता. वही कर सकता है जिसे यह ऐप दिया जाएगा, उसका पासवर्ड होगा. एक कंपनी के पे-रोल पर इसके लिए लोग काम करते हैं. उन्हें वेतन मिलता है. द वायर इस पहलू के कुछ पक्ष को साबित कर सका है औऱ कुछ का साबित होना बाकी है. लेकिन सोचिए हम नफरत की फैक्ट्री की बात करते थे वो वाकई फैक्ट्री के रूप में खड़ी हो गई है. टेक फॉग ऐप के कुछ फीचर है जिसकी पुष्टि द वायर ने अपनी रिपोर्ट में की है.
मुमकिन है आपके व्हाट्सएप में कोई तस्वीर आए, आप डाउनलोड करते हैं औऱ उसमें छुपा सॉफ्टवेयर आपके नंबर को ट्रैक करने लगता है. आपका नंबर उड़ा कर टेक फॉग उस नंबर से जुड़े तमाम फोन नंबरों पर खास तरह के मैसेज भेजने लगता है. इतनी तेज़ी से सब कुछ आता है कि आप तय नहीं कर पाते कि सही है या गलत. दूसरे से पूछते हैं, वो यही कहता है ऐसा सुना है. इसका एक ही मोटो है. झूठ का माहौल बना दो, अपने आप सच बन जाएगा. इसके लिए टेक फॉग ट्विटर के ट्रेडिंग सेक्शन में चल रहे मामूली ट्रेंड का भी इस्तमाल करता है. महिला पत्रकारों के अकाउंट पर खास तरह के जवाबों के साथ हमला कर दिया जाता है. उनके शरीर से लेकर उनके काम करने की जगह, रहने की जगह को लेकर धमकियां दी जाने लगती हैं. बलात्कार की धमकी दी जाती है. असंख्य ट्वीट और पोस्ट से ट्विटर से लेकर व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में, इंस्टाग्राम से लेकर टेलिग्राम तक और फेसबुक से लेकर शेयर चैट पर फैला दिया जाता है. कई बार जांच एजेंसी भी उसके असर में काम करने लग जाती है. टेक फॉग की तय की हुई दिशा में चल पड़ती है. द वायर के अंशुमान कौल और देवेश कुमार ने दो साल लगातर इस करतूत की पड़ताल की है जिसका संबंध सरकार से भी जुड़ता है क्योंकि जिन कंपनियों के नाम आए हैं टेक फॉग ऐप के पीछे, उन कंपनियों को सरकार की तरफ से कई काम दिए गए हैं. इस पर फिर कभी लेकिन आज सिर्फ इतना कि टेक फॉग क्या चीज है.
खेल समझिए. पहले व्हाट्सएप और ट्विटर के जरिए आपकी सोच को मोड़ा गया. आपको झूठ की तरफ ले जाया गया. लेकिन ट्विटर पर सरकारों की निगरानी बढ़ी है. जन दबाव में अकाउंट बंद करना पड़ता है और पुलिस कार्रवाई करती है. इसलिए टेक फॉग ऐप से नकली अकाउंट बनाकर व्हाट्सएप और ट्विटर का इस्तमाल होता है और सारे अकाउंट पल भर में गायब कर दिए जाते हैं. टेक फॉग के ज़रिए विपक्षी दल के खिलाफ अभियान चलाया जाता है. आपने मन में विपक्ष के नेता के प्रति लगातार नफरत भरी जाती है ताकि आप रोज़ कहें कि का करें, विकल्पे नहीं है. किसान आंदोलन के समय खालिस्तान ट्रेंड होने लगा और यही ज़ुबान गोदी मीडिया के ऐंकर बोलने लगे और दूसरे दर्जे के नेता इसे बढ़ावा देने लगे. पिछले साल किसान आंदोलन के समय टूल किट का मामला उठा था, दरअसल अब समझ आ रहा है कि टूल किट का असली खिलाड़ी कौन है. कौन खेल रहा है यह खेल.
पिछले साल 3 फरवरी के प्राइम टाइम में हमने आपको बताया था कि कैसे जब पॉप स्टार रिहाना ने किसान आंदोनल के पक्ष में ट्वीट किया, तानाशाही के खिलाफ आवाज़ उठाई, तब बहुत सारी मशहूर हस्तियां एक ही तरह का ट्वीट करती हैं. सबकी भाषा करीब करीब एक जैसी थी. हमें एकजुट रहना है. हमें बंटना नहीं है. टेक फॉग यही काम अनाम और अनगिनत अकाउंट से कर देता है. मगर असली लोगों से जो काम कराया जाता है वही काम टेक फॉग से भी कराया जाता है. ये हस्तियां भी टेक फॉग हैं. उस वक्त विदेश मंत्रालय भी हैशटैग का इस्तमाल करने लगा था. हैशटैग इंडिया टुगेदर और हैशटैग इंडिया अंगेस्ट्र प्रोपेगैंडा.
तो इस खेल में सब शामिल हैं. मंत्रालय से लेकर आम जनता, मशहूर हस्तियां और नकली अकाउंट. टेक फॉग केवल एक ऐप नहीं है, बल्कि राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक सिस्टम है जिसके ज़रिए विपक्ष, विरोधी, सामाजिक कार्यकर्ता और जनता के हर ज़रूरी सवाल को कुचला जाता है. एक और टेक फॉग है. गोदी मीडिया. 2020 में जब कोराना आया तब गोदी चैनलों पर तब्लीग जमात को लेकर अभियान चलने लगा, कोरोना जेहाद कहा जाने लगा था, ठीक इसी तरह की भाषा ट्विटर और सोशल मीडिया पर भी छा गई थी.
इसके असर में मुख्यमंत्री केजरीवाल से लेकर तमाम प्रशासनिक अधिकारी अपनी प्रेस कांफ्रेंस में तब्लीग जमात का नाम लेने लगे थे. उनकी संख्या अलग से बताई जाती थी. इसके ज़रिए मुसलमानों को टारगेट किया गया. सब्ज़ी बेचने वाले गरीब मुसलमानों पर हमले हुए, लोग नाम और उसका आई कार्ड चेक करने लगे. नफरत यहां तक फैली कि जब कोरोना से ठीक हो चुके तब्लीग के लोगों ने प्लाजमा देने की बात कही तब भी उनका मज़ाक उड़ाया गया. प्रशासन इस नफरत के साथ हो गया और घर घर से खोज कर जमात के लोग जेल में डाल दिए गए. महीनों जेल में रहे. कई हाईकोर्ट ने इसके लिए मीडिया की आलोचना की है. सरकारों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. गोदी मीडिया टेक फॉग बन गया था. जबकि उसे अस्पताल से लेकर कोराना से लड़ने के इंतज़ाम पर रिपोर्टिंग करनी चाहिए थी. नतीजा यह हुआ कि सज़ा सबने भुगती. कोरोना की दूसरी लहर में लाखों लोग इलाज के बगैर मर गए. लाशों को गायब किया जाने लगा तो लाशें बहने लगीं और कब्र से नदी के किनारे बाहर आने लगीं. कितने लोग मरे हैं इस पर सवाल उठने लगे. हाल में एक अध्ययन आया है टोरेंटो विश्वविद्लायक का कि पहली और दूसरी लहर के दौरान 32 लाख लोग कोरोना से मरे हैं. यही टेक फॉग का काम और कमाल है कि आपकी आंखों के सामने से लाखों लाशें गायब कर दी गईं.
टेक फॉग एक ऐप तो है लेकिन इसकी टेक्निक कभी गोदी मीडिया तो कभी जांच एजेंसियों के ज़रिए अपनाई जाती है. चुनाव के समय विपक्ष के यहां छापा पड़ जाएगा ताकि चर्चा विपक्ष के खिलाफ हो औऱ सरकार से सवाल न हो. इसलिए टेक फॉग को एक ऐप से ज्यादा समझिए. द वायर ने जिस टेक फॉग को पकड़ा है उसका सबसे बड़ा ऐप गोदी मीडिया है जो हर दिन असली मुद्दों को हटाकर नफरती और फर्ज़ी मुद्दों का जाल बिछा देता है. नेताओं के बच्चे विदेशों की यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे हैं. आपके बच्चों के लिए यूनिवर्सिटी खत्म कर दी गई है. उन्हें व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में डाल दिया गया है जहां वे नफरत पढ़ रहे हैं.
ओंकारेश्वर ठाकुर को कथित रूप से सुल्ली डील ऐप बनाने के आरोप में दिल्ली पुलिस के स्पेशन सेल ने गिरफ्तार किया गया है. इसे किसी चीज़ की कमी नहीं, TCS कंपनी में काम करता है लेकिन किस काम में पकड़ा गया है. इनके पिता कहते हैं बेटे को फंसाया गया है. बुल्ली बाई ऐप के मामले में 21 साल का मयंक रावत भी जेल में है. बीएससी का छात्र है. महिलाओं के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट कर रहा था. रुद्रपुर की श्वेता पर भी आरोप हैं, श्वेता की बहन मनीषा कहती हैं निर्दोष है. पुलिस का आरोप है कि श्वेता तीन अकाउंट चला रही थी. ट्विटर के जरिये उसने समुदाय विशेष की महिलाओं की बोली लगवाई थी. विशाल झा बंगलुरु से गिरफ्तार हुआ है. यह छात्र खालसा सुपरमिस्ट नाम से अकाउंट चला रहा था. सब कुछ पंजाबी में लिखा हुआ था. कुछ दिन बाद उसने अपने अकाउंट का नाम भी बदल दिया था.
इनके मां बाप कितने परेशान होंगे. घर बैठा बच्चा नफरत की दुनिया से अपराध की दुनिया में पहुंच गया. व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी का खेल इस लेवल पर आया है अभी और आगे जाएगा. नरसंहार का आह्वान किया जा रहा है उसके लिए लड़कों की सप्लाई इन्हीं सब ऐप से होगी. नफरत के सहारे उन्हें तैयार किया जा रहा है. भीड़ बनाने का काम राजनीतिक सिस्टम से होता है. मैं गृहमंत्री की इस ईमानदारी का कायल हूं कि उन्होंने कोटा और कोलकाता में आईटी सेल के कार्यकर्ताओं के सामने साफ साफ बता दिया था. दोनों ही बयान बेहद स्मार्ट बयान हैं. इस बयान को स्मार्ट बयान इसलिए कहा कि इसमें है भी और नहीं भी है. मगर टेक फॉग ऐप साफ साफ नफरत फैलाने का साम्राज्य फैलाता है. भारत की राजनीति को इस दिशा में ले जाने के लिए काफी मेहनत हुई है तभी तो झूठ सच बन जाता है और सच नाचता रह जाता है.
द वायर की रिपोर्ट के काफी गहरे मायने हैं. हर स्तर पर नफरत का धुआं फैलाया जा रहा है. इस धुएं में आदमी को मच्छर बनाया जा रहा है. मच्छर बन कर आदमी आदमी को काट रहा है. उसे नरसंहार की बातों से गुदगुदी होती है. अच्छा लगता है. अब इस जाल से निकलना आसान नहीं होगा. आपके इलाज के लिए पैसे नहीं हैं मगर धर्म के नाम पर दो हज़ार करोड़ की मूर्ति बन रही है. यही है असली फॉगिंग. आपके भीतर का नागरिक बोध एक समुदाय के प्रति नफ़रत की तलवार से हर दिन काट काट कर छांटा जा रहा है. आप केवल ठूंठ के रूप में बचे रहेंगे जिसे पराली कहते हैं. जिसे जलाओ तो प्रदूषण और न जलाओ तो खेत बेकार. प्राइम टाइम के न जाने कितने एपिसोड में चेतावनी दी थी कि आपके बेटों को धर्म के ना पर दंगाई बनाने या दंगाई का सपोर्टर बनाने की तैयारी की जा रही है.