भारत और पाकिस्तान दो ऐसे देश हैं, जो स्वतंत्रता मिलने के साथ अलग-अलग हो गए, लेकिन आज 75 साल बाद पाकिस्तान जहां कर्ज में डूबा हुआ है और अपने स्वाभिमान को तार-तार कर चुका है, वहीं भारत दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ने वाली पांचवीं सबसे बड़ी आर्थिक ताकत के स्वाभिमान से लबरेज है. भारत की तुलना में पाकिस्तान के हालात यही बताते हैं कि सही समय पर सही निर्णय न लेने और राजनीतिक अस्थिरता ने पाकिस्तान को एक असहाय और कमजोर देश बना दिया है.
हाल ही में पाकिस्तान से प्रकाशित एक रिपोर्ट बताती है कि धार्मिक यात्राओं के नाम पर वीजा लेकर पाकिस्तान से बड़ी संख्या में लोग भीख मांगने के लिए सऊदी अरब और अन्य इस्लामिक देशों के महत्वपूर्ण स्थानों पर जा रहे हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, पेशेवर तरीके से पाकिस्तान में भीख मांगने वालों की संख्या करीब 3.8 करोड़ तक पहुंच चुकी है, जबकि पाकिस्तान की कुल आबादी करीब 25 करोड़ है. जाहिर है, एक तरफ जहां पाकिस्तान के नागरिक बेबस होते जा रहे हैं, वहीं पाकिस्तान की सरकार और प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ दुनिया के देशों और IMF से भीख मांगने को मजबूर हैं. पाकिस्तान में मचे इस कोहराम को देखकर मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू सदमे में हैं और सदमे का अहसास ऐसा गहरा है कि अब वह कहने लगे हैं कि उन्होंने कभी इंडिया आउट की नीति नहीं अपनाई थी.
IMF से 7 अरब डॉलर का कर्ज
बुरे हालात से गुजर रही पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ को 7 अरब डॉलर का कर्ज लेने के लिए IMF की शर्तों के आगे अपमानजनक तरीके से झुकना पड़ा है. पाकिस्तान के हालात इतने खराब हो चुके हैं कि इस कर्ज के लिए उसे अपने मंत्रालयों को भी दांव पर लगाना पड़ा है. वैसे अगर पाकिस्तान को IMF से मिलने वाले कर्ज की बात करें, तो 1958 से जो सिलसिला शुरू हुआ, उसमें यह 25वां ऋण पैकेज है. पाकिस्तान के ऊपर अपनी GDP का करीब 74 प्रतिशत कर्ज है, जिसमें सबसे अधिक 30 अरब डॉलर का कर्ज चीन का है, जबकि 20 अरब डॉलर का कर्ज IMF का है. IMF ने पाकिस्तान को हाल में दिए गए 7 अरब डॉलर के कर्ज की पहली किस्त को जारी भी कर दिया है. पहली किस्त में 1 अरब डॉलर की राशि ट्रांसफर की गई है, शेष राशि वह अगले 37 महीनों में देगा. लेकिन इस कर्ज के साथ ही IMF ने पाकिस्तान पर कई कठिन शर्तें भी लगा दी हैं.
जाहिर है, पाकिस्तान सरकार ने डेढ़ लाख लोगों को नौकरी से निकालकर IMF के सामने दिखा दिया है कि उसने जो खर्च कम करने की शर्त रखी है, उसे वह पूरी ईमानदारी से निभा रहा है. एक तरफ सरकार IMF के खर्च कम करने की शर्त को मान रही है, वहीं दूसरी तरफ आय बढ़ाने की शर्त को मानने के लिए टैक्स बढ़ाने की शर्त को भी मानने को तैयार हो गई है. टैक्स बढ़ाने के लिए पाकिस्तान कृषि और रियल एस्टेट पर टैक्स लगाने की तैयारी कर रहा है. IMF की शर्तों के अनुसार पाकिस्तान को पहले ही बिजली के बिल में जबरदस्त इजाफा करना पड़ा है, जिसका असर यह हुआ है कि पूरे पाकिस्तान में आए दिन विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं. पाकिस्तान की जनता को इन हालात में झोंकने के बावजूद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अपनी सरकार की पीठ ठोंक रहे हैं कि उन्होंने IMF से 7 अरब डॉलर का ऋण लेकर बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है.
पाकिस्तान को भारत की नसीहत
पाकिस्तान जिस तरह मजबूर होकर IMF से 7 अरब डॉलर के ऋण के लिए शर्तों को मान रहा है, उस पर भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने जम्मू-कश्मीर में बांदीपुरा की चुनावी रैली में कहा कि यदि पाकिस्तान भारत के साथ दोस्ती रखता, तो उसे यह 7 अरब डॉलर का कर्ज आसान शर्तों पर बिना किसी दिक्कत के भारत ही दे सकता था. उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014-15 में जम्मू-कश्मीर के विकास के लिए एक स्पेशल पैकेज की घोषणा की थी, जो अब 90,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है. यह रकम IMF से पाकिस्तान द्वारा मांगे गए बेलआउट पैकेज की रकम से कहीं ज्यादा है..."
लेकिन पाकिस्तान के लिए दुर्भाग्य की बात यह है कि वह अपने पड़ोसी भारत की ऐसी स्थिति में मदद भी नहीं ले सकता है. 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 के हटने के साथ ही पाकिस्तान ने भारत पर दबाव बनाने के लिए व्यापारिक रिश्तों को पूरी तरह बंद करने का ऐलान कर दिया था. तब से ही भारत ने इन रिश्तों को बहाल करने के लिए न कोई कदम उठाया है और न ही पाकिस्तान को इसका मौका मिला है.
भारत द्वारा 8 नवंबर, 2016 को लिए गए नोटबंदी के फैसले ने पाकिस्तान में भारत की अवैध करेंसी की छपाई और व्यापार को पूरी तरह ठप कर दिया. इसके साथ ही भारत ने पाकिस्तान के आतंकवाद और आतंकवादी ठिकानों पर जिस तरह से आर्थिक और सैन्य प्रहार किया, उससे पाकिस्तान में आतंकवाद की फैक्टरी पूरी तरह तबाह हो गई, जो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को मजबूती देती थी. भारत के इन निर्णयों के बीच पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता और कोविड महामारी ने भी उसकी कमर को पूरी तरह तोड़ दिया. आज पाकिस्तान भी जानता है कि भारत से दोस्ती उसे हर तरह की जिल्लत और आर्थिक तंगी से बचा सकती है, लेकिन सच्चाई यह है कि वह जम्मू-कश्मीर के मामले में अपने ही बुने जाल में फंस गया है.
मालदीव ने पाकिस्तान से सीख ली
पाकिस्तान की तरह ही मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने 2023 में पद संभालते ही भारत विरोधी रुख अपनाना शुरू किया था. लेकिन उसके आर्थिक हालात इतनी तेजी से खराब होने लगे कि मालदीव को यह समझने में देर नहीं लगी कि भारत का विरोध उसे बहुत महंगा पड़ेगा. राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने 2023 में जिस 'इंडिया आउट' के नारे के साथ मालदीव की सत्ता संभाली थी, आज वह खुद बयान दे रहे हैं कि उन्होंने कभी 'इंडिया आउट' की नीति नहीं अपनाई थी. आज मालदीव के राष्ट्रपति ऐसा बयान सिर्फ इसलिए दे रहे हैं, क्योंकि मालदीव को दिवालिया होने से बचाने में भारत का ही साथ मिला है. भारत ने मालदीव को अक्टूबर माह में ऋण पर ब्याज देने के लिए करीब 50 मिलियन डॉलर की तुरंत मदद की है. भारत के इस दोस्ताना व्यवहार को देखकर राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू का न सिर्फ रुख बदल गया है, बल्कि वह अक्टूबर माह में ही भारत की यात्रा कर इस दोस्ती को और मजबूत करना चाहते हैं.
पाकिस्तान की नीति ने पाकिस्तान को डुबोया
आज पाकिस्तान जिस आर्थिक तंगी और बदहाली से गुजर रहा है, उसके पीछे उसकी सिर्फ भारत विरोधी नीतियां हैं, जो उसने आजादी मिलने के साथ अपनाई थीं. इन नीतियों का एक ही मकसद था कि भारत को लहुलूहान कर पूरी तरह खत्म कर दिया जाए. लेकिन आज पाकिस्तान आर्थिक और सामाजिक रूप से खुद ही लहुलूहान है, जबकि भारत अपना विकास करने के साथ-साथ दूसरे देशों के विकास में लगातार सहयोग करते हुए आगे बढ़ रहा है.
स्वतंत्रता के 75 साल बाद अब पाकिस्तान के लिए एक निर्णायक घड़ी आ गई है. उसे तय करना होगा कि वह आगे भी भारत विरोधी नीतियों पर चलकर ऐसी ही स्थिति में बना रहेगा या वर्तमान स्थिति से पूरी तरह निकलने के लिए भारत के साथ एक अच्छे पड़ोसी और मित्र जैसा व्यवहार करेगा.
हरीश चंद्र बर्णवाल वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं...
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