बोर्ड परीक्षाओं के रिजल्ट को किस तरह देखें पैरेंट्स

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Amaresh Saurabh

लंबे अरसे तक चलने वाली अलग-अलग बोर्ड परीक्षाओं के बाद अब रिजल्ट का सीजन आ चुका है. जिस तरह परीक्षा से पहले छात्रों को खास तैयारी करनी पड़ती है, उसी तरह रिजल्ट के लिए भी पैरेंट्स को मानसिक रूप से तैयार रहने की जरूरत है. पैरेंट्स की तैयारी कैसी हो, इसे मौजूदा हालात में गंभीरता से देखा-समझा जाना चाहिए.

बोर्ड परीक्षाओं का भूत

स्कूल में एक-एक पायदान ऊपर चढ़ने के बाद जब 10वीं या 12वीं बोर्ड की परीक्षाओं का वक्त आता है, तो अक्सर स्टूडेंट दबाव में आ जाते हैं. परीक्षा का भूत, परीक्षा खत्म होने के बाद ही उतरता है. यह बात भी एक हद तक सही है कि बोर्ड परीक्षाएं मील के पत्थर की तरह होती हैं. जहां तक इसके रिजल्ट की बात है, इसे बेहद सावधानी से देखकर ही किसी निष्कर्ष तक पहुंचना चाहिए. खासकर, रिजल्ट को परखने में पैरेंट्स का रोल बड़ा हो जाता है.

बोर्ड परीक्षा या किसी एंट्रेंस एग्जाम का रिजल्ट आने के ठीक बाद टॉपरों की सक्सेस स्टोरी सबको आकर्षित करती है. लेकिन इसके साथ ही परीक्षा में नाकामी से जुड़ी तरह-तरह की निगेटिव खबरें भी सामने आने लगती हैं. ऐसे में किसी भी अप्रिय स्थिति से बचने के लिए पैरेंट्स से बड़ा दिल दिखाने की दरकार होती है. ठीक वैसे ही, जैसा कि मध्य प्रदेश के सागर जिले में रहने वाले एक पिता ने दिखाया था.

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बेटा फेल, पिता ने पार्टी दी

साल 2018 की बात है. सागर जिले के रहने वाले एक कॉन्ट्रैक्टर का बेटा मध्य प्रदेश बोर्ड की 10वीं की परीक्षा में फेल हो गया. कुल 6 विषयों में से 4 में खराब अंक आए. पिता के मन में आशंका हुई कि कहीं बेटा अवसाद का शिकार होकर कोई गलत कदम न उठा ले, इसलिए उन्होंने एक अनोखा फैसला किया.

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बेटे का मनोबल बढ़ाने के लिए उन्होंने अपने घर एक पार्टी रखी. मोहल्लेवालों को मिठाइयां बांटी, भोजन कराया. पटाखे जलाए. सबसे कहा कि बेटा इस बार फेल हो गया है, पर कोई बात नहीं. अगली बार और अच्छे से पढ़ाई करेगा और पास होगा. पिता का मानना था कि इस तरह के रिजल्ट के आधार पर किसी के पूरे जीवन के बारे में राय बना लेना गलत होगा.

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रिजल्ट है, 'फाइनल जजमेंट' नहीं

बात बड़ी सीधी-सी है. बस, सोच का फर्क है. किसी स्टूडेंट की बोर्ड परीक्षा का रिजल्ट चाहे शानदार हो या बेकार, यह न तो 'फाइनल जजमेंट' है, न ही किसी की काबिलियत का अंतिम पैमाना. इसे स्टूडेंट के जीवन की एक परीक्षा के रिजल्ट की तरह देखा जाना चाहिए. इस रिजल्ट के आधार पर उसके भविष्य को लेकर किसी बड़े निष्कर्ष तक पहुंचना जल्दबाजी होगी.

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बोर्ड में बंपर नंबर लाने वाले भी आगे चलकर चौकसी न बरतने पर नाकाम होते देखे गए हैं. दूसरी ओर, इन परीक्षाओं में औसत या इससे नीचे रह जाने वाले भी मेहनत के बूते भविष्य में बड़ा कारनामा कर गुजरते देखे गए हैं. इसलिए बोर्ड के रिजल्ट को सिर्फ मौजूदा वक्त की तस्वीर समझनी चाहिए. किसी स्टूडेंट की हर तरह की काबिलियत आंकने के लिए या पूरी पर्सनैलिटी को देख पाने के लिए सिर्फ एक परीक्षा के रिजल्ट को आधार नहीं बनाया जा सकता.

अच्छे रिजल्ट पर हो जाएं अलर्ट

किसी बच्चे के औसत रिजल्ट से घबराने की उतनी जरूरत नहीं होती, जितनी कि किसी के शानदार रिजल्ट से. खरगोश और कछुए की रेस की कहानी में भले ही तार्किकता का अभाव नजर आता हो, पर वह आज भी प्रासंगिक है. अच्छे रिजल्ट से मनोबल बढ़ना अच्छी बात है, पर अति आत्मविश्वास का शिकार हो जाने का नतीजा दुखद भी हो सकता है.

अच्छे नंबर लाने वाले बच्चों को यह बताया जाना चाहिए कि किसी बड़े लक्ष्य को पाने के लिए लगातार मेहनत करने की जरूरत होती है. बोर्ड परीक्षा की तात्कालिक सफलता को लंबे समय तक भुनाया जाना संभव नहीं है. मतलब, स्थायी कामयाबी पाने की कुछ खास शर्तें होती हैं. उन शर्तों की उपेक्षा कर देने पर सफलता दूर होती चली जाती है.

आकलन का आधार क्या हो?

रिजल्ट देखते समय पैरेंट्स को इस पर विचार करना चाहिए कि स्टूडेंट ने सालभर जी-तोड़ मेहनत की या नहीं. यह देखना ज्यादा जरूरी है कि बच्चे ने अच्छे अंक लाने के लिए कितनी कोशिश की और उन कोशिशों से क्या-कुछ सीखा. अगर प्रयास में कमी नहीं रही, तो फिर नंबर-गेम और आंकड़ों में सिर खपाने का कोई मतलब नहीं रह जाता.

ऐसे मौकों पर कई बार जाने-अनजाने पैरेंट्स अपने बच्चे के रिजल्ट की तुलना दूसरों से करने लगते हैं. ऐसा करने में कोई समझदारी नहीं है. यह मानी हुई बात है कि हर इंसान अलग है और हर किसी की रुचियां और क्षमताएं भी अलग-अलग होती हैं. खराब नंबर आने पर औरों से उसकी तुलना करने से बच्चे का आत्मविश्वास डगमगा सकता है. यह भी देखिए कि हर बच्चे के सामने पेपर भले ही एक जैसे हों, पर सबकी परिस्थितियां एक जैसी नहीं होतीं. पारिवारिक और आर्थिक स्थिति, पढ़ाई के साधन, सुविधाओं से स्तर पर इनमें बड़ा अंतर हो सकता है, इसलिए औरों से तुलना करना बेकार है.

रुझान परखने का मौका

यह बात सही है कि केवल स्कूल के नंबरों से किसी की पूरी जिंदगी की दिशा-दशा तय नहीं हो जाती. जिंदगी की लंबी रेस में उतार-चढ़ाव के कई मौके आते-जाते रहते हैं. इसके बावजूद, बोर्ड के नंबरों से यह पता लगाया जाना थोड़ा आसान हो जाता है कि बच्चे का रुझान किस ओर है. साथ ही, बच्चे के साथ बैठकर बातचीत की जानी चाहिए कि कहां-कहां, किस-किस स्तर पर कमी रह गई. उन कमियों को कैसे सुधारा जा सकता है.

हर किसी को यह समझना चाहिए कि सारे बच्चे पढ़ाई में टॉप नहीं करते. कुछ खेल-कूद, गीत-संगीत, ड्रॉइंग और दूसरी कलाओं में भी बेहतर प्रदर्शन करने के लिए बने होते हैं. पैरेंट्स को चाहिए कि वे रिजल्ट देखते समय लंबी अवधि की कामयाबी को ध्यान में रखें. बच्चे को ऐसा माहौल दें कि वह अपनी क्षमताओं का ठीक-ठीक आकलन कर सके और विश्वास के साथ कदम बढ़ा सके.

खुद से करें सवाल

पैरेंट्स को खुद से सवाल करना चाहिए कि क्या वे बच्चे से उसकी क्षमता या काबिलियत से ज्यादा बढ़-चढ़कर उम्मीद कर रहे थे? क्या इस तरह के आकलन में उनसे किसी स्तर पर भूल तो नहीं हो गई? क्या परीक्षा की तैयारी में दौरान बच्चे को वह सहयोग मिल सका, जो उसे मिलना ही चाहिए था?

याद रखना चाहिए कि नाजुक मौकों पर बच्चों को भावनात्मक सहारे की ज्यादा जरूरत होती है. बच्चे को यह जरूर महसूस कराया जाना चाहिए कि रिजल्ट चाहे जैसा भी हो, आप उसके साथ हैं. यही भरोसा, यही विश्वास आगे चलकर बच्चे को बड़ी कामयाबी दिलाने में सहायक सिद्ध होगा.


अमरेश सौरभ वरिष्ठ पत्रकार हैं... 'अमर उजाला', 'आज तक', 'क्विंट हिन्दी' और 'द लल्लनटॉप' में कार्यरत रहे हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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