उन बच्चों को सलाम, जिन्होंने बोर्ड एग्जाम में मैथ्स को मजाक बनाकर रख दिया!

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Amaresh Saurabh

खबर है कि सीबीएसई की 10वीं की परीक्षा में 11,000 से ज्यादा बच्चों को मैथ्स में 100 में 100 अंक मिले. तमाम सब्जेक्ट के बीच सबसे ज्यादा मार्क्स दिलाने में टॉप पर गणित ही रहा. दूसरा स्थान संस्कृत ने लिया, जिसमें 6500 से ज्यादा स्टूडेंट को पूरे के पूरे अंक मिले. फिलहाल मैथ्स पर फोकस करते हैं, क्योंकि ये 'मार्क्सवादी' छात्रों के बीच लंबे समय से पॉपुलर रहा है.

शाबाश होनहारों!
मैथ्स के पेपर की धज्जियां उड़ाकर रख देने वाले बच्चे सही मायने में शाबाशी के हकदार हैं. गणित अक्सर प्रतिष्ठा का प्रश्न बनते देख गया है. मैथ्स के लिए जान लड़ा देना शान की बात समझी जाती है. घर आने वाले गेस्ट भी बच्चों से सबसे पहले मैथ्स के ही मार्क्स पूछते हैं. हिस्ट्री, हिंदी, भूगोल अक्सर हाशिए पर रह जाते हैं.

मार्क्स दिलवाने में भले ही गणित का कोई तोड़ न हो, लेकिन मोटे तौर पर ये उलझन में डालने वाला विषय है. कई बच्चे गणित से डरकर भागते देखे गए हैं. कइयों के लिए गणित अबूझ पहेली जैसा है. इसकी ठोस वजह भी है. जैसे, पढ़ने-सुनने में 11,000 बड़ी संख्या लगती है. लेकिन मैथ्स में दिमाग चलाने वाले तुरंत पूछ बैठेंगे- कितने बच्चों में 11,000? ये तो इस साल बोर्ड में पास होने वाले लाखों बच्चों का केवल 0.5% ही है. यानी 200 में केवल 1 बच्चे ने मैथ्स में झंडे गाड़े! लीजिए, परसेंटेज ने तुरंत इतनी बड़ी बात की हवा निकाल दी. इसी खेल को गणित कहते हैं.

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गणित की इसी खूबी के कारण इसको हर जगह भाव मिलता है. लेन-देन करने वाले भी परसेंटेज में बात करते हैं. बड़ी रकम भी छोटी दिखने लगती है. मांगने वाला विनम्र भाव से परसेंटेज याद दिलाता है. देने वाला भी परसेंटेज का हिसाब लगाकर संतोष कर लेता है.

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मैथ्स और कल्पना की उड़ान
देखा जाए, तो मैथ्स काफी हद तक हवा-हवाई वाला विषय है. इसके ढेरों सवाल पूरी तरह काल्पनिक होते हैं. उनका हकीकत की दुनिया से कोई वास्ता नहीं होता. ये महज बच्चों को चक्कर में डालने के लिए बने होते हैं. इसे कुछ उदाहरणों से समझिए.

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एक नल एक हौज को 8 घंटे में भर सकता है. दूसरा नल इसे 16 घंटे में खाली कर सकता है. दोनों नल एकसाथ खोल दें, तो हौज कितनी देर में भरेगा? अब जरा सोचिए, क्या धरती पर सबसे सस्ता पानी ही है कि इसे पानी जैसा बहने दिया जाए? दूसरे, इतनी फुर्सत किसके पास है कि वह घंटों-घंटों पानी भरने और खाली करने का ड्रामा करता रहे? और अगर जीवन में सचमुच ऐसा कभी करना ही नहीं, तो इस तरह के सवाल पूछने का क्या तुक है?

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Photo Credit: ANI

एक गाय किसी मैदान में 15 मीटर लंबी रस्सी से, एक खूंटे से बंधी है. वह कुल कितने एरिया में घास चर सकती है? ठीक है, एरिया (A) निकालने के लिए  πr2 वाला फॉर्मूला लगाते हैं. लेकिन इसके लिए बेचारी गाय को बीच में लाने की क्या जरूरत? गाय कितना घास चरेगी, ये तो गाय ही तय करेगी. फॉर्मूला हमें मालूम है, गाय को नहीं.

माना कि ABCD एक समानांतर चतुर्भुज है... क्यों मान लें? आप ही बैठे-बिठाए मान लीजिए ना कि मेरे सारे जवाब सही हैं. सीधे 100 नंबर दे दीजिए, टेस्ट क्यों लेते हैं?

किताबों में ऐसे कितने ही सवाल भरे रहते हैं. बच्चे ज्यादा मार्क्स के चक्कर में सबको झेल जाते हैं. कितने ही अजब-गजब और जटिल फॉर्मूले, सबको बिना शिकायत किए रट जाते हैं. भले ही वे फॉर्मूले जीवन में काम आएं या नहीं.

फायदे का गणित
इन सबके बावजूद, कोई ज्ञान बेकार नहीं जाता. हिसाब-किताब में पारंगत होने के ढेरों फायदे हैं. इंजीनियर बनने के लिए, साइंटिस्ट या सीए-सीएस बनने के लिए गणित की दक्षता खूब काम आती है. एंट्रेंस टेस्ट में भी मैथ्स बिना सब बेकार. मैथ्स मोटा पैकेज दिलवा सकता है. और कुछ नहीं, तो मैथ्स का ट्यूशन-कोचिंग लेने वाले बच्चे भी हर जगह बहुतायत में हैं. ये तो हुई गणित के फायदे की बात. लेकिन क्या केवल मैथ्स का मजबूत होना ही इन सारे फील्ड में काफी है? चलिए चेक करते हैं.

मान लीजिए, किसी इंजीनियर ने कोई पुल बनाया और वह पुल उद्घाटन के छह महीने बाद ही ढह गया. क्या कहेंगे, उस इंजीनियर का मैथ्स कमजोर रहा होगा? जी नहीं, दावे से नहीं कह सकते. गारे में बालू-सीमेंट मिलाए जाते हैं, साइन, कॉस, टैन के फॉर्मूले नहीं. पुल का लोड सरिया पर पड़ता है, फाइल में सहेजकर रखे गए सर्टिफिकेट पर नहीं. बाकी आम पब्लिक का मैथ्स इतना भी कमजोर नहीं है!

विश्वगुरु की ताकत
खैर, अब तक हुई मौज-मस्ती की बात. अब थोड़ा सीरियस हो लें. अपने देश ने जो विश्वगुरु का रुतबा हासिल किया है, इसके पीछे गणित और हमारे गणितज्ञों का भी बड़ा हाथ रहा है. हमने तो इतना दिया कि दुनिया आज भी झुक-झुककर सलाम करती है. लिस्ट इतनी लंबी है कि गिनती करना भी मुश्किल है. लेकिन कुछेक को याद कर लेते हैं.

महान आर्यभट्ट ने ही दुनिया को बताया कि धरती गोल है और अपनी धुरी पर घूमती है. आर्यभट्ट के बताने के बाद ही दुनिया का दृष्टिदोष काफी हद तक दूर हुआ. श्रीनिवास रामानुजन का तो नाम ही काफी है. गणित के इतने सारे थ्योरम दिए कि दुनिया चकित रह गई. उनके रफ पेपर भी संभालकर रखे गए. पता नहीं, कल कौन-सा नया पिटारा खुल जाए!

'थ्योरी ऑफ इस्टीमेशन' देने वाले सीआर राव को कौन भुला सकता है, जिन्हें डॉक्टरेट की डिग्री देने के लिए दुनिया की बीसियों यूनिवर्सिटी कतार में खड़ी रहीं. सांख्यिकी की दुनिया में पीसी महालनोबिस का नाम भी बड़े आदर से लिया जाता है. और सबसे तेज कंप्यूटर को शिकस्त देकर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने वाली 'मानव कंप्यूटर' शकुंतला देवी को भी नमन है!

वीर तुम बढ़े चलो!
ये सब यहां याद दिलाने का मकसद केवल इतना है कि आज की नई पौध में रक्त-संचार तेज हो सके. यह अहसास हो सके कि उनके बस्तों में किन महान पूर्वजों का कर्ज लदा है, जिसे आने वाले दिनों में कुछ नया करके, कुछ शानदार करके चुकाया जाना है.  

हालांकि बच्चों ने टॉप स्कोरिंग विषयों के बीच संस्कृत को सेकंड पोजीशन पर किस तरह पहुंचाया, यह भी दिलचस्प है. संस्कृत में तो गणित से भी ज्यादा घुमावदार मोड़ आते हैं. बॉल हवा में चार बार और टप्पा खाने के बाद तीन बार टर्न लेती है- लट्, लिट्, लुट्, लृट्... और न जाने क्या-क्या. फिर भी बच्चे इतनी आसानी से खेल जाते हैं, ताज्जुब है! सबके लिए शुभकामनाएं!

अमरेश सौरभ वरिष्ठ पत्रकार हैं... 'अमर उजाला', 'आज तक', 'क्विंट हिन्दी' और 'द लल्लनटॉप' में कार्यरत रहे हैं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.