कर्नाटक चुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) के खराब प्रदर्शन पर अपेक्षाकृत किसी का ध्यान नहीं गया.
हालांकि, कर्नाटक में खराब प्रदर्शन से राष्ट्रीय पार्टी की पिच और भाजपा के खिलाफ प्रमुख विपक्षी पार्टी के तौर पर कांग्रेस की जगह लेने के मिशन के लिए दूरगामी प्रभाव पड़ा है. कांग्रेस पार्टी की दमदार वापसी, राज्यों में जीरो नेतृत्व और अरविंद केजरीवाल पर ज्यादा निर्भरता AAP के लिए मामले को ज्यादा मुश्किल बना रही है.
दक्षिण भारत में AAP की एंट्री हालही में राष्ट्रीय पार्टी का तमगा पाने वाले पार्टी के लिए कुछ खास नहीं रहा :
- AAP को कर्नाटक में 0.58% वोट शेयर के साथ 2.25 लाख वोट मिले हैं, जब पार्टी दावा करती है कि राज्य में इसके दो लाख सदस्य हैं. इसलिए इसका मतलब है कि पार्टी के सदस्यों ने ही इसके लिए वोट किया है.
- इसे NOTA (0.69%) से भी कम वोट मिले हैं, इसके साथ ही आम आदमी पार्टी के सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई है.
- इसके 208 उम्मीदवारों में से केवल 72 को 1,000 से अधिक वोट मिले.
- इसे बेंगलुरु में शहरी या मध्यम वर्ग का वोट भी नहीं मिल सका, जहां मतदाताओं में उदासीनता देखने को मिली है.
- आम आदमी पार्टी के सभी हाई-प्रोफाइल उम्मीदवार अर्बन बेंगलुरु में हार गए.
दिल्ली, पंजाब और गुजरात जैसे राज्यों में आम आदमी पार्टी को सफलता काफी हद तक कांग्रेस की वजह से मिली है. दिल्ली में AAP के लगभग 67% और पंजाब और गुजरात में 85% प्रत्येक में वोटर्स पहले कांग्रेस के साथ थे.
AAP और कांग्रेस दोनों के वोट बैंक काफी हद तक एक समान ही हैं. AAP ने इन राज्यों में गरीब मतदाताओं और निम्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के लोगों, दलितों और अल्पसंख्यक समुदायों को कांग्रेस पार्टी से खींचा है.
पिछले आठ से नौ वर्षों में कांग्रेस के गिरते प्रदर्शन और पंजाब में अपनी जीत से उत्साहित, AAP ने अगस्त 2022 में 'मेक इंडिया नंबर 1' कैंपेन की शुरुआत के साथ अपनी राष्ट्रीय आकांक्षाएं जाहिर कर दी थीं. कैंपेन में इस बात पर जोर दिया गया था कि विकास के लिए देश को उन लोगों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता जो अब तक सत्ता में रहे हैं.
AAP कांग्रेस और भाजपा दोनों से एक समान दूरी बनाए रखेगी क्योंकि पार्टी जोड़-तोड़ की राजनीति में भरोसा नहीं रखती है. AAP का मकसद एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में उभरना, नई कांग्रेस के रूप में उभरना और भाजपा को टक्कर देना था.
हालांकि, आम आदमी पार्टी की उम्मीदें धराशायी हो गईं क्योंकि कांग्रेस ने हालही में हुए कर्नाटक चुनाव में भाजपा को हराते हुए बेहतर प्रदर्शन किया. कांग्रेस ने शहरी और मध्यम वर्ग के वोटरों का भरोसा हासिल करते हुए समाज के गरीब और हाशिए पर पड़े तबके (आम आदमी) का समर्थन हासिल किया.
पार्टी ने किसी भी विपक्षी मोर्चे का नेतृत्व करने का अपना दावा फिर से स्थापित कर लिया है. यह संभावित रूप से विपक्षी मतदाताओं के बीच पुनर्विचार को मजबूर कर सकता है जो इसके लगातार खराब प्रदर्शन के बाद दूसरे विकल्प की तलाश में थे. कर्नाटक नतीजों के बाद भाजपा विरोधी मतदाताओं में कांग्रेस पार्टी की अपील को बल मिला है.
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे आगामी चुनावी राज्यों में कांग्रेस बनाम BJP की आमने-सामने की लड़ाई में, AAP की मौजूदगी बहुत हद तक सीमित है. गुजरात की तरह अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए AAP को आज से ही आक्रामक तरीके से प्रचार करना होगा क्योंकि समय कम बचा है. राजस्थान में AAP की पूरी रणनीति सचिन पायलट के कांग्रेस छोड़कर संभवत: उनके साथ आने के सिनेरियो पर टिकी हुई है, जिसकी संभावना कम ही दिखती है.
आम आदमी पार्टी के दो वरिष्ठ मंत्री मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन के भ्रष्टाचार के मामलों में जेल जाने के बाद पार्टी कमजोर पड़ी है. पार्टी की छवि को गहरा धक्का पहुंचा है.
AAP सत्ता के बंटवारे को लेकर केंद्र और उपराज्यपाल से लगातार टकराव में भी उलझी हुई है. ये परिस्थितियां केजरीवाल की क्षमता को अन्य राज्यों में पार्टी के लिए बड़े पैमाने पर प्रचार करने से रोकती हैं.
अन्य राज्यों में इसकी कोई अहम मौजूदगी नहीं है, जो कि इसकी राष्ट्रीय आकांक्षाओं को चोट पहुंचाती हुई दिख रही है. इस सबको देखते हुए यह विश्वास दिलाना मुश्किल हो जाता है कि आम आदमी पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव में एक व्यवहार्य विकल्प है.
गुजरात चुनाव में हार के बाद कांग्रेस पार्टी ने आम आदमी पार्टी के गरीबों (मुफ्त बिजली और रसोई गैस), और महिलाओं और युवाओं (नकदी) देने के ऑफर्स देने की रणनीति को बड़ी चालाकी के साथ अपना लिया. कांग्रेस ने शुरुआती वादे और गारंटियों का ऐलान करने, जमीनी स्तर पर अपना संदेश पहुंचाने, एजेंडा सेट करने के AAP के कैंपेन मॉडल को भी अपनाया है.
कांग्रेस के कर्नाटक में अपने वोट शेयर में सुधार के साथ, AAP की 2024 में सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की जगह लेने की आशा धूमिल होती दिख रही है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2024 में भाजपा के खिलाफ एक संयुक्त विपक्षी मोर्चे पर चर्चा करने के लिए अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की है.
अब कांग्रेस का कहना है कि वह संसद में दिल्ली के अधिकारियों की पोस्टिंग पर केंद्र के कदम के खिलाफ AAP का समर्थन करने पर विचार करेगी. AAP का कांग्रेस के साथ मोहब्बत-नफरत का रिश्ता वोटरों को भी उसकी पोजिशन को लेकर कंफ्यूज करता है.
कर्नाटक के नतीजों ने बीजेपी के लिए राष्ट्रीय विकल्प बनने और 2024 के चुनावों में कांग्रेस की जगह लेने की AAP की आकांक्षाओं को खत्म सा कर दिया है.
(अमिताभ तिवारी एक राजनीतिक रणनीतिकार और कमेंटेटर हैं. इससे पहले वह एक कॉर्पोरेट और इंवेस्टमेंट बैंकर थे)
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