बिहार चुनाव में महिला वोटर्स को साधने में क्‍यों लगे हैं सारे दल, असली वजह आई सामने 

महागठबंधन के दल जानते हैं कि महिला मतदाताओं को अपने पाली में लाए बगैर वे सत्ता में नहीं आ सकते. इसलिए उन्होंने महिलाओं के खाते में ढाई हजार रुपए महीने देने का ऐलान किया. इस तरह की योजनाएं महाराष्ट्र, झारखंड, मध्यप्रदेश तक में गेम चेंजर रही हैं.

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  • बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन ने 33 और एनडीए ने 35 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया है महिला भागीदारी बढ़ी.
  • बिहार में महिला मतदाताओं की संख्या लगभग तीन करोड़ पचास लाख है जो पुरुष मतदाताओं से कम है.
  • चुनावों में महिला मतदाताओं का वोटिंग प्रतिशत पुरुषों से ज्‍यादा है, वो चुनावों में अहम भूमिका निभाती हैं.
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पटना:

बिहार विधानसभा चुनाव में दोनों ही गठबंधन महिला मतदाताओं को साधने के लिए जोर लगाए हुए हैं. घोषणाओं के साथ-साथ टिकट में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है. एनडीए ने 35 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है तो वहीं महागठबंधन की तरफ से 33 महिलाएं मैदान में हैं. राजद ने सबसे ज्‍यादा 24 महिलाओं को टिकट दिया है. पार्टी इसके जरिए नीतीश कुमार के कोर वोट बैंक में सेंधमारी करना चाहती है. बिहार में 3 करोड़ 92 लाख 7 हजार पुरुष और 3 करोड़ 49 लाख 82 हजार 828 महिला मतदाता हैं. 

महिलाओं को किसने दिए कितने टिकट

महागठबंधन ने पिछली बार 24 महिलाओं को टिकट दिया था. इनमें से 9 महिलाएं जीत कर आई थी. इस बार गठबंधन ने 33 महिलाओं को टिकट दिया. एनडीए ने पिछली बार 37 महिलाओं को टिकट दिया था. इनमें से 17 महिलाएं जीत कर आई थी. इस बार 35 महिलाओं को टिकट दिया है. जो पिछली बार से कम है. 

क्यों महत्वपूर्ण हैं महिला मतदाता?

बिहार में महिला मतदाता पुरुषों के मुकाबले ज्यादा वोट करती हैं. साल 2010 के चुनाव में 51.12 फीसदी पुरुषों ने वोट किया था तो 54.49 फीसदी महिलाएं वोट के लिए बाहर आई थी. साल 2015 के चुनाव में 53.32 प्रतिशत पुरुष और 60.48 फीसदी महिलाओं ने वोट किया था. बीते विधानसभा चुनाव में 54.45 प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले 59.69 प्रतिशत महिलाएं वोट के लिए बाहर निकली थीं. यानी पिछले 3 चुनाव से हर बार महिलाओं ने ज्यादा वोट किया है. आंकड़े यह बताने के लिए काफी हैं कि महिला मतदाता क्यों महत्वपूर्ण हैं. 

नीतीश कुमार ने महिला मतदाताओं को साधा

साल 2005 में सरकार बनाने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पंचायती राज में 50 फीसदी आरक्षण दिया. स्कूल जाने वाली लड़कियों को साइकिल दी. बाद में दसवीं और बारहवीं, ग्रेजुएशन पास करने पर प्रोत्साहन राशि का भी ऐलान किया. इन फैसलों ने महिलाओं को उनसे जोड़ा. शराबबंदी का फैसला भी महिलाओं की मांग पर किया. जबकि इससे राज्य को भारी आर्थिक नुकसान हुआ. नीतीश कुमार के इन फैसलों के कारण महिला मतदाताओं ने उन्हें सबसे ज्यादा वोट किया. 

क्‍या था पिछले चुनावों में हाल 

इसे पिछले चुनाव के परिणामों से भी समझा जा सकता है. पहले फेज में पुरुषों (56.8 प्रतिशत) ने महिलाओं (54.4प्रतिशत) के मुकाबले 2.4 प्रतिशत अधिक वोटिंग की. इस फेज में महागठबंधन ने 71 में से 47 सीटें जीत ली. दूसरे चरण में महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले करीब 6 फीसदी अधिक वोट डाले. तब 94 में से महागठबंधन 42 सीटें ही जीत पाया, एनडीए को ज्यादा सीटें मिली.  

तीसरे चरण में दोनों का अंतर 11 प्रतिशत हो गया और महागठबंधन को बुरी हार मिली. तीसरे चरण की 78 सीटों में से एनडीए को 52 सीटें मिली यानी दो तिहाई. आंकड़े बताते हैं कि महिला मतदाताओं ने जब - जब अधिक वोट किया, एनडीए को जीत मिली, कम वोट किया तो हार. इस वर्ग को अपने साथ बनाए रखने के लिए इस बार सरकार ने 10 हजार रुपए भेजने समेत कई अन्य ऐलान किए हैं और महागठबंधन के मुकाबले अधिक टिकट भी दिया है. 

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नीतीश के वोट बैंक पर महागठबंधन की नजर

महागठबंधन के दल जानते हैं कि महिला मतदाताओं को अपने पाली में लाए बगैर वे सत्ता में नहीं आ सकते. इसलिए उन्होंने महिलाओं के खाते में ढाई हजार रुपए महीने देने का ऐलान किया. इस तरह की योजनाएं महाराष्ट्र, झारखंड, मध्यप्रदेश तक में गेम चेंजर रही हैं. प्रियंका गांधी ने भूमिहीन परिवारों को 3 से 5 डिसमिल जमीन देने का ऐलान किया था. इस जमीन का मालिकाना हक महिलाओं के पास होगा. गठबंधन को उम्मीद है कि इन घोषणाओं और टिकट में भागीदारी से महिला मतदाता उनके तरफ वोट करेंगी. इस संभावित खतरे को देखते हुए एनडीए ने भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई है. एनडीए ने 35 महिलाओं को टिकट दिया है ताकि उनका वोट बैंक जुड़ा रहे. 

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