- बिहार के गोपालगंज के पूर्व सांसद काली प्रसाद पांडेय का दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में निधन हो गया.
- काली प्रसाद पांडेय ने लंबे समय तक कांग्रेस और बाद में लोजपा के राष्ट्रीय महासचिव के रूप में कार्य किया.
- उन्होंने 1984 के लोकसभा चुनाव में जेल में रहते हुए निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस प्रत्याशी को हराया.
बिहार के गोपालगंज के पूर्व सांसद काली प्रसाद पांडेय नहीं रहे. दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में शुक्रवार की रात उनका निधन हो गया. वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे. उनके निधन के बाद गोपालगंज में शोक की लहर है. वे अपने पीछे पत्नी मंजू माला, भाई आदित्य नारायण पांडेय(बीजेपी एमएलसी), तीन बेटों, पंकज कुमार पांडेय, धीरज कुमार पांडेय, बबलू पांडेय समेत भरा-पूरा परिवार छोड़ गए. काली प्रसाद की गोपालगंज में एक समय तूती बोलती थी. वे थे तो कांग्रेस में, लेकिन चुनाव जीतने के लिए उन्हें पार्टी के टिकट की दरकार नहीं रही. एक समय तो ऐसा था, जब पूरे देश में कांग्रेस की लहर होने के बावजूद वो निर्दलीय चुनाव जीत गए.
युवावस्था में ही 'नेता' बन गए थे काली
काली प्रसाद पांडेय का जन्म गोपालगंज के रमजीता गांव में भगन पांडेय के घर हुआ था. बताया जाता है कि काली प्रसाद पांडे युवावस्था से ही सामाजिक कार्यों में सक्रिय थे. गंडक नदी के तटीय इलाकों में पनप रही 'जंगल पार्टी' के अपराधों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. युवाओं को संगठित कर क्राइम कंट्रोल की उनकी कोशिश को आज भी याद किया जाता था. शायद तभी तय हो गया था कि वे 'बड़े' नेता होंगे. काली प्रसाद पांडे सियासी सफर साल 1980 में शुरू हुआ. उन्होंने पहली बार गोपालगंज विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और पहली ही बार में जीत दर्ज कर विधायक बन गए. 1980 से 1984 तक बिहार विधान सभा के सदस्य रहे. फिर आम चुनाव में उतरे और सांसद बन गए.
कांग्रेस लहर के बावजूद जेल में रहते जीता चुनाव
काली प्रसाद का सियासी सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा. विधायक रहते हुए एक मामले में आरोपित काली पांडे को जेल जाना पड़ा था. इलाके में उनकी छवि बाहुबली की बन गई थी. उनकी लोकप्रियता भी खूब थी. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब पूरे देश में सहानुभूति फैक्टर के चलते कांग्रेस की लहर थी, उसके बावजूद साल 1984 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के खिलाफ गोपालगंज से निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीता.
जीत के बाद कांग्रेस में लेकर आए थे राजीव गांधी
इस चुनाव में काली प्रसाद ने जेल में रहते हुए भी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस प्रत्याशी नगीना राय को हराया और सांसद बने थे. काली प्रसाद की जीत के बाद उनका प्रभाव और बढ़ता जा रहा था. इसको देखते हुए राजीव गांधी ने उन्हें कांग्रेस में शामिल कराया.
काली प्रसाद पांडेय ज्यादा समय कांग्रेस में रहे. बाद में वो रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा से भी जुड़े. 2003 में वे लोजपा में शामिल हुए और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव, प्रवक्ता और उत्तर प्रदेश के प्रभारी के रूप में सक्रिय रहे. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने लोजपा छोड़कर कांग्रेस में वापसी की और कुचायकोट सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. बाद के चुनावों में उन्हें सफलता नहीं मिली.
बिहार की राजनीति में उन्हें 'रॉबिनहुड' की तरह भी देखा गया. 1987 में आई फिल्म प्रतिघात में विलेन ‘काली प्रसाद' का किरदार उन्हीं से प्रेरित था.