- बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में प्रशांत किशोर की पार्टी के असर को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है.
- माना जा रहा है, वो गठबंधनों के वोट बैंक में सेंध लगाएंगे और 8-12 फीसद वोट पाने की संभावना भी जताई जा रही है.
- NDTV पर चुनावी पंडितों ने अपनी बेबाक राय रखी कि इस समय बिहार के चुनाव में किसका पलड़ा भारी है.
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में प्रशांत किशोर की पार्टी के असर को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है. पर इतना तय माना जा रहा है कि ये दोनों गठबंधनों के वोट बैंक में सेंध डालेगी. इसके साथ ही बिहार में प्रवासी मतदाताओं का मुद्दा भी अहम है. यह मुद्दा तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर ने मुखरता से उठाया है कि क्यों यहां के लोगों को देश के अन्य राज्यों में अपनी आजीविका कमाने के लिए जाना पड़ता है. महिलाओं ने पिछले चुनाव में पुरुषों से आगे बढ़ कर वोट डाले थे. उनका वोट प्रतिशत पुरुषों से अधिक रहा था. इस बार भी ऐसा ही होने की पूरी संभावना जताई जा रही है.
राहुल कंवल, CEO, NDTV
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मतलब साफ है कि नारी शक्ति का बिहार के चुनाव पर असर होना तय है. अपनी योजनाओं को लेकर नीतीश कुमार महिलाओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं. इसके साथ ही यहां के सबसे बड़े मुद्दों में से एक रोजगार भी है और क्या SIR के दौरान मतदाता सूची से हटाए गए नामों की संख्या से चुनाव के नतीजों पर असर पड़ेगा? तो युवाओं की रोजगार की समस्या से लेकर महिलाओं के वोट और ओबीसी-सवर्णों के वोट समेत कई ऐसे मसले हैं जो इस चुनाव के नतीजे तय करने में बहुत बड़े किरदार निभाएंगे. उधर नीतीश कुमार को एनडीए के मुख्यमंत्री का चेहरा तो माना जा रहा है, पर बीजेपी के बड़े नेताओं ने उनका नाम बतौर मुख्यमंत्री घोषित नहीं किया है. साथ ही नीतीश कुमार की तबीयत को लेकर भी यहां एक धारणा बन रही है. उनकी उम्र भी 74 साल से अधिक हो चुकी है. ऐसे में बिहार में कौन हो सकता है संभावित मुख्यमंत्री चेहरा? इन सभी मुद्दों पर एनडीटीवी के कार्यक्रम बैटलग्राउंड बिहार में एनडीटीवी के सीईओ राहुल कंवल ने सभी प्रमुख दलों के नेताओं और राजनीतिक विशेषज्ञों के साथ विस्तार से बात की.
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नीतीश के बाद नई पीढ़ी का नेता कौन होगा?
पिछले तीन दशकों से बिहार में लालू-नीतीश की सरकार ही राज करती रही है. अब तेजस्वी यादव, चिराग पासवान, प्रशांत किशोर और बीजेपी के कई नेता हैं. यह बिहार के लालू-नीतीश दौर और बिहार के भविष्य का समय है क्योंकि नीतीश कुमार की उम्र भी 74 साल से अधिक हो चुकी है. पिछले साल दिसंबर से लेकर अब तक उनकी तबीयत खराब होने की कई खबरें भी आ चुकी हैं.
ऐसे में बिहार में कौन हो सकता है भविष्य में मुख्यमंत्री चेहरा इस पर कई चर्चाएं होती रही हैं.
चुनाव विज्ञानी (सेफोलॉजिस्ट) अमिताभ तिवारी एनडीटीवी से कहते हैं, "यह नीतीश कुमार का अंतिम चुनाव हो सकता है. बिहार बीजेपी में इस समय कोई एक स्पष्ट लीडर नहीं है. 2020 में उनके पास दो उपमुख्यमंत्री थे. जब 2024 में नीतीश कुमार ने 'घर वापसी' की तो उन्हें दो नए चेहरों से बदल दिया गया. वहीं लालू यादव के परिवार में तेजस्वी यादव उनके स्पष्ट राजनीतिक उत्तराधिकारी हैं. उनकी उम्र केवल 35 साल है. तो यह भी स्पष्ट है कि उनके पास एक लंबी राजनीतिक पारी खेलने के लिए पूरा समय है. वहीं चिराग पासवान भी युवा है. भविष्य में वो अहम किरदार निभा सकते हैं."
अगर प्रशांत किशोर खेल बिगाड़ेंगे तो कहां और किसका?
जिस तरह से अभी बिहार की राजनीति में आरजेडी, बीजेपी और जेडीयू तीन महत्वपूर्ण पार्टियां हैं. ठीक उसी तरह यहां राजनीतिक का पहिया हमेशा तीन राजनीतिक दलों के बीच ही घूमता रहा है.
अमिताभ तिवारी का कहना है, "अगर प्रशांत किशोर इस चुनाव में अगर नहीं जीतते हैं और उसके बाद भी बिहार में रुके रहे तो वो तीसरी पार्टी की जगह ले सकते हैं."
बता दें कि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए को 37%, महागठबंधन को 37% और अन्य दलों को 26% वोट मिले थे. हालांकि गठबंधन में बदलाव होने की वजह से एनडीए के वोट शेयर में पांच फीसद का लाभ हुआ और ये बढ़ कर 42% हो जाता है. महागठबंधन को भी दो फीसद का फायदा हुआ और उनका वोट शेयर भी 39% हो जाता है. वहीं गठबंधनों के स्वरूप में बदलाव से अन्य दलों के वोट शेयर में 6% फीसद की गिरावट देखने को मिलती है.
ऐसे में चुनाव विज्ञानी अमिताभ तिवारी का कहना है कि बिहार के चुनाव में इस बार प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज का असर देखने को मिल सकता है.
अगर प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में 10 फीसद वोट हासिल कर लिए तो बिहार में अन्य दलों के वोट प्रतिशत में बदलाव आ सकता है. अमिताभ तिवारी तीन ऐसी परिस्थितियां बताते हैं जो इस बार के चुनाव नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं.
पहली परिस्थिति- अगर प्रशांत किशोर की पार्टी को 10 प्रतिशत वोट मिलता है और ये महागठबंधन और अन्य दलों से उनके पास आता है तो राज्य में एनडीए का वोट प्रतिशत 42 फीसद पर आ जाएगा. वहीं महागठबंधन का वोट 34% हो जाएगा.
दूसरी परिस्थिति- अगर प्रशांत किशोर की पार्टी को ये 10 फीसद वोट एनडीए और अन्य दलों से आते हैं. तो एनडीए का वोट प्रतिशत 37 हो जाएगा जो महागठबंधन के 39 फीसद से कम होगा. दोनों ही परिस्थितियों में अन्य दलों के वोट शेयर घटकर 15 फीसद रह जाएंगे.
तीसरी परिस्थिति- वहीं अगर प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज एनडीए और महागठबंधन दोनों के वोटों में (2.5%) बराबर सेंध लगाने में कामयाब रही और अन्य दलों से भी 5 प्रतिशत वोट जुटाई तो एनडीए का वोट प्रतिशत 39 और महागठबंधन का 36 पर आ जाएगा.
प्रशांत किशोर की युवाओं और सवर्णों में लोकप्रियता
अमिताभ तिवारी बताते हैं कि बिहार में अन्य दलों को 20 फीसद वोट हासिल होने का इतिहास रहा है. वो कहते हैं, "प्रशांत किशोर को अधिकांश वोट थर्ड फ्रंट के दलों से मिलने के आसार हैं. अब थर्ड फ्रंट के वोटर्स के पास प्रशांत किशोर के रूप में एक जाना माना चेहरा है जो एनडीए और महागठबंध के खिलाफ लड़ रहा है. उन्हें युवाओं से स्पष्ट समर्थन मिलने के आसार हैं. ऐसे में वो युवाओं के 12 से 14 फीसद वोट हासिल कर सकते हैं."
राजनीतिक विशेषज्ञ अमिताभ बताते हैं, "प्रशांत किशोर को सवर्ण वोटर्स से भी समर्थन हासिल हो रहा है. उन्हें उम्मीद होगी कि प्रशांत किशोर राज्य में 35 साल बाद सवर्ण मुख्यमंत्री बनाएंगे. संभव है कि यही वो कारण है कि एनडीए और उनके शीर्ष नेतृत्व (प्रधानमंत्री, गृह मंत्री) ने अब तक यह स्पष्ट रूप से नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं किया है. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि बीजेपी के एक तिहाई वोटर्स नहीं चाहते हैं कि नीतीश कुमार अगला मुख्यमंत्री बनें."
अमिताभ तिवारी, सेफोलॉजिस्ट
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जनसुराज ने सवर्ण और बनिया समुदाय से 92 प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं तो बीजेपी में भी यह डर है कि कहीं ऐसा न हो कि जिन वोटर्स ने 2020 में एलजेपी को अपना समर्थन दिया था वो जनसुराज की ओर रुख कर लें.
कुल मिलाकर वो इस चुनाव को जीत तो नहीं रहे हैं पर अन्य दलों के समीकरणों को बिगाड़ने का काम करेंगे. ठीक वैसे ही जैसे एलजेपी ने 2020 के चुनावों में किया था. ऐसे 83 सीटें हैं जिन पर जीत का अंतर 5 फीसद या उससे कम था. इनमें से 37 सीटें एनडीए के पास गई थीं तो 38 महागठबंधन ने हासिल किए थे और अन्य दलों ने सात सीटें जीती थीं. अगर इन सीटों पर प्रशांत किशोर की पार्टी को 5 प्रतिशत वोट शेयर मिलते हैं, तो जनसुराज पार्टी इन दोनों गठबंधनों की संभावनाओं को बिगाड़ सकती है. तो इस चुनाव में जनसुराज पार्टी जितना बढ़िया प्रदर्शन करेगी, नतीजे उतने ही करीबी रहेंगें. जबकि प्रशांत किशोर की पार्टी का कमजोर प्रदर्शन किसी एक गठबंधन के पक्ष में एकतरफा नतीजे ला सकता है."
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प्रशांत किशोर और तेजस्वी यादव पर क्या बोले रविशंकर प्रसाद?
बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि "बिहार में आपके चुनावी आंकड़ों से मैं सहमत नहीं हूं. हम भी जमीन पर रहते हैं. बिहार की जमीन को हम समझते हैं. बिहार में प्रशांत किशोर का काफी हल्ला है, यह लोकतंत्र के लिहाज से अच्छा भी है. लेकिन जमीन हकीकत स्पष्ट है कि कौन किसे समर्थन देगा. एनडीए को पूर्ण और स्पष्ट बहुत मिलेगा."
वो कहते हैं कि, "लोग यह कहते सुने जा रहे हैं कि नीतीशवा ठीके हई, ठीके काम करे है."
युवाओं पर रविशंकर प्रसाद कहते हैं, "निश्चित रूप से युवाओं को उनके परिवार से 'जंगलराज' के बारे में सुनने को मिला होगा और उस दौर में उन परिवारों ने खोया, जिससे वो अब तक पूरी तरह नहीं उबर पाए हैं. वो सब सुनने को मिला होगा. आपको बताएं कि जब हम चारा घोटाला के खिलाफ लड़ रहे थे तब हमें भी लगातार धमकियां मिला करती थीं. लालू प्रसाद यादव को अलग अलग मामलों में 35 साल के अधिक की सजा हुई है. तेजस्वी यादव के खिलाफ धारा 420 के तहत जनता का पैसा लूटने का मुकदमा चल रहा है. अगर ये सवाल मीडिया नहीं उठाएगी तो युवाओं के साथ अन्याय होगा. आज के युवा अजित झा जैसे राजनीतिक विशेषज्ञ के साथ सोशल मीडिया पर राज्य में चल रहे चुनावी असर के बारे में बात कर रहे हैं. अगर विकल्प के रूप में तेजस्वी यादव को देखा जा रहा है तो मैं इससे सहमत नहीं हूं."
जनसुराज पार्टी के महासचिव पवन वर्मा
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क्या प्रशांत किशोर को युवाओं को उतना समर्थन मिलेगा?
जनसुराज के महासचिव पवन वर्मा कहते हैं कि इस चुनाव में जनसुराज केवल गठबंधन के वोटों में सेंध नहीं लगाएगी बल्कि उसे धर्म और जाति से ऊपर उठ कर लोगों का समर्थन मिल रहा है तो नतीजे कहीं अच्छे आएंगे.
वो कहते हैं, "बिहार की 50 फीसद से अधिक जनता 35 साल से कम उम्र की है. जनसुराज ने उन लोगों को उम्मीदें दी हैं जो पिछले तीन से अधिक दशकों से हासिए पर धकेल दिए गए हैं और वो जनसुराज की ओर उम्मीदों के साथ देख रहे हैं."
पवन वर्मा नीतीश कुमार के साथ काम कर चुके राजनयिक और लेखक हैं जो अब प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज के साथ जुड़े हैं.
बिहार में प्रशांत किशोर की रैलियों में लोगों का हुजूम देखने को मिल रहा है. क्या जुनसुराज उन लोगों को अपने वोट बैंक में बदल कर सकेगा? इस पर वरिष्ठ पत्रकार प्रभु चावला कहते हैं, "प्रशांत किशोर में राजनेताओं की जनसभाओं में लोगों के इक्ट्ठा करने की कला मौजूद है. पर लोगों के हुजूम को वोट में बदल सकते हैं या नहीं यह तो देखना ही होगा. बिहार के बारे में वैसे भी यह धारणा है कि वहां के 70 फीसद ओपिनियन पोल गलत साबित हो जाते हैं. ऐसे में कुछ भी कहना मुश्किल है."
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सचिन पायलट का कहना है कि बिहार की जनता नीतीश कुमार के शासन से उब चुकी है.
वे कहते हैं, "बिहार की जनता बदलाव चाहती है और महागठबंधन में लोगों का अटूट विश्वास है. हमने देश की संसदीय चुनाव साथ लड़े हैं. अब हम राज्य की विधानसभा चुनाव साथ लड़ रहे हैं. युवाओं को बिहार में जॉब चाहिए और हमारे चुनावी घोषणा पत्र में इस पर खास जोर दिया गया है.
सचिन पायलट, कांग्रेस नेता
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SIR क्या अपना असर दिखाएगा?
बिहार में कांग्रेस ने वोट चोरी का मुद्दा बहुत मुखर हो कर उठाया है. इससे पूरे राज्य में वोटरों की संख्या में औसतन 15,809 वोटर्स यानी 4.89% की कमी आई है. सीमांचल में 6.12%, भोजपुर में 5.56%, अंग प्रदेश में 5.06%, मिथिलांचल में 4.94%, तिरहुत में 4.62% और मगध में 3.73% वोटर्स के नाम मतदाता सूची से हटाए गए हैं.
इस पर सचिन पायलट कहते हैं, "बिहार में कई वैसे लोग जिनका नाम वोटर लिस्ट से हटाया गया है वो चुनाव आयोग तक पहुंचे हैं. बहुत से लोगों के यह मतदान के दिन तक पता चलेगा. पर यह मामला बहुत गंभीर है और अब यह केवल बिहार तक सीमित नहीं है क्योंकि SIR अन्य राज्यों में भी किया जा रहा है. और देश की सभी विपक्षी पार्टियों ने कहा है कि SIR को पारदर्शी होकर किया जाना चाहिए, वर्तमान स्वरूप में यह स्वीकार नहीं है."
पिछले चुनाव में 30 ऐसी सीटें थीं जिन पर जीत का अंतर 14,309 वोटों से कम था. यह संख्या SIR में पूरे बिहार में हटाए गए मतदाताओं की औसत संख्या के ईर्दगिर्द है.
सचिन पायलट कहते हैं, "हमने हटाए गए उन लोगों को मतदान सूची में फिर से शामिल करने की चुनाव आयोग से अपील की है. जो दिहाड़ी मजदूर हैं और 100-200 रुपये कमाते हैं और अपना नाम जुड़वाने के लिए चुनाव आयोग के चक्कर नहीं लगा सकते. यहां तो बात करीब 5 से 6 प्रतिशत वोटर्स के नाम मतदाता सूची से हटाए जाने की है, अगर केवल 1 फीसद वोट भी हटाएं जा रहे हैं तो यह प्रजातंत्र की अहमियत के खिलाफ है."
इसके बाद उन्होंने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा, "हमने चुनाव आयोग से ये सवाल उठाया तो बीजेपी प्रवक्ता की तरफ से जवाब क्यों आया. ये स्वीकार नहीं है. ये एक स्वतंत्र एजेंसी है और किसी भी राजनीतिक पार्टी की विचारधारा से उसका कोई लेना देना नहीं है. अगर चुनाव के 45 दिनों बाद सभी सीसीटीवी फुटेज डिलीट कर दिया जाता है तो सबूत कहां से आएंगे."
वरिष्ठ पत्रकार कंचन गुप्ता
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"जनसुराज के बिहार के चुनाव में उभरने की अभी संभावना नहीं"
वरिष्ठ पत्रकार कंचन गुप्ता कहते हैं कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महिलाओं का वोट निर्णायक होगा. हालांकि वे यह भी कहते हैं कि इस चुनाव में नई पार्टी का असर उतना नहीं होगा.
वो कहते हैं, "दिल्ली में नई पार्टी का असर इसलिए हुआ क्योंकि वहां कांग्रेस का पतन हो गया था. पर बिहार में ऐसी स्थिति नहीं है. अगर इसकी तुलना करना भी है तो गुजरात में आम आदमी पार्टी के चुनावी नतीजों से कर सकते हैं जहां पूरी जोर आजमाइश के बावजूद उसे वो सफलता हासिल नहीं हुई जो उसे दिल्ली में मिली. पंजाब में भी आप को सफलता कांग्रेस और अकाली दल के पतन होने की वजह से मिली. वहीं पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और वाम दल साथ मिलकर लड़ने के बावजूद 5 फीसद वोट से अधिक हासिल नहीं कर पा रहे हैं. बिहार राजनीतिक रूप से बहुत ठोस और संजीदा राज्य है, वहां किसी नई पार्टी के अचानक उभरने जैसी घटना की उम्मीद फिलहाल नहीं की जा सकती."
कंचन गुप्ता यह जोर देकर भी कहते हैं कि प्रशांत किशोर खुद चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, यानी वो इसका खतरा नहीं उठा रहे हैं. चुनाव में अगर आप हार-जीत का जोखिम नहीं मोल लेगें तो आपके समर्थन में कोई आगे नहीं आएगा."
वहीं जनसुराज के प्रदेश अध्यक्ष मनोज कुमार भारती कहते हैं कि जनसुराज पार्टी का गठन विभिन्न मापदंडों के आधार पर हुआ है. जहां पीके के चुनाव में उतरने और नहीं उतरने से कोई अंतर नहीं पड़ेगा.
एनडीटीवी के कंसल्टिंग एडिटर और वरिष्ठ पत्रकार अजीत कुमार झा
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एनडीटीवी के कंसल्टिंग एडिटर और वरिष्ठ पत्रकार अजीत कुमार झा कहते हैं, "नई पार्टियों, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की दिल्ली में जीत हो, असम गण परिषद के असम में या आंध्र प्रदेश में तेलगुदेशम पार्टी की जीत हो, ये सभी जन-आंदोलन से उभरे नतीजे थे. प्रशांत किशोर उस तरह के जन-आंदोलन के चेहरे नहीं हैं जैसे नीतीश और लालू जेपी आंदोलन से उभरे चेहरे हैं."
क्या प्रशांत किशोर के लिए पहला चुनाव हारने के लिए, दूसरा हराने के लिए और तीसरा जीतने के लिए होगा.
इस पर अजीत कुमार झा कहते हैं, "निश्चित रूप से प्रशांत किशोर के लिए यह चुनाव जीतने के लिए नहीं है. चूंकि वो लगभग सभी सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं लिहाजा उनका वोट प्रतिशत 10 से 12 फीसद रहने के आसार हैं.
प्रभु चावला, वरिष्ठ पत्रकार
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2020 में जब 135 सीटों पर चिराग पासवान की पार्टी ने अपने कैंडिडेट उतारे थे तो उन्हें छह फीसदी के आसपास वोट मिले थे. तो प्रशांत किशोर को अगर 8 फीसद वोट भी मिले तो वो सीटें वो कितनी जीतते हैं ये देखने वाली बात होगी."
इंडिया टुडे ग्रुप के पूर्व संपादक प्रभु चावला कहते हैं कि प्रशांत किशोर के पार्टी की बड़ी जीत इस चुनाव में दूर-दूर तक नहीं दिखती, हां वो उनकी पार्टी के प्रत्याशी कुछ जगहों पर एनडीए और महागठबंधन के वोटों में सेंध जरूर लगा सकते हैं."
डेटा इंटेलिजेंस कंपनी एक्सिस माय इंडिया के प्रमुख प्रदीप गुप्ता
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"प्रशांत किशोर की जनमानस में छवि बनने में दो-तीन साल लगेंगे"
डेटा इंटेलिजेंस कंपनी एक्सिस माय इंडिया के प्रमुख प्रदीप गुप्ता बिहार चुनाव पर बताते हैं कि यहां में जाति के आधार पर 80 से 90 प्रतिशत लोग वोट करते हैं. महिलाओं का असर दूसरा सबसे प्रमुख कारक होता है. डाले गए वोटों में 50 फीसद से अधिक महिलाएं होती हैं जो पुरुषों के लगभग 45 फीसद से कहीं अधिक और असरकारी हैं.
जहां तक सवाल किसी पार्टी की जीत का है तो राज्य के दलितों, निषादों के कुल वोटों का जो अधिकतम प्रतिशत पाएगा वो ही इन चुनावों को जीतेगा.
प्रदीप गुप्ता कहते हैं, "जहां तक प्रशांत किशोर का सवाल है तो वो पिछड़े, सवर्ण और महिलाओं के कुछ वोट पा सकते हैं, पर जनमानस के दिमाग में उनकी छवि बनने में कम से कम दो तीन चुनाव लगेंगे. अगर युवाओं के बीच तेजस्वी और प्रशांत किशोर के बीच चयन को लेकर बात करें तो उनका समर्थन लालू यादव के पुत्र के पक्ष में जाएगा."
वो बताते हैं, "पिछले चुनाव में एलजेपी एनडीए में शामिल नहीं थी. उसे करीब छह फीसद वोट पड़े थे. मुख्य रूप से उसने जेडीयू के वोट में सेंधमारी की थी. जिसकी वजह से जेडीयू को कम से कम 33 सीटों का नुकसान हुआ था. अगर वो साथ लड़ते तो उन्हें करीब 158 सीटें हासिल होतीं, हालांकि वोट पूरी तरह से ट्रांसफर नहीं होते, फिर भी ये आंकड़ा इसके आसपास ही होता."
सीवोटर के फाउंडर एडिटर यशवंत देशमुख
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"महिलाओं का वोट निर्णायक होगा"
सीवोटर के फाउंडर एडिटर यशवंत देशमुख कहते हैं, "मैं कंचन गुप्ता के नजरिए से सहमत हूं कि इस चुनाव में महिलाओं का वोट निर्णायक होगा. रोजगार के मुद्दे पर युवा अपना वोट डालेंगे. अगर ये सरकारी नौकरी को लेकर होगा तो तेजस्वी यादव के लिए अहम हो सकता है. मेरा मानना है कि बिहार में इस साल का चुनाव देश की राजनीति के लिहाज से बहुत अहम है और इसके नतीजे अगले 40-50 सालों की दशा-दिशा निर्धारित करेंगे."
उनका कहना है कि महिलाओं को लेकर बनाई जा रही योजनाओं की वजह से पिछले कुछ चुनावों में नतीजे देखते आए हैं. लेकिन नीतीश कुमार की महिलाओं पर आधारित योजनाएं उनकी पीढ़ियों पर असर डालती हैं. यशवंत देशमुख उदाहरण देते हैं, "दो दशक पहले जिस स्कूल जाती बच्ची को बिहार में साइकिल, कपड़े और स्कॉलरशिप दी गई. जब उसने ग्रैजुएशन किया और शादी की तो उसके माता-पिता को पचास हजार रुपये दिए गए. अब वो मां है और अब अपना काम करने के लिए उसे जीविका दीदी के माध्यम से 10 हजार रुपये दिए गए तो उसके लिए नीतीश कुमार पिता समान होंगे, यह एक बार मिली सहायता नहीं है लिहाजा इसका असर दूरगामी होता है."
यशवंत देशमुख कहते हैं, "जहां तक युवाओं का सवाल है तो हमारे ट्रैकर नंबर यह बता रहे हैं कि वो युवा जो एनडीए से नाराज हैं वो प्रशांत किशोर की ओर झुकाव रखते हैं. तो जो गुस्साए युवा एनडीए को वोट नहीं देना चाहते वो प्रशांत किशोर का रुख कर सकते हैं. भले ही प्रशांत किशोर किसी जनआंदोलन की उपज न हों पर हमने उनकी प्रसिद्धि को तीन फीसद से 20 फीसद में बदलते देखा है."
जनसुराज के प्रदेश अध्यक्ष मनोज कुमार भारती
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नीतीश कुमार की सेहत पर कौन क्या बोल रहे?
नीतीश कुमार की खराब होती सेहत को लेकर पिछले कुछ महीनों से मीडिया में लगातार खबरे आ रही हैं. इस पर एनडीटीवी के कार्यक्रम में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि नीतीश कुमार रोज पांच सार्वजनिक सभाओं में जा रहे हैं. अगर उनकी सेहत खराब होती तो क्या वो ऐसा कर पाते.
जेडीयू के राष्ट्रीय महासचिव मनीष वर्मा ने भी अमित शाह की बातों का संदर्भ देते हुए कहा, पिछले कई दिनों से वो चुनाव प्रचार में लगे हैं. इससे पहले उन्होंने प्रगति यात्रा के दौरान लगभग सभी जिलों में गए. जिसके बाद पटना वापस लौट कर उन्होंने करीब 50 हजार करोड़ के विकास कार्याों को हरी झंडी दी थी. तो अगर उनकी सेहत अच्छी नहीं होती तो क्या वो इतना काम कर पाते."
वरिष्ठ पत्रकार कंचन गुप्ता कहते हैं, "जब अटल जी प्रधानमंत्री थे. तब उन्होंने ऐसे ही एक सवाल पर जवाब दिया था कि स्कूल के प्रिंसपल से अधिक रोमांचक एक पीटी टीचर हो सकते हैं पर वो स्कूल नहीं चला सकते."
लोग इस पर फैसला लेते हैं कि कोई नेता उन्हें क्या दे सकता है. साथ ही बिहार एक ऐसा राज्य है जहां लोग एक झटके में बदलाव की ओर जाना पसंद नहीं करते हैं.













