- किशनगंज में ईरानी मूल के परिवारों की नागरिकता पर सवाल उठे हैं और दस्तावेज जमा करने के लिए नोटिस मिले हैं.
- ईरानी परिवारों का दावा है कि वे दो पीढ़ियों से यहां रह रहे हैं और उनके पूर्वजों की कब्रें भी यहीं मौजूद हैं.
- मतदाता सूची से बार-बार नाम हटाए जाने और नागरिकता साबित करने की प्रक्रिया से इन परिवारों में निराशा और भय है.
बिहार के किशनगंज में ईरानी मूल के परिवारों की नागरिकता पर सवाल उठ रहे हैं और बिहार विधानसभा चुनाव से पहले चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) अभियान के तहत इन्हें नोटिस मिल रहे हैं. हालांकि यह परिवार कुछ दिनों या कुछ सालों से यहां नहीं रह रहे हैं. ईरानी मूल के इन लोगों का दावा है कि वे दो पीढ़ियों से यहां पर रह रहे हैं और पूर्वजों की कब्रें तक यहीं पर हैं. इस इलाके में बसने, खान-पान को अपनाने, व्यवसाय स्थापित करने, बच्चों का पालन-पोषण करने और पिछले चुनावों में मतदान करने के बावजूद उठ रहे सवालों को लेकर यह लोग काफी परेशान हैं.
उनकी मातृभाषा फारसी है, लेकिन किशनगंज में रहने वाले ईरानी परिवार खुद को भारतीय कहते हैं. बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण जारी है, लगभग 30 लोगों से अपनी नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज जमा करने के लिए कहा गया है.
यही उम्मीद है कि हमारे साथ न्याय हो: ताहिर
एक अन्य निवासी ताहिर अली ने कहा कि अधिकारियों को आवश्यक दस्तावेज जमा करने के बावजूद उन्हें और उनके परिवार के चार अन्य सदस्यों को नोटिस भेजे गए. उन्होंने दावा किया कि उनके परिवार को विदेशी करार देने के लिए प्रताड़ित किया गया, लेकिन उन्होंने पूछा, "हम कहां जाएंगे? हमारे दादा-दादी और परदादा-परदादी मतदाता सूची में थे. हम बस यही उम्मीद कर सकते हैं कि हमारे साथ न्याय हो."
पूर्वजों की कब्रों से निकाल लेंगे डीएनए: शाहिना
20 साल की शाहिना परवीन बीएड करना चाहती है. इसके लिए मतदाता सूची में उनके पिता का नाम न होना एक बड़ी बाधा बन रहा है. एक अन्य ने बताया कि मतदाता सूची में नाम जुड़वाने के सभी प्रयास विफल रहे. उन्होंने कहा कि जो नेता उनके मुद्दों का समाधान का वादा करते हैं, वे आमतौर पर कुछ ही दिनों में अपने वादों से मुकर जाते हैं. उन्होंने कहा, "हमारे पूर्वज अवैध नहीं थे, वे बांग्लादेश से नहीं थे. हम मांगे गए सभी दस्तावेज दे रहे हैं और सरकार के साथ सहयोग कर रहे हैं. अगर उन्हें डीएनए चाहिए तो हम उसे अपने पूर्वजों की कब्रों से निकाल लेंगे."
कमर अब्बास मतदाता सूची से बार-बार नाम हटाए जाने से निराशा हैं. उन्होंने कहा, "जब भी हमें नोटिस मिले हैं, हमने अपनी नागरिकता का प्रमाण दिया है. मेरा नाम 2003 की मतदाता सूची में था और फिर उसे हटा दिया गया. फिर हमने उसे दोबारा जुड़वाया. हर बार दस्तावेज देने के बावजूद हमारे नाम हटाए जाते हैं, हमें बस यही बताया जाता है कि आदेश आला अधिकारियों से आए हैं."
यह जमीन हड़पने की साजिश है: हैदर
वार्ड संख्या 7 के एक ईरानी व्यक्ति हैदर अली को भी इसी तरह का नोटिस मिला था. उन्होंने दावा किया कि मतदाता सूची से बार-बार नाम हटाए जाने और नागरिकता साबित करने की जरूरत उनकी जमीन हड़पने की साजिश है. उन्होंने एनडीटीवी को बताया, "मेरी मां का नाम 2003 की मतदाता सूची में था, लेकिन 2005 में उसे हटा दिया गया. 2005 से ईरानी समुदाय के कई सदस्यों के नाम सूची से हटाने के लिए प्रशासन को गुमनाम आवेदन दिए गए और उन्हें जवाब मांगने के लिए नोटिस भेजे गए. हमारे पास एसआईआर में मांगे गए सभी दस्तावेज हैं."
जैम स्टोन के व्यापारी ने कहा कि वोटर आईडी न होने के कारण उन्हें काम के सिलसिले में दूसरे राज्यों में जाने पर होटल ढूंढने में भी दिक्कत होती है.
क्या कहते हैं BJP-RJD के स्थानीय नेता?
भाजपा नेता सुशांत गोप ने नोटिसों की सूची दिखाते हुए बताया कि ईरानी बस्ती के 28 लोगों को नोटिस दिए गए हैं और उन्हें जरूरी दस्तावेज जमा करके अपनी नागरिकता साबित करनी होगी. उन्होंने कहा, "ईरानी लोग यहां करीब 40 सालों से रह रहे हैं. 28 लोगों की पहचान हो गई है, लेकिन उनके नाम वोटर लिस्ट से नहीं हटाए गए हैं. उनसे नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज मांगे गए हैं."
पूर्व विधायक और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता मोजाहिद आलम ने कहा कि जिन लोगों को नोटिस मिले हैं, उन्हें सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार अपने दस्तावेज जमा करने चाहिए और चुनाव आयोग भी उसी के अनुसार काम करेगा.