बिहार में सरकारी कलाकारी! ट्रैक्टर को बना दिया बिटिया सोनालिका, पिता बेगुसराय और मां बलिया

एक ‘ट्रैक्टर’ का बाकायदा निवास प्रमाण-पत्र जारी कर दिया गया और भी दिलचस्प ये कि ट्रैक्टर का नाम है 'सोनालिका कुमारी', पिता का नाम ‘बेगूसराय चौधरी’, मां का नाम ‘बलिया देवी’ और गांव है ‘ट्रैक्टरपुर दियारा’.

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  • मुंगेर के सदर प्रखंड कार्यालय ने ट्रैक्टर के नाम पर निवास प्रमाण-पत्र जारी किया, जिसमें ट्रैक्टर का नाम सोनालिका चौधरी है.
  • इस आवेदन में ट्रैक्टर की फोटो लगा दी गई, लेकिन अधिकारी ने जांच किए बिना प्रमाण-पत्र जारी कर दिया. अब ये मामला खूब वायरल हो रहा है.
  • यह मामला सरकारी काम की पोल खोल रहा है. पहले भी फर्जी प्रमाण-पत्र बन चुके हैं. जैसे कुछ साल पहले हनुमान जी का ही आधार कार्ड बना दिया गया था.
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पटना:

बिहार में सरकारी कागजों में गड़बड़ी कोई नई बात नहीं, पर इस बार तो हद ही हो गई. दरअसल मुंगेर के सदर प्रखंड कार्यालय ने ऐसा कारनामा कर दिखाया, जिसे सुनकर हंसी आना तय है. दरअसल हुआ ये कि यहां एक ‘ट्रैक्टर' का बाकायदा निवास प्रमाण-पत्र जारी कर दिया गया और भी दिलचस्प ये कि ट्रैक्टर का नाम है 'सोनालिका चौधरी', पिता का नाम ‘बेगूसराय चौधरी', मां का नाम ‘बलिया देवी' और मोहल्ला है ‘ट्रैक्टरपुर दियारा'. सोशल मीडिया पर ये प्रमाण-पत्र आग की तरह वायरल हो रहा ह. जाहिर सी बात है कि मामला इतना वायरल हो तो लोग कह रहे हैं – “ लगे हाथ अब आधार भी बनवा दो इस सोनालिका बिटिया का, फिर राशन और वोटर आईडी भी आ ही जाएगा!”

कैसे हुआ ये तमाशा?

लोक सेवाओं का अधिकार अधिनियम के तहत सदर राजस्व अधिकारी के यहां निवास प्रमाण-पत्र के लिए ऑनलाइन आवेदन किया गया. आवेदन में आवेदक का नाम ‘सोनालिका चौधरी', पिता का नाम ‘बेगूसराय चौधरी' और माता का नाम ‘बलिया देवी' लिखा था. यहां आवेदन के साथ जो फोटो अपलोड की गई, वो किसी इंसान की नहीं बल्कि ‘सोनालिका कंपनी' के एक ट्रैक्टर की तस्वीर थी. हैरानी की बात ये भी रही कि किसी ने भी आवेदन की जांच-परख करना ज़रूरी नहीं समझा. मुंगेर सदर प्रखंड कार्यालय से बाकायदा मुहर लगाकर ट्रैक्टर का निवास प्रमाण-पत्र जारी भी कर दिया गया.

यह कोई पहला मामला नहीं

सरकारी दस्तावेज़ों में गड़बड़झाला का ये कोई पहला मामला नहींं है. इससे पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नाम से भी फर्जी प्रमाण पत्र जारी हो चुका है. वहीं देश में हनुमान जी का भी आधार कार्ड बन चुका है. अब सवाल उठ रहे हैं कि सरकारी तंत्र इतनी बड़ी गलती कैसे कर सकता है? क्या सिस्टम गैर-जिम्मेदाराना तरह से काम करता है कि बिना दस्तखत देखे, बिना जांचे-परखे प्रमाण-पत्र जारी कर दिया जाता है?

सोशल मीडिया पर मस्ती की बहार

जैसे ही ये सरकारी दस्तावेज़ वायरल हुआ, सोशल मीडिया पर मीम्स की बहार आ गई. कोई लिख रहा है ‘बिहार में ट्रैक्टर भी अब वोट डालेगा', तो कोई कह रहा है ‘अब शादी भी करवा दो सोनालिका बिटिया की.' हालांकि यह मज़ाकिया मामला एक गंभीर लापरवाही को उजागर कर रहा है. सवाल है कि जब एक ट्रैक्टर का निवास प्रमाण-पत्र बन सकता है, तो कल किसी फर्जी नाम से कितने दस्तावेज़ तैयार हो जाएंगे? अब देखना है कि प्रशासन इस पर कितनी कड़ी कार्रवाई करता है, या हमेशा की तरह मामला धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में चला जाएगा.

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