तेजप्रताप बजाएंगे JJD की 'बांसुरी', क्‍या 'बेघर' होने से पहले ही 'बागी' होने की थी तैयारी 

Bihar Elections: तेजप्रताप जिस पार्टी से चुनाव लड़ेंगे, वो 2020 में ही बन चुकी थी. 5 साल पहले ही पार्टी का गठन, एक सवाल भी पैदा करता है कि क्‍या तेजप्रताप पहले से ही राजद से अलग अपनी पहचान बनाना चाहते थे.

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Tejashwi Tej Pratap Clash RJD
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  • तेजप्रताप यादव ने जनशक्ति जनता दल से चुनाव लड़ने का ऐलान किया है, जिसको लेकर बिहार की राजनीति हलचल है.
  • जनशक्ति जनता दल का पंजीकरण यूं तो 2020 में ही हो गया था, लेकिन 2024 में सक्रिय होने पर भी सफलता नहीं मिली.
  • तेजप्रताप यादव महुआ विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे, जहां यादव और भूमिहार वोटरों का अच्छा जनाधार है.
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पटना:

Bihar Politics: बिहार की राजनीति में एक बड़ा मोड़ आ गया है. लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तेजप्रताप यादव ने अब अपनी नई पार्टी जनशक्ति जनता दल (JJD) से चुनावी मैदान में उतरने का ऐलान किया है. लंबे समय तक राजद (RJD) के साथ सक्रिय रहने के बाद वे अब अपने पिता और भाई की पार्टी के खिलाफ खड़े होंगे. उन्होंने पार्टी के दस्तावेज चुनाव आयोग में जमा कर दिए हैं. हालांकि पार्टी से निकाले जाने के बाद उन्‍होंने पहले स्‍वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने का ऐलान किया था, लेकिन अब वो  'JJD' से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. 

बहुत सक्रिय दिख रहे हैं तेजप्रताप 

हाल के दिनों में तेजप्रताप काफी सक्रिय हुए हैं.  वो न केवल अपने पिता की पार्टी राजद के खिलाफ हैं, बल्कि अलग-अलग मुद्दों पर छोटे भाई और नेता विपक्ष तेजस्‍वी यादव को भी चेतावनी दे रहे हैं. उन्‍होंने राहुल गांधी और तेजस्‍वी की 'वोटर अधिकार यात्रा' को बेअसर बता दिया. वहीं तेजस्‍वी को उनकी ही पार्टी राजद के 'जयचंदों' से सावधान रहने की हिदायत दे डाली है. चुनाव और कुनबा विस्‍तार को लेकर भी वो काफी एक्टिव दिख रहे हैं. 

अचानक कहां से आ गई ये पार्टी?

जनशक्ति जनता दल 2020 में ही रजिस्‍टर्ड पार्टी है. 2024 में उनके सहयोगी बलेंद्र दास ने इसे सक्रिय किया था. लोकसभा चुनाव में इस पार्टी को चुनाव चिह्न बांसुरी (Flute) मिला था. इस दल ने प्रत्‍याशी भी उतारा, लेकिन सफलता नहीं मिली. अब तेजप्रताप ने इस दल को औपचारिक रूप से अपने नेतृत्व में सक्रिय कर लिया है. अगस्त 2025 में उन्होंने चुनाव आयोग में पंजीकरण की प्रक्रिया पूरी की और इसे अपनी राजनीतिक पहचान के तौर पर घोषित कर दिया.

5 साल पहले ही पार्टी का गठन और राजद से निकाले जाने से पहले से ही सक्रिय तैयारी एक सवाल भी पैदा करता है कि क्‍या तेजप्रताप पहले से ही राजद से अलग अपनी पहचान बनाना चाहते थे. 

महुआ से ठोंकेंगे ताल, राजद को चुनौती 

तेजप्रताप ने घोषणा की है कि वे इस बार महुआ विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार होंगे. महुआ सीट वैशाली जिले में आती है और यादव-भूमिहार वोटर्स का अच्छा प्रभाव माना जाता है. 2015 के चुनाव में तेजप्रताप ने इसी सीट से जीत दर्ज की थी. उस समय उन्होंने 62,849 वोट पाए थे जबकि दूसरे नंबर पर रहे जदयू प्रत्याशी को 49,600 वोट मिले थे. हालांकि, 2020 के विधानसभा चुनाव में तेजप्रताप महुआ से नहीं लड़े.

इस सीट से राजद की ओर से तेजस्‍वी ने डॉ मुकेश रौशन को मैदान में उतारा, जिन्‍होंने  61,950 वोट पाकर भाजपा की अर्चना सिंह (52,700 वोट) को हराया. इस बार तेजप्रताप फिर से महुआ से ताल ठोंकेंगे. उनका दावा है कि वे अपने पुराने जनाधार और यादव वोटरों को फिर से एकजुट कर सकते हैं. ऐसे में राजद के लिए अपनी सीट बचा पाना बड़ी चुनौती हो सकती है. 

गठबंधन की रणनीति 

तेजप्रताप, चुनावी मैदान में अकेले नहीं हैं बल्कि गठबंधन की रणनीति भी अपनाई है. उन्होंने टीम तेजप्रताप के नाम से मंच बनाया है और पांच छोटे दलों- VVIP, BJM, PJP, WAP और SKVP को साथ लाकर मोर्चा खड़ा किया है. इसका मकसद छोटे वोट बैंक को जोड़कर बड़ा असर पैदा करना है.

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इस तरह राजद से दूर होते गए 

राजद से तेजप्रताप की दूरी मई 2025 में चरम पर पहुंची, जब उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया. इसके बाद उन्होंने पहले स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में लड़ने की घोषणा की, फिर गठबंधन बनाया और अंततः नई पार्टी का गठन कर लिया. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह कदम अचानक नहीं बल्कि सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है. तेजप्रताप लंबे समय से अपनी भूमिका को लेकर असंतुष्ट थे.

राजनीतिक घटनाक्रम देखें तो तेजप्रताप का कदम योजनाबद्ध दिखता है. पहले स्वतंत्र चुनाव लड़ने का ऐलान. फिर पांच छोटे दलों के साथ गठबंधन. और फिर अंततः, उसी आधार पर जनशक्ति जनता दल को सक्रिय करना.

जानकारों के मुताबिक, ये स्पष्ट करता है कि वे धीरे-धीरे खुद को राजद से अलग कर रहे थे और अपनी पहचान बनाने की राह देख रहे थे.

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नई पार्टी के सामने कई चुनौतियां भी 

तेजप्रताप की जनशक्ति जनता पार्टी के सामने कई बड़ी चुनौतियां भी हैं. चुनाव आयोग का नियम है कि यदि कोई पार्टी छह साल तक चुनाव नहीं लड़ती है तो उसे निष्क्रिय घोषित कर दिया जाता है. चूंकि JJD, 2020 से रजिस्टर्ड थी, लेकिन तब तक सक्रिय नहीं रही, ऐसे में ये खतरा बना हुआ है कि चुनाव आयोग इसे रद्द न कर दे.

दूसरी बड़ी दिक्‍कत संगठन और संसाधन की है. राजद, भाजपा और जदयू जैसी बड़ी पार्टियों के सामने JJD फिलहाल कहीं नहीं ठहरती. संसाधनों और कार्यकर्ताओं की कमी सबसे बड़ी बाधा है. जनाधार की कमी भी बड़ी चुनौती है. तेजप्रताप के पास व्यक्तिगत पहचान तो है, लेकिन 2020 के चुनावों में राजद का वोट शेयर 23.11 फीसदी और महागठबंधन का कुल वोट शेयर 37 फीसदी था. इसके मुकाबले भाजपा-जदयू गठबंधन ने 37.26% वोट हासिल कर सरकार बनाई. ऐसे में अकेले तेजप्रताप के लिए वोट शेयर जुटाना कठिन होगा.

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राजद की राह का रोड़ा बन सकते हैं तेजप्रताप 

तेजप्रताप की नई पार्टी से कई समीकरण बदल सकते हैं. इसका राजद पर सीधा असर दिखता है. परिवार में बगावत की यह तस्वीर राजद के लिए परेशानी का कारण बनेगी. तेजस्वी यादव को अब न सिर्फ विपक्ष बल्कि अपने ही भाई से चुनौती मिलेगी. वहीं दूसरी ओर विपक्षी दलों को फायदा मिल सकता है. भाजपा और जदयू इसे अपने पक्ष में इस्तेमाल करेंगे. वे इसे मुद्दा बना सकते हैं कि लालू परिवार की पार्टी में फूट पड़ चुकी है. महुआ और आसपास के क्षेत्रों में यादव वोटों का बंटवारा निश्चित है, जिससे राजद का वोट घट सकता है, जबकि इस वोट बंटवारे का फायदा, तीसरे (जदयू या एनडीए के अन्‍य दलों) को मिल सकता है. तेजप्रताप ने बिहार की राजनीति को और दिलचस्प बना दिया है और राजद के लिए नई मुश्किलें खड़ी कर दी हैं

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