पीएम मोदी को बिहार में जो शेरशाह सूरी सिक्का किया गया भेंट, जानें रुपये से इसका क्या कनेक्शन

प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार के काराकाट में 48,520 करोड़ रुपये से अधिक की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास कर दिया है.

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शेरशाह सूरी सिक्के से रुपया से पुराना नाता
पटना:

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज बिहार के दौरे पर हैं, जहां उन्होंने सबसे पहले रोहतास में एक मेगा रैली की. इसके बाद जैसे ही मंच पर लोगों के सामने पीएम मोदी पहुंचे तो उन्हें शेरशाह सूरी रुपये का स्मृति सिक्का भेंट किया. ये चांदी का एक रुपये का सिक्का है, शेरशाह सूरी ही ने सोलहवीं सदी में भारत में रुपया नाम का चांदी का सिक्का चलाया था. इसे शेरशाह सूरी रुपया भी कहा जाता है. जो हमारे मौजूदा रुपये का ही पुराना रूप है.

शेरशाह सूरी के सिक्के का रुपये से क्या नाता

शेरशाह सूरी और "रुपया" का गहरा ऐतिहासिक नाता है, क्योंकि शेरशाह सूरी ने ही भारत में सबसे पहले "रुपया" नामक मुद्रा को पहली बार चलन में लाए थे. यह उनके शासनकाल (1540-1545) के दौरान एक सबसे बड़ा और जरूरी सुधार भी माना जाता है, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था और मुद्रा प्रणाली को व्यवस्थित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. आइए, इस कनेक्शन को विस्तार से समझें:

कौन था शेरशाह सूरी 

शेरशाह सूरी, जिनका असली नाम फरीद खान था, 16वीं सदी में भारत में सूर वंश का संस्थापक और एक शासक था. शेरशाह ने 1540 में मुगल सम्राट हुमायूं को हराकर दिल्ली पर कब्जा किया और अपने शासन में कई बड़े प्रशासनिक और आर्थिक सुधार किए. इनमें से सबसे प्रमुख जो सुधार था वो ये कि शेरशाह के वक्त ही "रुपया" का जन्म हुआ. शेरशाह ने चांदी के सिक्कों को मान्यता देते हुए इसे "रुपया" नाम दिया. शेरशाह द्वारा पेश किया गया रुपया एक चांदी का सिक्का था, जिसका वजन लगभग 11.6 ग्राम (180 ग्रेन) था और यह 95% शुद्ध चांदी से बना था।. इसकी शुद्धता और मानक वजन ने इसे विश्वसनीय और व्यापक रूप से स्वीकार्य बनाया. शेरशाह ने त्रि-धातु आधारित मुद्रा प्रणाली शुरू की, जिसमें चांदी का रुपया, तांबे का दाम (जिसे "दम" कहा जाता था), और सोने का मोहर शामिल था. इस प्रणाली ने व्यापार और कर संग्रह को काफी सरल बनाया.

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शेरशाह सूरी रुपये का क्या महत्व

उस समय भारत में विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग मुद्राएं प्रचलित थीं, जिनके वजन और शुद्धता में एक जैसी समानता नहीं थी. इसलिए शेरशाह ने पहली बार एक समान वजन और शुद्धता वाली मुद्रा प्रणाली लागू की, जिसने व्यापार को बढ़ावा दिया. रुपया की शुरूआत ने स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय व्यापार को सुगम बनाया. यह सिक्का इतना विश्वसनीय था कि यह मुगल काल और उसके बाद भी प्रचलन में रहा. शेरशाह ने राजस्व संग्रह और व्यापार को व्यवस्थित करने के लिए रुपया को करों और व्यापारिक लेनदेन का आधार बनाया. उनकी प्रणाली को बाद में मुगल सम्राट अकबर ने भी अपनाया और विस्तार दिया.

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रुपया का ऐतिहासिक महत्व

शेरशाह का रुपया मुगल शासकों, खासकर अकबर के वक्त भी उपयोग में रहा. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी "रुपया" को अपनी मुद्रा के रूप में अपनाया, और 19वीं सदी में यह आधिकारिक रूप से भारत की मुद्रा बन गया. इस तरह से देखे तो आज का भारतीय रुपया (₹) उसी ऐतिहासिक "रुपया" की देन माना जाता है. हालांकि अब यह कागजी और डिजिटल मुद्रा के रूप में प्रचलित है, इसका नाम और ऐतिहासिक महत्व शेरशाह सूरी की देन है.

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