महागठबंधन में सीटों पर फिर पेच: भाकपा ने 6 उम्मीदवारों का किया ऐलान, 8 सीटों पर और दावा

बिहार में महागठबंधन के अंदर सीटों को लेकर खींचतान तेज हो गई है. भाकपा ने 6 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं और 8 अन्य सीटों पर दावा ठोकते हुए कहा है कि बातचीत के बाद उम्मीदवार उतारे जाएंगे.

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  • CPI ने बिहार विधानसभा चुनाव से पहले 6 सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम घोषित किए और आठ सीटों पर दावा किया है
  • भाकपा ने रूपौली सीट छोड़कर बांका सीट पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है, जिससे गठबंधन में समीकरण बदल रहा है
  • बछवाड़ा सीट को लेकर कांग्रेस और भाकपा के बीच विवाद है, दोनों पार्टियां इस सीट पर अपना दावा जता रही हैं
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पटना:

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर नया पेच सामने आ गया है. भाकपा (CPI) ने मंगलवार को 6 सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है, जबकि 8 अन्य सीटों पर दावा ठोकते हुए कहा है कि गठबंधन के अंदर बातचीत के बाद उन पर फैसला होगा. पार्टी ने जिन 6 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, उनमें तेघरा से रामरतन सिंह, बखरी से सूर्यकांत पासवान, बछवाड़ा से अवधेश राय, हरलाखी से राकेश कुमार पांडे, झंझारपुर से रामनारायण यादव और बांका से संजय कुमार शामिल हैं.

दिलचस्प बात यह है कि पिछली बार CPI ने रूपौली सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन इस बार उसने उस सीट से पीछे हटते हुए बांका सीट पर एंट्री की है जहां 2020 में राजद ने अपना उम्मीदवार उतारा था. इससे साफ है कि महागठबंधन के भीतर सीटों का समीकरण बदल रहा है और कुछ सीटों पर सहयोगी दलों में टकराव की स्थिति बन रही है.

बछवाड़ा सीट पर कायम है विवाद

सबसे बड़ा विवाद बछवाड़ा सीट को लेकर है. यहां कांग्रेस अपनी दावेदारी से पीछे हटने को तैयार नहीं है. पार्टी चाहती है कि इस सीट से यूथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष शिवप्रकाश गरीबदास को टिकट दिया जाए. शिवप्रकाश पिछली बार इसी सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर करीब 40 हजार वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहे थे. वहीं, CPI ने बछवाड़ा से फिर से अवधेश राय को टिकट दिया है, जो 2020 के चुनाव में मात्र 484 वोटों से हार गए थे. यही वजह है कि पार्टी इस सीट को ‘अपना परंपरागत गढ़' मानते हुए इसे छोड़ने को तैयार नहीं है.

बछवाड़ा पर CPI और कांग्रेस दोनों की नज़र

अब बछवाड़ा पर CPI और कांग्रेस दोनों की नज़र है, जबकि राजद गठबंधन में मध्यस्थता करने की भूमिका में है. सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस किसी भी हालत में यह सीट छोड़ना नहीं चाहती क्योंकि यहां युवा वोटरों और संगठन की जमीनी पकड़ मजबूत मानी जाती है.

भाकपा का बांका में उम्मीदवार उतारना भी राजनीतिक संकेत देता है कि पार्टी अब सीमित समर्थन से बाहर निकलकर अपने संगठन को फिर से विस्तार देना चाहती है. हालांकि, महागठबंधन की एकजुटता इस खींचतान से एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गई है.

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