RLSP JD U Merger: रविवार को 'राष्ट्रीय लोक समता पार्टी' (Rashtriya Lok Samta Party) की 'जनता दल यूनाइटेड' (Janta Dal United) में विलय की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी. इसके बाद एक बार फिर उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha), जनता दल यूनाइटेड में घर वापसी करेंगे और उनके इस मिलन समारोह की सारी तैयारी ख़ुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के निर्देशन में हो रही है लेकिन कुशवाहा जिसको विधानसभा चुनाव पूर्व तक नीतीश ने NDA में वापस ना आ जाए और BJP उनको सीटों के समझौते में शामिल ना करे उसके लिए अपनी राजनीतिक चालों से अलग-थलग कर दिया था उसके बाद आख़िर क्या राजनीतिक मजबूरी हुई. जिसके बाद दोनों अपने तमाम राजनीतिक मतभेद भुलाकर एक दूसरे के साथ गले मिलने को तैयार हो गए. इसके जड़ में है बिहार विधान सभा का परिणाम. जहां नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के 15 सालों के कामकाज के बाद भी राज्य में तीसरे नंबर की पार्टी बनकर रह गये वहीं उपेन्द्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) की पार्टी का खाता भी नहीं खुला. हालांकि उनके गठबंधन में शामिल BSP से एक विधायक जीते ज़रूर लेकिन वो अब जनता दल यूनाइटेड में शामिल होकर नीतीश मंत्रिमंडल में मंत्री हैं.
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को उपेन्द्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) की तरफ़ दोस्ती का हाथ बढ़ाना उनकी राजनीतिक मजबूरी हैं क्योंकि जिस 'लव-कुश' मतलब कुर्मी कोइरी जाति के असल आधार पर वह सत्ता में राज कर रहे थे उसमें दरार डालने में उपेन्द्र कुशवाहा कम से कम पिछले विधान सभा चुनाव में कामयाब रहे. ख़ुद नीतीश समर्थक मानते हैं कि कम से कम पंद्रह सीटों पर नीतीश कुमार के प्रत्याशियों के हार के लिए कुशवाहा के उम्मीदवार कारण बने.
दूसरा, नीतीश जानते हैं कि वो चाहे भाजपा से दो-दो हाथ करना हो या तेजस्वी से. उनकी अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह के मुक़ाबले उपेन्द्र कुशवाहा उनके लिए अधिक मददगार साबित हो सकते हैं, क्योंकि उन्होंने बिहार की राजनीति में एक अलग पहचान बनाई है. जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह ज़रूरत से ज्यादा प्रो बीजेपी लाइन लेकर चलते हैं, जिससे नीतीश कुमार को भी राजनीतिक नुक़सान सहना पड़ जाता हैं और न ही वह जनता के बीच एक अच्छे वक्ता के तौर पर जाने जाते हैं.
जहां तक उपेन्द्र कुशवाहा का सवाल है, तो वह मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं और ये राजनीतिक सपना नीतीश के अलावा कोई पूरा नहीं करेगा इसलिए उनके पास भी अब अधिक विकल्प नहीं बचे हैं.न उन्होंने भाजपा से लेकर राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस सबके साथ राजनीति करने के बाद ये कटु सच जान लिया है. दूसरी तरफ़ उनके समर्थक जिस रफ़्तार से पार्टी छोड़ कर राष्ट्रीय जनता दल का दामन थाम रहे थे, वैसे में अपना कुनबा बचाने के लिए उनके पास नीतीश शरणम गच्छामी के अलावा और क्या चारा बचा था.