सहरसा:
कोसी क्षेत्र से अब छोटी रेल लाइन विदा हो रही है. शनिवार को उसका आखिरी दिन था. अब तक रोज गुजरने वाली छह जोड़ी ट्रेनें रविवार से अब इस ओर नहीं दिखेंगी. सहरसा-सुपौल-थरबिटिया के बीच 37 किमी बड़ी रेललाइन के विस्तार होने के बाद अब कोसी प्रमंडल में छोटी रेल लाइन और मीटरगेज पर दौड़ने वाली ट्रेन इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगी. दो साल बाद कोसी के पूरे इलाके में बड़ी रेल लाइन चालू हो जाएगी.
1854 में अंग्रेज सरकार द्वारा भारत में रेल सेवा प्रारंभ की गई. जैसे-जैसे रेल से जुड़ी सेवाओं में विस्तार होता गया, क्षेत्रवार प्रगति भी होती रही. जल्द ही देश के कोने-कोने में बड़ी रेल लाइन का विस्तार कर दिया गया. लेकिन इस लिहाज से कोसी प्रमंडल का इलाका खासकर सहरसा-फारबिसगंज उपेक्षित रहा. हालांकि सहरसा में जनप्रतिनिधियों की पहल पर 2005 में बड़ी रेल लाइन का विस्तार हुआ और पहले सहरसा-मानसी रेलखंड पर बड़ी रेल लाइन की पटरी बिछी. 2008 में कुसहा त्रासदी आई तो सहरसा-कटिहार रेलखंड में मधेपुरा और मुरलीगंज के बीच रेल पटरी को बहा ले गई.
इसी तरह सहरसा-फारबिसगंज रेलखंड पर प्रतापगंज के पास रेल पटरियां पूरी तरह ध्वस्त हो गई थीं. रेल मंत्रालय ने उसे दुरूस्त करने की बजाय बड़ी रेल लाइन की पटरी बिछाने की घोषणा की. पहले चरण में राघोपुर-फारबिसगंज के बीच मेगा ब्लॉक लिया गया था. फिर 24 दिसंबर, 2016 को सहरसा-सुपौल के बीच भी अमान परिवर्तन के लिए मेगा ब्लॉक की घोषणा कर दी गई. हालांकि इस बीच सहरसा-पूर्णिया के बीच पहले सहरसा-मधेपुरा, फिर सहरसा-मुरलीगंज और इसके बाद सहरसा-कटिहार बड़ी रेल लाइन का विस्तार कर रेल परिचालन शुरू कर दिया गया.
इधर सहरसा-फारबिसगंज रेलखंड में कार्य प्रगति पर था. लेकिन सहरसा-थरबिटिया के बीच अभी भी छोटी रेललाइन पर ही ट्रेन दौड़ती नजर आ रही थी. रेल मंडल प्रशासन ने 25 दिसंबर से सदा के लिए मीटरगेज की ट्रेन बंद करने का निर्णय ले लिया है. बड़ी रेललाइन निर्माण में दो वर्षों का समय लग जाएगा. इस रेल लाइन के इतिहास पर नजर डालें तो 1907 में सहरसा-निर्मली-फारबिसगंज के बीच ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा छोटी रेललाइन को बिछाने का काम शुरू किया गया था.
वहीं 1909 में निर्माण कार्य पूर्ण होने के बाद मीटरगेज ट्रेन का परिचालन शुरू किया गया. उस समय कोयले और पानी से चलने वाली इंजन के सहारे ट्रेन चलती थी. 1934 में आए प्रलंयकारी भूकंप में सुपौल से फारबिसगंज के बीच रेल पटरी ध्वस्त हो गई थी. इसका निर्माण 1934 के बाद सरायगढ़ से फारबिसगंज के बीच तथा 1975 में सुपौल से सरायगढ़ के बीच तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा के द्वारा करवाया गया था. सहरसा-थरबिटिया-फारबिसगंज और सहरसा-थरबिटिया-दरभंगा के बीच बड़ी रेललाइन के बाद ट्रेनों का परिचालन शुरू होने से यह क्षेत्र सामरिक और व्यापारिक दृष्टिकोण से संपन्न हो जाएगा.
1854 में अंग्रेज सरकार द्वारा भारत में रेल सेवा प्रारंभ की गई. जैसे-जैसे रेल से जुड़ी सेवाओं में विस्तार होता गया, क्षेत्रवार प्रगति भी होती रही. जल्द ही देश के कोने-कोने में बड़ी रेल लाइन का विस्तार कर दिया गया. लेकिन इस लिहाज से कोसी प्रमंडल का इलाका खासकर सहरसा-फारबिसगंज उपेक्षित रहा. हालांकि सहरसा में जनप्रतिनिधियों की पहल पर 2005 में बड़ी रेल लाइन का विस्तार हुआ और पहले सहरसा-मानसी रेलखंड पर बड़ी रेल लाइन की पटरी बिछी. 2008 में कुसहा त्रासदी आई तो सहरसा-कटिहार रेलखंड में मधेपुरा और मुरलीगंज के बीच रेल पटरी को बहा ले गई.
इसी तरह सहरसा-फारबिसगंज रेलखंड पर प्रतापगंज के पास रेल पटरियां पूरी तरह ध्वस्त हो गई थीं. रेल मंत्रालय ने उसे दुरूस्त करने की बजाय बड़ी रेल लाइन की पटरी बिछाने की घोषणा की. पहले चरण में राघोपुर-फारबिसगंज के बीच मेगा ब्लॉक लिया गया था. फिर 24 दिसंबर, 2016 को सहरसा-सुपौल के बीच भी अमान परिवर्तन के लिए मेगा ब्लॉक की घोषणा कर दी गई. हालांकि इस बीच सहरसा-पूर्णिया के बीच पहले सहरसा-मधेपुरा, फिर सहरसा-मुरलीगंज और इसके बाद सहरसा-कटिहार बड़ी रेल लाइन का विस्तार कर रेल परिचालन शुरू कर दिया गया.
इधर सहरसा-फारबिसगंज रेलखंड में कार्य प्रगति पर था. लेकिन सहरसा-थरबिटिया के बीच अभी भी छोटी रेललाइन पर ही ट्रेन दौड़ती नजर आ रही थी. रेल मंडल प्रशासन ने 25 दिसंबर से सदा के लिए मीटरगेज की ट्रेन बंद करने का निर्णय ले लिया है. बड़ी रेललाइन निर्माण में दो वर्षों का समय लग जाएगा. इस रेल लाइन के इतिहास पर नजर डालें तो 1907 में सहरसा-निर्मली-फारबिसगंज के बीच ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा छोटी रेललाइन को बिछाने का काम शुरू किया गया था.
वहीं 1909 में निर्माण कार्य पूर्ण होने के बाद मीटरगेज ट्रेन का परिचालन शुरू किया गया. उस समय कोयले और पानी से चलने वाली इंजन के सहारे ट्रेन चलती थी. 1934 में आए प्रलंयकारी भूकंप में सुपौल से फारबिसगंज के बीच रेल पटरी ध्वस्त हो गई थी. इसका निर्माण 1934 के बाद सरायगढ़ से फारबिसगंज के बीच तथा 1975 में सुपौल से सरायगढ़ के बीच तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा के द्वारा करवाया गया था. सहरसा-थरबिटिया-फारबिसगंज और सहरसा-थरबिटिया-दरभंगा के बीच बड़ी रेललाइन के बाद ट्रेनों का परिचालन शुरू होने से यह क्षेत्र सामरिक और व्यापारिक दृष्टिकोण से संपन्न हो जाएगा.
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