Bihar Elections 2025: वोट अधिकार यात्रा में कांग्रेस ने क्या खोया क्या पाया, जानें

बिहार में सबसे ज्यादा दलित मतदाता इसी समुदाय से आते हैं, फिर पासवान का नंबर आता है. महागठबंधन को अति पिछड़ा वर्ग में भी सेंध लगानी होगी तभी बात बनेगी. इसलिए राहुल गांधी इस यात्रा में मुकेश सहनी को लगातार अपने बगल में जगह दे रहे थे क्योंकि बिहार में मल्लाह वोट साढ़े तीन फीसदी तक है.

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(फाइल फोटो)
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  • राहुल गांधी ने बिहार की 23 जिलों में 1300 किमी की दूरी तय करते हुए 174 विधानसभा क्षेत्रों का दौरा किया
  • महागठबंधन ने 174 सीटों में से 74 सीटें जीतीं थीं, जिनमें 100 सीटों पर बेहतर प्रदर्शन की आवश्यकता है
  • कांग्रेस को दलित वोटों में सेंध लगाने के लिए रविदास समुदाय के राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है
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पटना:

राहुल गांधी लगातार दो हफ्ते से बिहार की सड़कों की खाक छानते रहे, उनके साथ 15 दिनों तक तेजस्वी यादव, दीपांकर भट्टाचार्य और मुकेश सहनी भी बने रहे. 15 दिनों की इस यात्रा में राहुल गांधी ने करीब 1300 किमी की दूरी तय की जिसमें 23 जिले शामिल थे. ये यात्रा 174 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरी. यहीं पर सारी यात्रा का निचोड़ है कि राहुल गांधी ने इसी रूट को क्यों चुना.

महागठबंधन ने इन 174 सीटों में से 74 सीटें जीतीं थी यानि 100 सीटों पर महागठबंधन को मेहनत करने की जरूर है. इन 174 सीटों में से आरजेडी 104 सीटों पर लड़ी थी जिसमें 50 पर सफलता पाई थी जबकि कांग्रेस 51 सीटें लड़ कर 14 पर सफलता पाई थी और सीपीएम माले 14 सीटों पर लड़ कर 9 सीट जीती थी. कहने का मतलब ये है कि यदि महागठबंधन को सत्ता में आना है तो इन सौ सीटों पर अच्छा करना होगा.

खासकर उन 16 सीटों पर जहां जीत का अंतर 5 हजार से कम का था जबकि 15 सीटों पर 5 हजार से 10 हजार के बीच का अंतर था. महागठबंधन को पहले इन 31 सीटों पर मेहनत करनी होगी यानि यदि 4 फीसदी का स्विंग चाहिए. कांग्रेस को सबसे पहले 20 फीसदी दलित वोट में सेंध लगानी होगी इसलिए पार्टी ने रविदास समुदाय के राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है.

बिहार में सबसे ज्यादा दलित मतदाता इसी समुदाय से आते हैं, फिर पासवान का नंबर आता है. महागठबंधन को अति पिछड़ा वर्ग में भी सेंध लगानी होगी तभी बात बनेगी. इसलिए राहुल गांधी इस यात्रा में मुकेश सहनी को लगातार अपने बगल में जगह दे रहे थे क्योंकि बिहार में मल्लाह वोट साढ़े तीन फीसदी तक है. बिहार में राहुल और उनकी वोट अधिकार यात्रा ने माहौल तो बना दिया है मगर महागठबंधन को इसे अगले एक महीने तक बरकरार रखना होगा. फिर सबसे जरूरी होगा उम्मीदवारों का चयन फिर जा कर हालात समझ में आएंगे क्योंकि अभी तो महागठबंधन शैडो बॉक्सिंग कर रही है क्योंकि एनडीए तो मैदान में उतरी ही नहीं है.

इतना तो जरूर है कि राहुल और तेजस्वी ने जो माहौल बनाया है उसे वोटों में तब्दील करने की ज़िम्मेवारी बिहार के स्थानीय नेताओं की होगी. मगर क्या कांग्रेस के पास जमीन पर इतना मजबूत संगठन है, कांग्रेस ने वोट अधिकार यात्रा में इतना जोड़ इसलिए लगाया हे जब वे आरजेडी और अन्य दलों के साथ सीटों के बंटवारे पर बैठें तो जीतने वाली सीटें लेने में कामयाब हो सके क्योंकि पिछले चुनाव में कांग्रेस को 70 सीटें दी गईं थीं मगर वो जीते केवल 19 और तेजस्वी की सरकार ना बनने का ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ा गया.

इस बार कांग्रेस इन यात्राओं और राहुल गांधी के दो हफ्ते तक बिहार में घूमने के बाद जीतने वाली सीट पर दावा करेगी. कांग्रेस इस बार 70 से कम यानि 55-60 तक सीटों पर ही दावा करेगी. महागठबंधन को लगता है कि मुकेश सहनी के आने से उनकी ताकत बढ़ी है मगर वो कितने भरोसे के होंगे यह वक्त ही बताएगा. जो भी हो राहुल गांधी ने बिहार में शुरूआती लीड तो ले ली है मगर जरूरी होगा इसको बरकरार रखना और यही महागठबंधन की सबसे बड़ी चुनौती होगी.

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