नीतीश के चेहरे के साथ बिहार विधानसभा चुनाव में उतरेगी NDA, जानिए बीजेपी के लिए क्यों जरूरी हैं 'सुशासन बाबू'

विपक्षी दलों ने नीतीश की सेहत और उनके लंबे शासन को मुद्दा बनाकर जनता के बीच यह संदेश देने की कोशिश की थी कि एनडीए में सब कुछ ठीक नहीं है. हालांकि एनडीए के इस कदम के बाद इन अटकलों पर विराम लगने की संभावना है.

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पटना:

बिहार में सियासी हलचल एक बार फिर तेज हो गई है, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने आगामी 2025 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को अपना चेहरा घोषित कर दिया है.  पिछले कुछ महीनों से नीतीश कुमार के नेतृत्व और उनकी सेहत को लेकर चल रही अटकलों पर अब विराम लग गया है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) और जनता दल यूनाइटेड (JDU) ने संयुक्त रूप से यह साफ कर दिया है कि बिहार में नीतीश कुमार ही एनडीए के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे. इस घोषणा ने न केवल विपक्षी दलों की रणनीति को झटका दिया है, बल्कि यह भी संकेत दे दिया है कि केंद्र में सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए नीतीश कुमार कितने अहम हैं. 

खत्म हुआ नीतीश के नाम पर असमंजस 
पिछले कुछ समय से नीतीश कुमार की सेहत को लेकर खबरें सुर्खियों में थीं.  खासकर जब से उनकी तबीयत नासाज होने की चर्चा शुरू हुई, विपक्षी दल इस मुद्दे को भुनाने में जुट गए थे. राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस जैसे दलों ने बार-बार यह दावा किया कि नीतीश कुमार का खराब स्वास्थ्य और उनकी उम्र भाजपा के लिए चिंता का सबब बन सकती है. विपक्ष का यह भी कहना था कि भाजपा बिहार में अपना मुख्यमंत्री चाहती है और नीतीश को दरकिनार कर सकती है. इन दावों को उस वक्त और हवा मिली जब कुछ राजनीतिक विश्लेषकों ने संकेत दिए कि पिछले 20 साल से बिहार की सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी (सत्ता-विरोधी लहर) भाजपा के लिए चुनौती बन सकती है. 

हालांकि, इन सभी अटकलों को खारिज करते हुए भाजपा और जदयू ने एकजुटता दिखाई है. चुनाव से करीब छह महीने पहले दोनों दलों ने स्पष्ट कर दिया कि नीतीश कुमार ही एनडीए के चेहरे होंगे. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जयसवाल ने हाल ही में एक बयान में कहा था कि बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व पर हमें कोई संदेह नहीं है. वह सुशासन के प्रतीक हैं और एनडीए उनके साथ मिलकर 2025 का चुनाव लड़ेगी. 

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बिहार में क्यों जरूरी हैं 'सुशासन बाबू'?
नीतीश कुमार को बिहार में 'सुशासन बाबू' के नाम से जाना जाता है. उनके नेतृत्व में बिहार ने पिछले दो दशकों में विकास के कई क्षेत्रों में प्रगति की है. सड़क, बिजली, शिक्षा और कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दों पर नीतीश की नीतियों को जनता ने सराहा है. हालांकि, विपक्ष अक्सर उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को लेकर हमला करता रहा है, लेकिन नीतीश का प्रशासनिक अनुभव और जनता के बीच उनकी स्वीकार्यता उन्हें एनडीए के लिए अपरिहार्य बनाती है. 

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इसके अलावा, केंद्र में एनडीए सरकार की स्थिरता में नीतीश कुमार की भूमिका बेहद अहम है. जदयू के पास लोकसभा में जो सांसद हैं, उनकी संख्या भाजपा के लिए महत्वपूर्ण है. नीतीश कुमार और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को वर्तमान सरकार के दो सबसे मजबूत सहयोगी माना जाता है. ऐसे में भाजपा का शीर्ष नेतृत्व किसी भी हाल में नीतीश के साथ रिश्तों में दरार नहीं डालना चाहता. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर भाजपा ने बिहार में नीतीश को दरकिनार करने की कोशिश की, तो यह केंद्र में उसकी सत्ता को भी खतरे में डाल सकता है.

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  • एनडीए ने 2025 विधानसभा चुनाव के लिए नीतीश कुमार को अपना चेहरा बनाया है. 
  • इस घोषणा ने विपक्षी दलों की रणनीति को झटका दिया है. 
  • भाजपा और जदयू ने एकजुटता दिखाकर अटकलों को खारिज किया. 
  • विपक्ष ने नीतीश की सेहत को मुद्दा बनाया था.
  • नीतीश के 20 साल के शासन से एंटी-इनकंबेंसी की आशंका थी.

विपक्ष की रणनीति को झटका
विपक्षी दलों ने नीतीश की सेहत और उनके लंबे शासन को मुद्दा बनाकर जनता के बीच यह संदेश देने की कोशिश की थी कि एनडीए में सब कुछ ठीक नहीं है. राजद नेता तेजस्वी यादव ने कई मौकों पर कहा था KF नीतीश जी अब थक चुके हैं, उनकी सेहत भी साथ नहीं दे रही.  बिहार को नए चेहरे की जरूरत है.  कांग्रेस ने भी इस मुद्दे को उठाते हुए दावा किया था कि भाजपा नीतीश को हटाकर अपना मुख्यमंत्री लाना चाहती है. लेकिन एनडीए की इस घोषणा ने विपक्ष की इन कोशिशों पर पानी फेर दिया है.

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एंटी-इनकंबेंसी का सवाल
नीतीश कुमार पिछले 20 सालों से बिहार के मुख्यमंत्री हैं. इस लंबे कार्यकाल के कारण उनके खिलाफ सत्ता-विरोधी लहर की आशंका जताई जा रही थी. विपक्ष का मानना था कि भाजपा इस जोखिम से बचने के लिए किसी नए चेहरे को आगे ला सकती है. लेकिन भाजपा ने साफ कर दिया कि वह नीतीश के अनुभव और उनकी छवि पर भरोसा करती है. 

2025 विधानसभा चुनाव की क्या होगी राह? 
2025 का बिहार विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए के लिए एक बड़ी परीक्षा होगा. उनकी सेहत, अनुभव और केंद्र में उनकी भूमिका इस चुनाव के प्रमुख मुद्दे रहेंगे. भाजपा और जदयू की एकजुटता से यह तो साफ है कि नीतीश अभी बिहार की सियासत से दूर होने वाले नहीं हैं.  अब यह देखना दिलचस्प होगा कि विपक्ष इस चुनौती का जवाब कैसे देता है और जनता किसे अपना अगला नेता चुनती है. 

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