मां मदनपुर देवी के दरबार में रोज आधी रात को हाजिरी देता है बाघ, राजा को मां ने इस तरह से दिए दर्शन

मदनपुर की देवी का मंदिर घने जगंलों के बीच स्थित है. ऐसी मान्यता है कि एक बाघ रोज रात को मां दुर्गा के दरबार में हाजिरी देने आता है. मंदिर और इससे जुड़ी कहानी के बारे में बता रहे हैं बिंदेश्वर कुमार.

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बगहा:

बिहार के पश्चिम चंपारण जिले में स्थित वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में जानवरों कई जंगली जानवरों का बसेरा है. इसी जंगल के बीचों-बीच स्थित है एक ऐसा प्राचीन और रहस्यमयी मंदिर, जहां विश्वास और रोमांच का अनूठा संगम देखने को मिलता है. यह मंदिर है मां मदनपुर देवी का. उनके बारे में कहा जाता है कि यहां दिन में भक्त दर्शन करते हैं, और हर आधी रात को एक बाघ देवी के दरबार में हाजिरी लगाता है.

यह अलौकिक घटना यहां के श्रद्धालुओं के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं है. स्थानीय लोगों के अनुसार, आधी रात में बाघ बिना किसी को नुकसान पहुंचाए मंदिर आता है, माता के सामने थोड़ी देर रुकता है और फिर चुपचाप जंगल में लौट जाता है. यह बाघ मानो देवी का रक्षक हो, जिसे देखने या जिसके बारे में सुनने के बाद श्रद्धालुओं की आस्था और भी गहरी हो जाती है. यही वजह है कि नेपाल और भारत के कोने-कोने से लोग अपनी मन्नतें लेकर इस 'जंगल के छिपे' दरबार में आते हैं.

राजा मदन सिंह, रहसू गुरु और देवी का क्रोध

मदनपुर देवी मंदिर की कहानी सदियों पुरानी है. यह राजा मदन सिंह और रहसू गुरु से जुड़ी है. प्राचीन काल में यह क्षेत्र राजा मदन सिंह के अधीन था, जो घने जंगलों से घिरा था. इन्हीं जंगलों में रहसू गुरु नामक एक सिद्ध साधु अनोखी साधना करते थे.

बिहार के बगहा में स्थित मदनपुर देवी मंदिर में इस पिंडी की पूजा की जाती है.

कथा के अनुसार, रहसू गुरु की शक्ति इतनी थी कि वे बाघों के गले में सांप की रस्सी डालकर उनसे 'दवंरी' (फसल की मड़ाई) करवाते थे. इससे 'कनकजीर' नामक सुगंधित धान निकलता था. जब राजा ने यह विचित्र बात सुनी, तो वे सैनिकों के साथ साधु के पास पहुंचे और देवी के दर्शन की जिद करने लगे.

साधु ने राजा को चेताया कि देवी का क्रोध सहना आसान नहीं है, इसके बाद भी राजा नहीं माने. रहसू गुरु ने जैसे ही देवी का आह्वान किया, एक भीषण घटना हुई— साधु का सिर फट गया और देवी माँ का हाथ बाहर प्रकट हुआ! देवी के इस अद्भुत और प्रचंड तेज को देखकर राजा मदन सिंह उसी स्थान पर अचेत होकर गिर पड़े और उनकी मृत्यु हो गई. माना जाता है कि इसी स्थान पर देवी पिंडी स्वरूप में विराजमान हुईं. धीरे-धीरे यह जगह श्रद्धा का केंद्र बन गई.

गाय का दूध और मंदिर की स्थापना

सालों बाद, एक व्यक्ति हरिचरण ने देखा कि एक गाय रोजाना इस पिंडी पर अपना दूध अर्पित कर रही है. उन्होंने वहां साफ-सफाई कर पूजा शुरू की. इसी के बाद लोगों का आना-जाना बढ़ा. एक और मान्यता यह है कि देवी ने अपनी रक्षा के लिए एक बाघ को वहीं स्थापित किया, जो हरिचरण के साथ रहने लगा.

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जंगल में स्थित होने के कारण मंदिर तक पहुंचना पहले बेहद कठिन था. लेकिन पनियहवा–बगहा रेल और सड़क पुल बनने के बाद उत्तर प्रदेश और बिहार के श्रद्धालुओं का आना आसान हो गया. अब यहां मंदिर का भव्य निर्माण हुआ है. मंदिर परिसर में विवाह, मुंडन जैसे धार्मिक कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं.

जंगल और आस्था का संतुलन

नवरात्रि के दौरान यहां का नजारा अद्भुत होता है, जब हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ 'जय माँ मदनपुर वाली' के जयकारे लगाती है. जंगल के बीचों-बीच दिव्य शक्ति का यह अनुभव भक्तों को अपार शांति देता है. यह मंदिर वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में आता है, इसलिए प्रशासन के लिए धार्मिक गतिविधियों और वन्यजीव संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखना एक चुनौती है. हालांकि, श्रद्धालुओं की गहन आस्था और सदियों पुरानी परंपरा को देखते हुए, प्रशासन द्वारा सीमित धार्मिक कार्यों के लिए छूट दी गई है, ताकि जंगल, बाघ और देवी का यह अनूठा संगम बरकरार रहे.

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