'भूमिहार बनाम भूमिहार' की लड़ाई: तेजस्वी के 'A to Z' दांव से NDA के कोर वोट बैंक में सेंधमारी?

विधानसभा चुनाव में अपनी सफलता के लिए सभी राजनीतिक दल जातीय समीकरण दुरुस्त करने में जुट गए हैं. सभी दल विभिन्न जातियों पर पकड़ रखने वाले नेताओं को अपनी ओर खींचने में लगे हैं. पार्टियां चुनाव प्रचार के बहाने जाति बहुल विधानसभा में संबंधित जातियों के स्टार प्रचारकों को भेज रहे हैं.

विज्ञापन
Read Time: 8 mins

बिहार में चुनाव की घड़ी जैसे जैसे करीब आ रही है, वैसे वैसे चुनाव प्रचार की शोर बढ़ता जा रहा है. हर पार्टी और गठबंधन अपने अपने हिसाब से से लोगों को अपनी ओर आकृष्ट करने का प्रयास कर रही है. किसी भी चुनाव में आम लोगों से जुड़े मुद्दे के साथ साथ हर पार्टी लोक लुभावने वादें कर के एक नैरेटिव बनाने का प्रयास करती है. हर चुनाव में अपनी सफलता के लिए सभी राजनीतिक दल जातीय समीकरण दुरुस्त करने में जुट गए हैं. सभी दल विभिन्न जातियों पर पकड़ रखने वाले नेताओं को अपनी ओर खींचने में लगे हैं. पार्टियां चुनाव में सामाजिक समीकरण साधने के लिए अलग अलग जाति बहुल विधानसभा क्षेत्र में संबंधित जाति के उम्मीदवार उतारने के साथ साथ प्रचार प्रसार के लिए उस जातियों के स्टार प्रचारकों को भेज रहे हैं, ताकि उनके प्रभाव वाली जाति को अपने पक्ष में लाकर अपने दल के प्रत्याशी को विजयी माला पहनाई जा सके. हिन्दुस्तान की राजनीति की यह एक कड़वी सच्चाई है कि बिना जातीय समीकरण साधे आप चुनावी सफलता नहीं पा सकते.

विधानसभा चुनाव में अपनी सफलता के लिए सभी राजनीतिक दल जातीय समीकरण दुरुस्त करने में जुट गए हैं. सभी दल विभिन्न जातियों पर पकड़ रखने वाले नेताओं को अपनी ओर खींचने में लगे हैं. पार्टियां चुनाव प्रचार के बहाने जाति बहुल विधानसभा में संबंधित जातियों के स्टार प्रचारकों को भेज रहे हैं, ताकि उनके प्रभाव वाली जाति को अपने पक्ष में लाकर अपने दल के प्रत्याशी को विजयी माला पहनाई जा सके.

बिहार के राजनीति में भूमिहारों का दबदबा..

संख्या में कम होने के बाबजूद भूमिहारों का बिहार की राजनीति में शुरू से ही दबदबा रहा हैं. बिहार में भूमिहारों की कुल आबादी लगभग 2.87% है, जो 2022 की जाति-आधारित जनगणना के अनुसार 3,750,886 लोगों के बराबर है. यह आंकड़ा बिहार की कुल जनसंख्या का एक छोटा सा हिस्सा. विगत है राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह भूमिहार समुदाय से आते हैं. इस समुदाय ने राजे और देश को एक से बढ़कर एक नेता दिया है. श्री बाबू से लेकर रामधारी सिंह दिनकर महेश बाबू, रामदयालू सिंह, कृष्णा शाही ऊषा सिंहा, नवलकिशोर शाही, LP शाही आदि. देश के आजादी के बाद आमतौर पर उच्च जाति का झुकाव कांग्रेस की तरफ रहा और खासकर भूमिहारों का. मंडल कमीशन के बाद जैसे-जैसे पिछड़े समाज के नेता जैसे लालू यादव का उदय हुआ और कांग्रेस प्रभाव कम हुआ है और भूमिहारों का झुकाव भाजपा की तरफ बढ़ता गया.

विगत करीब दो दशकों से इस जाती का झुकाव भाजपा की तरफ स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. बिहार की राजनीति में खासकर सवर्णों में भूमिहार ही लालू मुखर विरोध का केंद्र बिंदु बना हुआ हैं. पर इस चुनाव में अपने रणनीति में बदलाव लाते हुए तेजस्वी यादव ने NDA के कोर वोट बैंक के तोड़ने के लिए सवर्णों को टिकट दिल खोलकर दिया हैं.

जातिगत राजनीति के बीच खाकर भूमिहार समुदाय किस ओर झुकेगा, इस बात को लेकर भी चर्चा तेज़ है. भूमिहार समुदाय पारंपरिक रूप से बीजेपी को वोट देता आया है, लेकिन इस बार कई सीटों पर भूमिहार बनाम भूमिहार की लड़ाई छिड़ गई है, जिससे हर दल इन्हें अपनी ओर खींचने में जुटा है.

भूमिहार बनाम भूमिहार की लड़ाई में किसका पलड़ा भारी?

इस बार के विधानसभा चुनाव में भूमिहार समुदाय निर्णायक भूमिका में है. परंपरागत रूप से बीजेपी का समर्थन करने वाले भूमिहार अब भूमिहार बनाम भूमिहार के मुकाबलों में उलझे हैं. एक तरफ बीजेपी (NDA) ने 32 और वहीं महागठबंधन ने 15 भूमिहार प्रत्याशी उतारे हैं. कई सीटों पर इस बार जाति से ज़्यादा स्थानीय और विकास आधारित राजनीति हावी दिख रही है. बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए से मुकाबले के लिए महागठबंधन ने अपने सामाजिक समीकरण को विस्तार देने की कोशिश की है. महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कांग्रेस की अब तक की घोषित कैंडिडेट लिस्ट में इसके प्रयास दिखते हैं. दोनों दलों ने अपने परंपरागत वोटरों के साथ ही सर्वसमाज का भी पूरा ख्याल रखा है. उधर, वामदलों ने भी अपने-अपने आधार वोट बैंक को तवज्जो दी है. कांग्रेस ने 8 भूमिहार समेत 19 सवर्णों को टिकट दिया है. वहीं, राजद ने आधे से ज्यादा उम्मीदवार यादव समाज से उतारे हैं.

Advertisement

इस बार मुकाबला ओर रोचक इसलिए हो गया है कि कई सीटों पर भूमिहार बनाम भूमिहार की लड़ाई देखने को मिल रही है, जिनमें मोकामा, केसुआ, बरबीघा, बेगूसराय, मटिहानी, बिक्रम और लखीसराय जैसी सीटें शामिल हैं. बिहार के उप-मुख्यमंत्री विजय सिन्हा के खिलाफ कांग्रेस ने भूमिहार प्रत्याशी अमरेश अनीश को उतारा है. ऐसे में जहां दो भूमिहार प्रत्याशी हैं, वह सीटें हॉट सीट में तब्दील हो गई हैं. वही सबसे हॉट सीट मोकामा में अनंत सिंह मुकाबले सूरजभान सिंह। पटना के बिक्रम विधानसभा क्षेत्र में भी ऐसा ही मुकाबला देखने को मिल रहा है. बीजेपी प्रत्याशी और वर्तमान विधायक सिद्धार्थ सौरभ का सामना अनिल कुमार से है, और दोनों ही भूमिहार जाति से हैं. सिद्धार्थ सौरभ पूर्व में कांग्रेस विधायक थे, लेकिन उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया है.

राजद बिहार के बिक्रम, पाली, जहानाबाद, मोकामा, मुंगेर, बेगूसराय, नवादा जैसे इलाकों में भूमिहार वोटरों का प्रभाव अच्छा-ख़ासा है, और कहा जाता है कि जिस तरफ़ वे झुकते हैं, वह जीतता है, ने आधा दर्जन से अधिक भूमिहारों को टिकट दिया है, इसलिए पहले जैसी स्थिति नहीं रही है.

Advertisement

हर पार्टी में निर्णायक भूमिका : भाजपा हो या जेडीयू कांग्रेस हो या राजद भूमिहार समाज का एक महत्वपूर्ण भूमिका रही हैं. बिहार भाजपा के पितामह कैलाशपति मिश्रा को कौन नहीं जानता. भाजपा में गिरिराज सिंह से लेकर विजय सिन्हा सीपी ठाकुर दीपक ठाकुर जैसे दिग्गज भूमिहार नेता है. वहीं जेडीयू में विजय चौधरी अनंत सिंह नीरज कुमार अरुण कुमार जैसे दिग्गज चेहरे है. कांग्रेस की बात करें तो अखिलेश प्रसाद सिंह की भूमिका को कौन भूल सकता हैं. राजद ने भी मोकामा से सूरजभान सिंह लालगंज से शिवानी शुक्ला जहानाबाद शहर से राहुल शर्मा जैसे भूमिहार दिग्गजों को टिकट दिया हैं. तेजस्वी यादव हों या नीतीश कुमार या फिर बीजेपी, सबने इस दफे एक समय हाशिए पर चली गई जाति को लिस्ट में बखूबी जगह दी है. जातीय समीकरण के बीच, चाहे NDA हो या महागठबंधन, टिकट का ऐसा बंटवारा हुआ कि हारे कोई भी पार्टी लेकिन जीतेगी एक जाति विशेष ही.

बिहार में सियासी तौर पर कितना मजबूत है भूमिहार समुदाय?

बिहार में भूमिहार समुदाय की आबादी करीब 2.86 प्रतिशत है. बिहार में कई चर्चित नेता इस समुदाय से आते हैं. कुछ बाहुबली नेता भी इसी समुदाय से हैं. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह भूमिहार समाज से आते हैं. बाहुबली और मोकामा से विधायक अनंत सिंह भी इसी समाज से हैं. बाहुबली सूरजभान सिंह, आनंद मोहन सिंह भी भूमिहार समाज से ही आते हैं. बिहार में भूमिहार बाहुल सीटें 20 से 25 हैं. यहां भूमिहार समुदाय की आबादी भले ही न ज्यादा हो, लेकिन यह समुदाय बेहद प्रभावी है.

Advertisement

विधानसभा चुनाव में कितना असरदार है यह फैक्टर?

भूमिहार एकता मंच के सदस्य स्वतंत्र राय बताते हैं कि बिहार में करीब 20 सीटें ऐसी हैं, जहां भूमिहार वोटर जीत-हार तय करने की स्थिति में हैं. शाहपुर, बिहारशरीफ, हाजीपुर, महुआ, बेगूसराय, आरा, संदेश, डुमरांव, मोहनिया, मोकामा जैसे क्षेत्रों में भूमिहार का प्रभुत्व है. अब भूमिहार वोटरों को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही है. लगभग 2.87% आबादी वाली यह सवर्ण जाति, बिहार की राजनीति में प्रभावशाली रही है. 2005 के बाद से भूमिहारों का झुकाव मुख्य रूप से एनडीए (जेडीयू-बीजेपी) की ओर रहा है. हाल के वर्षों में उनके वोट आरजेडी और अन्य दलों में भी बंटे हैं.

भूमिहार मुंगेर, बेगूसरा, लखीसराय और नवादा में भी प्रभावी हैं. आरा, बक्सर, सीवान और वैशाली में भी अच्छी स्थिति में हैं. मिथिलांचल में भी कुछ जगहों पर भूमिहार वोटरों की संख्या प्रभावी है. भूमिहार एकता मंच के सदस्य हिमांशु राय बताते हैं कि अगर 2025 के चुनाव में भूमिहार एकजुट होकर नवादा, मुंगेर, बेगूसराय जैसे सवर्ण-प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में दम दिखाएं तो चुनाव में उनका दबदबा और बढ़ सकता है.

Advertisement

2020 में भूमिहार प्रतिनिधित्व कितना था?

साल 2020 के विधानसभा चुनाव में भूमिहार समाज के 15 सदस्यों को भारतीय जनता पार्टी ने टिकट दिया था. बिहार के डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा भी भूमिहार समुदाय से आते हैं, लखीसराय से विधायक हैं. साल 2020 के चुनाव में कुल 21 भूमिहार समुदाय के विधायक चुनाव में जीते थे. बीजेपी ने 14 भूमिहार प्रत्याशियों को टिकट दिया था, जिनमें 8 जीते, जेडीयू ने 8 टिकट दिया था, जिनमें से 5 ने जीत हासिल की। एनडीए के 14 विधायक भूमिहार समुदाय से आते हैं. महागठबंधन से करीब 6 विधायक भूमिहार समुदाय से हैं. साल 2015 में बीजेपी से 9, जेडीयू से 4 और कांग्रेस से 3 भूमिहार विधायक चुने गए थे.

बिहार विधानसभा चुनाव में यदि भूमिहारों के वोटों का बंटवारा होता है तो निश्चित ही इसका सीधा नुकसान एनडीए को होगा और इसका फायदा महागठबंधन को होगा. महागठबंधन ने इस बार भूमिहारों को ठीक ठाक प्रतिनिधित्व देकर एनडीए के वोट बैंक में सेंध लगाने का प्रयास किया है. तेजस्वी A टू Z की बात कर सामाजिक समीकरण साधना चाहते हैं ताकि आरजेडी के आधार वोट को विस्तार दिया जाए. आगामी विधानसभा चुनाव में इस सोशल इंजीनियरिंग का कितना फायदा महागठबंधन को और कितना नुकसान एनडीए को होता है, ये आने वाले चुनावी नतीजे ही तय करेंगे.

Featured Video Of The Day
Bihar Elections 2025: Yogi vs Akhilesh: माफिया, बुलडोजर और चुनावी टकराव | Syed Suhail | Anant Singh