लालू परिवार में चप्पल कांड के पीछे रोहिणी, मीसा और तेजस्वी की अरसे से सुलगती सियासी महत्वकांक्षा? 

परिवार के अंदर जो भी बिखराव होने लगा था, इस चुनाव की प्रचंड हार ने सब बाहर लाकर रख दिया और सबकुछ सबके सामने उधड़ गया. ऐसा उधड़ा कि अब तेजस्वी के व्यक्तिगत बूते से बाहर नजर आने लगा है.

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  • परिवार के अंदर जो भी बिखराव होने लगा था, इस चुनाव की प्रचंड हार ने सब बाहर लाकर रख दिया.
  • रोहिणी आचार्य ने लोकसभा चुनाव में सारण से टिकट जीतकर राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी.
  • लालू के पुराने साथी शिवानंद तिवारी भी सोशल मीडिया से एक विद्रोह करते हुए लालू धृतराष्‍ट्र करार दे दिया है.
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पटना:

रोहिणी के विवाह के वक्त की बात है. टाइम्स ऑफ इंडिया के पत्रकार छेंका/ रोका के पहले जब लालू प्रसाद यादव के होने वाले समधियाना पहुंचे तो यह देख दंग रह गए की वहां दो-दो हाथी बंधे थे और वातावरण शुद्ध सामंती था. राव रणविजय सिंह , लालू जी के समधी मुंबई (तब बॉम्बे) में आयकर के वरिष्ठ अधिकारी थे और वर स्वयं आईटी सेक्टर में. बस इतना ही याद है. 

मुंबई में सैटल्‍ड रोहिणी 

डॉक्‍टर रोहिणी आचार्य अपने जीवन में दाऊदनगर, बॉम्बे के बाद सिंगापुर में व्यस्त नजर आई. मायके आना जाना लगा रहता था_ उसी सिलसिले में लालू को किडनी में दिक्कत हुई और बेटी ने भावना में बहकर जो कुछ करना था किया. फिर लोकसभा चुनाव आया और रोहिणी को सारण से टिकट मिला. राजीव प्रताप रूडी और रोहिणी, दोनों का ही मैं मुरीद था तो मैंने दोनों पर लिखा.

पटना लौटे बड़े दामाद 

लालू अपनी बड़ी बेटी का विवाह भी सहरसा, मधेपुरा के बड़े बड़े खानदानी यादव परिवार में करना चाहते थे. पुराना चावल किसे नहीं पसंद. लेकिन जहां तक मुझे पता चला कि तब उन्हें यादव समाज में एलीट क्लास में तरजीह नहीं मिली थी. आखिरकार नौकरीपेशा परिवार में बड़ी बेटी का विवाह ही नहीं किया बल्कि बड़ी बेटी को घर में ही रखा. दामाद की कॉरपोरेट नौकरी छुड़वा दी और पटना में ही उन्‍हें एस्टेब्लिश कर दिया. 

यहीं से शुरू विवाद!

शायद, यहीं से मामला उलझना शुरू हुआ. डॉक्‍टर मीसा भारती मायके में रहते हुए, राजनीतिक वातावरण में अपनी महत्वाकांक्षा बढ़ाने लगीं और चुनाव भी लड़ी. फिर डॉक्‍टर रोहिणी आचार्य भी उसी लाइन में लगीं. और फिर अंदर मामला उलझता गया और ऐसा उलझा की पिछले चुनाव में तो तेजप्रताप अपना उम्मीदवार तक आगे बढ़ाने लगे थे. इसी बीच लालू, तेजस्वी को डॉक्‍टर मीसा भारती के सहारे उत्तराधिकारी बना चुके थे.

तेजस्वी की चुनौती परिवार में शीर्ष पर बने रहने की थी. इतना लंबा परिवार जहां हर किसी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा बढ़ रही हो, तेजस्वी एक बाहरी संजय यादव पर निर्भर होने लगे थे. यही बात अब परिवार को अंदर ही अंदर अखरने लगी थी. 

परिवार का विद्रोह आया सामने 

परिवार के अंदर जो भी बिखराव होने लगा था, इस चुनाव की प्रचंड हार ने सब बाहर लाकर रख दिया और सबकुछ सबके सामने उधड़ गया. ऐसा उधड़ा कि अब तेजस्वी के व्यक्तिगत बूते से बाहर नजर आने लगा है. अभी अभी लालू के पुराने साथी शिवानंद तिवारी भी सोशल मीडिया से एक विद्रोह करते हुए लालू धृतराष्‍ट्र करार दे दिया है. कई ऐसे लोग अब विद्रोह के इंतजार में होंगे और कई साथ वाले अपना कद बढ़ने के इंतजार में. लालू परिवार की राजनीति और वर्चस्व तो सन 2010 बिहार विधानसभा चुनाव में ही खत्म हो गया था मगर साल 2015 में नीतीश कुमार जब इनके खेमे में गए तो वर्चस्‍व फिर से जिंदा हो गया. लेकिन 15 साल से बिहार में खिंच रहा है. 

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